तहलका ने मई, 2020 के पहले पखवाड़े में एक विश्लेषण प्रकाशित किया, जिसमें इस बात का ज़िक्र था कि क्या किसी भी धर्म के प्रचार के लिए ध्वनि यंत्र (लाउडस्पीकर आदि) की आवश्यकता है? और यदि कोई धाॢमक सम्प्रदाय इसका दावा करता है, तो क्या ऐसा कोई अधिकार संविधान के अनुच्छेद-25 में उसे हासिल है? विश्लेषण के तहत सभी कानूनी पहलुओं- ‘किसी भी धर्म को इसके प्रचार के लिए ध्वनि यंत्र की आवश्यकता है?’ में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय (इलाहाबाद हाई कोर्ट) की एक खण्डपीठ ने एक जनहित याचिका संख्या-570 पर फैसला दिया है।
दो अन्य लोगों के साथ गाज़ीपुर के सांसद अफज़ाल अंसारी ने यूपी सरकार के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें गाज़ीपुर में लोगों के धर्म के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के लिए केवल सम्बन्धित ज़िले की मस्जिदों के मुअ•िज़न से पवित्र अज़ान का पाठ करने की माँग की गयी थी। क्योंकि इससे कोविड-19 के तहत जारी किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं होता। याचिका में न्यायालय से गुहार लगायी थी कि वह महामारी के दौरान ऐसा करने की इजाज़त देने के प्रशासन को निर्देश दे।
इसमें ज़ोरदार ढंग से यह निवेदन किया गया कि अज़ान का पाठ इस्लाम का अभिन्न अंग है और यह किसी भी तरह से समाज की महामारी के प्रति सामूहिक प्रतिक्रिया को कम करके नहीं आँकता। रमज़ान के पवित्र महीने के दौरान विश्व भर में पूरा मुस्लिम समुदाय सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोज़ा (उपवास) रखता है। रोज़े की शुरुआत और समापन का समय अज़ान से ही चिह्नित होता है। यह भी निवेदन किया गया कि अज़ान की आवाज़ से व्रत खोलने की प्रथा पैगम्बर के समय से एक इस्लामिक परम्परा है और पिछले 1400 वर्षों से ऐसा ही किया जा रहा है। कोविड-19 प्रतिबन्धों के कारण अज़ान का उच्चारण एक सामूहिक प्रथा नहीं रही, बल्कि एक व्यक्ति (मुअ•िज़न) का सस्वर पाठ हो गया। लिहाज़ा यह लॉकडाउन के कारण लगे किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं करता।
यह निवेदन किया गया था कि गाज़ीपुर का ज़िला प्रशासन ध्वनि उपकरणों के माध्यम से अज़ान सुनाने से ज़िले की सभी मस्जिदों पर प्रतिबन्ध लगा रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद-25 के तहत प्रदान किये गये मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अज़ान का पाठ करना एक धाॢमक समुदाय के कल्याण के लिए है। यह किसी भी तरह से सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य का विरोधाभासी नहीं है, जिसे प्रशासन निषिद्ध या प्रतिबन्धित करे। जनहित याचिका में न्यायालय से सभी नागरिकों की पूजा के लिए आध्यात्मिक सुविधा और संवैधानिक अधिकार की पूर्ण भावना को संरक्षित करने का आह्वान किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि जनसंख्या में वृद्धि के कारण अज़ान के लिए इस्लाम के सभी मानने वालों तक पहुँचना सम्भव नहीं था। इसलिए दिन में पाँच बार लाउडस्पीकर के माध्यम से अज़ान अनुच्छेद-25 के तहत मिले धाॢमक अधिकारों का हिस्सा है। लाउडस्पीकर के माध्यम से अज़ान को लेकर किसी भी तरह की रोक या पाबन्दी को असंवैधानिक घोषित करना होगा। शीर्ष अदालत और कलकत्ता हाई कोर्ट के मौलाना मुफ्ती सैयद मोहम्मद नूर-उर-रहमान बरकती और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल सरकार और अन्य के मामले में विभिन्न निर्णयों के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अज़ान इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा है; फिर भी माइक्रोफोन और लाउडस्पीकर का उपयोग अज़ान का एक अनिवार्य और अभिन्न हिस्सा नहीं है।
किसी भी व्यक्ति को दूसरों का अधिकार छीनने का अधिकार नहीं है। इस देश में अनुच्छेद-25 के प्रावधानों को छोडक़र कोई धाॢमक स्वतंत्रता नहीं है, जो सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य और संविधान के अन्य प्रावधानों के अधीन है। संविधान के अनुच्छेद-19(1)(क) के तहत मिली धर्म की स्वतंत्रता दूसरों के अधिकारों के साथ जुड़ी है। अर्थात् धाॢमक स्वतंत्रता अनुच्छेद-19(1)(क) के तहत अन्य के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों को कम, हटा या निलम्बित नहीं कर सकती है।