प्रयागराज के माफ़िया, नेता अतीक अहमद एवं उसके भाई अशरफ़ की हत्या पर चर्चा, बहस एवं विरोध का बाज़ार गर्म है। इस हत्या को लेकर विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश के बीच तगड़ी नोकझोंक हो चुकी है। योगी के मंत्री धर्मपाल सिंह विपक्ष पर अतीक एवं अशरफ़ की हत्या का आरोप लगा चुके हैं। स्पष्ट है उत्तर प्रदेश में विपक्ष का तात्पर्य समाजवादी पार्टी है। मगर प्रश्न यह है कि अगर ऐसा ही है, तो फिर अतीक अहमद के बेटे असद को क्यों मार दिया गया? उसे अतीक के दूसरे बेटों की तरह जेल में रखा जा सकता था। क्या यह अतीक एवं उसके परिवार में दहशत फैलाने के लिए किया गया?
वास्तविकता यह है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वालों के घर पर बुलडोजर चलने से लेकर माफ़िया को मिट्टी में मिला देने तक की घटनाएँ इन दिनों उत्तर प्रदेश का एक नया चलन बन चुकी हैं। क़ानून व्यवस्था मानो मुख्यमंत्री योगी ने अपने हाथ में ले रखी है। न्यायालय हैं, मगर केवल अपराधियों की उपस्थिति दर्ज करवाने एवं उन्हें दिखावे के लिए दण्ड दिलाने हेतु। यह पुलिस कभी एनकाउंटर करने में अग्रणी भूमिका निभा रही है, तो कभी अपराधियों की हत्या की तमाशबीन बनी दिखायी दे रही है।
इधर, सर्वोच्च न्यायालय दायर याचिका में कहा गया है कि 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश में पुलिस ने 183 मुठभेड़ों को अंजाम दिया है, जिसकी जाँच होनी चाहिए। पुलिस की ऐसी हरकतें लोकतंत्र तथा क़ानून के शासन के लिए गम्भीर $खतरा हैं। न्यायालय ने योगी सरकार से अतीक-अशरफ़ मामले में लापरवाही को लेकर प्रश्न किये हैं। इससे पहले न्यायालय ने सरकार से कहा था कि भारत जैसे धर्मनिर्पेक्ष देश में धर्म के आधार पर हेट क्राइम की कोई जगह नहीं है।
मुठभेड़ में एनकाउंटर
अतीक-अशरफ़ की हत्या से पहले ही अतीक के बेटे असद की पुलिस मुठभेड़ में मौत हुई। इस एनकाउंटर में असद का एक साथी उस्मान भी मारा गया। इससे पहले अतीक गैंग के दो अन्य सदस्य मोहम्मद ग़ुलाम तथा अरबाज़ भी एनकाउंटर में मारे गये थे। अभी पुलिस को अतीक की गैंग के दो शातिर अपराधियों गुड्डू मुस्लिम तथा साबिर की तलाश है।
अपराधियों ने अपराधियों को मारा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भले ही उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश तथा कथित राम राज्य के तमगों से स्वयं ही नवाज़ रखा हो, मगर सच यही है कि उत्तर प्रदेश अपराध में आज भी अग्रणी प्रदेश बना हुआ है। स्वयं योगी आदित्यनाथ के मंत्रीमंडल में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले मंत्रियों तथा नेताओं की भरमार है। मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी आदित्यनाथ पर भी कई आपराधिक मुक़दमे चलते रहे हैं। गोरखधाम मठ भूमि विवाद में उन पर हत्या तक के आरोप लग चुके हैं। उनके कई निकटतम नेता आपराधिक आरोपों से घिरे हुए हैं। उनके कई मंत्रियों तथा नेताओं पर मुक़दमे दर्ज हैं।
