पुरी की रथयात्रा अभी हाल में संपन्न हुई है। रथयात्रा के दौरान तीन मित्रों के साथ पुरी गया था। रथयात्रा शुरू होने से लेकर भगवान जगन्नाथ के 10 दिन बाद मौसीबाड़ी से वापसी तक 25 लाख से अधिक श्रद्धालु व पर्यटक इस छोटे से शहर में जुटे थे। ओडिशा का यह शहर धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। भगवान जगन्नाथ श्रद्धालुओं के लिए दर्शनीय तो हैं ही, इसके अलावा समुद्र में स्नान और समुद्र किनारे का आनंद पर्यटक लेते हैं। एतिहासिक सूर्य मंदिर कोणार्क, चिलका लेक आदि पर्यटन स्थल हैं। इन जगहों पर भीड़ को छोड़ दें, तो कहीं किसी तरह की गंदगी, आने-जाने में परेशानी या कोई और समस्या देखने को नहीं मिली। सब कुछ साफ़-सुथरा और व्यविस्थत था। पानी-शौचालय आदि का उचित प्रबंध थे। स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार था। समुद्र किनारे कुछ जगहों पर खाने-पीने व समुद्र में ज़्यादा दूर नहाने जाने पर पाबंदी थी।
पुरी से लौटते समय झारखण्ड का पर्यटन स्थल दशम फॉल और पतरातू डैम आदि स्थल जाना हुआ। पुरी के विपरीत दशम फॉल पर गंदगी थी। शौचालय बंद था। पार्किंग स्थल में एक दुकान के पास टेबल-कुर्सी पर पाँच-सात लोग शराब पी रहे थे। न पुलिस और न ही सुरक्षा। राज्य गठन के बाद से ही झारखण्ड में पर्यटन को विकसित करने की चर्चा होती रही है। क्या ऐसे में पर्यटक आकर्षित होंगे? क्या केवल बोल देने से, काग़ज़ों पर योजना और पर्यटन नीति बना देना ही काफ़ी है?
बँटवारे में मिले पर्यटन स्थल
बिहार से कटकर 15 नवंबर, 2000 को झारखण्ड बना। राज्य गठन का 23वाँ वर्ष चल रहा है। विकास हेतु इतना वक़्त काफ़ी होता है। बिहार से बँटवारे के बाद जुमला ख़ूब उछला था कि ‘बिहार अब बालू फाँकेगा।’ इसके पीछे की वजह थी कि खनन और उद्योग के मामले में झारखण्ड बिहार का समृद्ध हिस्सा था। साथ ही झारखण्ड में जंगल, हरियाली, पहाड़, झरना पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए काफ़ी थे। राज्य के क़रीब सभी ज़िलों में पर्यटन स्थल हैं, जिन्हें विकसित किया जा सकता था।
अविभाजित बिहार के तत्कालीन वित्त सचिव आईएएस वीएस दुबे ने एक इंटरव्यू में कहा कि बिहार सरकार दक्षिण बिहार (तब झारखण्ड को इसी नाम से लोग जानते-पुकारते थे) के लिए बजट में जितना प्रावधान करती है, अगर उतने बजट को ही मान लें, तो झारखण्ड का बजट सरप्लस ही रहेगा।
यह कुछ वर्षों तक हुआ भी। झारखण्ड का बजट वास्तव में सरप्लस ही रहा; लेकिन चार-पाँच साल बीतते-बीतते झारखण्ड का बजट घाटे का बनने लगा। दरअसल सरकार ने आईएएस दुबे के सरप्लस बजट के पीछे की बात को ग़ौर नहीं किया। अगर ग़ौर करें, तो ऐसा कहने के पीछे वी.एस. दुबे का इशारा साफ़ था। खनन और उद्योग के मामले में झारखण्ड को समृद्ध हिस्सा मिला था। बँटवारे के बाद बिहार उद्योगविहीन हो गया, जबकि झारखण्ड समृद्ध। खान-खनिज झारखण्ड के पास था ही, साथ ही मिली थी प्राकृतिक सौंदर्यता। इसे पर्यटन उद्योग के रूप में विकसित किया जा सकता था।
