आजकल लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के कमज़ोर होने का रोना पूरे देश में रोया जा रहा है। लेकिन जनकल्याण और देशहित की पत्रकारिता करने वाले तीन-चार फ़ीसदी लोग भी नहीं हैं। जनकल्याण की पत्रकारिता करने वाले लोगों पर हमले होते हैं। उन्हें अच्छी तनख़्वाह नहीं मिलती। सरकारी एजेंसियाँ और पुलिस उनके ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमे बनाते हैं। तब कोई उन पत्रकारों के पक्ष में खड़ा नहीं दिखता। लेकिन कहते सभी हैं कि पत्रकारिता का स्तर गिर गया है। हाल ही में ऑल्ट न्यूज के को-फाउंडर और फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर के साथ यही हुआ। पुलिस ने उन्हें जेल में डाल दिया था। लेकिन कई न्यायाधीश आज भी न्यायप्रिय हैं। जुबैर को भी सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम जमानत देकर साबित कर दिया कि क़ानून में अभी न्याय ज़िन्दा है।
मोहम्मद जुबैर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उनके ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में दर्ज सभी मामलों में राहत देते हुए 20,000 के जमानत बांड पर अंतरिम जमानत दी और पुलिस से उन्हें रिहा करने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एफआईआर ट्रांसफर सम्बन्धी आदेश सभी मौज़ूद एफआईआर और भविष्य में दर्ज होने वाली सभी एफआईआर पर लागू होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने जुबैर को अपने ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय जाने को कहा और जुबैर के ख़िलाफ़ एक के बाद एक मुक़दमा दर्ज होने को परेशान करने वाला क़रार दिया था। अब जुबैर पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन जुबैर की ओर से दायर नयी याचिका में छ: मामलों की जाँच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ़ से विशेष जाँच दल के गठन को भी चुनौती दी गयी है।
बता दें कि फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने 2018 में किये गये एक ट्वीट को लेकर दर्ज शिकायत के बाद जून में गिरफ़्तार किया था। पुलिस ने जुबैर पर धार्मिक भावना भडक़ाने का आरोप लगाया है। जुबैर के ख़िलाफ़ हाथरस में दो और ग़ाज़ियाबाद, मुज़फ़्फ़रनगर, सीतापुर, लखीमपुर खीरी में एक-एक एफआईआर दर्ज की गयी है।
वहीं पैगंबर के बारे में टिप्पणी करने से विवादों में घिरी भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा को पहले सर्वोच्च न्यायालय ने फटकारा और देश से माफ़ी माँगने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आपकी वजह से देश में हिंसा का माहौल पैदा हो रहा है। लेकिन दूसरी सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने नूपुर शर्मा को राहत दी है। न्यायालय ने 10 अगस्त तक नूपुर की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी है। बता दें कि नूपुर शर्मा के समर्थन और विरोध में राजस्थान के उदयपुर में दो लोगों ने एक दर्ज़ी का सिर काट दिया था। इस सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय ने 8 राज्यों और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। नूपुर के वकील मानवेंद्र सिंह ने आर्टिकल-21 के आधार पर नूपुर को राहत देने की माँग की थी। वकील ने नूपुर को जान से मारने की धमकी और उन्हें मारने के लिए पाकिस्तान से आये शख़्स का ज़िक्र किया। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा कि पूछा कि आप दिल्ली उच्च न्यायालय जाना चाहते हैं? वकील ने कहा कि हम यही चाहते हैं। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह तो हमारी मंशा है कि आप हर जगह नहीं जाएँ। हम देखेंगे कि आगे क्या विकल्प हो सकता है। इधर कोलकाता पुलिस नूपुर शर्मा के ख़िलाफ़ लुकआउट नोटिस जारी कर चुकी है।
यहाँ दो मामले हमारे सामने हैं। एक मामला जुबैर का है, जिसमें उन पर धार्मिक भावना भडक़ाने का आरोप है। वहीं दूसरी तरफ़ नूपुर शर्मा है, जिनके एक बयान से गला काटने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक कुछ लोगों को हत्या की धमकियाँ मिल रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों ही मामलों में अपना फ़ैसला देते हुए यह साबित कर दिया कि क़ानून ज़िन्दा है, न्याय ज़िन्दा है।
