चाय की जगह कॉफी की तलब जिन्हें है उन्हें अब ज़रा सोच कर अपने शौक को जारी रखना होगा। पहले भी कॉफी महंगी ही थी। लेकिन इधर भारतीय रुपए के लुढ़कने से पेट्रोल-डीज़ल की तरह कॉफी भी आम आदमी के बजट से बाहर होती दिख रही है। उधर केरल में आई बाढ़ और बांधों से छोड़े गए पानी से कॉफी का घरेलू उत्पाद भी चौपट हो गया। ‘पुनर्निमाण केरल’ में कम से कम एक दशक का समय लगेगा। लेकिन संभावना है कि प्रदेश सरकार कॉफी बोर्ड और किसानों की मेहनत से अगले साल से ही कॉफी का उत्पादन शुरू कर देगी।
यह सही है कि केरल के नए निर्माण में केंद्र की भाजपा नेतृत्व की एनडीए सरकार ज्य़ादा रु चि नहीं ले रही है। लेकिन बड़ी तादाद में देश-विदेश से आए स्वयं सेवी और डाक्टर ज़रूर राज्य के लोगों की हिम्मत बंधा रहे हैं। कॉफी बोर्ड केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के अधीन है। आंकड़ों के आधार पर काम करने वाले कॉफी बोर्ड ने अब तक केरल में उत्पादित कॉफी को हुए नुकसान का आकलन नहीं किया है। लेकिन यह माना है कि दक्षिण भारत में हुई भारी बारिश से कॉफी की फसल को खासा नुकसान हुआ है। हालांकि इस नुकसान का असर कॉफी की कीमत पर नहीं पड़ेगा क्योंकि विदेश में उत्पादित कॉफी की कीमत वहीं तय होती है। आज भी वहां मांग की तुलना में सप्लाई कहीं ज्य़ादा है। यानी क्या भारतीय कॉफी के उत्पाद की कोई कीमत नहीं?
कॉफी बोर्ड यह ज़रूर मानता है कि भारी बारिश से देश में 82 हजार टन कॉफी का नुकसान हुआ है। वे यह भी कहते हैं कि पहले 2018-19 में कॉफी की फसलों में आए फूलों से आस बंधी थी कि तीन लाख पचास हजार चार सौ टन का उत्पादन हो जाएगा बशर्ते दिसंबर में अच्छी बुवाई हो जाए। साल 2017-18 के फसल डाटा के अनुसार 2017-18 में तीन लाख सोलह हजार टन उत्पाद था। इसमें 95 हजार अरेबिका और दो लाख इक्कीस हजार टन रोबस्ता था। बोर्ड के अनुसार कॉफी की फसल का सबसे ज्य़ादा नुकसान कर्नाटक (जहां से राष्ट्रीय खपत का पचहत्तर फीसद) में हुआ। इसके बाद केरल और तमिलनाडु में। कर्नाटक के थोडागु क्षेत्र से ज़मीन धसकने की खबरें मिली हैं। इससे कॉफी की पंद्रह सौ हेक्टेयर भूमि का नुकसान हुआ है। ऐसा ही नुकसान केरल और कर्नाटक के दूसरे हिस्सों में हुआ है। सबसे ज्य़ादा नुकसान उन कृषि क्षेत्रों में हुआ जहां रोबस्टा कॉफी का उत्पादन होता था।
कॉफी उत्पादक संघ जो कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में है, उनकी मांग रही है कि कजऱ् अदायगी की समय सारिणी बदली जाए और कजऱ् के भुगतान और ढाई लाख तक के फसल कजऱ् की ब्याज दर कम से कम तीन फीसद कम की जाए।
देश में प्राकृतिक आपदा से हुए नुकसान की भरपाई को कठिन बताते हुए बोर्ड ने कहा है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के तहत राज्य के आपदा राहत कोष में आया धन कॉफी के नुकसान की भरपाई के लिए कतई पर्यात्य नहीं है। क्योंकि कॉफी को दक्षिण पश्चिम में मानसून की लगातार बारिश से खासा नुकसान हुआ है। ऐसे में भारत सरकार को एक विशेष पैकेज देने पर सोचना चाहिए।
बहरहाल, दक्षिण भारत में हुई बारिश से जनजीवन ही अस्तव्यस्त नहीं हुआ बल्कि खासी बर्बादी हुई है। पूरे केरल में चल अचल संपत्ति ही नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर मसालों, रबर, कॉफी, काजू, नारियल आदि फसलों का नुकसान हुआ है। खाड़ी के देश जहां केरल के मलयाली लोग जाकर कई तरह के काम करते थे वे देश भी केरल को फिर से बनाने में पहल ले रहे हैं। कतर ने तो केरल के फलों और सब्जियों पर लगी अपनी रोक हटा दी है। सऊदी अरब अमीरात, बहरीन और कुवैत ने भी जून के शुरू में रोक लगा दी थी क्योंकि तब निपाह नाम की बीमारी फैल रही थी। लेकिन रोक हटने से उम्मीदें बंधी हैं। कॉफी होम से फिर कॉफी बनने की सुगंध आने लगी है।