माफ़िया अतीक अहमद तथा उसके भाई अशरफ़ के हत्याकांड को जिस प्रकार से अंजाम दिया गया, उससे प्रश्नों का उठना स्वाभाविक है। मगर उत्तर यहाँ स्पष्ट है कि यह हर स्वरूप में अपराधियों से अपराधियों की हत्या का मामला है। अतीक तथा अशरफ़ की हत्या के बाद अपराधी जय श्रीराम के नारे लगाते रहे। ऐसा लगा कि वे इन माफ़िया को मारकर भागना नहीं चाहते थे। पुलिस ने आसानी से इन्हें पकड़ लिया। सनी सिंह, अरुण मौर्य, लवलेश तिवारी नाम के जिन तीन युवकों ने अतीक अहमद तथा अशरफ़ की हत्या की, उनकी भी आपराधिक पृष्ठभूमि है। इस हत्याकांड में अपराधियों ने इंसास पिस्तौल का इस्तेमाल किया था, जो कि दुर्लभ है तथा विदेशी है। उनके साथ दो और अपराधी बताये जाते हैं। सभी अपराधी बड़े प्रसन्न बताए जाते हैं, जिससे कई प्रश्न खड़े होते हैं। पहला तो यही कि कहीं इन अपराधियों के सिर पर कोई राजनीतिक हाथ तो नहीं। इस समय सभी अपराधी जेल में हैं।
अतीक का आपराधिक इतिहास
अतीक का जन्म उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती में 10 अगस्त, 1962 को फ़िरोज़ के घर हुआ, जो इलाहाबाद रेलवे स्टेशन (अब प्रयागराज) क्षेत्र में तांगा चलाते थे। कोई 43 साल पहले 17 साल की उम्र में अतीक ने एक हत्या करके अपराध की दुनिया में क़दम रखा। धीरे-धीरे अतीक का भय क्षेत्र में फैल गया और उसके साथ उसका भाई अशरफ़ भी अपराध की दुनिया में कूद गया। फिर पत्नी, फिर बेटे भी। इस गैंग का हिस्सा गुड्डू मुस्लिम भी बना। अतीक विरुद्ध 102 मुक़दमे दर्ज हुए। अशरफ़ के विरुद्ध 54 मुक़दमे दर्ज हुए। अतीक के कई गुर्गों पर भी दर्ज़नों मुक़दमे दर्ज हुए। अशरफ़ का हाल यह था कि पुलिस उसे तथा उसके गुर्गों को छूने से भी डरती थी। अतीक जब राजनीति में आया, तो उसका एक रुतबा क्षेत्र में स्थापित हो गया।
राजनीतिक इतिहास
अतीक ने पहला चुनाव निर्दलीय इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से 1989 में लड़ा एवं जीत प्राप्त की। फिर इसी सीट 1991 एवं 1993 में भी निर्दलीय रूप से चुनाव जीता। इसके बाद समाजवादी पार्टी ने 1996 में टिकट दिया, जिस पर अतीक ने जीत प्राप्त की। तीन साल में अतीक ने सपा छोड़ दी तथा 1999 में अपना दल पार्टी के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा, जिसमें उसे हार मिली। मगर 2002 में अपना दल के ही टिकट पर इलाहाबाद की पश्चिम सीट पर पुन: जीत प्राप्त की। 2003 में सपा की प्रदेश में सरकार बनी, तो अतीक का पुन: प्रवेश उसमें हो गया। 2004 में फूलपुर सीट से उसने सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीता।
मायावती ने कसी थी नकेल
बसपा की 2007 में सरकार बन गयी, जिसकी मुखिया मायावती मुख्यमंत्री बनीं। मायावती ने अतीक की नाक में नकेल डाल दी थी। उसके विरुद्ध एक दर्ज़न के लगभग मुक़दमे दर्ज किये गये। 20,000 का इनाम घोषित किया गया। मायावती सरकार की सख़्ती देख अतीक ने उत्तर प्रदेश छोड़ दिया। मगर पुलिस ने इतना दबाव बना दिया कि अतीक को दिल्ली में गिरफ़्तारी देनी पड़ी। मायावती सरकार ने अतीक की करोड़ों की सम्पत्तियाँ कुर्क कीं, कई अवैध क़ब्ज़े छुड़वाये। मायावती ने अतीक की ही तरह राजा भैया के साथ भी यही किया। मगर 2012 में प्रदेश में पुन: समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तथा इस बार अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। जनता को विश्वास था कि अखिलेश गुंडों का साथ नहीं देंगे, मगर अतीक को जमानत मिल गयी तथा राजा भैया को भी मंत्री बनाया गया।
योगी ने की सबसे बड़ी कार्रवाई
