नरेश वत्स
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के अध्यादेश के ख़िलाफ़ अपनी रणनीति के जाल में फँस गये हैं। केजरीवाल को आईना कांग्रेस ने दिखा दिया है। कांग्रेस का समर्थन न मिलने के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी एकता को अड़ंगा लगा दिया है। कांग्रेस का समर्थन न मिलने के कारण विपक्षी एकता के अभियान से आप पार्टी ने अपने आपको अलग कर लिया था। पटना में 15 दलों की महाजुटान की बैठक से नाराज़ होकर केजरीवाल चुपचाप होकर निकल गये थे। उनके साथ पहुँचे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, सांसद राघव चड्ढा और संजय सिंह ने पटना हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस से किनारा कर लिया था।
केजरीवाल भारतीय राजनीति के ऐसे किरदार बन गये हैं, जो अपनी राजनीति को चमकाने के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। आम आदमी से ख़ास आदमी बने केजरीवाल अपने सरकारी आवास को शीशमहल में तब्दील करके अपनी आम आदमी की छवि को तिलांजलि दे चुके हैं। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आन्दोलन से उपजी केजरीवाल की राजनीति भी औंधे मुँह गिर गयी है। भ्रष्टाचार के आरोप में उसके दो मंत्री जेल में हैं। लेकिन इसे वह भाजपा की बदले की राजनीति का आरोप लगाकर आरोपों की सच्चाई से भाग रहे हैं।
केंद्र सरकार के अध्यादेश पर दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था से अनभिज्ञ होकर केजरीवाल अपनी राजनीति को चमकाने में लगे हैं। केंद्र सरकार की तरफ़ से लाया गया ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली संशोधन अध्यादेश-2023’ अध्यादेश अभी क़ानून नहीं बना है। संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में पास होने के बाद यह क़ानून बनेगा।
केजरीवाल यह जानते हैं कि केंद्र सरकार के अध्यादेश के ख़िलाफ़ ‘बेचारा’ बनकर मोदी विरोधियों को एकजुट करके विपक्षी नेताओं को नेतृत्व दे सकते हैं। इसलिए उन्होंने राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार की तरफ़ से लाया गया तबादला और नियुक्ति के अध्यादेश को लेकर अपनी रणनीति बनाकर केजरीवाल ने इस अध्यादेश के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का अपमान और मोदी सरकार की तानाशाही बताना शुरू कर दिया।
केजरीवाल की रणनीति है कि इस अध्यादेश को क़ानून बनाने से पहले ही राज्यसभा में गिरा दिया जाए। दिल्ली सरकार को अधिकारियों की नियुक्ति और तबादलों का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-239(ए ए) के बाद दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र घोषित किया गया था। यह केंद्र शासित प्रदेश है; लेकिन दिल्ली को अपना विधानसभा बनाने का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए दिल्ली सरकार माँग कर रही है कि राजधानी में जो सरकार है, वह जनता के द्वारा चुनी होती है, इसलिए दिल्ली के सभी अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति का अधिकार भी राज्य सरकार के पास होना चाहिए।
वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों जस्टिस ए.के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण ने बँटा हुआ फ़ैसला सुनाया था। जस्टिस सीकरी ने अपने फ़ैसले में कहा कि निदेशक स्तर की नियुक्ति दिल्ली सरकार कर सकती है। दूसरी तरफ़ जस्टिस भूषण ने कहा कि अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति के अधिकार दिल्ली के उप राज्यपाल के पास होने चाहिए।
