पंजाब में स्वर्ण मंदिर के आसपास एक सप्ताह में तीन बम धमाके एक गहरी साज़िश की शुरुआत है। कम तीव्रता वाले इन धमाकों से कोई जान तो नहीं गयी; लेकिन इससे अमृतसर और राज्य में दहशत का माहौल ज़रूर बन गया। सवाल है कि इन धमाकों का मक़सद क्या था, दहशत फैलाना या अमृतसर को दहलाने की साज़िश? पुलिस और सरकार की मानें, तो दहशत फैलाना कारण है; लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है। धमाकों के बाद लोगों में फैली दहशत को दूर करने के लिए पुलिस महानिदेशक गौरव यादव को फ्लैग मार्च में शामिल होना पड़ा। जबकि ऐसा मौक़ा तब आता है कि जब लोगों का भरोसा पुलिस तंत्र से उठ जाता है।
दंगों जैसी स्थिति के बाद अक्सर लोगों में शान्ति व्यवस्था क़ायम रखने और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी के लिए पुलिस फ्लैग मार्च करती है; लेकिन उसमें भी महानिदेशक स्तर के अधिकारी कम ही हिस्सा लेते हैं। इसके लिए पुलिस महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी भी काफ़ी होते हैं। इससे स्पष्ट है कि राज्य सरकार भी प्रदेश की क़ानून व्यवस्था क़ायम रखने और लोगों में हर सम्भव भरोसा बनाये रखने में पूरी तरह से तैयार है। तीन धमाकों के मुख्य आरोपियों की पहचान का काम सबसे पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) की टास्क फोर्स ने किया।
एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी कहते हैं कि आरोंपियों को हम लोगों ने पकड़ लिया है। अब पुलिस का काम है कि वह विस्तृत जाँच कर पता लगाये कि साज़िश किस संगठन की हुई और उसका मक़सद क्या था? स्वर्ण मंदिर परिसर में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं; लेकिन परिसर के बाहर गलियारे में हेरिटेज गलियों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार को चाहिए कि साज़िश नाकाम होने के बाद वह बाहरी क्षेत्र में सुरक्षा के और दुरुस्त प्रबंध करे और बाहरी क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे भी लगवाये। एसजीपीसी के महासचिव गुरचरण सिंह ग्रेवाल कम तीव्रता वाले धमाकों को सरकार और पुलिस की की नाकामी बताते हैं।
पहला धमाका 6 मई की रात को हुआ, दूसरा 8 मई को हुआ, उसके दो दिन बाद फिर वहीं हुआ। इस दौरान पुलिस किसी आतंकी मक़सद को तय नहीं कर सकी। एसजीपीसी की माँग है कि भविष्य में स्वर्ण मंदिर के पास ऐसी कोई वारदात न हो, इसके लिए गुरुद्वारा संतोखसर साहिब से सारागढ़ी तक सीसीटीवी लगने चाहिए। क्योंकि एक धमाका इसी क्षेत्र में हुआ; लेकिन वहाँ की कोई सीसीटीवी फुटेज नहीं है। पंजाब पुलिस के अलावा इन धमाकों की जाँच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) भी कर रही है; लेकिन अभी तक कुछ विशेष सुरा$ग नहीं मिले हैं। किसी आतंकी संगठन ने इनकी ज़िम्मेदारी भी नहीं ली है। अमृतसर क्षेत्र के पुलिस आयुक्त नौनिहाल सिंह के दिशा-निर्देश पर स्वर्ण मंदिर के आसपास सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी है।
पूछताछ में अभी गिरफ़्ता पाँच लोगों का किसी बड़े आतंकवादी संगठन से जुड़ाव साबित नहीं हुआ है; लेकिन पाकिस्तान, कनाडा, अमेरिका और अन्य देशों में कट्टरपंथी संगठनों का कोई-न-कोई तार इनसे जुड़ा निकलेगा। एक के बाद एक पाँच दिन में तीन धमाके और वह भी स्वर्ण मंदिर के आसपास, जो सिखों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है; कोई छोटी घटना नहीं है। आतंकवाद के दौर में भी स्वर्ण मंदिर के पास कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुई। लेकिन अब उसी जगह को ब्लास्ट के लिए चुना गया, तो इसकी कुछ वजह निश्चित ही होगी।
आरोपियों का स्वर्ण मंदिर परिसर की गुरु रामदास सराय में रुकना, वहीं बम तैयार करना और भोर में (तडक़े सुबह) धमाके करना बताता है कि उनके इरादे दहशत से ज़्यादा कुछ और हैं। गिरफ़्तार लोगों में अमरीक सिंह, आज़ादवीर सिंह, साहिब सिंह, धर्मेंद्र और हरजीत सिंह (सभी अमृतसर और आसपास के) हैं। अमरीक और आज़ादवीर धमाके के कुछ दिन पहले से गुरु रामदास सराय के कमरा नंबर-225 में रुके हुए थे। तीनों धमाकों में आरोपी परिसर से बाहर नहीं गये, बल्कि छतों और खिड़कियों के माध्यम से धमाके करने का प्रयास किया।
