कोरोना काल में एक बात तो लोगों की समझ में आ गयी है कि कोरोना का बचाव अगर स्वयं नहीं किया तो, जान के लाले पड़ सकते है। ये कहना है कि दिल्ली में जो कोरोना जैसी बीमारी के चपेट में आये है। कोरोना से पीड़ित रहे रामकिशन का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में आज भी सही मायने में बिना अप्रोच के मरीजों को आँक्सीजन और बेड नहीं मिल रहे है। लोगों को मजबूरी में अपनी जान बचाने के लिये निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
उन्होंने आप बीती तहलका को बताई की कोरोना के रोगी के नाम प मरीजों के साथ सबसे पहले डाँक्टर और कर्मचारी ऐसे व्यवहार करते है। जो कोई ये घातक प्राणी सामने आ गया हो। मरीजों के साथ ठीक व्यवहार ना होने पर मरीज तन और मन से टूट रहे है। 33 वर्षीय बबीता का कहना है कि उनके पति जोगेन्द्र को कोरोना हुआ तो दिल्ली के लोकनायक अस्पताल ले जाया गया, वहीं पर स्वास्थ्य सेवा लड़खड़ाती और बिगड़ती हालत को देख कर वे एक निजी अस्पताल में ले गये।जहां पर 97 हजार रूपये जमा करने पड़े, तब जाकर इलाज हुआ। लेकिन आँक्सीजन की कमी के कारण डाँक्टरों व पैरामेडिकल कर्मचारियों का आमानवीय चेहरा देखने को मिला। जिससे बहुत मन टूटा और लगा कि कोरोना से ज्यादा घातक इलाज कराना हो रहा है।
इसी तरह आशोक गोंसाई का कहना है कि दिल्ली में मौते के आंकडों पर गौर करों तो लगातार मौतें हो रही है। लेकिन जो कोरोना के मामले कम हो रहे है। उसके पीछें टेस्टिंग कम हो रही है। और आंकड़े बाजी कम हो रही है।
दिल्ली में कोरोना पीडितों के साथ उनके परिजनों को अस्पतालों के साथ होता है अमानवीय व्यवहार जिससे होती है। मरीज और परिजनों को परेशानी। परिजनों का कहना है कि ऐसे सरकार और डाँक्टर को हौसला बढ़ाना चाहिये जो नहीं बढ़ाया जा रहा है।