सच बोलने के लिए पत्रकारों से उम्मीद लगाने वालों को समझना होगा कि क्या वे सच साथ खड़े हैं? भारतीय संविधान में नागरिकों को भी बोलने की स्वतंत्रता देता है। कहीं कुछ ग़लत हो, तो उन्हें बोलना चाहिए। चाहे ग़लत लोगों के ख़िलाफ़ बोलना पड़े या शासन-प्रशासन के। संविधान का अनुच्छेद-19, 20, 21 और 22 देश के सभी नागरिकों को बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19 में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। अनुच्छेद-19(क) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(ख) शान्तिपूर्ण और निराययुद्ध सम्मेलन की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(ग) संगम, संघ या सहकारी समिति बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र कही भी बस जाने की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। अनुच्छेद-19(छ) कोई भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को देता है।
पहले संविधान में कुल सात मौलिक अधिकार (संविधान के भाग 3 की अनुच्छेद-12 से 35 तक) लोगों को प्राप्त थे। लेकिन 1976 में 44वें संविधान संशोधन में मूल अधिकारों में संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया। इनमें अनुच्छेद-14 से 18 तक समता की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-19 में स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-23-24 में शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-25-28 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-29-30 में संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का उल्लेख है। अनुच्छेद-32-34 में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उल्लेख है।
हालाँकि संविधान में प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता का कहीं कोई सीधा-सीधा उल्लेख है। लेकिन अनुच्छेद-19 में दिये गये स्वतंत्रता के मूल अधिकार को प्रेस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार संविधान के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए प्रेस या मीडिया की स्वतंत्रता की व्याख्या की है। ब्रिटिश शासन में मीडिया को सामग्री के प्रचार-प्रसार के लिए रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस की सीमाओं में बाँध दिया गया।
आज प्रेस या मीडिया के पास सार्वजनिक मुद्दों पर सार्वजनिक रूप से बहस और चर्चा करने का अधिकार के अलावा $खबरों का लेखों, किसी भी विचार या वैचारिक मत, किसी भी स्रोत से जनहित की सूचनाएँ और तथ्य एकत्रित करने का अधिकार है। सरकारी विभागों, सरकारी उपक्रमों सरकारी प्राधिकरणों और लोक सेवकों कार्यों व कार्यशैली की समीक्षा करने का अधिकार और उनकी आलोचना का अधिकार है। प्रकाशन या प्रकाशन सामग्री में चयन और मीडिया (माध्यम) का मूल्य या शुल्क निर्धारित करने का अधिकार है। प्रचार के माध्यम की नीति तय करने और अपनी योजनानुसार सरकारी दबाव से मुक्त रहकर प्रकाशन, प्रचार-प्रसार सम्बन्धी गतिविधियाँ चलाने का अधिकार है। लेकिन मीडिया को ध्यान रखना होगा कि अपने अधिकारों को वह निर्णय न समझ ले और क़लम की ताक़त का ग़लत इस्तेमाल न करे।
किसी भी नागरिक या मीडिया संस्थान को राष्ट्र की प्रभुता और अखंडता, राष्ट्र या राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राष्ट्रों के साथ सम्बन्धों और व्यापार, शिष्टाचार या सदाचार, न्यायालय की मानना (फैसलों) के विमुख जाकर अराजकता फैलाने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसा कोई करता है, तो वह क़ानूनी तौर पर अपराधी की श्रेणी में माना जाएगा। भारत में इन्हीं नियम-क़ायदों पर 1780 में पत्रकारिता की नींव रखी गयी थी। इसमें वर्षों सुधार होते रहे, तब कहीं जाकर एक परिपक्व देश और जनहित की पत्रकारिता का पैमाना बना। लेकिन अब कुछ लोग मीडिया का सहारा लेकर पैसा कमाने की हवस में मीडिया की प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर देश और लोगों की भावनाओं को आहत कर रहे हैं, जो एक अपराध से कम नहीं है।
सरकार के पक्ष में पत्रकारिता करने को सच्ची पत्रकारिता नहीं कहा जा सकता। इस पर रोक लगनी चाहिए। सरकारों को भी चाहिए कि वे अपने हित साधने के लिए मीडिया पर दबाव न बनाएँ और उसे अपना दरबान बनाने से बचें। वर्तमान समय में मीडिया की असलियत और अहमियत को देखते हुए यह कहना ठीक नहीं कि यह मीडिया युग है। अब हर किसी को अपने स्तर पर आवाज़ उठानी होगी। इसकी स्वतंत्रता संविधान ने हर किसी को बतौर अधिकार दी है।
अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था- ‘प्रेस का अधिकार कोई ऐसा अधिकार नहीं है, जो किसी नागरिक को उसकी व्यक्तिगत क्षमता में नहीं प्रदान किया जा सकता है। प्रेस का सम्पादक या उसका प्रबंधक जब भी समाचार पत्रों के लिए कुछ लिखता है, तो इसे वह एक नागरिक की हैसियत से उपलब्ध अधिकार का प्रयोग करते हुए लिखता / कहता है।’