सारे सरकारी बैंक, ईंफ्रा, ऑटो, ऊर्जा, एफएमसीजी, खनिज और फार्मा आदि में आज बढ़ोतरी है। लेकिन जो डाटा है वह बताता है कि कितनी आर्थिक मंदी तमामक्षेत्रों में हैं। द सोसायटी ऑफ इंडियन आटोमोबाइल मैन्यूफैकच्रर्स के अनुसार घरेलू गाडिय़ों और दुपहिया की बिक्री घटी है। पिछले साल की अवधि मेंआटोमोबाइल क्षेत्र की कुल बिक्री यह जताती है कि सभी शहरी और ग्रामीण संस्था और वैयक्तिक तौर मांग और बिक्री कम होती गई है। कारों की बिक्री बीसफीसद घटी है और कोई ऐसा प्रोत्साहन भी नहीं जिससे बिक्री बढ़े।
2018-2019 में सालाना औद्योगिक उठान 2.70 फीसद था लेकिन 17 कंपनियों में से दस ऐसी थी जिनकी बिक्री भारतीय सड़कों के लिए हुई ही नहीं। अप्रैल 2019 मेंआटोमोबाइल उद्योग से आई मासिक जानकरी के अनुसार पिछले आठ साल में बिक्री बहुत ज़्यादा गिरी है। जो आंकड़े सोसायटी ऑफ इंडियन आटोमोबाइलमैन्युफैकच्रर्स से उपलब्ध हैं उसके अनुसार यात्री गाडिय़ों की बिक्री 2.47 लाख अप्रैल 2019 में थी बनिस्बत
2.98 लाख की बिक्री इसी अवधि में पिछले साल थी। यानी 17 फीसद की गिरावट। इंश्योरेंस में सितंबर से बढ़े खर्च का भी असर बिक्री बढऩे के खिलाफ रहा है।
इसी तरह औद्योगिक उत्पाद का इंडेक्स जो मार्च में जारी हुआ उससे पता चलता है कि 21 महीने से भी कम रहा आएटपुट। इसी तरह कैपिटल गुड्स क्षेत्र में अप्रैलमहीने में यह 8.7 फीसद से मार्च में 8.9 फीसद सिकुड़ा। उपभोक्ता का आउटपुट भी 5.1 फीसद रहा।
एक साल पहले उपभोक्ता नॉन-ड्यूरेबल उत्पाद में बढ़ोतरी मार्च 2019 में 0.3 फीसद रह गई थी जो मार्च 2018 में 14.1 फीसद की रफ्तार पर थी। यानी उत्पाद जोइंडेक्स में लगभग 78 फीसद था यह और गिरा। इस क्षेत्र की बढ़ोतरी 2018-19 में 3.5 फीसद रह गई।
नई सरकार जो 23 मई के बाद सत्ता संभालेगी उसे अर्थ व्यवस्था ठीक करने पर ध्यान देना होगा। भारत के उपभोक्ता टूथपेस्ट से गाड़ी तक खरीदने पर काफी कमखर्च करते हैं। इससे विकास में ठहराव है। दरअसल पिछले छह महीनों में मांग कमज़ोर हुई है और महत्वूपर्ण क्षेत्रों में विकास में ठहराव आया है। विमानन उद्योग मेंआए संकट से यात्रियों की आवाजाही पर असर पड़ा।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक आकलन के अनुसार भारत की रिसर्च शाखा ने पाया कि 384 कंपनियों में से 380 ने 2018-19 मझोले (मिडलाइन) और सबसे निचलेस्तर (बाटम लाइन) पर नकारात्मक विकास दिखाया। वित्त मंत्रालय ने भी माना कि आर्थिक विकास 2018-19 में कुछ गिरा।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के महकमे ने अपनी रपट ‘मंझली इकॉनॉमिक रिपोर्टÓ जो मार्च 2019 की है। उसमें निजी खपत में गिरती मांग, फिक्सड इन्वेस्टमेंटऔर निर्यात में कमी मंदी की खास वजहें बताती है।
भारत की एफएमसीजी कंपनियों का मार्च में जो तिमाही नतीजा आया है वह दबाव के पहले संकेत देता है। हिंदुस्तान यूनिलीवर की बढ़त 7 फीसद रह गई जबकिइसकी अच्छी खासी बढ़त डबल डिजिट में हुआ करती थी। यह पांच तिमाहियों के नतीजों में भी जाहिर है। डाबर इंडिया ने बताया कि इसकी महज चार फीसदबढ़त है। जबकि गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट का घरेलू उत्पाद बमुश्किल एक फीसद बढ़त की बात करते हैं।
