किसान महापंचायत से देश के सियासी समीकरण किस तरह बनेंगे-बिगड़ेंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन इतना तो ज़रूर है कि अब किसानों की उपेक्षा कोई भी राजनीतिक दल नहीं करेगा। किसानों के सम्मान और कृषि के इर्दगिर्द ही देश की राजनीति तय होगी। किसानों को कैसे अपने पक्ष में किया जाए, इसके लिए राजनीतिक दल आगामी विधानसभा चुनाव में अपने घोषणा-पत्र में उनकी आर्थिक सम्पन्नता, समस्याएँ और उनकी माँगों की ओर ध्यान दे सकते हैं। क्योंकि देश के सभी राजनीतिक दलों ने मुज़फ़्फ़रनगर की किसान महापंचायत में यह देख लिया कि आने वाले दिनों में किसान देश की सियासत की दशा और दिशा तय करेंगे।
बताते चलें कि देश के किसान अपने अधिकारों और खेती-बाड़ी बचाने की ख़ातिर तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में लगभग 10 महीने से दिल्ली की सीमाओं पर शान्तिपूर्वक आन्दोलन कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने अभी तक उनकी आवाज़ नहीं सुनी। किसानों ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित कई केंद्रीय मंत्रियों से कई मर्तबा बातचीत की और सरकार से लॉकडाउन में बिना चर्चा के लाये गये इन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग की। लेकिन सरकार ने कृषि क़ानून वापस नहीं लिये, उलटा किसानों को धमकियाँ दीं और कई तरह से प्रताडि़त किया। किसानों पर प्रताडऩा का अंदाज़ा कई बार उन पर कराये गये लाठीचार्ज, अग्निकांड, सडक़ों को खोदने, सडक़ों पर बड़े-बड़े कीले ठुकवाने और दुश्मन देश की सीमाओं की तरह दिल्ली की सडक़ों पर बैरिकेड लगवाये, पुलिस से लेकर अर्धसैन्य बलों तक को तैनात करने से लगाया जा सकता है। इन घटनाओं में कई किसानों की मौतें भी हुईं। इससे भी जब किसानों ने आन्दोलन बन्द नहीं किया, तो उन पर देश विरोधी होने के लांछन लगाये गये, जिससे न केवल किसानों का विरोध बढ़ा, बल्कि देश का समतावादी नज़र वाला तबक़ा उनके साथ और मज़बूती के साथ खड़ा हो गया। किसान आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए किसानों के आपस में झगडऩे, टूटने, आन्दोलन के ख़त्म होने और आन्दोलन में किसानों के न होने जैसी अफ़वाहें भी उड़ायी गयीं। इसके जबाव में 5 सितंबर को मुज़फ़्फ़रनगर में संयुक्त किसान मोर्चा ने महापचांयत का आयोजन कर दिया, जो कि सरकार को एक झटका दे गया। संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेता राकेश टिकैत ने देश भर से आये लाखों किसानों के इस कुम्भ में साफ़ कह दिया कि अगर सरकार नहीं मानी, तो आगामी साल पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा के चुनावों में, जिसमें उत्तर प्रदेश जैसा महत्त्वपूर्ण राज्य शामिल है; भाजपा के राजनीतिक समीकरण बदल दिये जाएँगे। किसानों के पास वोट बैंक की इतनी ताक़त है कि भाजपा को सत्ता से आसानी से हटा देंगे। महापंचायत के माध्यम से किसानों ने अपने-अपने तरीक़े से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तीखे हमले किये। इन हमलों के सियासी मायने कुछ भी निकालें जाएँ, पर इतना ज़रूर है कि इस महापंचायत में किसानों की एकता को देखकर सरकार घबरायी तो है। महापंचायत के बाद भाजपा नेताओं ने किसानों के साधने के लिए ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया है। किसानों के साथ तालमेल बैठाने की चर्चा सियासी गलियारों में है।
राकेश टिकैत ने महापंचायत में साफ़तौर पर कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों ही उत्तर प्रदेश के नहीं हैं। इन्हें उत्तर प्रदेश से जाना चाहिए। मतलब साफ़ है कि नरेंद्र मोदी गुजरात से हैं, जो उत्तर प्रदेश की बनारस लोकसभा सीट जीतकर आते हैं और आदित्यनाथ मूलत: उत्तराखण्ड से हैं और गोरखपुर से राजनीति कर रहे हैं। दोनों नेताओं पर राकेश टिकैत के बयान से उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश के सियासी समीकरण का अलग ही सन्देश गया है। क्योंकि माना यह जा रहा है कि जिस राज्य से नेता हो, उसी राज्य से वह राजनीति करे; दूसरे राज्यों जाकर राजनीति न करे। अगर कोई नेता वाक़र्इ बहुत अच्छा है, तो उसके राज्य के लोग उसे क्यों पसन्द नहीं करेंगे? हालाँकि ‘तहलका’ इस तरह के क्षेत्रवादी और राज्यवादी बँटवारे के पक्ष में नहीं है।
राकेश टिकैत ने महापंचायत से नपे-तुले सियासी अंदाज़ में किसानों की हक़ की बात करने के साथ-साथ बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी, चरमराती अर्थ-व्यवस्था, किसानों की ज़मीन बेचने वाले सरकारी षड्यंत्र जैसे कई मुद्दों को लेकर भी भाजपा पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि रेल, बिजली, सडक़, एलआईसी बंदरगाह, हवाई जहाज़ और एफसीआई को सरकार बेंच रही है। राकेश टिकैत ने कहा कि जब तक कृषि क़ानून वापस नहीं, तब तक वोट नहीं। उन्होंने ऐलान किया कि 01 जनवरी, 2022 से किसान अपनी फ़सल को दोगुने दामों पर बेचेंगे। साथ ही माँग की कि किसानों को गन्ने का भाव 450 रुपये प्रति कुन्तल मिलना चाहिए।
इस महापंचायत की विशेषता यह रही कि इसमें सभी धर्मों की एकता पर ज़ोर दिया गया और यह बताया गया कि देश में सभी धर्मों के किसान हैं। बड़ी बात यह रही कि विपक्षी नेताओं को संयुक्त किसान मोर्चा ने अपना मंच साझा नहीं करने दिया। इस महापंचायत में लघु भारत की तस्वीर साफ़ दिखी, जिसमें उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु और अन्य कई राज्यों से आकर किसानों और उनके परिजनों, यहाँ तक कि बच्चों और महिलाओं ने भी भाग लिया। हरियाणा से हिसार से किसान नेता बलजीत सिंह ने बताया कि हरियाणा सरकार सत्ता के नशे में इस क़दर चूर है कि वह किसानों पर जानलेवा हमला करवा रही है, जिसमें किसानों की जानें जा रही हैं। किसानों का यह बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा; क्योंकि इन्हीं किसानों ने भाजपा की सरकार बनवाने के लिए मेहनत की, मतदान किया। अब वही सरकार किसानों पर अत्याचार कर रही है। अब किसान भाजपा को सत्ता से बेदख़ल करके रहेंगे। कानपुर से किसान नेता राहुल सिंह कहा कि देश के अन्नदाता आज अपने अधिकारों और कृषि क़ानूनों की वापसी के लिए केंद्र सरकार से अपील कर रहे हैं। लेकिन सरकार देश के दो-चार पूँजीपतियों को ख़ुश करने के लिए किसानों के साथ खिलवाड़ कर रही है। ऐसी भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए किसानों ने कमर कस ली है। आगामी चुनावों में भाजपा को सब पता चल जाएगा कि किसानों में कितनी ताक़त है। पंजाब से किसान नेता बलजीत सिंह ने कहा कि अजीब विडम्बना है कि भारत कृषि प्रधान देश है, लेकिन भाजपा की सरकार देश में पूँजीपतियों की सरकार बनाने पर तुली है। किसानों के बारे में सोचना तो दूर, उन पर काले क़ानून और थोप रही है। किसानों का विरोध सरकार की कृषि विरोधी नीतियों की वजह से ही है।
बताते चलें कि 26 नवंबर से लेकर अब तक किसान आन्दोलन में 600 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है, जबकि 400 से अधिक किसान गम्भीर रूप से घायल हुए हैं। इन मौतों में कई मौतें पिटाई के कारण ही हुई हैं। हाल ही में करनाल के उप ज़िलाधिकारी (एसडीएम) आयुष सिन्हा के आदेश पर करनाल के बसताड़ा टोल प्लाजा पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में बुज़ुर्ग किसान नेता सुशील काजल की मौत होना इसका बड़ा उदाहरण है। इस लाठीचार्ज में सैकड़ों किसान गम्भीर रूप से घायल हो गये। किसान सुशील काजल की मौत पर हरियाणा और पंजाब की सियासत ज़रूर गरमायी; लेकिन लाठीचार्ज कराने वाले एसडीएम के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं हुई। हत्या का मुक़दमा तक उनके ख़िलाफ़ दर्ज नहीं हुआ। किसान नेता एसडीएम के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा दर्ज करवाने के लिए अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। किसानों के रोष को देखते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एसडीएम आयुष सिन्हा का तबादला भर किया। इस घटना को लेकर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि जब तक एसडीएम को बर्ख़ास्त नहीं किया जाता, तब तक किसान सचिवालय तक आन्दोलन करते रहेंगे। किसान नेता और किसानों के अधिकारों के लिए क़ानूनी लड़ाई लडऩे वाले चौधरी बीरेन्द्र सिंह का कहना है यह भाजपा सरकार किसान विरोधी काम कर रही है। क्योंकि किसानों ने जब माँगें सरकार के समक्ष जब भी रखी हैं, तब-तब किसानों का विरोध सरकार ने प्रशासन द्वारा करवाया है और उन्हें पिटवाया है। करनाल में पुलिस का रवैया अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों की याद दिलाता है। देश के किसी भी क़ानून ऐसा नहीं लिखा है कि पुलिस आन्दोलनकारियों पर दुश्मनों की तरह लाठियाँ बरसाये और किसी की पीट-पीटकर हत्या कर दे। किसान सुशील काजल की हत्या हुई है; वो भी सोची-समझी राजनीति के तहत। चौधरी बीरेन्द्र सिंह ने कहा कि एसडीएम आशीष सिन्हा ने पुलिस को जो आदेश दिया, वह मानवता को शर्मसार करने वाला है। आशीष सिन्हा का वीडियो उनकी तानाशाही और बर्बर सोच को साफ़ दिखा रहा है। ऐसे अधिकारी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। किसानों की माँग है कि सरकार को चाहिए कि जो किसान घायल हुए हैं, वह उनका अच्छे अस्पतालों में इलाज करवाये और मुआवज़ा दे। इसके साथ ही सरकार मृतक किसान सुशील काजल के एक परिजन को सरकारी नौकरी और परिवार को 50 लाख का मुआवज़ा दे।
कुल मिलाकर मौज़ूदा हालात में किसानों की एकता और उनके तेवरों को देखकर यह साफ़ कहा जा सकता है कि 2022 में पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में अगर भाजपा सरकार को हराने के लिए राकेश टिकैत उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और पंजाब में किसानों के दल के साथ घूमते हैं, तो निश्चित तौर पर इन राज्यों में भाजपा पर विपरीत असर पड़ सकता है। क्योंकि इन राज्यों में किसानों का अच्छा-ख़ासा दबदबा है और किसानों के बीच राकेश टिकैत की मज़बूत पकड़ ज़मीनी स्तर पर मज़बूत हुई है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहाँ की जनता का मिजाज़ किसान आन्दोलन और दूसरी परेशानियों के चलते काफ़ी बदला हुआ है, जो कि मौज़ूदा सरकार पर भारी पड़ सकता है।