अमित शाह का मिशन बंगाल

गृह मंत्री अमित शाह तीन दिनों के दौरे पर बंगाल आए हैं। यह तीन दिवसीय यात्रा किसी भी सार्वजनिक रैली के लिए नहीं है। इस बार उनका पूरा ध्यान बंगाल की रणनीति पर केंद्रित है। लेकिन आखिर अमित शाह का मिशन बंगाल क्या है?

अमित शाह की इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य पार्टी की संगठनात्मक ताकत और कमजोरियों पर ध्यान देना है। पश्चिम बंगाल में संगठन की गतिविधियों की समीक्षा (स्टॉकटेकिंग) इस दौरे का एक अहम हिस्सा है। अमित शाह संगठन की मजबूती और कमियों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। यही कारण है कि इस बार वे अलग-अलग स्तर के संगठनात्मक नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। वे पार्टी के नेताओं की राय और शिकायतें सुन रहे हैं। पदाधिकारियों के अलावा जिला स्तर और अन्य इकाइयों से भी वे सीधे फीडबैक ले रहे हैं। संगठन के चुनावी अभियान तंत्र को मजबूत करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।

अमित शाह विशेष रूप से मतुआ वोट बैंक पर जोर दे रहे हैं। एसआईआर (SIR) को लेकर मतुआ वोटों के संबंध में काफी भ्रम पैदा हुआ है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) यह दावा करते हुए अभियान चला रही है कि एसआईआर के कारण मतुआ समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है। इसी कारण अमित शाह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मतुआ समुदाय में किसी भी तरह की असुरक्षा नहीं है। डर जैसी कोई चीज़ नहीं है। यह भरोसा अमित शाह ने दिया। उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में यह भी कहा कि ममता बनर्जी चाहने के बावजूद मतुआ वोट नहीं जीत पा रही हैं। पार्टी संगठन इसी नैरेटिव के आधार पर अपना अभियान चलाए, इसके लिए अमित शाह ने यह रणनीति तैयार की है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मतुआ बहुल इलाकों में केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर और टीएमसी नेता ममता बाला ठाकुर के बीच राजनीतिक टकराव है। मतुआ शासित क्षेत्रों में जबरदस्त राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या देखी जा रही है।

बीजेपी के अभियान का मुख्य फोकस क्या होगा? हिंदुत्व, मुस्लिम तुष्टिकरण, बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा और ममता बनर्जी द्वारा धार्मिक प्रतीकों और मंदिर निर्माण का इस्तेमाल—ये सभी मुद्दे प्रमुख रहेंगे। सवाल यह है कि मुस्लिम तुष्टिकरण के नैरेटिव का मुकाबला कैसे किया जाए।

एसआईआर की मतदाता सूची प्रक्रिया में घुसपैठ एक समस्या है, लेकिन इसके अलावा भी घुसपैठ का मुद्दा लगातार बना हुआ है। बीजेपी के लिए घुसपैठ कोई नया विषय नहीं है। आरएसएस की स्थापना के समय से ही घुसपैठ एक अहम मुद्दा रहा है, जिसे वे अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए उठाते रहे हैं। पार्टी चाहती है कि एसआईआर के जरिए यह संदेश दिया जाए कि भविष्य में पश्चिम बंगाल की आबादी घुसपैठियों से मुक्त हो। सवाल यह है कि प्रशासनिक पहलुओं से अलग, चुनाव के दौरान घुसपैठ के मुद्दे को किस तरह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाया जाए।

इस बार अमित शाह बंगाल के आरएसएस नेताओं से भी समन्वय के लिए मुलाकात कर रहे हैं। उनके बंगाल स्थित आरएसएस मुख्यालय केशव भवन जाने की संभावना है। वहां वे यह संदेश देना चाहते हैं कि आरएसएस और बीजेपी मिलकर काम कर रहे हैं और जिला स्तर पर समन्वय में कोई कमी नहीं है।

