छह साल पुराने दिनों को याद करके सुजाता (बदला हुआ नाम) आज भी सिहर उठती है. फिलहाल छत्तीसगढ़ में बालोद जिले के एक गांव में रह रही सुजाता तब सातवीं में पढ़ती थी और आमाडुला गांव के कमला नेहरू छात्रावास में रहती थी. वह बताती है, ‘छोटू नाम का एक लड़का हमारी मैडम (छात्रावास अधीक्षिका) अनीता ठाकुर से मिलने के लिए अक्सर आया करता था. एक दिन जब वह छात्रावास में ही कुछ लोगों के साथ शराब पी रहा था तब मैडम ने मुझे उसके कमरे में धकेल दिया. और उसने मेरे साथ… मैंने विरोध किया तो मुझे धमकाया गया. उस दिन के बाद से मेरे साथ आए दिन जबरदस्ती की कोशिश होने लगी.’
सुजाता अकेली नहीं है और न ही ऐसी घटनाएं नई हैं. छत्तीसगढ़ के पिछले इलाकों की महिलाओं में शिक्षा का स्तर बढ़े, इस मकसद से खोले गए आदिम जाति कल्याण विभाग के छात्रावासों में से कइयों में ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं. आमाडुला के ही इस छात्रावास में दर्जनों लड़कियों के साथ ऐसी घटनाएं हुई हैं. लेकिन हैरानी की बात है कि उनमें उचित कार्रवाई नहीं हुई. उलटबांसी का आलम देखिए कि एक मामले में शिकायत के बाद छात्रावास की अधीक्षिका के खिलाफ कार्रवाई तो हुई नहीं, उल्टे कुछ समय बाद उसका प्रमोशन कर दिया गया. और तो और, मामला खुलने से एक दिन पहले खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह इस अधीक्षिका को एक सार्वजनिक समारोह में सम्मानित कर चुके थे. अब हाल में कांकेर जिले के झलियामारी गांव स्थित एक आश्रम में 12 बच्चियों के साथ दुष्कर्म का मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आने के बाद अब प्रशासन के स्तर पर फौरी हरकत तो दिख रही है मगर अतीत के उदाहरण बताते हैं कि यह किसी सार्थक परिणति तक शायद ही पहुंचे.
आमाडुला का ही मामला लीजिए. छात्राओं के शोषण की जानकारी जब दबे-छिपे छात्रावास से बाहर जाने लगी तो छह साल पहले जांच पड़ताल भी हुई. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. बालौद की तहसील डोंडी के पास एक गांव की यमुना (बदला हुआ नाम) बताती है,’ जांच टीम आती तो मैडम धमकी देते हुए कहती थीं कि किसी के सामने मुंह नहीं खोलना. जांच टीम के लोग रात भर छात्रावास में रुकते थे. पूरी रात मुर्गा-मटन और शराब का दौर चलता और फिर ये लोग भी लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करते थे.’ इन घटनाओं के बाद सुजाता ने छात्रावास छोड़ दिया. उसकी पढ़ाई बंद हो गई. सुजाता आगे कहती है, ‘मुझे छात्रावास में हर समय यही लगता था कि न जाने कब मैडम का बुलावा आ जाए. मैं आज भी उन लोगों की धमकी और जोर-जबरदस्ती नहीं भुला पाती.’
सुजाता ने वर्ष 2006 में अपने परिजनों के साथ मिलकर दुर्ग (तब आमाडुला इसी जिले में पड़ता था) जिले के आईजी आरके विज के सामने अपने साथ हुए बलात्कार की जानकारी दी थी. इस मामले की जांच का जिम्मा महिला पुलिस अफसर निवेदिता पॉल को सौंपा गया. पॉल ने पीड़िता और उसके परिजनों का बयान भी दर्ज किया था लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ पाया. हाल ही में जब 10 जनवरी, 2013 को सुजाता ने खुद उपस्थित होकर डौंडी थाने में अनीता ठाकुर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई तब जाकर इस मामले में कार्रवाई हुई. अगले दिन ठाकुर को हिरासत में ले लिया गया.
