सबरीमाला पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के विवादित ब्यान के बाद रविवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला विवाद पर जिस तरह जल्द फैसला दिया है, उसी तरह उसे राम मंदिर पर भी फैसला देना चाहिए। गौरतलब है कि सोमवार (२९ अक्टूबर) को सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की पीठ राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
इंडिया आइडिया कॉन्क्लेव में सीएम योगी ने लोगों का संबोधन करते हुए रविवार को कहा कि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला पर जल्द फैसला दिया वैसा ही राम मंदिर पर भी देना चाहिए। साफ़ लग रहा है कि भाजपा ने २०१९ का चुनाव विकास को छोड़कर राम मंदिर और धर्म के दूसरे मुद्दों पर लड़ने की पूरी तैयारी कर ली है।
याद रहे शनिवार को केरल के कन्नूर में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने सबरीवाला मंदिर विवाद को लेकर राज्य की लेफ्ट सरकार पर निशाना साधा था और केरल की माकपा सरकार पर ”सबरीमाला मंदिर को नष्ट करने” का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था – ”आज केरल में धार्मिक आस्था और राज्य सरकार की क्रूरता के बीच संघर्ष चल रहा है। भाजपा, आरएसएस समेत अन्य संगठनों के २,००० से ज्यादा कार्यकर्ता गिरफ्तार किये गए हैं। भगवान अयप्पा के श्रद्धालुओं का दमन करके केरल सरकार सबरीमाला मंदिर को नष्ट करना चाहती है। उन्होंने साफ़ कहा कि भाजपा इस मसले पर सबरीमाला के श्रद्धालुओं के साथ मजबूती से खड़ी है”। इस तरह शाह ने खुले रूप से सुप्रीम कोर्ट के फ़ासिले के विपरीत जाकर बात कही।
उधर योगी ने रविवार को कहा कि राम जन्मभूमि कोई राजनीतिक विषय नहीं है। ”यह धार्मिक भावनाओं की बात है। अगर सबरीमाला मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट इतनी जल्दी अपना फैसला दे सकता है तो हम भी सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि वह राम मंदिर पर भी जल्द अपना फैसला सुनाए”।
गौरतलब है कि ३० सितंबर, २०१० को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि को तीन भागों में बांटा था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं। इससे पहले इसी २७ सितंबर को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने १९९४ के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार के मुद्दे को पांच जजों वाली संविधान पीठ को सौंपने से इनकार कर दिया था जिसमें कहा गया था कि ‘मस्जिद इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं’ है। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। इस्माइल फारूकी ने अयोध्या में भूमि अधिग्रहण को चुनौती दी थी जिस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि नमाज पढ़ना मस्जिद का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए अर्जी लगाई गई थी। मुस्लिम समुदाय इससे सहमत नहीं था और वह चाहता है कि इस पर दोबारा से विचार किया जाए।