जयपुर के चांदपोल इलाके में रहने वाली गीताबाई एक निजी अस्पताल मेें अपने 65 वर्षीय पिता कस्तूरचंद को दिखाने आयी थी। अस्पताल ने उनके पिता केा नि:शुल्क इलाज देने के नाम पर पीठ में एक छोटा-सा चीरा लगा दिया। लेकिन अस्पताल ने वो किया, जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। अस्पताल ने भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के नाम पर किडनी की पथरी और पाइप डालने का 26 हज़ार रुपये का भारी-भरकम क्लेम उठा लिया। जबकि कोई ऑप्रेशन हुआ ही नहीं था। यह अस्पताल प्रबन्धन की दोहरी घात थी। पहली कारस्तानी मरीज़ की जान के साथ खिलवाड़। दूसरी, स्वास्थ्य योजना के साथ धोखाधड़ी! यह घटना और ऐसी अनगिनत घटनाएँ बेशक मौज़ूदा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हो रही है। लेकिन पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के दौरान भी फर्ज़ी क्लेम के खेल में कोई कमी नहीं रही।
देश प्रदेश में सरकारी योजनाओं में घोटालों के बवंडर पहले भी उठते रहे हैं। लेकिन दो वर्ष तक सुलगते रहने के बाद फर्ज़ीवाड़े का बम फटा तो हडक़ंप मच गया कि निजी अस्पताल मरीज़ों के भामाशाह स्वास्थ्य कार्ड पर न सिर्फ मोटी रकम डकार रहे थे। बल्कि मरीज़ों की •िान्दगी भी खतरे में डाल रहे थे। पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार विधानसभा चुनाव के चंद महीने पहले ही सितम्बर 2018 में एक हज़ार करोड़ की भामाशाह डिजिटल योजना लायी थी। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना अधिनियम के तहत चयनित 98 लाख परिवारों को इस योजना का लाभ देना था। भाजपा सरकार ने पहली और दूसरी किश्त के रूप में 33 लाख परिवारों केा 630 करोड़ रुपये बाँटे थे। लेकिन निजी अस्पतालों ने इस योजना को कमाऊ अल्फाज़ के साथ मंत्रसिद्ध कर लिया कि ‘थोड़ी पैनल्टी चुकाओ, फिर बीमा कम्पनियों के करोड़ों डकारो!’ तो फर्ज़ीवाड़े का परनाला रिसने में कहाँ देर थी। नतीजतन भामाशाह योजना जाँच के दायरे में तो आ गयी। लेकिन आयोजना विभाग की जवाबदेही में खामोशी के चलते योजना ठप कर दी गयी। इस मामले में सरकार की ज़ुबान खुली तो एक नये खुलासे के साथ कि ‘प्रदेश में केन्द्र सरकार की आयुष्मान योजना और पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की भामाशाह योजना का विलय कर नयी योजना शुरू की जाएगी। इस नयी योजना का नाम ‘आयुष्मान भारत महात्मा गाँधी राजस्थान स्वास्थ्य बीमा योजना’ रखा गया। बताते चलें कि आयुष्मान योजना को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल में देश भर में लागू किया था। लेकिन प्रदेश की वसुंधरा सरकार ने भामाशाह येाजना संचालित होने का तर्क देकर इसे लागू नहीं किया था। चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का कहना था कि राजस्थान में अब दोनों योजनाएँ एक साथ चलेंगी। पहले योजना में पात्र परिवारों की संख्या एक करोड़ थी। अब नयी योजना में इनकी संख्या बढक़र एक करोड़ 60 लाख हो जाएगी। इस फेरबदल की ज़रूरत का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह कहकर खुलासा किया कि ‘भामाशाह योजना में जमकर भ्रष्टाचार हो रहा था। निजी क्षेत्र के कई अस्पताल जमकर धाँधली कर रहे थे। इसे रोकने का एकमात्र यही विकल्प था। लेकिन फर्ज़ीवाड़े का खून मुँह लगा चुके निजी क्षेत्र के अस्पतालों को यह बदलाव रास नहीं आया। नतीजतन भामाशाह कार्ड के इलाज पर सरकार और निजी अस्पतालों के बीच जंग ठन गयी है। सरकार ने बेशक कह दिया कि किसी भी निजी अथवा सरकारी अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीज़ का बीमा क्लेम पहले की तरह पास किया जाएगा। लेकिन निजी अस्पतालों ने कार्ड धारकों को दो-टूक मना कर दिया है कि हमें ऐसे कोई आदेश नहीं मिले हैं; इसलिए इलाज नहीं करेंगे। अलबत्ता प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसएमएस अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर आर.एस. मीणा ने ज़रूर कहा कि इलाज पहले की तरह ही मिलेगा।
हमें सरकारी आदेशों की कॉपी मिल चुकी है। किन्तु प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नॄसग सोसायटी के सचिव विजय कपूर का कहना है कि हमें न तो कम्पनी और न ही सरकार से इलाज जारी करने के आदेश मिले हैं। फिर क्लेम का पैसा भी तो समय पर नहीं मिलता। इसलिए रोक दिया गया है। अब दीगर बात है कि 12 दिसंबर रात्री 12 बजे से भामाशाह कार्ड का बीमा करने वाली न्यू इंडिया कम्पनी का टर्न ओवर पूरा हो चुका है। लेकिन सरकारी अधिकारियों का दावा है कि टीपीए के माध्यम से तीन माह तक क्लेम जारी रखा जाएगा।’ हालात जो भी हो िफलहाल तो सेहत के दुश्मन पूरी तरह ढिठाई पर उतारू है।