30 जुलाई, 2012 को मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ ही आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप को छात्राओं ने लिखित शिकायत भेजी थी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई
छात्रावास की पूर्व छात्राएं बताती हैं कि अधीक्षिका ने अफसरों और नेताओं को खुश करने के लिए वहां दो अन्य लड़कियों को भी पनाह दे रखी थी. गांववालों को जब इन लड़कियों और उनके साथ अक्सर छात्रावास में ही रहने वाले एक लड़के के बारे में पता चला तो उन्होंने अधीक्षिका का घेराव किया. लेकिन ठाकुर ने प्रभावशाली लोगों से अपने कथित संबंधों की धमकी देकर गांववालों को चुप करा दिया. ठाकुर पर कार्रवाई करने वाले डौंडी थाने में पदस्थ थाना प्रभारी कृष्ण कुमार कुशवाहा कहते हैं, ‘आमाडुला छात्रावास में अधीक्षिका की हैसियत से तैनात रही अनीता ठाकुर के संपर्क-संबंध काफी बड़े लोगों से तो थे ही. उन्हें हर दूसरे-तीसरे सप्ताह किसी न किसी संस्थान से सम्मानित किया जाता था. जब इस बात की खबर अखबारों में छपती थी तो लोग उनके रुतबे-रसूख का अंदाजा लगाकर डर जाते थे.’ इस मामले का एक हैरतअंगेज पक्ष यह भी है कि अधीक्षिका अनीता ठाकुर को छात्रावास के बेहतर ढंग से संचालन के लिए बाकायदा पद्दोन्नत करके नोडल अधिकारी भी बना दिया गया था. पिछले साल जब नवंबर, 2012 में बालोद में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के स्थापना समारोह आयोजित हुआ तो उसमें भी उन्हें सम्मानित किया गया था. सम्मान का यह सिलसिला 10 जनवरी, 2013 को भी देखने को मिला. इस दिन नए जिलों के गठन के मौके पर बालोद में सरकारी समारोह हुआ तो मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने अनीता ठाकुर को बेहतर ढंग से आश्रम के संचालन के लिए सर्वश्रेष्ठ अधीक्षिका का खिताब दिया.
इस मामले में सरकारी रुख का पता इस बात से भी चलता है कि छात्रावास की लगभग 26 छात्राओं ने भी अधीक्षिका द्वारा अनैतिक कार्य किए जाने के लिए बाध्य किए जाने की लिखित शिकायत 30 जुलाई, 2012 को मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह के साथ ही आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप को भेजी थी. लेकिन सरकार की तरफ से कभी विशेष जांच के आदेश नहीं दिए गए. प्रशासनिक और सरकारी स्तर की इसी तरह की उपेक्षा का नतीजा यह रहा कि इस मामले में पहली आधिकारिक सूचना मिलने के छह साल बाद कार्रवाई हो पाई. क्षेत्र में हल्बा-आदिवासी समाज से जुड़े एक सामाजिक कार्यकर्ता कुशल ठाकुर कहते हैं, ‘हमने छात्रावास में रहने वाली छात्राओं के परिजनों के सहयोग से यौन शोषण किए जाने की जानकारी शासन के सभी जिम्मेदार लोगों को दी थी, लेकिन अनीता ठाकुर के रसूख के चलते हमारी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में डाला जाता रहा. इलाके के कलेक्टर, एसपी, सांसद समेत कई छोटे-बड़े नेताओं से नजदीकियां थीं. कभी कोई विरोध करता तो उसे गुंडे-मवालियों के जरिए धमकाया जाता था.’ कुशल कहते हैं कि यदि झलियामारी में बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटना उजागर नहीं होती तो पुलिस का टालमटोल रवैया कायम ही रहता.
