मुंबई या कहें महाराष्ट्र में कुछ लोगों ने खासी असहिष्णुता फैला रखी है। इससे डर यह ज़रूर लगता है कि साहित्य और विविध ललितकलाओं के संरक्षण और विकास के लिए मशहूर राज्य में कहीं रूढि़वादी ठहराव न आ जाए। असहिष्णुता से ताजा सामना पड़ा बालीवुड के नए सिनेमा दौर के नामी अभिनेता और मराठी रंगमंच पर आज भी सक्रिय कलाकार अमोल पालेकर का!
मुंबई नेशनल गैलरी ऑफ माडर्न आर्ट्स (एनजीएमए) में आमंत्रित अतिथि वक्ता के तौर पर अमोल पालेकर जब भाषण दे रहे थे तब उनके भाषण के दौरान कई बार टोका टोकी की गई। लेकिन रुकावट पहुंचाने वाली इन तमाम बाधाओं को उन्होंने बतौर उदाहरण अपने भाषण में शामिल करते हुए अपनी बात पूरी की।
कलाकार प्रभाकर बर्वे की याद में एनजीएमए में लगी प्रदर्शनी में अपनी बात अमोल पालेकर ने जब कहनी शुरू की तो एनजीएमए के ही लोगों ने उन्हें टोकना शुरू किया। अमोल पालेकर भाषण देते हुए रुके लेकिन मंच पर जमे रहे। उन्होंने गैलरी के बंगलुरू और मुंबई केंद्र में सलाहकार समितियों को भंग करने के मुद्दे पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की आलोचना की। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि मुंबई और बंगलुरू के क्षेत्रीय केंद्रों में कलाकारों की सलाहकार समितियां भंग कर दी गई हंै। उन्हें यह सुनकर आश्चर्य हुआ।
हालांकि अभी वे इस खबर की पुष्टि नहीं कर सके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यहां आए आप लोगों में कईयों को शायद यह जानकारी न हो कि स्थानीय कलाकारों की सलाहकार समिति द्वारा आयोजित अंतिम ‘शो’ हो सकता है। इसका आयोजन ‘मोरेल पुलिस’ या खास तरह की विचार धारा को बढ़ावा देने वाले सरकारी एजेंटों या सरकारी बाबुओं ने नहीं किया।
उनकी बात पूरी होती तभी एनजीएमए के मुंबई केंद्र की निदेशक अनिता रुपावतरम ने उन्हें टोका वे अपनी बात इस आयोजन के ही परिप्रेक्ष्य में रखें। इस पर पालेकर ने पूछा,’ मैं बात तो इस संदर्भ में रख रहा हूं। क्या आप सेंसरशिप लगा रही हैं। अमोल पालेकर ने अपनी बात रोकी नहीं। उन्होंने कहा, जहां तक उन्हें जानकारी है स्थानीय कलाकारों की सलाहकार समितियों के भंग करने के बाद संस्कृति मंत्रालय यह तय करेगा कि किस कलाकार की कला का प्रदर्शन हो और किसका नहीं। तभी उन्हें फिर एनजीएमए की ही एक महिला सदस्य ने टोका अभी यह सब कहने की ज़रूरत नहीं है। माफ कीजिए, यह आयोजन प्रभाकर बर्वे के बारे में है। कृपया उन्हीं पर बात कीजिए।
इस पर पालेकर ने कहा, बोलने पर यह जो सेंसरशिप है उसे हम यहां देख रहे हैं। कहा जा रहा है, यह मत बोलो, वह मत बोलो।, यह मत खाओ, वह मत खाओ।’ मैं तो सिर्फ यह कह रहा हूं कि एनजीएमए जो कला की अभिव्यक्ति और ललित कलाओं के संवर्धन का पवित्र स्थल रहा है उस पर यह किस तरह का नियंत्रण हो रहा है। अभी हाल किसी ने कहा भी है कि ‘मानवता के खिलाफ जो युद्ध चल रहा है उसकी यह सबसे ताजा त्रासदी है।
