अपंग क़ानून

चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के छात्रावास की लड़कियों के निजी वीडियो की रिकॉर्डिंग और उसके प्रसार और वायरल होने की ख़बर ने जहाँ भय और क्रोध की आँधी पैदा की, वहीं इसकी ज़रूरत भी अब महसूस होने लगी है कि निजता के अधिकार के लिए एक सुरक्षित क़ानून बने। चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में इसकी माँग ज़ोर पकडऩे लगी है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ में एसोसिएट प्रोफेसर और डीन संगीता लाहा की ‘तहलका’ के इस अंक की कवर स्टोरी ‘निजता में ताक-झाँक’ बताती हैं कि हाल में छात्राओं के निजी वीडियो के कथित रूप से लीक पर क्यों विवाद पैदा हुआ है। मोहाली स्थित चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में छात्राओं की निजता के सार्वजानिक होने से इस मुद्दे की संवेदनशीलता और बढ़ गयी है। इस घटना के बाद छात्रों के ग़ुस्से से उपजे प्रदर्शन के बाद जिस तरह यह घटना राष्ट्रीय सुर्ख़ियों में आयी और चिन्तित माता-पिता अपनी बेटियों को घर ले जाने के लिए अगले दिन यूनिवर्सिटी परिसर पहुँच गये, उससे गम्भीरता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

छात्रावास में साथी छात्राओं के आपत्तिजनक वीडियो के कथित रूप से साझा होने ने इस निजी यूनिवर्सिटी में भय, अफ़वाहों और अशान्ति का माहौल बना दिया। घटना सामने आने के बाद कुछ गिरफ़्तारियाँ भी हुई हैं। हालाँकि अधिकारियों ने दावा किया कि किसी तरह की गोपनीयता भंग नहीं हुई है। लेकिन तब तक चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के प्रो-चांसलर डॉ. आर.एस. बावा ने एक बयान में कहा- ‘सोशल मीडिया पर ऐसा कहा गया कि 60 आपत्तिजनक एमएमएस साझा किये गये, जिसके बाद कुछ लड़कियों ने आत्महत्या का प्रयास किया। यह पूरी तरह से झूठ और निराधार है। यूनिवर्सिटी की प्रारम्भिक जाँच के दौरान किसी भी छात्र से कोई वीडियो नहीं मिला, सिवाय एक लडक़ी के शूट किये गये निजी वीडियो के। इसे उसने अपने प्रेमी के साथ साझा किया था।’

वैसे घटना की ख़बर जंगल में आग की तरह फैल गयी थी। छात्रों का सवाल है कि अगर कोई वीडियो नहीं था, तो यूनिवर्सिटी की पोस्ट ग्रेजुएट प्रथम वर्ष की एक छात्रा, जो विवाद के केंद्र में थी; को सेना के एक कर्मचारी (कथित प्रेमी) और हिमाचल प्रदेश के शिमला ज़िले के रोहड़ू गाँव के एक मूल निवासी के साथ गिरफ़्तार क्यों किया गया?

निजता का उल्लंघन वाली इस घटना ने यूनिवर्सिटी के मेनेजमेंट, क़ानून और समाज के सामने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। यह जगाने वाली घटना है, क्योंकि देश में हर दिन और हर घंटे इसी तरह की घटनाएँ होती रहती हैं। क़ानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता की कमी, सामाजिक कलंक के डर और क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों के भरोसे की कमी के कारण ऐसी अधिकांश घटनाओं की रिपोर्ट नहीं की जाती है। इस मामले में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस प्रकरण की जाँच शुरू करवायी है, जिसमें कहा गया है कि बेटियाँ पंजाब की गरिमा और गौरव हैं। मजिस्ट्रियल जाँच के आदेश के अलावा एक विशेष जाँच दल का गठन किया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने भी इस मामले में स$ख्ती से निपटने के लिए पंजाब के डीजीपी को पत्र लिखा है। इसके बाद घटना की प्राथमिकी धारा-66(ई) आईटी अधिनियम (गोपनीयता का उल्लंघन) के तहत दर्ज की गयी, जिसमें आरोपियों पर दृश्यरतिकता यानी छिप-छिपकर देखने (जो आईपीसी की धारा-354 (सी) के तहत एक अपराध है) का आरोप लगाया गया है।

इस घटना ने एक बार फिर निजता के अधिकार को सुरक्षित रखने का साफ़ सन्देश दिया है? वास्तव में छात्राओं की निजता का उल्लंघन बड़ी चिन्ता का विषय है, जो सार्वजनिक रूप से उभरे रोष के बीच इस बात पर ज़ोर देता है कि निजता की रक्षा की जानी चाहिए। इन मामलों से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि उपलब्ध क़ानून साइबर अपराधों से निबटने में नाकाम रहा है।