ऐसा कहा जाता है कि अच्छे लोगों की चुप्पी बुरे लोगों की क्रूरता से ज़्यादा ख़तरनाक है। गाजा में जारी डरावने दृश्य के मामले में यही हो रहा है। यह वास्तव में मानवता पर संकट है और गाजा के अल-शिफ़ा अस्पताल में सैन्य छापे की हालिया रिपोट्र्स भयावह हैं। इससे भी भयावह बात यह है कि कई देश चुप हैं, जो तुच्छ मुद्दों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हैं; लेकिन इस गम्भीर संकट पर गहरी चुप्पी साध रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के प्रमुख मार्टिन ग्रिफिथ्स ने 15 नवंबर को एक्स को पोस्ट किया कि ‘नवजात शिशुओं, रोगियों, चिकित्सा कर्मचारियों और सभी नागरिकों की सुरक्षा को अन्य सभी चिन्ताओं पर हावी होना चाहिए। अस्पताल युद्ध के मैदान नहीं हैं।’
इसके जवाब में इजरायल का कहना है कि वह अस्पताल के नीचे कथित तौर पर कमांड सेंटर चलाने के लिए हमास के ख़िलाफ़ अस्पताल में लक्षित अभियान चला रहा है। हालाँकि अस्पताल परिसर में टैंकों की उपस्थिति ने स्थिति को भयावह बना दिया है।
यह स्पष्ट है कि इस सारे मामले में कूटनीति का सहारा नहीं लिया गया। अब समय आ गया है कि भारत युद्ध विराम के लिए दबाव बनाये। भारत ने कुछ दिन पहले ही संयुक्त राष्ट्र महासभा में युद्ध विराम के प्रस्ताव में हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन ऐसी स्थिति में जब जीवन बचाने के लिए हर पल मायने रखता है, भारत को मानवीय संकट को कम करने के लिए निर्णायक भूमिका निभानी चाहिए।
वास्तव में गाजा में तबाही हमास द्वारा इजरायल के 1,000 से अधिक लोगों को मारने और 240 लोगों को बंधक बनाने के क्रूर हमले का परिणाम है; लेकिन हमास को नष्ट करने और प्रतिशोध लेने के लिए 14,000 से अधिक लोगों को मारने के लिए इजरायल की प्रतिक्रिया और भी क्रूर है। कम-से-कम 70 प्रतिशत आबादी को जबरन विस्थापित किया गया है। इजरायल का गाजा में हमला मानवता की हत्या है। इसमें सबसे ज़्यादा पीडि़त बच्चे, महिलाएँ और निर्दोष लोग हैं। हर देश को पीड़ा को रोकने के लिए एक मौलिक ज़िम्मेदारी का सामना करना पड़ता है। भारत ने तनाव कम करने और शान्ति की जल्द बहाली की ज़रूरत पर अपना रुख़ अपनाया है; लेकिन उसे इजरायल से सार्थक सुधार के लिए दुनिया के अपरिहार्य भावनात्मक समर्थन जुटाना होगा। अब तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी कहा है कि अस्पतालों की रक्षा की जानी चाहिए।
इजरायल-हमास युद्ध पर भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया इजरायल की ओर एक रणनीतिक झुकाव को दर्शाती है और फिर भी इसे इस कड़ी प्रतियोगिता में संयुक्त राज्य अमेरिका या किसी अन्य शिविर के साथ व्यापक संरेखण के रूप में ग़लत व्याख्या नहीं की जानी चाहिए। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भू-राजनीतिक संदर्भों में जो बात दोहरायी है, वह मध्य पूर्व में भारत के रुख़ के लिए भी उतनी ही सही है- ‘यह मत सोचिए कि भारत के लिए किसी धुरी में शामिल होना ज़रूरी है। भारत को अपनी पसंद चुनने का अधिकार है, जो उसके मूल्यों और हितों का संतुलन होगा।’ समय आ गया है कि भारत अपनी चुप्पी तोड़े और तत्काल युद्ध विराम के विकल्पों को स्पष्ट करने के लिए अपनी आवाज़ उठाये।