अमित शाह इस दौरान इस्कॉन भी गए और सिस्टर निवेदिता के घर का भी दौरा किया। हाल ही में ममता बनर्जी भी इन दोनों स्थानों पर गई थीं। इस्कॉन रथ खींचने के साथ-साथ ममता बनर्जी ने दीघा में जगन्नाथ मंदिर के निर्माण में भी इस्कॉन की मदद की थी। इसी कारण 5 दिसंबर को ममता बनर्जी सिस्टर निवेदिता के घर गई थीं, जहां उन्होंने स्थल से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान में हस्तक्षेप किया था। इसी वजह से इस बार अमित शाह ने बेलूर मठ और स्वामीजी के घर के साथ-साथ सिस्टर निवेदिता को भी प्राथमिकता दी।

मिशन बंगाल में अमित शाह के सामने एक बड़ी समस्या नेतृत्व संकट की भी है। संगठनात्मक संकट भी मौजूद है। बीजेपी को इस संगठनात्मक समस्या के समाधान के लिए सीधे जनता से जुड़ना पड़ सकता है।

बीजेपी के भीतर गुटबाजी और अलग-अलग संगठन मौजूद हैं। पार्टी के अंदर संवाद की कमी है और नेताओं व संगठनों के बीच प्रतिस्पर्धा भी है। अमित शाह व्यक्तिगत रूप से इन समस्याओं को सुलझाने के लिए आए हैं। वे चाहते हैं कि पार्टी एकजुट होकर आगे बढ़े।

भ्रष्टाचार एक और बड़ा मुद्दा है। इस बार अमित शाह ने कोलकाता में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने टीएमसी के उन मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और नेताओं के नाम गिनाए जिन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा। उन्होंने बीजेपी की राज्य इकाई को सलाह दी कि भ्रष्टाचार को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया जाए।

बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि वह एक नए बंगाल की कल्पना करती है—एक शांतिपूर्ण, विकास-उन्मुख और भ्रष्टाचार-मुक्त पश्चिम बंगाल। अमित शाह ने राज्य के नेताओं को ममता बनर्जी के भूमि अधिग्रहण और बीएसएफ से जुड़े आरोपों का जवाब देने के तरीके भी बताए। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी द्वारा जमीन उपलब्ध न कराए जाने के कारण सीमा प्रबंधन और उससे जुड़ी समस्याएं अब तक अनसुलझी हैं, जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। विकास के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार फंड देने को तैयार है, लेकिन राज्य सरकारें उनका सही उपयोग नहीं कर रहीं। व्यापक भ्रष्टाचार के कारण फंड न तो जारी हो पा रहे हैं और न ही सही ढंग से इस्तेमाल हो रहे हैं।

अमित शाह ने बंगाली भाषा में एक बयान भी जारी किया, जिसे एक्स (X) पर साझा किया गया। यह पहली बार था जब उन्होंने किसी जनसभा या प्रेस कॉन्फ्रेंस में बंगाली में संबोधन किया। बंगाल में यह नैरेटिव चल रहा है कि दिल्ली बंगाल पर कब्जा करना चाहती है और बंगाली पहचान को दबाने की कोशिश कर रही है। इसी संदर्भ में अमित शाह ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में रवींद्रनाथ टैगोर, बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय और अन्य महान बंगाली व्यक्तित्वों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बीजेपी बंगाली पहचान को समझती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ममता बनर्जी की ताकत ‘बंगाली डीएनए’ है और बंगाली नेतृत्व विकसित करने पर भी उन्होंने मार्गदर्शन दिया। ये अमित शाह की सिफारिशें हैं।

हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि बीजेपी के पास इन सिफारिशों को लागू करने की संगठनात्मक क्षमता है या नहीं। क्या बीजेपी ऐसा प्रभावी अभियान, प्रति-अभियान और प्रति-नैरेटिव खड़ा कर पाएगी? अब तक बीजेपी बंगाल में पूरी तरह अपनी पकड़ नहीं बना पाई है। इसी वजह से अमित शाह ने खुद बंगाल जाकर मिशन बंगाल को पूरी तरह सक्रिय करने की कोशिश की है।