भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान व बांए हाथ के महान बल्लेबाज अजित लक्ष्मण वाडेकर नहीं रहे। एक अप्रैल 1941 को मुंबई में जन्में वाडेकर ने आज़ादी के दिन 15 अगस्त 2018 को अंतिम सांस ली। उनका देहांत मुंबई के जसलोक अस्पताल में हुआ। वे 77 वर्ष के थे। वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे।
भारत ने 1971 में अजित वाडेकर के नेतृत्व में ही इंग्लैंड और वेस्टइंडीज़ के खिलाफ टेस्ट श्रंखलाएं जीत कर इतिहास रचा था। ‘स्लिप’ के अद्वतीय क्षेत्ररक्षक वाडेकर ने अपने जीवन काल में कुल 37 टेस्ट मैच खेले, 46 कैच पकड़े और 31.7 की औसत से 2,113 रन बनाए। इनमें उनका एक शतक भी शमिल है। एक दिवसीय मैचों में भी वे भारत के पहले कप्तान थे। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ दो एक दिवसीय मैच खेले और दोनों ही हारे। इसके बाद 1974 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास ले लिया।
इसके बाद 90 के दशक में उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम का मैनेजर नियुक्त किया गया। उस समय मोहम्मद अजहरूद्दीन टीम के कप्तान थे। उस दौरान भारत 1996 के विश्व कप के सेमीफाइनल में पहुंचा था। इसके बाद वे क्रिकेट चयन समिति के अध्यक्ष भी रहे। लाला अमरनाथ और चंदू बोडऱ्े के अलावा वाडेकर ही एक ऐसे क्रिकेटर हैं जो टीम के कप्तान, मैनेजर और चयनकर्ता रहे।
जब 1971 में उन्हें मंसूर अली खान पटौदी के जगह कप्तान बनाया गया उस समय टीम में सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वनाथ और बिशन सिंह बेदी जैसे सितारे थे।
उनकी प्रथम श्रेणी क्रिकेट में शुरूआत 1958 में हो गई थी, पर टेस्ट टीम में आने में उन्हें आठ साल इंतजार करना पड़ा। वे नंबर तीन के आक्रामक बल्लेबाज थे। उनके आंकड़े उनके खेल के स्तर को सही बयान नहीं करते। टेस्ट मैचों में उनका एक ही शतक (143) है जो उन्होंने वेलिग्ंटन में 1968 में न्यूज़ीलैंड दौरे के दौरान बनाया था। इसके साथ उन्होंने 14 अर्धशतक भी बनाए। इनमें से चार ऐसे हैं जिनमें वे 90 और 100 के बीच रहे। 1967 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार और 1972 में उन्हें पद्मश्री दिया गया।
शायद यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि जब 1971 में भारत ओवल टेस्ट में इंग्लैंड के खिलाफ विजयी रन बना रहा था उस समय कप्तान वाडेकर नींद की गोद में थे। वाडेकर ने एक साक्षातकार में बताया था कि हमें ओवल में जीत के लिए 97 रन चाहिए थेे, पर मैं आखिरी दिन की पहली ही गेंद पर रन आउट हो गया। जब मैं वापिस लौट रहा था तो अगले बल्लेबाज के रूप में विश्वनाथ मैदान पर आ रहे थे। जब हम एक दूजे के पास से निकले तो विश्वनाथ ने कहा- चिंता मत करो कप्तान आराम से जा कर सो जााओ। हम ये रन बना लेंगे। उस समय विश्वनाथ के साथ फारूख इंजीनियर मैदान पर थे।
मैं थोड़ी देर पेवलियन से देखता रहा पर रन नहीं बन रहे थे। मुझे वहम सा हुआ और मैं अंदर कमरे में आ गया। इतने में शोर पड़ा ‘ इट्स फोर’। मंैने सोचा मैं अंदर ही ठीक हूं, और मंै कमरे में ही रहता हूं। मैं वहां लेटा और सो गया। मुझे तब पता चला जब इंग्लैंड के मैनेजर केन बैरिंगटन ने मुझे जगाया, ‘हे! अजित उठो, तुम्हें पता है, तुम जीत गए हो।’
वाडेकर ने एक बार अपने एक और साक्षात्कार में बताया था कि उन्हें अपने कप्तान बनाए जाने पर विश्वास नहीं था उन्हें लगता था कि वह जिम्मेदारी ‘टाइगर पटौदी’ पर डाली जाएगी। वाडेकर ने बताया,’ पटौदी मेरे साथ बहुत अच्छे थे, हम लोग एक दूसरे के नज़दीक रहे। मैंने एक बार टाइगर से कहा कि मैं ज़्यादा रन नहीं बना पा रहा हूं। आप कोशिश करना कि मैं टीम में रहंू।’ इस पर पटौदी ने कहा था,’ ठीक है अजित, पर ध्यान रखना कि जब तुम कप्तान बन जाओ तो मैं टीम में रहूं।’ वाडेकर ने कहा,’ इसका कोई चांस नहीं है पर यदि ऐसा मौका आया तो तुम टीम में होगे।’
आज यह महान खिलाड़ी हमारे बीच नहीं है। आज भारत की टीम पूरी तरह संतुलित है। इसमें स्पिन और तेज़ गेंदबाजी दोनों है। पर वाडेकर की टीम में कोई तेज़ गेंदबाज नहीं था। सही बल्लेबाज भी नहीं थे। उनके पास थे तो बिशन सिंह बेदी, इरापल्ली प्रसन्ना, भगवत चंद्रशेखर और वेंकेटराघवन जैसे विश्व स्तरीय स्पिन गेंदबाज और एकनाथ सोलकर, अविदअली, वेंकेटराघवन और वाडेकर खुद नज़दीकी क्षेत्र रक्षक जिनमें बल्ले के मुंह से गेंद लपकने की महारत थी। एकनाथ सोलकर, ‘फारवर्ड शार्ट लैग’ पर, अविद अली और वेंकेटराधवन ‘गली’ व ‘क्लोस’ कवर पर और वाडेकर ‘स्लिप’ में गेंद लपकने में माहिर थे। आने वाले समय तक क्रिकेट की दुनिया में वाडेकर का नाम रहेगा।