मैं इससे बहुत परेशान हूं। अब तो और ज़्यादा। यह सब कहां जाकर थमेगा। आजादी का हमारा सागर सिमट रहा है। अभी धीरे-धीरे, पर सिमटना लगातार जारी है। हम इस पर खामोश क्यों हैं? आश्चर्यजनक तो यह है कि जिन लोगों को इस आदेश की जानकारी है वे भी न तो खुल कर बात करते हैं न उस पर सवाल करते हैं और न उसका विरोध करते हैं।
उन्होंने कहा, अभी हाल मराठी साहित्य सम्मेलन से वरिष्ठ साहित्यकार नयनतारा सहगल को न्यौता भेजा गया। लेकिन आयोजन के अंतिम समय में उन्हें आने से मना कर दिया गया। क्यों ऐसा हुआ? इसलिए क्योंकि आज हम जिस परिस्थिति में रह रहे हैं उसका वे विरोध कर सकती थीं, और यहां भी हम वैसी ही परिस्थिति बना रहे हैं। अमोल पालेकर के भाषण के दौरान टोकाटोकी पर जब एनजीएमए की मुंबई केंद्र निदेशक से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा जिन मुद्दों पर अमोल पालेकर ने अपनी बात रखी उस पर हमसे वे व्यक्तिगत चर्चा करते तो कहीं बेहतर होता।
बहरहाल एक कलाकार की हैसियत से अमोल पालेकर ने जो चिंता जताई उस पर उनका ध्यान बंटाने की जो कोशिश बार-बार की गई उसके पक्ष में शायद ही कुछ लोग हों।
जिग्नेश मेवानी के कारण रोका गया कार्यक्रम
वडनगर (गुजरात) के एचके आर्टस कालेज का सालाना उत्सव इसलिए रोक दिया गया क्योंकि वहां जिग्नेश मेवानी को मुख्य अतिथि बनाया गया था। इतना ही नहीं इसी मामले में कालेज के प्रिंसीपल और वाइस प्रिंसीपल दोनों ने इस्तीफा दे दिया। प्रिंसीपल हेंमत कुमार शाह और वाइस प्रिंसीपल मोहन भाई परमार दोनों ने अपने इस्तीफे कालेज के ट्रस्टियों को भेज दिए।
कालेज के प्रिंसीपल हेंमत कुमार शाह ने बताया कि कालेज का सालाना समारोह सोमवार को होना था। जिग्नेश मेवानी को वहां मुख्यातिथि के तौर पर बुलाया गया था। ध्यान रहे जिग्नेश इसी कालेज में पढ़े हैं। लेकिन भाजपा, समर्थित कुछ युवा नेताओं ने कालेज के प्रिंसीपल, वाइस प्रिंसीपल और ट्रस्टी बोर्ड को धमकी देनी शुरू कर दी।
प्रिंसीपल का कहना है कि ट्रस्ट ने भाजपा से जुड़े लोगों के आगे घुटने टेक दिए। धमकी देने वालों ने कहा था कि यदि वहां कोई समारोह हुआ तो वे लोग वहां हुड़दंग मचाएगे फिर चाहे वहां पुलिस भी हो उसकी कोई परवाह नहीं। इस पर कालेज के ट्रस्ट ने यह समारोह रद्द कर दिया। प्रिंसीपल ने कहा कि मैंने यह इस्तीफा इसलिए दिया है क्योंकि इस स्थिति में कोई भी होता वह ऐसा ही करता। उन्होंने ट्रस्ट के इस फैसले को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर प्रहार बताया। उन्होंने यह भी कहा कि यह ऐसा राज्य है जहां शिक्षा को सरकार,विश्वविद्यालय और यहां तक कि छात्र भी दबाने पर लगे हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ महीने पहले अहमदाबाद के कर्णावती विश्वविद्यालय में आयोजित ‘यूथ पार्लियामेंट’ में अमित शाह, सैम पित्रेदा, सुब्रामणियम स्वामी और दूसरे कई राजनैतिक लोगों को बुलाया गया था, तो लोग बडगांव के निर्वाचित विधायक को बुलाने के खिलाफ क्यों हैं।