अमृतसर रेल हादसे जैसे हादसे यहां लगातार होते रहते हैं। यदि आंकड़ों पर नजऱ डालें तो पाएंगे कि इस प्रकार का एक भयानक हादसा औसतन हर साल देश में हो जाता है। उसमें सैकड़ों लोग मरते हैं पर आज तक किसी अधिकारी , कर्मचारी या राजनेता को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया गया। किसी पर हादसे की जिम्मेदारी नहीं डाली गई। ऐसा लगता है कि देश में लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी की है ही नहीं। घटना के कुछ समय बाद तक तो मामला गर्म रहता है और चर्चा भी होती है। फिर धीरे-धीरे पीडि़तों की जिं़दगी पटरी पर आ जाती है। सरकार कोई भी कार्रवाई नहीं करती। यहां तक कि उस तरह की दुर्घटना दुबारा न हो इस पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
यदि पिछले 10 सालों को देखें तो पता चलेगा कि इस समयावधि में 10 बड़े हादसे हुए। इनमें 500 से ज़्यादा लोग मरे और 68 लोग अंधे हो गए। लेकिन इसके लिए कोई दोषी नहीं।
गुजरात में आए भयानक भूकंप के बाद जब हमने धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) के तत्कालीन जि़लाधीश से जानना चाहा कि भूकंप जैसी आपदा से निपटने के लिए उनके क्या आपात प्रबंध हैं तो वे साहब बिगड़ गए और गुस्से से बोले-‘हमें और भी काम है, भूकंप जब आएगा तो देख लेंगे। यहां यह बता देना ज़रूरी है कि धर्मशाला का इलाका ‘सिसमोलोजिकल जोन पांचÓ में आता है जहां भूकंप आने की संभावना सबसे ज़्यादा है। 1905 में यहां आए भूकंप में पूरा धर्मशाला ध्वस्त हो गया था और इसमें 20,000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे। इस एक घटना से अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रशासन और सरकार की नजऱों में इस प्रकार के हादसों और इंसानी जानों की क्या कीमत है।
तीन अक्तूबर 2014 को बिहार की राजधानी पटना में रावण दहन के दौरान ऐसी ही घटना हुई थी। रावण का पुतला जलाने के बाद जब लोग लौट रहे थे तो वहां फाटक नंबर 10 पर एक तार गिर गई। अंधेरे की वजह से किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। इतने में किसी ने शोर मचा दिया कि यह बिजली की तार है और इसमें करंट है। इससे लोगों में भगदड़ मच गई और 33 लोग मारे गए। इस मामले में किसी अफसर की जिम्मेदारी तय नहीं हो पाई। जांच समिति भी गठित की गई पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसी प्रकार मुंबई के एल्फिन्स्टन रोड़ रेलवे स्टेशन के फुट ओवर ब्रिज पर 29 सितंबर 2017 को मची भगदड़ में 23 लोगों की मौत हो गई थी। इस घटना को एक साल से अधिक हो गया है पर कोई नतीजा नहीं । इस महीने पुलिस ने इसकी जांच भी बंद कर दी। पुलिस का कहना है कि इस घटना के लिए कोई दोषी नहीं हैं यह केवल एक हादसा था।
राजस्थान में जोधपुर के मेहरानगढ़ के माँ चामुडा मंदिर में 30 सितंबर 2008 को भगदड़ मच गई थी। इसमें 216 लोगों की मौत हो गई। इस मामले की जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जसराज चोपड़ा को सौंपी थी। उन्होंने अपनी रपट तीन साल बाद 2011 में सरकार को सौंपी। न्यायाधीश (सेवानिवृत) चोपड़ा ने रिपोर्ट में बताया था कि दोषी कौन है। इसके बावजूद दो सरकारों का कार्यकाल पूरा हो गया लेकिन जांच रिपोर्ट का खुलासा नहीं हुआ और न ही किसी को दोषी करार दिया गया।
एक और रेल हादसा जो 2015 में चार अगस्त को मध्यप्रदेश में हुआ था, वह भी बहुत भयानक था। रात 11.30 हरदा जि़ले के खिरकिया और भिरंगी स्टेशनों के बीच काली माचक नदी का पानी रेलवे टै्रक पर आने के कारण यह हादसा हुआ था। इसमें कामायनी एक्सप्रेस के 11 डिब्बे और जनता एक्सप्रेस के आठ डिब्बे पानी में बह गए। इसमें 29 मुसाफिरों की जान चली गई। रेलवे ने इस हादसे के लिए एक भी रेलकर्मी को दोषी नहीं माना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी में पानी का स्तर अचानक बढऩे से ट्रैक बह गया और यह दुर्घटना हुई। यह एक प्राकृतिक आपदा है।
आठ जून 2014 को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जि़ले में लारजी पावर परियोजना से अचानक पानी छोड़े जाने से हैदराबाद में इंजीनियरिंग कर रहे 24 छात्रों की जान चली गई । एनडीआरएफ के 500 से भी ज़्यादा जवानों ने 15 दिनों तक छात्रों की तलाश की। चार साल बाद भी इसमें मरने वाले कुल 25 लोगों (एक व्यक्ति और भी था जो छात्र नहीं था) की जान जाने के लिए जिम्मेदारी तय नहीं हो पाई।
इनके अलावा और भी कई हादसे हैं जिनमें सैकड़ों जाने गई हैं पर कोई दोषी करार नहीं दिया गया। इस मुद्दे पर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने बताया कि किसी जगह हुए किसी भी हादसे की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है। डीएम और एसपी जि़ले में होने वाले हादसे के पहले जिम्मेदार माने जाते हैं। इसके बाद राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी तय होती हैं नीति बनाना सरकार का काम है और उन्हें लागू करना प्रशासन का काम होता है। ऐसे में यह देखना ज़रूरी हो जाता है कि क्या खराब नीतियां हादसे की वजह बनी है या फिर उन्हें लागू करने में कोताही बरती गई।