नेल्सन के अनुसार एफएमसीजी क्षेत्र में जो बढ़त 13.6 फीसद पर 2019 के पहले तीन महीनों में हुई वह 2018 के आखिरी तीन महीनों में 16 फीसद थी। चौथीतिमाही के लिए आर्थिक डाटा जून 2019 के पहले सप्ताह में जारी होगा। ज़्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि यह बढ़त छह फीसद से 6.5 फीसद के बीच ही होगी।
प्रधानमंत्री की इकॉनॉमिक एडवाइजरी कौंसिल के एक सदस्य रथीन रॉय ने अभी हाल एक बातचीत में यह चेतावनी दी थी कि भारत ‘स्ट्रकच्रल क्राइसिसÓ की दौड़में है यदि देश के सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के 90 लाख लोगों ने मांग पैदा की है। यह अपने आप खत्म होगी। हम ‘स्ट्रकच्रल क्राइसिसÓ की ओर बढ़ रहे हैं। यहसमय से पहले बेअसर चेतावनी है। उन्होंने आगे कहा कि इसका मतलब है कि हम दक्षिण कोरिया नहीं है और न चीन ही हैं। हम ब्राजील हो सकते हैं। हम दक्षिणअफ्रीका में हो सकते हैं। हम मझोली आय वाले देश हैं जहां बड़ी तादाद में गऱीबी है। बढ़ते हुए अपराध हैं। दुनिया के इतिहास में देशों ने मझोली आय वाले फंदे मेंफंसने से बचने की कोशिश करनी है। क्योंकि फिर कोई देश इससे बाहर निकल नहीं सकता।
दरअसल तमाम मैक्रो और माइक्रो आर्थिक संकेत इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में खासी कमज़ोरी की ही ओर इशारा कर रहे हैं। कोई भी अर्थव्यवस्था चार तरहसे विकास की ओर रुख करती है बशर्ते एक तो निजी क्षेत्र में पूंजी निवेश, सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश और मूलभूत संसाधनों में विकास हो और देश के अंदर खपत बढ़ेऔर निर्यात विदेशों में बढ़े।
एक लंबे अर्से से सरकार मूलभूत संसाधनों को विकसित करने में संसाधन झोंक रही है। निजी निवेश का भी विकास बेहतर रहा है। दूसरे अर्थव्यवस्था घरेलू उत्पादोंमें उपभोक्ता के लिए एफएमसीजी उत्पाद इस समय 15-16 फीसद की दर पर है। इसी तरह निर्यात की स्थिति देखें । भारत का निर्यात जो अमेरिकी डालर 314.88 बिलियन 2017-18 में था वह अब 2013-14 के स्तर पर है। विकास का चौथा इंजन निजी निवेश औंधे मुंह आ गिरा है। 2018-19 में नया निवेश प्रस्ताव मात्र साढ़े नौलाख करोड़ का है जो 14 साल में सबसे कम है।
सीएमआईई के अनुसार अथव्यवस्था में कुल निवेश का दो तिहाई निजी पूंजी निवेश होता है। लेकिन 2014 से इसकी हिस्सेदारी कम होती गई है और 2018-19 में तोइसमें खासी गिरावट रही।
कोई भी अर्थव्यवस्था सिर्फ एक इंजन के भरोसे नहीं रहती और इसके साफ संकेत हैं कि अर्थव्यवस्था कहीं धसक रही है। जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) 2018-19 में 6.98 फीसद रहा जबकि 2015-16 में आठ फीसद था। औद्योगिक क्रियाकलाप घट रहा है जो औद्योगिक उत्पाद के सूचकांक में दिसंबर 2018 की तिहाई में 3.69 फीसद ही था। जनवरी में आईआईपी में 1.79 फीसद की गिावट दिखी। फरवरी 2019 में आईआईपी तो और भी नीचे यानी महज 0.1 फीसद बीस महीने में था।
फिर भी ऐसी चमकदार संभावना रियल एस्टेट क्षेत्र में दिख रही है जहां व्यावसायिक तौर पर खासी उन्नति है और आवासीय क्षेत्र में मांग बढ़ रही है। लेकिन इस क्षेत्रमें भी सरकार को ही पहल करनी है। सार्वजनिक पूंजी निवेश मूलभूत संसाधनों को विकसित करके करना है। सार्वजनिक निवेश से ही उपभोक्ता इंजन गति लेगा।इसलिए इसके लिए भी सरकार को ही आर्थिक प्रलोभन देने चाहिए।