दोनों जजों की असहमति होने के बाद यह मामला तीन जजों की बेंच के पास भेजा गया। लेकिन इस बार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की इस मामले को बड़ी संवैधानिक बेंच को भेज दिया जाए, क्योंकि यह मामला देश की राजधानी के अधिकारियों के तबादलों और नियुक्ति से जुड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन पर नियंत्रण को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच चल रहे मामले में ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था। कई साल से चले आ रहे इस मामले में आम आदमी पार्टी को बड़ी जीत मिली मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने 11 मई, 2023 को दिल्ली हाईकोर्ट के 5 साल पुराने फ़ैसले को पलटते हुए दिल्ली सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और उसे नौकरशाही पर नियंत्रण का हक़ दिया; लेकिन इस फ़ैसले के कुछ दिन बाद ही केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार के अधिकारों पर राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने का अध्यादेश लेकर आयी और सुप्रीम कोर्ट के दिल्ली सरकार के पक्ष में फ़ैसला सुनाये जाने के बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए अध्यादेश जारी कर दिया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली संशोधन अध्यादेश 2023 के तहत तबादलों और नियुक्ति का अधिकार उप राज्यपाल को वापस दे दिया गया।
भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी का कहना है कि दिल्ली की प्रशासनिक और क़ानूनी स्थिति दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बनाती है, इस बात को जानते हुए भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने तानाशाही रवैये के कारण स्वीकार करने के लिए राज़ी नहीं हैं। ऐसे में केंद्र के पास आवश्यक अध्यादेश लाने का अधिकार है। इसी कारण केंद्र सरकार इसे लेकर आयी है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के अध्यादेश के ख़िलाफ़ पूरे देश में दौरा कर रहे हैं। केंद्र सरकार के अध्यादेश को संघीय ढाँचे पर चोट बताते हुए वह भाजपा विरोधी दलों का समर्थन जुटाने की कोशिश में है। लेकिन कांग्रेस ने इस बार केजरीवाल की इस राजनीति को समझ लिया है। कांग्रेस को समझ में आ गया है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ कांग्रेस की लड़ाई को न केवल केजरीवाल कमज़ोर कर रहे हैं, अपितु कांग्रेस की ज़मीन भी खिसका रहे हैं। दरअसल अध्यादेश के ख़िलाफ़ केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने केंद्र के अध्यादेश के ख़िलाफ़ तीन स्तरों पर लडऩे की रणनीति बनायी है। पहला सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी लड़ाई लड़ी जाए, दूसरा इस अध्यादेश के ख़िलाफ़ सडक़ों पर उतरा जाए और तीसरा मोदी सरकार का राज्यों के मामलों में दख़ल देने का मामला बना कर राज्यसभा में केंद्र सरकार को पटखनी दी जाए। इसलिए केजरीवाल सरकार ने अदालत की छुट्टियाँ ख़त्म होने पर अध्यादेश की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है।
जैसा कि आप जानते हैं केंद्र सरकार के इस अध्यादेश को छ: महीने के अन्दर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पास कराना अनिवार्य है, तभी यह अध्यादेश क़ानून बन पाएगा। अगर यह अध्यादेश संसद के दोनों सदनों में पास नहीं हुआ, तो केंद्र सरकार का यह अध्यादेश ख़ुद ही ख़त्म हो जाएगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार के इस अध्यादेश को राज्य सरकार के अधिकारों की रक्षा के लिए भाजपा विरोधी दलों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि भाजपा विरोधी दल उनका साथ दें और इसे राज्यसभा में पास न होने दें। केंद्र सरकार लोकसभा में भले ही इस विधेयक को आसानी से पास करा ले; लेकिन राज्यसभा में उसकी स्थिति विपक्ष के मुक़ाबले थोड़ी कमज़ोर दिखती है। इसी कारण केजरीवाल विपक्षी दलों से समर्थन माँग रहे हैं, ताकि इस अध्यादेश को राज्यसभा में गिराकर रद्द करवा दिया जाए।
राज्यसभा का गणित
राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के पास 92 सांसद हैं। कांग्रेस के पास 31, तृणमूल कांग्रेस के पास 12, राष्ट्रीय जनता दल के पास छ:, टीआरएस के सात, सीपीएम के पाँच, आम आदमी पार्टी के 10, जनता दल यूनाइटेड के पाँच, राष्ट्रवादी कांग्रेस के चार, समाजवादी पार्टी के तीन, सीपीआई के दो, जेएमएम के पास दो सांसद है। राज्यसभा में डीएमके के 10, बीजू जनता दल के नौ, वाईएसआर कांग्रेस के नौ सांसद है। राज्यसभा में सांसदों के सख्या बल को देखते हुए सत्ता पक्ष या विपक्ष अन्य छोटे दलों को जो भी अपने साथ लाने में कामयाब होगा, तो जीत उसकी होगी।