कांकेर के सिविल सर्जन डीके तुर्रे तहलका को बताते हैं कि पहले पुलिस-कर्मियों की ओर से यह कहा गया था कि लगभग 44-45 बच्चियों का परीक्षण किया जाना है लेकिन जांच-पड़ताल के लिए केवल 15 बच्चियां लाई गईं. बाकी बच्चियों का परीक्षण क्यों नहीं किया गया, यह सवाल अब भी अनुत्तरित है
ठाकुर की गिरफ्तारी के बस कुछ दिन पहले ही कांकेर जिले में नरहरपुर विकासखंड के ग्राम झलियामारी आश्रम में 12 बच्चियों (पहली से पांचवीं कक्षा तक की छात्राएं) के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया था. यह मामला इस मायने में काफी गंभीर था कि यहां छोटी-छोटी लड़कियों के साथ दुराचार किया गया था. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 157 किलोमीटर दूर इस गांव के आश्रम में बच्चियों के साथ दुष्कर्म के घिनौने खेल की शुरूआत कब हुई इसकी जानकारी न तो बच्चियों को है न ही उनके परिजनों को. आश्रम में अधीक्षिका की हैसियत से भभीता मरकाम की तैनाती की गई थी, लेकिन वह बच्चियों के साथ रहने के बजाय अक्सर आश्रम से 80 किमी दूर भानुप्रतापपुर चली जाया करती थीं. अपनी गैर-मौजूदगी में उन्होंने शिक्षाकर्मी मन्नूराम गोटी, सागर कतलम और चौकीदार दीनानाथ को बच्चियों की देखरेख की जिम्मेदारी सौंप रखी थी.अधीक्षिका से मिली छूट के चलते शिक्षाकर्मी और चौकीदार रात में आश्रम के बरामदे में शराब पीते और फिर बच्चियों का यौन शोषण करते. ऐसी घिनौनी हरकतों से जब बच्चियां बीमार रहने लगीं तो देवगांव की एक बच्ची मंगलेश्वरी ( परिवर्तित नाम ) ने गांव के उपसरपंच सुकालुराम नेताम को सब कुछ बताया. अगस्त, 2012 में गांव में एक बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में शिक्षाकर्मी मन्नूराम और चौकीदार दीनानाथ को पांच-पांच हजार रुपये और आश्रम अधीक्षिका भभीता मरकाम को तीन हजार रुपये का आर्थिक दंड पंचायत कोष में जमा करने के लिए कहा गया. लेकिन जब इस घटना की जानकारी लेने के लिए यहां मीडियाकर्मियों की आवाजाही बढ़ गई तो सुकालुराम को लगा कि उनकी पंचायत का फैसला गलत था.
इसके बाद उन्होंने एक लिखित शिकायत विकासखंड शिक्षा अधिकारी एमएस नवर्जी को सौंप दी. शिक्षा अधिकारी ने मामले की जांच का जिम्मा अपने एक सहयोगी जेके नायक को दिया. नायक ने आश्रम की बच्चियों के बयानों को कलमबद्ध करने के बाद शिक्षा अधिकारी को इस बात से अवगत कराया कि दुष्कर्म की बात सही प्रतीत होती है. लेकिन इसके बाद भी शिक्षा अधिकारी ने चुप्पी साधे रखी. अभी हाल ही में तीन जनवरी, 2013 को जब एक मीडियाकर्मी ने कांकेर जिले की कलेक्टर अलरमेल मंगई से मामले की जानकारी चाही तो कलेक्टर ने आनन-फानन में महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर को जांच अधिकारी तैनात कर दिया. इस जांच अधिकारी ने बच्चियों के बयान के आधार पर आश्रम अधीक्षिका, चौकीदार, शिक्षाकर्मी सहित कुछ अन्य लोगों पर कार्रवाई को जरूरी बताया. कलेक्टर के निर्देश के बाद महिला एवं बाल विकास अधिकारी शैल ठाकुर की ओर से दर्ज करवाई गई रिपोर्ट के आधार पर अब तक आश्रम अधीक्षिका भभीता मरकाम, शिक्षाकर्मी मन्नूराम, सागर कतलम, चौकीदार दीनानाथ, उपसरपंच सुकालुराम के अलावा बच्चियों को जुबान बंद रखने के लिए धमकाने वाले ग्रामीण लच्छूराम सलाम को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा चुका है. मामले में चुप्पी साधने वाले विकासखंड शिक्षा अधिकारी की गिरफ्तारी को लेकर कुछ दिनों तक ऊहापोह की स्थिति कायम रही लेकिन कुछ दिन पहले एमएस नवर्जी और जेके नायक को भी पुलिस ने दोषी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया है.