70 फ़ीसदी पर्यटन बदहाल
पिछले 22 वर्षों में कई सरकारें आयीं और गयीं। हर सरकार ने पर्यटन के विकास की बात कही। करोड़ों रुपये का फंड बना और $खर्च भी हुए। सरकार की फाइलों में राज्य में एडवेंचर टूरिज्म, ईको, हेरिटेज, रिलीजीयस, स्पिरिचुअल टूरिज्म, डैम-लेक, म्यूजियम आदि को मिलाकर 105 पर्यटन स्थल को चयन किया गया है। इनमें से सुविधायुक्त पर्यटन स्थल कम ही विकसित हो पाये हैं।
दशम फॉल झारखण्ड की राजधानी रांची से केवल 34 किलोमीटर की दूरी पर है। नामचीन पर्यटन स्थल है। कांची नदी की कलकल करती पानी की धाराओं से यह फॉल बना है। 144 फुट ऊँची पहाड़ी से पानी का झरना, जंगल और हरियाली दिलकश नज़ारा है। पुरी से कोणार्क की दूरी 49 किलोमीटर है। वहीं, पुरी से कोणार्क जाने की सडक़ लम्बी-चौड़ी समुद्र के किनारे-किनारे बनी हुई है। कहीं टूटी-फूटी नहीं। कोणार्क की व्यवस्था सुव्यवस्थित। शौचालय, पीने का पानी, बैठने की जगह, साफ़-सुथरा चारों ओर। लेकिन रांची से दशम फॉल जाने रास्ते को देखें, तो मुख्य सडक़ छोडऩे के बाद दयनीय दिखने लगती हैं। जगह-जगह टूटी हुई कम चौड़ी सडक़ें हैं। दशम फॉल में सरकार ने ग्रिल लगवा दिया है। सीढिय़ाँ बनवा दी हैं। कुछ जगह बैठने की व्यवस्था है। लेकिन गंदगी का अंबार लगा था। जगह-जगह काग़ज़, पॉलिथीन, जानवरों के शौच आदि फैले दिख रहे थे। एक शौचालय बंद तो दूसरा गंदा। पानी की भी समुचित व्यवस्था नहीं। बिजली की व्यवस्था नहीं। हालाँकि दूसरे पर्यटन स्थल पतरातू डैम की व्यवस्था थोड़ी बेहतर है। यहाँ मोटर बोट भी चलती हैं और ट्रेंड लोगों को तैनात भी किया गया है।
दरअसल सरकार द्वारा घोषित 105 पर्यटन स्थलों में कुछ जगहों, जैसे- बाबाधाम (देवघर), रजरप्पा मंदिर, पतरातू, नेतरहाट आदि को छोड़ दें, तो 70 फ़ीसदी पर्यटन स्थलों की स्थिति दशम फॉल की तरह ही दयनीय है। जहाँ सुविधाओं का घोर अभाव है। सुरक्षा व्यवस्था भी लचर है। लिहाज़ा लोग जाने से कतराते हें। साथ ही अच्छी व्यवस्था नहीं होने के कारण लोगों के जुबानी प्रचार-प्रसार भी अधिक नहीं हो पाता। ये स्थल केवल सरकारी वेबसाइट और फाइलों की शोभा बढ़ा रहे हैं।
पर्यटन मित्रों की समस्याएँ
राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को रोज़गार से जोडऩे और पर्यटन स्थलों की देखरेख के लिए कई जगहों पर पर्यटन मित्र बनाया है। पर्यटन मित्रों की अपनी समस्या है। दशम फॉल के पर्यटन मित्रों ने बताया कि इतने बड़े स्थल की देखरेख के लिए 12 लोग हैं। हमें कई-कई महीनों तक मानदेय (वेतन) नहीं मिलता है। काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जहाँ तक संभव है बेहतर रखने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा यहाँ पर्यटक तो आते हैं; लेकिन व्यवस्था अच्छी नहीं होने के कारण थोड़ा मायूस भी होते हैं। दुर्घटनाएँ भी हर कुछ दिन पर होती रहती हैं। फॉल में गिर कर कई मौत भी हुई हैं। युवाओं को समझाते हैं।
