कोरोना महामारी ने शिक्षा के सिस्टम को को तहस –नहस कर दिया है। आज शिक्षा, को सिस्टम में लाने के लिये तामाम जतन किये जा रहे है, कि शिक्षा अपने पुराने तारतम्य में आ सकें । जिस प्रकार दुनिया भर के उच्च शिक्षण संस्थानों में आँनलाइन शिक्षा का माँडल तेजी से विस्तार ले रहा है। वहीं मेडिकल काँलेज तक में भी आँनलाइन परीक्षा कराकर शिक्षा के स्वरूपों में नये बदलाव की शुरूआत कर रहे है। हालांकि तहलका संवाददाता ने उच्च शिक्षा से जुड़े प्रोफेसरों और छात्रों से बात की तो उन्होंने कहा कि माना कि कोरोना काल में आँनलाइन एक विकल्प तो हो सकता है। पर समाधान नहीं हो सकता है। आँनलाइन और आँफलाइन को लेकर काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
बतातें चलें यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने अपने दिशा –निर्देश में जारी करते हुये कहा कि अब कंटेनमेंट जोन के बाहर यूनिवर्सिटीज और काँलेजों को खोला जाये और आँनलाइन ,आँफलाइन और मिश्रित मोड़ में पढ़ाई कराई जाये।यूजीसी के सचिव प्रो. रजनीश जैन की ओर से जारी दिशा –निर्देश के अनुसार कैंपस प्लेसमेंट , प्रयोगशाला, लाइब्रेरी और कक्षाओं में 50 प्रतिशत छात्रों को एक दिन में आने की अनुमति होगी। छात्रों को 6 फुट की दूरी का पालन करना होगा और मास्क लगाना जरूरी होगा। साथ ही कैंटीन पूरी तरह से बंद रहेगी। अपने दिशा-निर्देश पर इस बात पर पूरा बल दिया गया है, कि अगर किसी के संक्रमित मिलने पर कैंपस को फिर से बंद किया जायेगा।
अब बात करते है कि टीचर्स आँनलाइन पढ़ाई को लेकर असहज और असहमति व्यक्त कर रहे है। इसके पीछे उनके तर्क और तथ्य है कि उन्होंने ने कोरोना काल के पूर्व आँनलाइन पढ़ाई के बारे में सोचा तक नहीं था।अब आँनलाइन को लाईन में लाने में उनकी दिक्कत हो रही है कि कहीं वे पढ़ाई में कोई चूक ना कर जाये। सो असहज महसूस कर रहे है।
इस बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी की सहायक प्रो. सुचि वर्मा का कहना है कि आँनलाइन पढ़ाई के पक्ष में वे नहीं है। लेकिन कोरोना काल में एक विकल्प के तौर पर आँनलाइन पढ़ाई तो ठीक है। क्योंकि कोरोना जैसी संक्रमित बीमारी से बचना जरूरी है।उनका कहना है कि वे रसायन विज्ञान की सहायक प्रोफेसर है। जहां पर छात्रों को प्रयोगशाला में जाकर प्रयोग करने होते है। लैबों में जाकर टीचरों के समक्ष प्रयोग करना होता है। जब तक टीचरों और छात्रों के बीच परस्पर शिक्षा नहीं मिलती है। तब तक पढ़ाई को खास कर काँलेजों में आने वालें नये छात्रों को सही जानकारी व ज्ञान हासिल नहीं हो सकता है। प्रो. वर्मा का कहना है कि आमने-सामने टीचरों और छात्रों के बीच जो पढ़ाई होती है। उससे छात्रों के बीच जो प्रश्न होते है उनका समाधान तुरन्त टीचर करते है।दिल्ली यूनिवर्सिटी के सहायक प्रो. संजय कुमार का कहना है कि भले ही यूजीसी कहें कि आँनलाइन पढ़ाई होनी चाहिये पर टीचरों के समक्ष कोरोना काल में एक प्रकार से टीचरों के सामने में तकनीकी सिस्टम में पढ़ाना काफी असहज हो रहा है। बड़ी संख्या में टीचर आँनलाइन पढ़ाई से असहमत है और असहज महसूस कर रहे है। ज्यादा टीचरों का कहना है कि बदलते कोरोना के माहौल में और नौकरी बचाने के लिये तकनीकी सिस्टम के बीच तालमेल बैठाने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि महामारी ने सभी नये तरीकों पर नये तरीके से सोचने को मजबूर कर दिया है। हालत तो ये है कि अब .कोविड फ्री. कैंपस तक बन रहे है।
