पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय के सामने राजस्थान सरकार ने दावा किया था कि अरावली की पहाड़ियों में खनन पूरी तरह बंद है. लेकिन राष्ट्रीय राजधानी के मुहाने पर बसे सीकर जिले की तस्वीर ही इस दावे की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है. शिरीष खरे की रिपोर्ट
राजस्थान की राजधानी जयपुर को देश की राजधानी दिल्ली से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-8 के साथ ऊंट के आकार-सी उठती-बैठती अरावली पर्वत श्रृंखला भी सरपट दौड़ती है. मगर हमें जिसकी तलाश है उसका रास्ता जयपुर से कोई दो घंटे की दूरी पर पावटा कस्बे से खुलता है. यह सीकर जिला है, राजस्थान में चल रहे अवैध खनन और उससे हो रहे पर्यावरण विनाश का एक बड़ा केंद्र. यहां के दुर्गम रास्तों से 45 किलोमीटर दूर नीम का थाना (सीकर की एक तहसील) की तरफ बढ़ते हुए सफेद पत्थरों से ओवरलोडेड ट्रकों का काफिला देखकर ही पता चल जाता है कि आगे आपको बड़े पैमाने पर खनन देखने को मिलेगा. और आधा घंटे के बाद ही आपको बूचाड़ा नदी का वह किनारा भी मिल जाता है जिसके किनारे-किनारे कोई 15 किलोमीटर तक बजरी (बारीक पत्थर) फिल्टर प्लांटों का जाल बिछा हुआ है. यहीं बने बूचाड़ा बांध से लगी पहाड़ियों पर थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाले धमाकों से इलाके में चल रहे खनन के काले कारोबार की सूचना सुनी जा सकती है. जगह-जगह पर मशीनी पंजों के जरिए अरावली के सीने से पत्थरों को निकालकर बड़े-बड़े पहाड़ इकट्ठा किए गए हैं. और उनकी ढुलाई के लिए नजदीक ही बड़ी तादाद में ट्रक भी तैनात हैं. मशीनों पर न तो सर्दी-गर्मी का असर पड़ता है और न ही दिन-रात का. लिहाजा खुदाई से ढुलाई तक का काम बेरोकटोक जारी है.
खनन माफिया अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ पत्थरों की इतनी खुदाई कर जाते हैं कि ठीक-ठाक कुछ बताया भी नहीं जा सकता. यह तो खनन का शुरुआती दृश्य है. इससे भयावह रूप पहाडि़यों के बीच छिपा है. यहां के गांव टोडा से लेकर भराला और रायपुर मोड़ से लेकर पाटन और कोटपुतली इलाके की पहाड़ियों तक बर्बादी का आलम कई किलोमीटरों में टुकड़ों-टुकड़ों में बिखरा दिखता है.
अरावली भारत के सबसे प्राचीन पर्वतों में से एक है. दिल्ली के कुछ उत्तर से गुजरात तक तकरीबन 692 किलोमीटर लंबी यह पर्वत श्रृंखला बीच-बीच में टूट गई है. इसी के पश्चिमी भाग पर बालेश्वर पर्वत श्रृंखला की गोद में राजस्थान का यह जिला स्थित है. दिल्ली और हरियाणा के नजदीक स्थित यह इलाका फिलहाल लूट की गहरी खदानों में तब्दील हो चुका है. स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ता कैलाश मीणा बताते हैं, ‘इस इलाके की स्थिति सड़क पर पड़े उस ट्रक की भांति है जिसमें भरे संतरों को बचाने की बजाय लोगों द्वारा उसे लूटा जाता है. दिल्ली और गुड़गांव के कुछ रसूखदारों के लिए भी यह इलाका अब लूट का गढ़ बन चुका है.’
खनन माफिया ने सीकर में बहने वाली कासावती नदी को पत्थरों से पाट दिया है, इसके चलते रायपुर बांध में पानी की आवक भी ठप पड़ गई है
2002 में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में खनन के नए पट्टे के आवंटन पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. बीते साल सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथपत्र में भी राज्य सरकार ने यहां किसी भी तरह का खनन न होने का दावा किया था. मगर स्थानीय बाशिंदे बताते हैं कि बीते दो साल में अवैध खानों के चलते इलाके का नक्शा कुछ ऐसा बदला है कि अब स्थानीय आदमी ही रास्ता भूल जाए तो वह एक खान से दूसरी खान में भटकता रह जाएगा.
