दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के तीनों जोनों का काम-काज आज से मेयर और पार्षदों के अधिकारों के अधीन नहीं होगा। इससे अब एमसीडी मेंं सारा काम-काज प्रशासन के हाथ में आ गया है। संसद से मुहर लगने के बाद तीनों जोनों को वैसे ही एक करने का आदेश पारित हो चुका है।
ऐसे हालत में चुने हुये पार्षदों और मेयर के हाथ में न अब तो वित्तीय और विधायी शक्तियां बची है। एमसीडी की राजनीति के जानकारों का कहना है कि दिल्ली की राजनीति में एमसीडी में ऐसा पहला मौका आया है जब एमसीडी का कार्यकाल समाप्त हो गया है। और अगले चुनाव को लेकर अभी तक न तो एमसीडी के चुनाव को लेकर कोई आहट आ रही है।
ऐसे में जो चुनाव में लड़ने के उम्मीदवार है उनको भी इस बात का अंदेशा है कि नये परिसीमन मे कौन सी सीट आरक्षित होती है और कौन सी नहीं होती है। और तो और कौन सी महिला सीट होगी है। अब ये भी स्पष्ट है कि 272 की जगह 250 सीटों पर चुनाव होगे। नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के पार्षद ने बताया कि अगर तीनों जोनों को हटाकर एक ही जोन करना था तो ये काम तो पहले से ही हो सकता था। लेकिन न जाने किसने ये सलाह दी है।
अब ऐसी स्थिति में भाजपा को आप पार्टी के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि आप पार्टी की हवा भर बनी थी। जमीनी स्तर पर कुछ नहीं था। भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिली जीत का लाभ मिलता। अब एमसीडी पार्षदों की जब नहीं चलेगी तो मौजूदा हालात में मतदाता के खिसकने का कारण बन सकता है। क्योंकि प्रशासन से जुड़े जो अधिकारी वे अपने सीनियर अफसरों की बात मानेगे। न कि पार्षदों और मेयर की । ऐसे में चुनाव में जितना विलम्ब होगा उतना ही भाजपा को सियासी नुकसान होगा।