जे एन यू के छात्र कुमार पराग का कहना है कि कोरोना काल में जिस तरीके से सरकार अपनी मनमर्जी कर सरकारी सिस्टम को अपने तरीके चला रही है।जिसमें शिक्षा प्रणाली को तहस –नहस किया जा रहा है। क्योंकि सरकार के संकेतों पर गौर किया जाये तो आने वाले दिनों में कुछ सरकारी संस्थानों को छोड़ दे तो छोटे-छोटे संस्थानों में आँनलाइन पढ़ाई के माध्यमों से उन संस्थानों के भवनों और कैंपस को खाली कराया जायेगा। फिर धीरे-धीरे बड़े कैंपसों को।
अभिभावक पीयूष जैन का कहना है कि कोरोना काल ने हमें तामाम परेशानियों में डाला है, तो तामाम नये अनुभवों और स्वरूपों से परिचित करवाया है। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में सारा सिस्टम तकनीकी पर ही निर्भर होगा। उसमें अगर शिक्षा प्रणाली तकनीकी के तहत आँनलाइन होती है। तो ठीक है। क्योंकि आँनलाइन सिस्टम पार्दशिता लाती है। आँनलाइन के माध्यम से जब काँलेजों की फीस जमा की जा सकती है तो पढ़ाई क्यों नहीं । क्योंकि आँनलाइन में पढ़ाई करने वाले छात्रों का कैंपस-कालेजों में आने –जाने का समय बचेगा। यातायात व्यवस्था वाधित नहीं होगी। हां इतना जरूर होना चाहिये छात्रों को काँलेज में आने के लिये एक दिन निर्धारित करना चाहिये ताकि छात्र- टीचर का परस्पर संपर्क बना रहे।
पूर्व शिक्षक केदार नाथ भट्ट का कहना है कि ये तो होना ही था । क्योंकि संकेत तो पहलें ही मिलने लगे थे कि तकनीकी का जिस तरीके से बोलबाला और दखल बढ़ रहा था तो शिक्षा विभाग कैसे बच सकता था। क्योंकि मोबाइल युग आने के बाद अस्पताल का एपायमेंट, रेल का टिकट, बैकों में रूपयों का आदान –प्रदान हो ही रहा था। तो ये बात तो समझ में आने लगी थी कि आने वालें दिनों में शिक्षा के क्षेत्र में अपनी दखल ही नहीं देगा बल्कि अपने सिस्टम में शामिल ही करेगा।उनका कहना है कि तकनीकी से हमें तुरन्त तामाम जानकारियां मिलती है। पर ज्ञान नहीं मिलता है। ज्ञान को हासिल करने के लिये हमें जो सदियों से चली आ रही गुरू और शिष्य के बीच चली आ रही परम्परा के तहत ही पढ़ाई करना होगा।
आँनलाइन पढ़ाई को साजिश का हिस्सा बताते हुये जेएनयू के छात्रों का कहना है कि देश दुनियां में जो एक सिस्टम आँनलाइन का चला है वो घर बैठे पढाई कराने और घर बैठे काम करने को प्रेरित करता है। ताकि सरकारी भवनों को सरकार बड़ी आसानी से खाली करा सकें। छात्रों का कहना है कि जेएनयू को खाली कराये जाने के लिये फिछले सालों में काफी कम छात्रों के दाखिले हुये है। क्योंकि जेएनयू की कीमतीजगह पर सरकार की पहले से ही नजर है।
जेएनयू के एक प्रोफेसर का कहना है कि जब धीरे-धीरे सब कुछ खुल रहा है । बाजार खुल रहे है। चुनाव हो रहे है चुनावी सभाये हो रही है। आना-जाना हो रहा है। तब कोई कोरोना का डर नहीं दिख रहा है। तो अब ऐसा क्या हो रहा है कि आँनलाइन के माध्यम से पढाई पर ही बल दिया जा रहा है।