इस समय पूरी दुनिया कोविड-19 की दूसरी लहर से जूझ रही है। सभी देश इसके शिकार हैं। लाखों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं, और न जाने कितने और अभी काल का ग्रास बनेंगे। इसके बचाव की कई वैक्सीन भी अब बाज़ार में हैं। इन सबके बावजूद इंसानी जीवन ख़तरे में हैं।
दूसरी ओर खेलों के महाकुम्भ ओलंपिक-2020 को इस साल तक के लिए बढ़ा दिया गया था, जिसका आयोजन पिछले साल टोक्यो (जापान) में होना था। लेकिन हालात अब भी जस-के-तस बने हुए हैं। बहुत-से देशों ने इन खेलों को रद्द करने की माँग की है; लेकिन जापान और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (एआईओसी) इन्हें हर हाल में करवाने पर तुली हुई है। उसका यह रुख़ हैरान करने वाला है। यह सही है कि जब भी हमें अपने देश को नीचा दिखाना होता है, तो हमारे लोग जापान की मिसालें देना शुरू कर देते हैं। हालाँकि उनमें अधिकतर दन्तकथाएँ ही होती हैं। जबकि वास्तिकता यह है कि जापान में यह बीमारी बुरी तरह फैली हुई है। टोक्यो समेत जापान के बहुत-से शहर और क्षेत्र इसकी चपेट में हैं। वहाँ ह$फ्तों से अपातकाल लागू है और इसके 20 जून तक बढ़ाये जाने का अंदेशा है। जापान में अब तक आवादी के पाँच फ़ीसदी से भी कम हिस्से को कोविड-19 की वैक्सीन दी जा सकी है। यदि अमीर देशों से इसकी तुलना करें, तो यह दर सबसे कम है। यही वजह है कि दुनिया में ओलंपिक खेल स्थगित करने की माँग बढ़ती जा रही है। एक नये सर्वेक्षण के अनुसार, 83 फ़ीसदी लोग चाहते हैं कि ये खेल रद्द या स्थगित हों, जबकि इस साल अप्रैल में केवल 69 फ़ीसदी लोग ऐसा चाहते थे।
जापान ओलंपिक समिति की कार्यकारी सदस्य काओरी यामागुची का मानना है कि जापान कोविड-19 के दौरान ओलंपिक खेलों को लेकर दुविधा यह में है। एक संपादकीय में यामागुची ने कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी), सरकार और स्थानीय आयोजक जापानी जनता के ओलंपिक के ज़ोरदार विरोध की अनदेखी कर रहे हैं। यामागुची के अनुसार, विभिन्न जनमत संग्रहों में जापान की 50 से 80 फ़ीसदी जनता ने ओलंपिक आयोजन के ख़िलाफ़ मतदान किया है। यामागुची ने लिखा है कि हम ऐसी स्थिति में फँस गये हैं, जहाँ हम रुक नहीं सकते। अगर रुकते हैं, तो बहुत बड़ा नुक़सान होगा और यदि नहीं रुकते, तो भी भारी नुक़सान होना है। ऐसा लगता है कि आईओसी के लिए जापान की जनता की राय कोई अर्थ नहीं रखती।
पूरी दुनिया से हज़ारों खिलाड़ी, अधिकारी, पत्रकार और दूसरे लोग इन खेलों में भाग लेंगे। चिकित्सकों की बहुत-सी संस्थाओं ने चेताया है कि अगर इन खेलों को न टाला गया, तो यह कोरोना पूरे जापान में तबाही मचाने के साथ साथ पूरे विश्व के लिए घातक साबित होगा। सवाल यह है कि आख़िर क्या कारण है कि चिकित्सकों, विशेषज्ञों की चेतावनी और लोगों की इच्छा के विरुद्ध भी ओलंपिक कमेटी और जापान की आयोजन समिति दोनों इन खेलों को स्थगित या रद्द करना नहीं चाहतीं। अब इनके शुरू होने में दो महीने से भी कम का समय बचा है। यह फ़ैसला जल्दी होना चाहिए। क्या इन खेलों को रद्द न करने की मंशा के पीछे मोटी कमायी का लालच है?
इन हालात में क्या कारण है की ओलंपिक कमेटी और जापान की आयोजन समिति दोनों इन खेलों को स्थगित या रद्द करना नहीं चाहते। अब इनके शुरू होने में दो महीने से भी कम का समय बचा है। यह फ़ैसला जल्दी होना चाहिए। इसकी पृष्ठभूमि में झाँकने से पता चलता है कि जितनी कमायी इन खेलों से आईओसी और आयोजन समिति को होनी है, उसे छोडऩा आसान नहीं है। इस तरह मोटे तौर पर देखें, तो आईओसी को एक अरब से अधिक का फ़ायदा होगा। आईओसी को सबसे अधिक लाभ ब्रॉडकास्टर्स की फीस से होता है। यह कुल मुनाफ़े का लगभग 75 फ़ीसदी इस तरीक़े से आता है। 18 फ़ीसदी इनके कॉरपोरेट सहयोगी देते हैं। इतनी बड़ी रक़म लिए सभी की ज़िन्दगी दाँव पर लगाने लगे हैं।
जापान की सरकार भी इसकी तैयारी पर 150 अरब डॉलर ख़र्च कर चुकी। वह भी नहीं चाहती की खेल रद्द किये जाएँ। लेकिन सवाल यह है कि क्या पैसों की ख़ातिर खिलाडिय़ों की ज़िन्दगी को दाँव पर लगाना समझदारी होगी? सन् 1896 से लेकर आज तक के 125 साल के ओलंपिक आन्दोलन के सफ़र में दो बार पहले भी ये खेल रद्द किये जा चुके हैं। पहले सन् 1940 में रद्द किये गये। ये खेल भी संयोगवश टोक्यो में ही आयोजित होने थे। फिर सन् 1944 के खेल रद्द करने पड़े, जो कि लंदन में होने थे। ये दोनों ओलंपिक दूसरे विश्व युद्ध के कारण रद्द करने पड़े थे। दूसरा विश्वयुद्ध सन् 1939 से सन् 1945 तक लड़ा गया।
इस तरह मौज़ूदा स्थिति में इन खेलों को कराने का फ़ैसला कितना सही अथवा कितना ग़लत है? यह तो समय ही बताएगा। लेकिन इतना ज़रूर है कि यह बहुत जोखिम भरा है, जो कि काफ़ी घातक सिद्ध हो सकता है।