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ सरकार दो के दूसरे कार्यकाल के दूसरे वर्ष तक अर्थात् अब तक अतीक तथा उसके गैंग पर बड़ी कार्रवाई हुई। अतीक अहमद तथा उसके परिवार के लिए सबसे बड़ी मुसीबत का कारण बनी अधिवक्ता उमेश पाल की हत्या, जो कि प्रयागराज में 24 फरवरी को हुई। 25 फरवरी को ही उमेश पाल की पत्नी ने अतीक, अशरफ़, शाइस्ता, असद, गुड्डू मुस्लिम, उस्मान समेत लगभग एक दर्ज़न से अधिक लोगों के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करायी। मामले में कार्रवाई आगे बढ़ी, तो अतीक परिवार की अन्य आपराधिक फाइलें खुलती गयीं।
अब तक अतीक परिवार एवं उसके गुर्गों की कुल 1168 करोड़ रुपये की सम्पत्तियों पर कार्रवाई की जा चुकी है। गैंगस्टर एक्ट के तहत लगभग 417 करोड़ रुपये की सम्पत्ति कुर्क की जा चुकी है। 751.52 करोड़ रुपये की सम्पत्तियों को अतीक के अवैध क़ब्ज़े से मुक्त करा दिया गया है। अतीक के कई पड़ोसी तथा कुछ रिश्तेदार आरोप लगा चुके हैं कि उनकी सम्पत्ति तक पर अतीक ने अवैध क़ब्ज़ा किया था। मुख़्तार अंसारी पर भी शिकंजा कसा जा रहा है। प्रश्न यह है कि राजा भैया भी एक माफ़िया है, मगर उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
पाकिस्तानी रिश्ता
जब अतीक-अशरफ़ को पुलिस पकड़ लिया, उसके उपरांत यह समाचार चला कि अतीक तथा अशरफ़ के पाकिस्तान से तार जुड़े हैं। उनके पास से दो पिस्तौल तथा पाँच पाकिस्तानी कारतूस सहित कुल 58 कारतूस बरामद हुए। टीवी चैनलों पर उनके एक पाकिस्तानी आतंकी संगठन से रिश्ते भी तय किये गये। मगर इस बात के कोई पुख़्ता सुबूत नहीं मिले हैं कि अतीक तथा अशरफ़ के पाकिस्तान से किसी भी प्रकार के रिश्ते थे। प्रश्न यह है कि अब जब अतीक-अशरफ़ नहीं रहे, इस मामले में चल रही जाँच का क्या होगा?
माफ़ियाओं की पत्नियों की तलाश
अतीक तथा अशरफ़ की मृत्यु के बाद अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन तथा अशरफ़ की पत्नी जैनब की तलाश उत्तर प्रदेश पुलिस लगातार कर रही है। इन दोनों के बारे में कई तरह की अफ़वाहें भी उड़ी हैं। जैनब के ज़हर खाने की अफ़वाह भी उड़ी थी, मगर अभी दोनों जेठानी-देवरानी का कुछ पता नहीं है। इनके बारे में कभी कुछ समाचार सुर्ख़ियाँ बनकर छपते हैं, तो कभी कुछ समाचार। इन्हें छुपाने तथा भगाने वालों पर भी कार्रवाई की जा रही है। मुख़्तार अंसारी की पत्नी अफ़शां अंसारी की भी पुलिस तलाश कर रही है।
शाइस्ता के चलते नष्ट हुआ परिवार
अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन एक भले परिवार में पैदा हुई, मगर उसने अतीक की राह पकड़ी तथा अपराध को गले गलाया। 1986 में अतीक अहमद तथा शाइस्ता परवीन का निकाह हुआ। इसके पहले शाइस्ता का अपराध से कोई नाता नहीं था। अतीक ने शाइस्ता को अपराध के गुर सिखाये। स्थिति यह हुई कि मायावती शासन में जब अतीक को जेल की सज़ा हुई, तब उसकी आपराधिक सत्ता शाइस्ता ने सँभाली।
अतीक को भी शाइस्ता के अतिरिक्त किसी पर इतना भरोसा नहीं था। अतीक की अनुपस्थिति में शाइस्ता के निर्णय गैंग के लिए मान्य होते थे। पैसों के लेन-देन भी वही देखती थी। उमेश पाल हत्याकांड के दौरान तो अतीक तथा अशरफ़ जेल में थे। राजू पाल हत्याकांड का इकलौता गवाह अधिवक्ता उमेश पाल था। इसी के चलते उमेश पाल की हत्या हुई। यही हत्या अतीक तथा उसके पूरे परिवार के लिए काल बन गयी। अतीक-अशरफ़ की हत्या में कई पुलिसकर्मी नौकरी गँवा वैठे। वैसे तो अतीक तथा उसके परिवार के आपराधिक साम्राज्य के आरम्भ से अन्त तक को लेकर कई किताबें लिखी जा सकती हैं, मगर यहाँ इतना ही।