इस मुद्दे पर उठे शोर के बावजूद कोई खास उम्मीद नहीं जगती. जब हम आश्रम में पहुंचे तब हमें वहां 43 बच्चियों के अध्ययनरत रहने की बात प्रशासन की ओर से कही गई थी. इन बच्चियों में से महज 15 का ही डॉक्टरी परीक्षण किया गया है. सूत्र बताते हैं कि मामले के उजागर होने के बाद विभिन्न आयोगों के दौरे आदि से घबराई सरकार ने मामले को ठंडा करने के लिए जिला प्रशासन पर दबाव बनाया. कांकेर के सिविल सर्जन डीके तुर्रे बताते हैं कि जब वे बच्चियों के परीक्षण की तैयारियों में लगे थे तब अस्पताल आने वाले पुलिसकर्मियों की ओर से यह कहा गया था कि लगभग 44-45 बच्चियों का परीक्षण किया जाना है लेकिन जांच-पड़ताल के लिए केवल 15 बच्चियां लाई गईं. फिलहाल 15 में से 12 बच्चियों के यौन शोषण की बात प्रमाणित हुई है. सवाल यह है कि प्रशासन ने शेष 28 बच्चियों के परीक्षण की जरूरत क्यों नहीं समझी. कांकेर की कलेक्टर अलरमेल मंगई यह पूछने पर इतना ही कहती हैं कि वे फिलहाल कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है.
राज्य के कन्या छात्रावासों और आश्रमों में यौन शोषण के ये सबसे बड़े मामले हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा में रहे. लेकिन छत्तीसगढ़ में पिछले सालों के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए हैं. हर मामले में प्रशासन को कई महीने पहले इस बात की जानकारी मिल गई थी कि आश्रम में रहने वाली छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न घटनाएं हो रही हैं लेकिन इसके बाद भी कार्रवाई नहीं की गई या फिर जांच कभी पूरी नहीं हो पाई. उदाहरण के लिए, 2011 में बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के विकासखंड रामचंद्रपुर कन्या छात्रावास में अध्ययनरत एक छात्रा को रामविचार सिंह नाम के एक युवक ने अपनी हवस का शिकार बनाया था. इस घटना की जानकारी छात्रावास में कार्यरत बहुत-से लोगों को थी, लेकिन छात्रा की बार-बार की गुहार के बावजूद युवक के खिलाफ किसी भी तरह की कोई शिकायत थाने में दर्ज नहीं की गई. 27 फरवरी, 2012 को जब छात्रा ने छात्रावास में ही एक बच्चे को जन्म दिया तब जाकर मामला थाने पहुंचा और युवक को गिरफ्तार जेल भेजा गया. कुछ इसी तरह का वाकया बैकुंठपुर जिले के एक आश्रम का भी है. पंडो-बैगा जनजाति समुदाय के लिए बनाए गए आश्रम में तैनात अधीक्षक केके कुर्रे के एक रिश्तेदार ने एक छात्रा के साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी. छात्रा ने साहस दिखाते हुए मामले की शिकायत थाने में दर्ज करवाई, लेकिन पुलिस ने जांच करने में ही लगभग सात महीने लगा दिए. अभी कुछ दिन पहले जब जिला कलेक्टर अविनाश चंपावत ने आश्रमों की व्यवस्था के संबंध में आदिम जाति कल्याण विभाग के अफसरों को तलब किया तब उन्हें इस घटना के बारे में पता चला. इसके बाद अधीक्षक कुर्रे और उसके रिश्तेदार को हिरासत में लिया गया.
छत्तीसगढ़ में लगभग एक हजार छात्रावास या आश्रम बालिकाओं के लिए हैं. लेकिन इनमें से किसी की दशा ऐसी नहीं है जिसे देखकर यह कहा जा सकता हो कि वहां छात्राएं महफूज रह सकती हैं. तहलका को आमाडुला और झलियामारी गांव में मौजूद आश्रमों में बुनियादी सुविधाओं का जबरदस्त अभाव देखने को मिला था. झलियामारी आश्रम का आलम यह है कि बच्चियां जिन कमरों में विश्राम करती थीं वहां के गद्दे पुरानी चिंदियों से बने हुए थे और दरवाजों में कुंडियां तक नहीं थीं. आमाडुला आश्रम की छात्राओं को कहना था कि सफाई कर्मियों के होने के बावजूद उन्हें ही झाड़ू-पोंछा लगाना पड़ता है. झलियामारी आश्रम के कुल जमा तीन तंग कमरों में 43 बच्चियों को ठूंस-ठूंसकर रखा जाता था. इसके भीतर न तो शौचालय है न स्नानागार. बच्चियों को नित्यकर्म के अलावा स्नान आदि के लिए आश्रम से डेढ़ किलोमीटर दूर एक तालाब तक आना-जाना पड़ता था. फिलहाल इस आश्रम की सभी छात्राओं को पास के ही एक दूसरे गांव के आश्रम में भेज दिया गया है.