डाँटते-फटकारते हैं; लेकिन कई युवा लड़ जाते हैं। बात नहीं मानते, इस वजह से दुर्घटना के शिकार होते हैं। हमें उन्हें रोकने के लिए क़ानून बहुत अधिकार प्राप्त नहीं है। ग़लत करने पर कोई ज़ुर्माना आदि का प्रावधान नहीं है। यहाँ सुरक्षा की भी कमी है। हालाँकि इन सभा बातों से अलग पतरातू डैम की स्थिति अच्छी थी। आने-जाने का रास्ता अच्छा, वहाँ की व्यवस्था अच्छी।
पर्यटकों की नहीं कमी
झारखण्ड में पर्यटकों की कमी नहीं है। नया साल हो या कोई अन्य छुट्टी का मौक़ा पर्यटन स्थलों पर अक्सर सैलानी देखे जाते हैं। सामान्य दिनों में भी सैलानियों का आना-जान लगा रहता है। प्राप्त आँकड़ों के मुताबिक, 2022 में 35 लाख से अधिक घरेलू पर्यटकों ने झारखण्ड का दौरा किया है।
सन् 2021 में 33.83 लाख और 2020 में 25.74 लाख पर्यटक आये थे। केवल सावन की बात की जाए, तो देवघर बाबाधाम में औसतन हर दिन एक लाख श्रद्धालु पहुँचते हैं। हालाँकि अगर सरकार द्वारा चिह्नित 105 पर्यटन स्थलों पर सैलानियों के आने की संख्या अलग-अलग देखी जाए, तो देवघर, नेतरहाट, पतरातू, देवड़ी आदि कुछ नामी-गिरामी जगहों को छोड़ दें तो मूलभूत सुविधा, सुरक्षा आदि नहीं होने और प्रचार-प्रसार की कमी के कारण अन्य पर्यटन स्थलों पर बहुत कम पर्यटक पहुँचते हैं।
धरातल पर काम की ज़रूरत
22 वर्षों में जो भी सरकारें बनीं न ही खान-खनिजों को सँभाल सकी। न ही उद्योग-धंधे बढ़े और न ही पर्यटन जैसे दूसरे क्षेत्र पर ज़मीनी स्तर पर ध्यान दिया गया। झारखण्ड के खनिज से दूसरे राज्यों में औद्योगिक समृद्धि आयी। यहाँ नये उद्योग विकसित नहीं हुए। पर्यटन विकास काग़ज़ों पर होता रहा।
बीते साल मौज़ूदा हेमंत सरकार ने पर्यटन नीति घोषित किया। पूर्व की सरकारों ने भी पर्यटन स्थलों को विकसित करने का प्रयास किया। इस बात को नाकारा नहीं जा सकता है; लेकिन अब तक पर्यटन क्षेत्र को विकसित करने के लिए जो काम हुए हैं, वे नाकाफ़ी हैं। ज़रूरत है चीज़ों को धरातल पर उतारने की। इसके लिए एक-एक पर्यटन स्थल को चयन कर वहाँ बिजली-पानी-शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं को तैयार करना, आवागमन की समुचित व्यवस्था, सडक़ों का सुदृढ़ीकरण, कुछ जगहों पर रहने-खाने की व्यवस्था, सुरक्षा आदि तैयार करना होगा।
पर्यटन स्थलों के साथ वहाँ की सुविधाओं का भी प्रचार-प्रसार करना होगा। जो पर्यटन मित्र बनाये गये हैं, उन्हें ट्रेनिंग देने से लेकर समय पर मानदेय आदि की व्यवस्था करनी होगी, जिससे पर्यटन स्थल साफ़-सुथरे, सुंदर बने रहें। व्यवस्थाएँ अच्छी होंगी, तो पर्यटक $खुद ही खिंचे चले आएँगे। पर्यटन एक बड़ा क्षेत्र उद्योग के रूप में उभर जाएगा। इससे निश्चित रूप से सरकार का राजस्व बढ़ेगा और स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिलेगा।
राज्य के घोषित पर्यटन स्थल
एडवेंचर टूरिज्म 4
ईको टूरिज्म 4
हेरिटेज टूरिज्म 10
डैम-लेक 35
रिलीजियस टूरिज्म 36
स्पिरिचुअल टूरिज्म 4
रूरल टूरिज्म 5
म्यूजियम और अन्य 7
कुल पर्यटन स्थल 105