बाघिन अवनी को आदमखोर बता कर जिस प्रकार उसे मारा गया वह जनमानस के गले नहीं उतर रहा। उस जानवर की मौत ने इंसानों के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ तथ्य ऐसे हैं जो उसके आदमखोर होने पर संदेह पैदा करते हैं। प्रशासन ने 13 मौतें के लिए अवनी को दोषी ठहराया। यह किस आधार पर, इसका कोई उत्तर नहीं क्योंकि डीएनए टेस्ट केवल तीन शवों के करवाए गए। इसमें से भी केवल देा के शरीरों पर बाघ द्वारा मारे जाने के निशान मिले। इससे भी यह स्पष्ट नहीं हुआ कि वे अवनी के पंजों और दांतों के निशान थे।
बाघिन अवनी के बारे में जांच से यह बात सामने आई कि वह छह साल की थी और उसके साथ दो शावक भी थे। उसके शावक 10 महीने के थे। उसका आवास महाराष्ट्र के यवतमाल जि़ले के पंढरकावाड़ा में था। यह उसका प्राकृतिक घर था। ध्यान देने वाली बात यह है कि इस वन में स्थानीय लोगों के अलावा चूना, कोयला और डोलोमाइन की तलाश करने वालों का आना-जाना लगातार लगा रहता है।
मिली जानकारी के मुताबिक यहां पर 500 हैक्टेयर ज़मीन अनिल अंबानी को सीमेंट का कारखाना लगाने के लिए मात्र 40 करोड़ में बेच दी। पर उन्होंने इसे एक और व्यापारिक घराने को 4800 करोड़ में बेच दिया। इससे ऐसा लगता है कि जंगल की ज़मीन पर लोग कब्ज़े की कोशिश करते जा रहे हैं। इन सभी के लिए अवनी एक बड़ी रु कावट थी क्योंकि वह संरक्षित प्रजाति की जानवर थी जिसे मारा या हटाया नहीं जा सकता था। इसी कारण उस पर आदमखोर होने का लेबल चिपका दिया गया। इस बात को बहुत प्रचारित भी किया गया। आरोप है कि इस अभियान की शुरूआत राज्य के वनमंत्री ने की। इसका विरोध पूर्व केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्री मेनका गांधी ने भी किया था। उन्होंने वनमंत्री पर राज्य में जानवरों की हत्या का अभियान चलाने के आरोप भी लगाया था। अवनी को मारने के लिए हैदराबाद के शिकारी नवाब शफात अली खान को मंत्री ने ही बुलाया। आरोप है कि शफातअली पर कानून उल्लंघन के कई मामले पहले ही चलते रहे हैं।
कर्नाटक वन विभाग के गुप्तचर विभाग ने 2005 में उसे अवैध शिकार के लिए पकड़ा था। उसे 1991-92 में माओवादियों को हथियार सप्लाई करने के आरोप में पकड़ा गया था। अवनी के मामले में अदालत ने भी संयम बरतने को कहा था पर मंत्री ने नहीं सुना। उधर मेनका गांधी ने मध्यप्रदेश के लोगों को कहा था कि वह अवनी को बेहोश कर नई जगह भेज देगी। मंत्री का भी आश्वासन था कि शफात अली केवल पर्यवेक्षक के तौर पर वहां मौजूद रहेंगे। जानवरों के डाक्टरों का दल कानून के मुताबिक बाघिन और उसके शावकों को पकड़ेगी।
पता चला है कि नबाव का बेटा असगर अली रात को अवैध रूप से वन में आया और उसने अवनी को गोली मार दी। उसका कहना है कि अवनी ने उस पर हमला कर दिया था। लेकिन घटनास्थल के हालात कुछ और ही बयान करते हैं। असल में .300 बिन रायफल की गोली जानवर के एक कंधे में घुस कर दूसरे से बाहर निकल गई। यदि उसने हमला किया होता तो गोली सामने के हिस्से में लगती। कानून के मुताबिक किसी भी जानवर को रात्रि में बेहोशी की दवा नहीं दी जा सकती। यह भी पता चला है कि अवनी को बेहोशी की दवा उसे गोली मार देने के बाद दी गई। एक बात यह भी सामने आई है कि इस कैलिबर की बंदूक की इज़ाजत कानून नहीं देता। अवनी के शरीर से 7.62 मिलीमीटर व्यास की गोली निकली जिसका भार 11.50 ग्राम था। प्रशासन ने नबाव उसके बेटे को निर्देश दिया कि वे बैलिस्टिक जांच के लिए अपने हथियार और कारतूस जमा करना दें, पर पता चला है कि उन्होंने अपने हथियार राज्य के बाहर भेज दिए हैं। इससे साफ है शिकारी को किसी का न डर है न कोई परवाह। बात केवल अवनी की नहीं उसके शावकों की भी है। अभी तक यह भी पता नहीं चला है कि अवनी के शावक कहां है। पता नहीं वे भी मार दिए गए हैं या जीवित हैं। इनके अलावा भी जंगलों में रोज़ न जाने कितने जानवर इंसानी भूख और लालच का शिकार हो जाते हैं। लोग भूल रहे हैं कि यदि जानवर न रहे तो इंसानी अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा।