साल के अन्त से पहले का पखवाड़ा काफ़ी उथल-पुथल भरा रहा है। भारत ने अपने पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल बिपिन रावत और 12 अन्य लोगों को तमिलनाडु में कुन्नूर के पास एक विमान दुर्घटना में खो दिया। इस पखवाड़े के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अप्रत्याशित रूप से मुख्य माँगों को मान लेने के बाद किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर अपना साल भर का आन्दोलन वापस ले लिया। पखवाड़े के ही दौरान नागालैंड में सुरक्षाबलों की गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत से न केवल पूर्वोत्तर, बल्कि पूरे देश में आक्रोश फैल गया।
‘तहलका’ ने वर्तमान अंक में इन सभी घटनाओं को व्यापक रूप से कवर किया है। इस बार की हमारी कवर स्टोरी नागालैंड की ग्राउंड जीरो रिपोर्ट है। अब यह स्पष्ट है कि विद्रोहियों के सम्भावित आन्दोलन के बारे में सूचना अधपकी थी; भले यह पूरी तरह ग़लत नहीं थी। किसी भी मामले में ख़राब ख़ुफ़िया जानकारी के कारण बेगुनाहों की हत्या को सही नहीं ठहराया जा सकता है।
सेना ने इस घटना को लेकर कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया है, जबकि नागालैंड सरकार ने सच्चाई का पता लगाने के लिए एक विशेष जाँच दल का गठन किया है। ज़ाहिर है घटना से उभरी भावनाओं को उपचारात्मक स्पर्श प्रदान करने के लिए जाँच को तेज़ी से पूरा करने की आवश्यकता है। हालाँकि यह भी कडु़वा सच है कि पिछली जाँचों ने ज़्यादा विश्वास नहीं जगाया है; क्योंकि अफ्सपा के तहत आज तक किसी भी सुरक्षाकर्मी पर नागरिकों की हत्या का मामला नहीं बनाया गया है। जम्मू और कश्मीर एक उदाहरण है, जहाँ पिछले दो दशक के दौरान केंद्र ने सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित मामलों में अफ्सपा के तहत अभियोजन की मंज़ूरी नहीं दी है।
सरकार और सशस्त्र बलों द्वारा प्रदान किये गये तर्क के बावजूद दुर्भाग्यपूर्ण घटना स्पष्ट रूप से अफ्सपा के तहत सशस्त्र बलों को प्रदान की गयी अनंत शक्तियों का परिणाम है। यह अधिनियम वर्तमान में असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के तीन ज़िलों और असम की सीमा से लगे राज्य के आठ पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में लागू है। नागालैंड के मुख्यमंत्री, नेफ्यू रियो और मेघालय के मुख्यमंत्री, कोनराड संगमा ने तुरन्त इस अधिनियम को निरस्त करने की माँग की है। यह समझने की ज़रूरत है कि अफ्सपा को बन्द किया जाना चाहिए और अधिनियम के राजनीतिक ग़ुस्से को जन्म देने से पहले इसे निरस्त करने की लम्बे समय से लम्बित माँग को स्वीकार किया जाना चाहिए।
प्राथमिकता यह सुनिश्चित करने की होनी चाहिए कि यह त्रासदी नागालैंड में और अधिक हिंसा और अस्थिरता में न बदल जाए। इस घटना में सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम के बीच सौहार्द और नाज़ुक़ नागा शान्ति वार्ता को संकट में डालने की क्षमता है। इस समय एक उच्च स्तरीय राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागालैंड की यात्रा पर विचार कर सकते हैं, और जो हुआ उसके बारे में ख़ेद जताने के साथ आश्वासन से सकते हैं कि सुरक्षा बलों में नागरिकों के विश्वास को बहाल करने के लिए यह फिर से नहीं होगा। निश्चित ही ऐसी पहल राजनीतिक विश्वसनीयता को मज़बूत करेगी और घटना के प्रति पश्चाताप भी वास्तविक लगेगा।
चरणजीत आहुजा