कांग्रेस समझी केजरीवाल की नीति
राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन संशोधन विधेयक-2021 पर कांग्रेस ने आप पार्टी से किनारा कर लिया है। कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ जाने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन पहले ही अरविंद केजरीवाल की केंद्र के अध्यादेश पर सवाल उठाने की आलोचना कर चुके हैं। दरअसल कांग्रेस के भीतर एक ग्रुप का मानना है कि आम आदमी पार्टी आगे बढ़ती है, तो इसका नुक़सान कांग्रेस को होगा। आम आदमी पार्टी ने हमेशा कांग्रेस को ही नुक़सान पहुँचाया है। आम आदमी पार्टी ने वर्ष 2013 में कांग्रेस से दिल्ली की सत्ता छीनी थी। उसके बाद आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगायी है। दिल्ली में जीत के रिकॉर्ड को देखा जाए, तो वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों पर विजय हासिल की थी। वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे।
2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 23 फ़ीसदी वोट मिले थे। जबकि आम आदमी पार्टी को 18 फ़ीसदी वोट ही मिले थे। पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छीनी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब की 13 में से 8 सीटों पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी। कांग्रेस को 40 फ़ीसदी वोट मिले थे। आम आदमी पार्टी को 2019 के लोकसभा चुनाव में आठ फ़ीसदी वोट और लोकसभा की एक सीट मिली थी। गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम सबके सामने है। आम आदमी पार्टी ने गुजरात में कांग्रेस को ही नुक़सान पहुँचाया है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की लड़ाई में फ़ायदा भाजपा को मिला है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज़ 28 फ़ीसदी वोट और 17 सीटें ही मिली थी, जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गुजरात में 43 सीसी बोर्ड और 77 सीटें मिली थी। आम आदमी पार्टी को पिछले साल विधानसभा चुनाव में 13 सीसी बोर्ड मिले। गुजरात में पाँच विधानसभा की सीट जीती। आम आदमी पार्टी ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी अपने विस्तार की योजना बनायी है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुक़ाबला है। अगर आम आदमी पार्टी चुनाव मैदान में मज़बूती से आती है, तो इसका नुक़सान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस आम आदमी पार्टी के साथ गठजोड़ को लेकर सभी पहलुओं को देख रही है।
केजरीवाल का आरोप
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि इससे दिल्ली में प्रजातंत्र नहीं रहेगा। दिल्ली में तानाशाही होगी और उपराज्यपाल सर्वोच्च हैं। जनता जिसे चाहे वोट दे सकती है; लेकिन दिल्ली को केंद्र सरकार ही चलाएगी। वह कहते हैं कि ‘मैं देश भर में यात्रा कर रहा हूँ। और मैं दिल्ली के लोगों को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि मैं अकेला नहीं हूँ; भारत के 140 करोड़ लोग मेरे साथ हैं।’ केजरीवाल को अब तक टीएमसी, डीएमके, शिवसेना (उद्धव), जेडीयू, आरजेडी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा और समाजवादी पार्टी समेत 10 विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिल चुका है। अध्यादेश के ख़िलाफ़ केजरीवाल की आम आदमी पार्टी केंद्र के अध्यादेश के ख़िलाफ़ तीन तरफ़ा लड़ाई लड़ रही है। सुप्रीम कोर्ट में क़ानूनी लड़ाई, सडक़ पर लड़ाई और एक मज़बूत संसदीय रणनीति का निर्माण; जहाँ दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियाँ ख़त्म होने पर एनसीसी ऐसे अध्यादेश की वैधता को उसमें चुनौती देने के लिए तैयार है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)