उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दूसरी पार्टियों के कद्दावरों को अपनी पार्टी में शामिल करने की हौड़ अब कुछ-कुछ ठंडी पड़ती दिख रही है। पार्टियों में यह हौड़ तब और लगी, जब भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेताओं ने उसे छोडक़र समाजवादी पार्टी का दामन थामने शुरू किया। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने सपा संरक्षक और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के परिवार में सेंधमारी कर डाली।
भारतीय जनता पार्टी ने अपने क़रीब एक दर्ज़न से अधिक नेताओं के बदले मुलायम सिंह की बाग़ी बहू अपर्णा यादव के अलावा उनके साढ़ू प्रमोद गुप्ता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। प्रमोद गुप्ता समाजवादी पार्टी में विधायक थे। हालाँकि भारतीय जनता पार्टी के लोग इसे समाजवादी पार्टी की बड़ी हार बताते नहीं थक रहे हैं, मगर इस सेंधमारी से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को राहत ही मिली है। क्योंकि अखिलेश यादव अपने परिवार में टिकट देना नहीं चाहते थे, ख़ासकर अपने सौतेले और छोटे भाई प्रतीक यादव, उनकी पत्नी अपर्णा यादव और उनके मायके के किसी भी सदस्य को।
प्रचार यह किया जा रहा है कि अखिलेश अपने सौतेले भाई और परिवार से बग़ावत करने वाली उनकी पत्नी अपर्णा यादव को अपने मुक़ाबले नहीं देखना चाहते। ऐसे लोगों को 2017 के विधानसभा चुनावों की हलचल के पन्ने पटलने की ज़रूरत है, जब अखिलेश यादव ने लखनऊ कैंट से अपर्णा यादव को टिकट तो दिया ही, साथ ही उनके लिए चुनाव प्रचार किया। लेकिन अपर्णा अपनी सीट नहीं बचा पायीं। यह वह दौर था, जब मुलायम के एकजुट परिवार में पार्टी की कमान सँभालने को लेकर भयंकर फूट पड़ी हुई थी और अखिलेश पर अपने पिता से पार्टी मुखिया का पद छीनने का आरोप था। इसके अतिरिक्त अखिलेश अपने को इस बार चुनाव में ख़ुद को परिवारवादी के आरोप से बचाना चाहते थे। यही वजह है कि वे इस बार अपने कुनबे के अन्य लोगों को भी टिकट नहीं देना चाहते हैं।
इसके अतिरिक्त अखिलेश यादव अपने छोटे और सौतेले भाई प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव से इसलिए भी कतराते हैं, क्योंकि उन पर पहले भी कई तरह के आरोप रहे हैं। इतना ही नहीं अपर्णा के मायके के लोगों पर भी घोटालों के आरोप रहे हैं। पिछले वर्ष समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के परिवार पर 16 फ़र्ज़ी कम्पनियाँ चलाने का आरोप लगा। यह ख़ुलासा विश्वनाथ चतुर्वेदी ने करते हुए दावा किया था कि सुप्रीम कोर्ट के वकील और मुलायम के परिवार पर आय से अधिक सम्पत्ति है। विश्वनाथ चतुर्वेदी इस मामले का मुक़दमा चला रहे हैं। उनका दावा है कि लखनऊ में अखिलेश के परिजनों की 16 बेनामी कम्पनियाँ हैं, जिनका एक ही पता और मोबाइल नंबर है और इन कम्पनियों के मालिक विवेक यादव, प्रशांत सिंह और मनोज कुमार हैं।
जानकारों का कहना है कि इन कम्पनियों के पीछे प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव ही हैं। इसके अलावा विश्वनाथ ने अखिलेश के सौतेले भाई प्रतीक यादव के साले अमन सिंह बिष्ट पर भी एक दर्ज़न से अधिक कम्पनियाँ बनाकर आय से अधिक सम्पत्ति जोडऩे का आरोप लगाया है। उन्होंने सीबआई को भी पत्र लिखकर इस बारे जाँच करने की माँग की है।
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी अपने कद्दावरों के समाजवादी पार्टी में जाने से खिन्न थी और इसका बदला चाहती थी, जिसमें उसे मुलायम परिवार की सबसे कमज़ोर कड़ी अपर्णा यादव, उनके पति प्रतीक यादव और अपर्णा यादव के रिश्तेदार दिखे। कुछ जानकारों का कहना है कि प्रतीक यादव को डर था कि अगर वे पत्नी को लेकर भारतीय जनता पार्टी में नहीं गये, तो उनके यहाँ भी दूसरे सपा नेताओं की तरह छापेमारी हो सकती है। इसके अतिरिक्त प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव लखनऊ के कैंट क्षेत्र से टिकट भी चाहती हैं, जो अखिलेश इस बार उन्हें देने को तैयार नहीं थे। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें न्योता दिया और वे बिना देरी किये परिवार को बिना बताये पति प्रतीक यादव के साथ सीधे लखनऊ पहुँच गयीं, जहाँ से वे भाजपा के इशारे पर सीधे दिल्ली पहुँचीं और अगले ही दिन भाजपा में शामिल होने का ऐलान कर दिया।