इन दोनों मामलों की अंतिम जांच का नतीजा अब चाहे जो भी हो लेकिन इससे राज्य के आदिवासी इलाकों के अभिभावकों को अपनी बेटियों की फिक्र हो गई है. तहलका ने जब देवरी, रिसेवाड़ा, साल्हेबाट गांव में कुछ पीड़ित बच्चियों के परिजनों से मुलाकात की तो सबने गुस्से में यही कहा कि वे अब अपनी बच्चियों को दोबारा आश्रमों में भेजना नहीं चाहते. संभव है पहले से महिला शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े इस राज्य में आने वाले दिनों में इस मोर्चे पर और गिरावट देखने को मिले.
बातचीत: ‘सिस्टम में कमियां तो रहती ही हैं..’
छत्तीसगढ़ के आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप यौन शोषण की घटनाओं पर विपक्ष को राजनीति न करने की सलाह देते हुए यह मानते हैं कि छात्रावासों में सतत निरीक्षण की आवश्यकता है.
छात्रावासों में लगातार हो रहे यौन शोषण के खुलासों पर क्या कहेंगे?
कांकेर के झलियामारी और बालोद के आमाडुला की घटना समाज की बीमार मानसिकता का प्रतीक है.
लेकिन व्यभिचार तो हुआ है
हां, इस बात का अफसोस है कि विपक्ष इस संवेदनशील मामले पर भी राजनीति कर रहा है. उसे सुझाव देना चाहिए कि हम अपनी व्यवस्था को कैसे और किस ढंग से बेहतर कर सकते हैं.
क्या आपको नहीं लगता कि यदि आपके विभाग की व्यवस्था ठीक-ठाक होती तो इन घटनाओं को रोका जा सकता था?
अब हम इस बात की पूरी कोशिश करेंगे कि घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो. समय-समय पर छात्राओं की सुध ली जाती रहेगी. अफसरों को इस बात के लिए निर्देशित किया जाता रहेगा कि वे आश्रमों और छात्रावासों का औचक निरीक्षण करें. आश्रमों में पुलिस की तैनाती भी की जाएगी.
लेकिन कांकेर के झलियामारी गांव में तो निरीक्षण करने वाले अफसरों की लापरवाही ही उजागर हुई है.
हां, यह सही है कि गांव के उपसरपंच सहित कुछ लोगों को मामले की जानकारी थी. बीईओ (विकासखंड शिक्षा अधिकारी) ने मामले की तहकीकात के लिए अपने एक सहयोगी को काम पर लगाया था. सहयोगी की रिपोर्ट मिल जाने के बाद भी शिक्षा अधिकारी ने चुप्पी साधे रखी थी.
क्या यह अपराध नहीं है?
बिल्कुल है.
चलिए, यह बताइए कि जब आमाडुला आश्रम की छात्राओं ने आपके पास शिकायत भेजी थी तो फिर आपने उनकी शिकायतों पर विचार क्यों नहीं किया?
मुझे कोई शिकायत नहीं मिली. मुझे इसकी जानकारी भी नहीं है.
आमाडुला की एक छात्रा ने अपने साथ हुए दुष्कर्म की शिकायत एक वरिष्ठ पुलिस अफसर से वर्ष 2006 में की थी. शिकायत की जांच हो जाने के बाद भी मामले को क्यों दबाकर रखा गया?
इन आरोपों में कोई सच्चाई है या नहीं, मैं इसका पता लगाऊंगा. जो भी दोषी होगा, उस पर कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री को लिखूंगा.
प्रदेश के तीन हजार छात्रावासों में से एक हजार छात्रावास बालिकाओं के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इन छात्रावासों में कहीं शौचालय नहीं है तो कहीं पेयजल की समस्या मौजूद है.
हम लगातार कोशिश कर रहे हैं कि आश्रमों और छात्रावासों की दशा सुधरे.
क्या आपको नहीं लगता कि आपके महकमे की घटिया व्यवस्था भी एक तरह से आदिवासी बालिकाओं के साथ बुरा सलूक ही करती है?
सिस्टम में कमी तो रहती है. हम अपनी कमियों को जल्द ही दूर कर लेंगे.