एक तरफ पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह और उनके डिप्टी रहे नवजोत सिंह सिद्धू के बीच खींचतान को सुलटाने की पार्टी आलाकामन कोशिश कर रही है, वहीं कैप्टेन गुरुवार को दिल्ली पहुंचे। वे शायद कल सोनिया गांधी की गठित की तीन सदस्यीय समिति से मिलेंगे, लेकिन आज उन्होंने पंजाब आम आदमी पार्टी (आप) के तीन नाराज विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। पिछले चार दिन से कांग्रेस दिल्ली में पंजाब संगठन में चल रही लड़ाई को हल करने के अलावा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर बारी-बारी सभी विधायकों से चर्चा कर रही है।
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को आज तब बड़ा झटका लगा जब उसके तीन विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। इनमें वरिष्ठ नेता सुखपाल सिंह खैरा भी शामिल हैं जिन्हें पिछले विधानसभा से पहले तक ‘आप’ का मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था, लेकिन बाद में उनकी दिल्ली के नेताओं के व्यवहार को लेकर खींचतान हो गयी थी। खैरा भोलथ से विधायक चुने गए थे।
खैरा के साथ ही खैरा के अलावा कांग्रेस में शामिल होने वाले आम आदमी पार्टी के दो और मौर के विधायक जगदेव सिंह कमलू और भदौर के विधायक पिरमल सिंह धौला भी शामिल हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने तीनों विधायकों का पार्टी में स्वागत किया। सीएम अमरिंदर सिंह ने पत्नी परनीत कौर के साथ दिल्ली रवाना होने से ऐन पहले खैरा, कमलू और धौला को पार्टी में शामिल करवाया और कुछ देर बाद पार्टी के आधिकारिक अकाऊंट पर कांग्रेस ने इसकी जानकारी साझा की।
कैप्टेन ने दिल्ली आने से पहले यह दांव बहुत सोच समझकर चला है और यह जताने की कोशिश की है कि उन्हें हलके में नहीं लिया जा सकता। जाहिर है पंजाब कांग्रेस में इससे उनके समर्थक विधायकों की संख्या भी बढ़ी है। नवजोत सिंह सिद्धू से चल रही खींचतान के बीच इसे कैप्टेन का बड़ा दांव माना जा सकता है। हालांकि, आलाकमान जिस गंभीरता से पंजाब के मसले पर सुनवाई कर रहा है उससे कैप्टेन गुट पर भी ख़ासा दबाव है।
वैसे खैरा पहले कांग्रेस में ही थे। लेकिन 2015 में वे आप में चले गए थे। जब 2017 में विधानसभा के चुनाव हुए तो वे भोलथ से चुनाव जीत गए। उन्हें इससे पहले आप की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाने लगा था, लेकिन बाद में एक स्टिंग और अन्य कारणों से वे पार्टी से खफा हो गए। जनवरी 2019 में वे खुले रूप से आप के खिलाफ हो गए और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद खैरा ने अपनी पार्टी ‘पंजाब एकता पार्टी” का गठन कर लिया।
उधर पार्टी का एक वर्ग सोनिया गांधी की समिति के सामने लगातार तर्क दे रहा है कि अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी नहीं जीत सकती। पंजाब में अफसरशाही के हावी होने और आम लोगों से सरकार के कट जाने के आरोप भी इस धड़े की तरफ से लगाए गए हैं। दलितों के सरकार में कम प्रतिनिधित्व को लेकर भी बागियों ने आवाज उठाई है।
इसके अलावा साल 2015 में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और पुलिस फायरिंग से जुड़े मामलों में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सरकार की नाकामी को लेकर भी अमरिंदर सरकार पर पार्टी के लोग सवाल उठा रहे हैं। पार्टी के नाराज विधायकों को आशंका है कि ग्रामीण स्तर पर कांग्रेस इन चार सालों में कमजोर हुई है और अमरिंदर के रहते पार्टी को अगले साल चुनाव में इसका नुक्सान उठाना पड़ेगा।
उधर अमरिंदर समर्थक अपने नेता के हक़ में दलीलें दे रहे हैं। उनका कहना है कि अमरिंदर के अलावा पार्टी के पास ऐसा कोई नहीं जो चुनाव में पार्टी को जिता सके। नवजोत सिंह सिद्धू का मसला पार्टी में बहुत अहम है और कांग्रेस आलाकमान उन्हें किसी सूरत में खोना नहीं चाहती। ऐसे में सोनिया की बनाई तीन सदस्यीय कमेटी की सिफारिशें बहुत महत्वपूर्ण होंगी। अभी तक तो ऐसा ही लग रहा है कि सिद्धू को कोई न कोई महत्वपूर्व पद ज़रूर दिया जाएगा।