हंदवाड़ा मुठभेड़, जिसमें हमने अपने पाँच बहादुर जाँबाज़ों- कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद, नाइक राजेश, लांस नायक दिनेश और उप-निरीक्षक सगीर पठान को खो दिया; 2019 के पुलवामा हमले के बाद सबसे घातक आतंकी घटनाओं में से एक थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आगे राष्ट्र के इन सच्चे सपूतों को श्रद्धांजलि दी। अपनों को खो देने की गहन पीड़ा के बावजूद शहीदों के परिवारों ने असाधारण साहस का परिचय दिया। दु:खी परिजनों की सोशल मीडिया पर हज़ारों बार हृदय विदारक तस्वीरें शेयर हुईं, जिन पर गहन भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ भी आयीं, जिन्हें शब्दों में बयान करना मुश्किल है। ये परिवार अपने प्रियजनों के सर्वोच्च बलिदान पर शान्त और गौरवान्वित दिखायी दिये। वास्तव में ये परिवार इस धैर्य और समर्पण के लिए एक कृतज्ञ राष्ट्र से सलाम के हकदार हैं। लेकिन अफसोस होता है कि अन्त में हम सैनिकों के इस सर्वोच्च बलिदान को महज़ आँकड़ों तक सीमित करके चुप हो जाते हैं। हंदवाड़ा के ठीक दो दिन बाद जम्मू-कश्मीर में एक और दु:खद घटना हुई, जब कुपवाड़ा ज़िले में आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ के तीन जवान शहीद हो गये।
जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएँ बढ़ रही हैं। लगातार हो रही आतंकवादी गतिविधियाँ इस बात की भी पुष्टि करती हैं कि पूर्ण राज्य से जम्मू-कश्मीर को यूटी के दर्जे में बदलने से वहाँ अशान्ति कम नहीं हो सकी है, और न पाकिस्तान से संचालित आतंकी घटनाओं पर कोई लगाम ही कसी जा सकी है। पहले जम्मू-कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा छीनना वास्तव में भारत का आंतरिक मामला था। मुठभेड़ों और हताहतों की बढ़ती संख्या यह दर्शाती है कि कोरोना वायरस के इस संकटकाल में भी पाकिस्तान के आतंकी कारखाने अपने नापाक मंसूबों के साथ चल रहे हैं। क्या पाकिस्तान कोरोना वायरस प्रकोप का फायदा उठाने की फिराक में है? और भारतीय सैनिकों को मार रहा है। वह भी तब, जब पूरा देश तालाबन्दी के ज़रिये जान बचाने की जुगत में लगा है। भारत के लिए पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा प्रहार करने का समय आ गया है। हंदवाड़ा मुठभेड़ के कुछ दिन बाद ही सुरक्षा बलों ने बदला लेते हुए पुलवामा ज़िले में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाज़ नाइकू को मार गिराया। नाइकू आठ साल से फरार चल रहा था और उसके सिर पर 12 लाख रुपये का इनाम था। इसलिए निश्चित रूप से कश्मीर में उग्रवाद के लिए उसकी मौत आतंकी मुहिम के लिए बड़ा झटका होगी।
हालाँकि एक बिन्दु पर हम सभी को विचार करने की ज़रूरत है। वह यह है कि जब पाकिस्तान में आतंकवादियों और उनके आकाओं ने भारत विरोधी अभियानों को तेज़ किया है; तब देश में व्हाट्सएप, फेसबुक, टाइमलाइन पोस्ट, ट्वीटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वास्तविक नायकों (हीरो) को सलाम करने की जगह फिल्मी नायकों- इरफान खान और ऋषि कपूर से सम्बन्धित संदेशों से भरे पड़े थे। कुछ मीडिया हाउस भी इसी गलत सोच के शिकार हैं, जो हमारे देशवासियों की भटकी प्राथमिकताओं को उजागर करते हैं। फिल्मी नायकों की प्रशंसा करना बुरा नहीं, लेकिन असली नायक (सैनिक) हमारी सलामी के बड़े हकदार हैं। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें यह समझना होगा कि हम डेढ़ महीने से ज़्यादा के अभी तक के लॉकडाउनकाल में एक भी नयी फिल्म देखे बगैर जीये हैं। लेकिन यदि अग्रिम पंक्ति के ये योद्धा सरहदों पर न हों, तो हम एक दिन भी नहीं जी पाएँगे।