'आप' के नेता!

अरविंद केजरीवाल,

उम्र- 45 वर्ष,

राष्ट्रीय संयोजक, आम आदमी पार्टी

छले दो साल से लगभग पूरा भारत अरविंद केजरीवाल को जानने लगा है. लेकिन उन्हें असल मायने में जानने के लिए वक्त में थोड़ा पीछे लौटना होगा. सब जानते हैं कि आज केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन चला रहे हैं लेकिन कम को ही यह पता होगा कि उन्होंने कभी मदर टेरेसा के साथ मिलकर काम किया था. यह कहानी जानना इसलिए जरूरी है कि यह समाजसेवी या नेता के इतर अरविंद के रूप में एक प्रवृत्ति को हमारे सामने रखती है–वह प्रवृत्ति जिसकी जड़ें महात्मा गांधी, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद से जुड़ी हैं. 1990 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर केजरीवाल ने कुछ दिनों तक एक कंपनी में काम किया था. फिर एक दिन अचानक ही वे सब कुछ छोड़कर कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटीज पहुंच गए. वहां उन्होंने मदर टेरेसा से भेंट की और उनसे दिशानिर्देश मांगे. अगले कुछ दिनों तक वे कोलकाता की सड़कों पर भिखारियों और कुष्ठ रोगियों की देखभाल का काम करते रहे. कुछ दिनों बाद केजरीवाल रामकृष्ण आश्रम से जुड़ गए और वहां काम किया. इसके बाद उन्होंने आईएएस बनने का प्रयास किया लेकिन चुने गए भारतीय राजस्व सेवा के लिए. यह नौकरी उन्हें दिल्ली लाई. लेकिन ज्यादा दिन वे यहां के होकर भी नहीं रहे. 2001 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.

इस कहानी के जिक्र का मकसद सिर्फ इतना भर था कि जिस अरविंद को हम आज देखते हैं वह बहुत गहराई से उस भारतीय परंपरा में गुंथा हुआ है जिसके मूल गुण हैं सादगी, मितव्ययिता और त्याग. अरविंद की संस्था ‘परिवर्तन’ से जुड़े उनके सहयोगी बिभव  बताते हैं, ‘आईआरएस अधिकारी के रूप में वे जब दिल्ली में तैनात थे तो उन्होंने वहां एक नया काम शुरू किया. काउंटर से काउंटर भटकते हुए परेशान लोगों की सहायता करने का काम. वे अपने केबिन से बाहर आकर खड़े हो जाते थे. परेशान लोगों को मुफ्त में सलाह देते, उनकी शिकायतें सुनते और वहीं पर तत्काल समाधान करने की कोशिश करते. जो चीजें उनके काबू से बाहर की होतीं, उसके लिए वे पीड़ितों को सही रास्ता सुझाते थे.’

भ्रष्टाचार उन्हें अंदर से कचोटता है. आखिरकार 2010 में उन्होंने इसके खिलाफ खुली लड़ाई छेड़ने का फैसला किया. उसके बाद का घटनाक्रम सबको पता ही है. 2010 में उन्होंने जो आंदोलन खड़ा किया था, 2012 में वह राजनीतिक पार्टी का रूप ले चुका है. इस विशाल चुनौती का अंदाजा अरविंद को है. वे कहते हैं, ‘जो काम कांग्रेस ने 125 साल में किया है और भाजपा ने 30 साल में किया है वह हमंे तीन साल में करना है.’ उनकी पार्टी का नाम है ‘आप’ यानी आम आदमी पार्टी. इस नाम का विचार कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद और प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा की उस फेसबुक टिप्पणी से आया जिसमें उन्होंने लिखा था ‘मैंगो पीपल ऑफ बनाना रिपब्लिक’. वाड्रा की टिप्पणी केजरीवाल के उस खुलासे की झुंझलाहट में आई थी जिसमें उन्होंने वाड्रा पर अरबों की जमीन कौड़ियों के मोल पर अपने नाम करवाने का आरोप लगाया था. इसके बाद भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, उद्योगपति मुकेश अंबानी सहित कई लोग और संगठन अरविंद की भ्रष्टाचार खुलासा मुहिम के शिकार बने. उनके वरिष्ठ सहयोगी योगेंद्र यादव कहते हैं, ‘ये खुलासे दिल्ली की राजनीति के खेल के स्थापित नियमों को तोड़ेंगे. बहुत अरसे से बनाई गई चुप्पी की अदृश्य दीवारें टूट गई हैं.’ खुद केजरीवाल इन खुलासों को अपनी राजनीति का एक हिस्सा भर मानते हैं वे इसे चुनावी हथियार नहीं मानते. उनके मुताबिक फिलहाल इन खुलासों का मकसद जनता के बीच यह सिद्ध करना है कि हमारी मौजूदा राजनीतिक जमात में कोई भी किसी से अलग नहीं है. सब भ्रष्ट हैं.

केजरीवाल अपने अभियान में लगे हुए हैं. जनता के गुस्से को वैकल्पिक राजनीति का आधार बनने में समय लगता है. इस लिहाज से उनकी लड़ाई लंबी और कठिन है. लेकिन उनकी क्षमता बार-बार यह मानने को विवश करती है कि वे भीड़ में शामिल एक और ‘नेता’ नहीं हैं.      

-अतुल चौरसिया