अरावली की इसी पट्टी पर मोडा पहाड़ी भी है. कई करोड़ रुपये का घोटाला सामने आने के बाद इसे घोटाला पहाड़ी भी कहा जाने लगा है. सितंबर, 2010 में स्थानीय लोगों ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से अवैध खनन को लेकर लिखित शिकायत की थी. मुख्यमंत्री कार्यालय के निर्देश पर खनन विभाग के एक दल ने जब यहां का दौरा किया तो भारी मात्रा में अवैध खनन की शिकायत को सही पाया. इसके बाद 18 खानों को बंद किया गया. दल ने अपनी रिपोर्ट में 18.44 लाख टन अवैध खनन की पुष्टि और 23 करोड़ रुपये जुर्माना वसूलने की सिफारिश की थी. मगर इस कार्रवाई के बाद बाद में वही हुआ जो यहां सालों से चलता आ रहा है. सीकर के खनन इंजीनियर द्वारा वसूली किए बिना ही सभी 18 खानों को दुबारा खनन करने की अनुमति दे दी गई और खनन आज भी धड़ल्ले से जारी है. नीम का थाना नगर पालिका के चेयरमेन केशव अग्रवाल बताते हैं, ‘इस धंधे के गैरकानूनी तौर-तरीके पुलिस, अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत के बिना मुमकिन नहीं. यह तो एक पहाड़ी पर हुए अवैध खनन का मामला है. यहां से पूरे इलाके में जारी लूट की छूट का अनुमान लगाया जा सकता है.’
यहां खनन माफिया के लिए खनन का एक मतलब है जितनी खुदाई उसी अनुपात में पानी का दोहन भी. इसके लिए नदी-नालों और बांधों को भी नहीं बख्शा गया है. सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान अप्रधान खनिज (छोटे खनिज) अधिनियम,1986 के अनुसार जल भराव क्षेत्रों में खनन नहीं हो सकता. मगर यहां के रेला बांध भराव क्षेत्र में 16 खानों से खनन का मामला उजागर हुआ है. इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा कलेक्टर धर्मेंद्र भटनागर और पूर्व कलेक्टर जीएल गुप्ता सहित कई अधिकारियों को नोटिस भेजा गया है. दूसरी तरफ ऐसे मामलों से बेपरवाह खनन माफिया क्रशिंग मशीनों का रास्ता बनाने के लिए कई नदियों का रास्ता भी रोक रहा है. यहां कासावती एकमात्र ऐसी नदी है जिसमें लगातार पानी बहता था. मगर माफिया ने अपने कारोबार के लिए नदी का रास्ता भी रोक दिया है. उसने खनन क्षेत्रों से निकलने वाले भारी-भरकम पत्थरों से नदी को पाट दिया है. इससे बीते छह महीने में कासावती का पानी तो रुका ही, नदी पर बने रायपुर बांध के लिए पानी की आवक भी ठप पड़ गई है. इसी क्रम में पाटन के डाबरा नदी के आस-पास फैले बजरी फिल्टर प्लांटों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आपत्ति जताए जाने के बावजूद प्लांटों से चौबीसों घंटे बजरी साफ की जा रही है. इससे कई गांवों में ट्यूबवेलों के पानी से बारूद की बदबू आना आम बात हो गई है. इसी के समानांतर धरती का सीना छलनी करने वाली बोरिंग मशीनों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है. 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान की सभी बोरिंग मशीनों का रजिस्ट्रेशन करने का आदेश दिया था. मगर आरटीआई से मिली सूचनाएं बताती हैं कि सीकर जिले में एक भी बोरिंग मशीन का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. जाहिर है खनन के इस कारोबार में प्रतिदिन लाखों लीटर पानी को भी अवैध तौर पर ही उलीचा जा रहा है.
यहां पत्थरों से सोना बनाने के खेल में पर्यावरण के कई नियमों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मापदंडों के मुताबिक आबादी से 1,500 मीटर और स्कूलों से 500 मीटर की सीमा में कोई भी विस्फोट नहीं किया जा सकता. मगर यहां आबादी और स्कूलों से बामुश्किल 100 मीटर के दायरे में ही धमाका कर दिया जाता है. इन धमाकों से कई घर धसकते हैं तो कई पत्थर स्कूल की दीवारों से टकरा जाते हैं. कुठियाला गांव में खनन माफिया की धमक का खौफ कुछ ऐसा है कि यहां का स्कूल खाली हो चुका है. फिलहाल इस स्कूल में माफिया का कार्यालय खुला है. वहीं रामल्यास गांव में स्कूल के हेडमास्टर ब्रजमोहन बताते हैं कि धमाकों से कोई न कोई कमरा चटकता ही रहता है. बच्चे जिस छत के नीचे पढ़ने आते हैं उसकी बार-बार मरम्मत के बाद भी हालत इतनी जर्जर है कि पता नहीं यह कब गिर जाए.