लेकिन अब इस मामले में मोड़ यह आ गया है कि अपर्णा को भारतीय जनता पार्टी से भी टिकट मिलने की उम्मीद पर पानी फिरता नज़र आ रहा है; क्योंकि भाजपा अब उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं लगती। यह तब है, जब अपर्णा खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उर्फ़ अजय बिष्ट की जमकर तारीफ़ कर चुकी हैं। मगर उनके रास्ते में उन्हें 2017 में विधानसभा चुनावों में हरा चुकी भारतीय जनता पार्टी की रीता बहुगुणा जोशी ही रोड़ा नज़र आ रही हैं। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि पहले तो देश के गृह मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के बड़े निर्णायक अमित शाह ने उन्हें पार्टी में शामिल करने के लिए दिल्ली तक बुलाया, मगर जैसे ही वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गयीं, अमित शाह ने उन्हें मिलने का समय तक नहीं दिया। भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद अमित शाह से यह उनकी पहली ही मुला$कात थी और पहले ही दिन अपर्णा यादव को 10 घंटे इंतज़ार करना पड़ा, बावजूद इसके गृह मंत्री उनसे नहीं मिले और यादव परिवार की यह बहू भाजपा मुख्यालय से नाउम्मीदी लिए लौट गयी। जानकार कहते हैं कि अपर्णा यादव को यह मायूसी हाथ लगनी ही थी, क्योंकि अमित शाह ने अपने कद्दावर नेताओं को तोडऩे का बदला तो समाजवादी पार्टी से ले लिया, लेकिन यह दाँव भारतीय जनता पार्टी को नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी को $फायदा पहुँचाने वाला साबित हुआ है। क्योंकि अखिलेश जिस काँटे को पाँव से निकालना चाहते थे, वह भारतीय जनता पार्टी ने ख़ुद ही निकाल दिया। अब भारतीय जनता पार्टी में अपर्णा को टिकट मिलेगा या नहीं, यह जानने के लिए इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा। हो सकता है कि अपर्णा के लिए योगी आदित्यनाथ कुछ करें; क्योंकि अपर्णा यादव के पिता अरविंद सिंह बिष्ट ख़ुद उत्तराखण्ड से हैं और अजय बिष्ट यानी योगी आदित्यनाथ की जाति के हैं और योगी आदित्यनाथ पर तो वैसे भी जातिवादी होने का ठप्पा लगा हुआ है।
मगर सवाल यह है कि अगर अपर्णा यादव को भारतीय जनता पार्टी से भी टिकट नहीं मिला, तो उनकी फ़ज़ीहत होनी ही है; मेहनत पर भी पानी फिरेगा। क्योंकि अपर्णा यादव लखनऊ कैंट के क्षेत्र में जीत के लिए विकट मेहनत कर रही हैं।
ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर उन्हें भारतीय जनता पार्टी से टिकट नहीं मिला, तो क्या अपर्णा यादव का राष्ट्रवाद और भारतीय जनता पार्टी के प्रति अचानक उमड़ा जबरदस्त प्रेम लम्बे समय तक ज़िन्दा रह पाएगा? या फिर समाजवादी पार्टी की तरह ही जल्दी से टूट जाएगा। वैसे विद्वतजन कहते हैं कि जो अपने परिवार का नहीं होता, वो पड़ोसियों का कभी नहीं होता। देश में ऐसे कई नेता हैं, जो अपने ही परिवार को धोखा दे चुके हैं और राष्ट्र की सेवा का दम्भ भरते हैं। मगर यह तो जनता को सोचना होगा कि ऐसे लोगों पर भरोसा करना कितना उचित है? रही अपर्णा की बात, तो उन्होंने भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर भी परिवार का मोह नहीं छोड़ा है। इस बात की पुष्टि भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद अपने ससुर और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से अपर्णा यादव के आशीर्वाद लेने से साबित होती है।
प्रतीक यादव से प्रेम विवाह करने वाली अपर्णा यादव के अपने परिवार के प्रति बाग़ी तेवर होना कोई नयी बात नहीं है, मगर उन्होंने परिवार से नाता भी कभी नहीं तोड़ा और मुलायम सिंह से लेकर अखिलेश यादव तक उनके प्रति काफ़ी स्नेह रखते हैं। 2011 में यादव परिवार की बहू बनी अपर्णा बिष्ट ने अपना सरनेम हटाकर यादव सरनेम स्वीकार करने के बाद ससुर मुलायम को पिता की तरह ही माना और वे कई आयोजनों में पूरे परिवार के साथ दिखी हैं। अखिलेश भी उन्हें कभी उदास नहीं करते, 2017 में लखनऊ कैंट से अपर्णा यादव को टिकट देकर उनके पक्ष में प्रचार करना इस बात की ठोस गवाही है।
मगर इस बार उन्होंने अपर्णा यादव को टिकट नहीं दिया। जानकारों का कहना है कि इस बार अखिलेश किसी भी हाल में उत्तर प्रदेश की सत्ता हाथ से नहीं जाने देना चाहते। यही वजह है कि वे किसी भी तरह के झगड़े और आरोप से भी बचना चाहते हैं। पिछले साल दिसंबर में समाजवादी पार्टी के कई विधायकों, नेताओं के यहाँ हुई छापेमारी और अखिलेश के छोटे भाई प्रतीक यादव और उनकी पत्नी अपर्णा यादव पर फ़र्ज़ी कम्पनियों को चलाने के आरोप लगने लगे थे।
इसके अतिरिक्त अखिलेश यादव इस बार कांग्रेस की तरह परिवारवाद के भाजपा के आरोपों से समाजवादी पार्टी को मुक्त करना चाहते हैं। मगर अपर्णा यादव इस बात को नहीं समझ सकीं और एक टिकट के चक्कर में पडक़र तुरन्त भारतीय जनता पार्टी में चली गयीं। हालाँकि अपर्णा यादव राजनीति की पढ़ाई कर चुकी हैं, मगर देखना यह है कि उनकी राजनीति की पढ़ाई यहाँ कितना काम आती है?