संदिग्ध लोगों में अमरीक की पत्नी भी है। पुलिस उससे भी पूछताछ कर रही है। साहिब सिंह के पास पटाखे बनाने की विस्फोटक सामग्री का लाइसेंस है। स्वर्ण मंदिर के आसपास हुए धमाकों में जितना विस्फोटक लगा और लगभग एक किलो की बरामदगी हुई, वह साहिब सिंह से ख़रीदा गया था। पोटेशियम क्लोराइड और सल्फर इन्होंने बाज़ार से 5,000 रुपये में ख़रीदा था। अभी तक की जाँच में यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि गिरफ़्ता इन स्थानीय लोगों का कोई कनेक्शन खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालस्तिान ज़िन्दाबाद और बब्बर खालसा इंटरनेशनल से है; लेकिन पाँच दिन के भीतर तीन धमाकों के दौरान कुछ ऐसी फोन कॉल्स क्षेत्र में आयी हैं, जो संदेह पैदा करती हैं।
पुलिस जाँच में उसे भी अब अहम माना जा रहा है। एक कनेक्शन वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह की गिरफ़्तारी से भी जुड़ रहा है। विरोध स्वरूप राज्य में फिर से अशान्ति का माहौल पैदा करना है। सबसे बड़ा सवाल यही कि आख़िर धमाकों के लिए स्वर्ण मंदिर, गलियारा और आसपास के क्षेत्र को ही क्यों चुना गया? क्या इसके पीछे आपसी भाईचारे और सौहार्द को बिगाडऩा था।
बम कांड का मक़सद अगर दहशत से ज़्यादा नुक़सान पहुँचाने का मक़सद होता, तो भीड़भाड़ वाले अन्य स्थानों को चुना जाता। यह सब जानते हुए कि स्वर्ण मंदिर परिसर और आसपास का पूरा क्षेत्र सीसीटीवी वाला है, और कोई भी सदिग्ध गतिविधि सामने आ सकती है; बावजूद इसके यह सब हुआ। पुलिस मानती है कि आरोपियों से यह सब कराने वाले स्थानीय स्तर के लोग हो सकते हैं; लेकिन पुलिस अभी तक किसी का पता नहीं लगा सकी है।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी कहते हैं कि हम अपनी टास्क फोर्स को और मज़बूत करेंगे, ताकि भविष्य में ऐसी कोई वारदात न हो। पुलिस और सरकार अपने तौर पर अपनी व्यवस्था करे। बम धमाकों के बाद आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार और पुलिस पर विरोधी दलों ने ख़ूब हमले किये। कांग्रेस नेता नवजीत सिद्धू ने सीधे मुख्यमंत्री मान को निशाना बनाते हुए कहा कि वह (मान) तो सुरक्षा कवच में रहते हैं। इसलिए उन्हें आम लोगों के जान-माल का कुछ पता नहीं है। अमृतपाल की गिरफ़्तारी से पहले कमज़ोर साबित हुई सरकार अब ज़्यादा मज़बूती से काम कर रही है।
मोहाली में पुलिस दफ़्तर पर राकेट हमले के बाद ऐसी कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, जिससे क़ानून व्यवस्था पर कोई सवालिया निशान लगता हो। प्रदेश में किसी भी तरह की कोई आतंकवादी घटना न होने देने और क़ानून व्यवस्था को चाक-चौबंद बनाये रखने के मुख्यमंत्री भगवंत मान बराबर दावे करते रहे हैं। बावजूद इसके वह इस दिशा में लोगों का भरोसा पूरी तरह से नहीं जीत सके हैं। उन्हें स्वर्ण मंदिर के बाद प्रदेश के अन्य धार्मिक स्थलों की चौकसी बढ़ानी होगी। क्योंकि समाज में सौहार्द बिगड़ाने के लिए देश और राज्य विरोधी संगठन इन्हीं का सहारा लेते हैं।
अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास बम धमाके में कई घायल के समाचार के बाद कांग्रेस नेता नवजोत सिद्धू ने बयान जारी कर मुख्यमंत्री और सरकार पर सवाल उठा दिये। वह कहते हैं कि जिस जंग में राजा की जान को ख़तरा न हो, उसे जंग नहीं राजनीति कहते हैं। 1,200 सिक्योरिटी वालों के कवच में मज़बूत रहकर जब सबसे सुरक्षित मुख्यमंत्री मूकदर्शक बनकर अपने राज्य में खुलेआम क़त्ल, फ़िरौतियाँ और लूट होता देख रहा हो, तो पतन निश्चित है। अमन-अमान जब बिगड़ जाए, जान-माल महफ़ूज़ न हो, दुकानों में ग्राहक न हों, कारोबारी प्रदेश छोडक़र जाने लगें, नौजवान पलायन करने लगें, राज्य की एक लाख करोड़ की सम्पत्ति बिक जाए और राज करने वाले बस ख़ुद को और अपने दिल्ली वाले आकाओं को सुरक्षित करने में व्यस्त हों, तो राज्य की सुरक्षा कैसे हो? जहाँ प्रदेश की वित्तीय स्थिति बदतर होती है, वहीं अराजकता का माहौल पैदा होता है। क्या यह पंजाब को बदनाम करने की और मुद्दों से भटकाने की साज़िश है? या फिर सरकार अनाड़ी और नाक़ाबिल है? दोनों परिस्थितियों में हार पंजाब की है। दुर्भाग्यपूर्ण है। …पंजाब जीतना चाहिए।
“स्वर्ण मंदिर परिसर के तीन धमाकों के पाँच आरोपी पकड़े जा चुके हैं। पूछताछ हो रही है। घटना को पुलिस और सरकार ने बड़ी गम्भीरता से लिया है। राज्य में अमन-चैन, लोगों में सुरक्षा की भावना को बनाये रखने और क़ानून व्यवस्था को न बिगडऩे देने के हरसंभव प्रयास होंगे। आरोपियों की धरपकड़ में एसजीपीसी का पूरा सहयोग रहा है। धमाके कम तीव्रता वाले थे; लेकिन एक के बाद एक ऐसा करके आरोपियों का मक़सद लोगों में दहशत पैदा करना था या कुछ और? यह जाँच में स्पष्ट हो जाएगा।“
गौरव यादव
पुलिस महानिदेशक, पंजाब