सवाल है कि धमाकों में काम आने वाला बारूद आता कहां से है. आरटीआई के तहत मिली जानकारी में भारत सरकार के पेट्रोलियम एवं विस्फोटक सुरक्षा संगठन ने बताया कि उसने सीकर जिले में सिर्फ पांच लोगों को प्रतिदिन 70 से 250 किलोग्राम तक विस्फोट करने का लाइसेंस दिया है. इलाके के लोग बताते हैं कि यहां हर दिन तकरीबन 100 से 150 धमाके होते हैं और एक धमाके में कम से कम 120 किलो बारूद की जरूरत होती है. इस हिसाब से हर दिन यहां कम से कम 12,000 किलो बारूद का इस्तेमाल हो रहा है. सीधा मतलब है कि गैरकानूनी तरीके से यहां की खानों में प्रतिदिन कई क्विंटल विस्फोटक का प्रयोग किया जाता है. यहां अवैध विस्फोटक को कई बार पुलिस ने जब्त भी किया है लेकिन ज्यादातर मामलों में खानापूर्ति के बाद मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है. जबकि विस्फोटक अधिनियम, 1908 में जीवन को खतरे में डालने या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले विस्फोटक को रखने पर दस वर्ष के कठोर कारावास का प्रावधान है. दो साल पहले स्थानीय लोगों की मुहिम पर उच्च कोटि के विस्फोटक से भरा एक ट्रक पाटन पुलिस चौकी के पास पकड़ा गया था. मगर सिविल न्यायाधीश ने ड्राइवर को मात्र एक हजार के जुर्माने पर छोड़ दिया. हालांकि न्यायाधीश ने पाटन थानाधिकारी को विस्फोटक नष्ट करने का भी आदेश दिया था, लेकिन आरटीआई से मिली सूचना से पता चला है कि बाद में पुलिस ने यह विस्फोटक भी ट्रक के मालिक को ही सौंप दिया.
सवाल यह भी है कि इन पहाडि़यों से निकला माल ट्रकों के जरिए अपनी मंजिल तक पहुंचता कैसे है. डाबला पहाड़ी इलाके के किसान मालीराम बताते हैं कि उनके गांव में हर दिन 40 ट्रकों की आवाजाही होती है. कई व्यापारी बताते हैं कि यह माल पड़ोसी राज्य हरियाणा की सीमा से बाहर पहुंचता है. पाटन से सटे हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले की दूरी सिर्फ आठ किलोमीटर है और धूल उड़ाते ट्रकों का रास्ता भी पाटन पुलिस थाने से होते हुए सीधा हरियाणा की ओर जाता है. ऐसे में पुलिस के कुछ नहीं कर पाने से उसकी भूमिका संदिग्ध बन जाती है. मगर सीकर कलेक्टर धर्मेंद्र भटनागर कहते हैं, ‘हर चौकी पर सख्ती से जांच की जाती है.’ उनका तर्क है कि यहां पर्याप्त चौकियां नहीं हैं और अगर कोई ट्रक किसी तरह हरियाणा की सीमा में चला जाए तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता.
विडंबना यह है कि खनन की अवैध गतिविधियों को रोक पाने में नाकारा साबित हुए कई विभागों के पास उससे जुड़ी बुनियादी सूचनाएं तक नहीं. जैसे कि आरटीआई के तहत तहसीलदार, विद्युत विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जब नीम का थाना में कुल स्टोन क्रशरों की संख्या पूछी गई तो सभी ने अलग-अलग आंकड़ा दिया. तहसीलदार ने 52, विद्युत विभाग ने 173 और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 34 स्टोन क्रशर बताए. वहीं कुछ मामलों में सूचनाएं होने के बाद भी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की गई. हालांकि भूमि राजस्व अधिनियम, 1991 की धारा 6 के मुताबिक अगर कोई अधिकारी या कर्मचारी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की सूचना होने के बावजूद कार्रवाई नहीं करता तो वह भी सजा का पात्र है. मगर आरटीआई से मिली सूचनाएं बताती हैं कि राजस्व विभाग के अधिकारियों को इस इलाके के नदी-नालों सहित चरागाहों की सरकारी जमीनों पर खनन माफिया द्वारा किए गए कब्जों की जानकारी है. मगर अफसरशाही पर खनन माफिया इस कदर भारी है कि किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.