अयोध्या में राम जन्म भूमि पूजन के अवसर पर बुन्देलखण्ड की अयोध्या कहे जाने वाले ओरछा के रामराजा मन्दिर में भी दो दिवसीय भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया और धूमधाम से उत्सव मनाया गया। ओरछा के रामराजा मन्दिर के पुजारियों और लोगों ने तहलका के विशेष संवाददाता को बताया कि 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अयोध्या में राम मन्दिर का भूमि पूजन कर रहे थे, तब यहाँ पर देश के अन्य राज्यों के लोगों ने ओरछा के राम मन्दिर में आयोजित उत्सव में भाग लिया और पूजा-अर्चना की। अयोध्या और ओरछा पुराना नाता है। ओरछा की महारानी कुँवरि गणेश सन् 1631 में अयोध्या से भगवान राम की प्रतिमा को पुष्य नक्षत्र में ओरछा लायी थीं और यहाँ पर राजा के रूप में विराजित किया था; तबसे उन्हें यहाँ रामराजा सरकार कहकर पुकारा जाता है।
पंडित सन्तोष शर्मा ने बताया कि तबसे आज तक ओरछा में रामराजा सरकार को राजा के रूप में सलामी दी जाती है। ऐसी कथा-मान्यता है कि रामराजा सरकार दिन के समय में ओरछा में रहकर अपना दरबार सजाते हैं तथा रात्रि के समय विश्राम करने अयोध्या चले जाते हैं। जानकारों का मानना है सन् 1631 के 260 साल बाद सन् 1891 में यहाँ की एक और महारानी वृषभानु कुँवरि ने अयोध्या में भव्य कनक भवन मन्दिर का निर्माण कराया था। इसके बाद से ही जब भी अयोध्या राममय होती है, तब ओरछा समेत पूरा बुन्देलखण्ड भी भगवान राम की भक्ति में डूब जाता है। एक लम्बे समय तक कनक मन्दिर की पूजा-अर्चना और अन्य व्यवस्था के लिए ओरछा राजघराने से धन की व्यवस्था की जाती रही है। आज भी मन्दिर में ओरछा राजघराने की महारानी का शिलालेख है। अयोध्या का कनक मन्दिर और ओरछा का रामराजा मन्दिर, दोनों अन्दर से हू-ब-हू दिखते हैं। यानी ओरछा मन्दिर के अन्दर अयोध्या के कनक मन्दिर का-सा अहसास होता है और अयोध्या के कनक मन्दिर के अन्दर ओरछा के रामराजा मन्दिर में होने का-सा अहसास होता है। दोनों मन्दिरों के पूजा मण्डप से लेकर दालान तक बिल्कुल एक जैसे बनाये गये हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि ओरछा के राम ही मध्य प्रदेश के राजा हैं। शिवराज चौहान ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि ओरछा में रामराजा विराजते हैं। कोरोना-काल के कारण रामराजा मन्दिर में भक्तों का आना-जाना प्रतिबन्धित था; लेकिन 4 और 5 अगस्त को रामराजा मन्दिर में विशेष सजावट व पुजारियों द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की गयी। ओरछा के प्रधान पुजारी रमाकांत शरण महाराज ने बताया कि जिस समय प्रधानमंत्री अयोध्या में भूमि पूजन कर रहे थे, उसी समय ओरछा में शंखनाद और भगवान राम की सशस्त्र सलामी के साथ आरती की गयी। शाम को दीपदान करके दीपोत्सव मनाया गया।
ओरछा के लोगों का कहना है कि अयोध्या मन्दिर के निर्माण को लेकर ज़रूर सियासत हुई है, पर यहाँ के लोगों का अटैचमेंट अयोध्या के प्रति रहा है। रामलला भक्त रामप्रकाश गोस्वामी का कहना है कि जब 6 दिसंबर, 1992 बाबरी मस्जिद का ढाँचा तोड़ा गया था, तब देश में एक अलग-सा माहौल बनने लगा था। तरह-तरह की बातें होने लगी थीं कि अब मन्दिर का निर्माण कानून के फैसले के बाद ही सम्भव होगा। लेकिन भगवान की कृपा से कानून का सुप्रीम फैसला भी आ गया और आज वो घड़ी भी आ गयी, जब मन्दिर निर्माण का सपना साकार होने लगा है। रामशरण पटवारी कहते हैं कि जिसने अयोध्या देखी है, उसने ओरछा को ज़रूर देखने का प्रयास किया है। क्योंकि अयोध्या से ओरछा के लोगों का पुराना नाता है और दोनों मन्दिर एक-से हैं।
बताते चले मध्य प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, पर राजनीति के अलावा नेताओं का जमावड़ा ओरछा में अक्सर देखा जाता है। 4 और 5 अगस्त को भूमि पूजन के अवसर पर कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने भी ओरछा में पूजा की और राम मन्दिर के निर्माण पर खुशी व्यक्त की है। कांग्रेस के कार्यकर्ता पवन चौधरी ने कहा कि भगवान राम सबके हैं और सबमें हैं। मन्दिर अयोध्या का हो या ओरछा का; दोनों मन्दिरों में कांग्रेसीयों ने बढ़-चढक़र भाग लिया और पूजा-अर्चना की है। अयोध्या सरयू नदी पर है, तो ओरछा बेतवा नदी पर है। वहीं बुन्देलखण्ड के लोगों का कहना है कि राम मन्दिर के शिलान्यास से धर्म और आस्था की विजयी तो हुई है, पर बुन्देलखण्ड का विकास काफी रुका है। अब सरकार को चाहिए कि कोरोना-काल में चौपट हुई अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाये और लोगों को रोज़गार दे; ताकि देश में सही मायने में राममय माहौल बन सके। क्योंकि अयोध्या मामले को लेकर विरोध करने वाले अब चुपचाप समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में सरकार के पास एक अवसर है कि राम मन्दिर निर्माण के साथ-साथ देश का भी निर्माण करे। बताते चलें कि मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुन्देलखण्ड के टीकमगढ़ ज़िले में ओरछा है, जो उत्तर प्रदेश के ज़िला झाँसी से जुड़ा है। इस लिहाज़ से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश, दोनों ही प्रदेशों के लिए ओरछा धार्मिक और राजनीतिक स्थली रहा है।