ईभारतीय उप महाद्वीप में ईरान के िखलाफ पाकिस्तान को फिर अमेरिका का सहयोग देखने को मिल सकता है। पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को अमेरिका को अपने पाले में करने के लिए ऐसे मौके के लिए बेसब्री से इंतज़ार में था। ईरान की प्रमुख सेना कुद्स फोर्स के प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या से अब लगभग दिवालिया हो चुके पाकिस्तान को उम्मीद है कि उसे अमेरिका को समर्थन मिलेगा और उसे सैन्य और वित्तीय सहायता भी मिल सकेगी। हालाँकि, इससे लोकतांत्रिक संस्थान अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं। इसी के चलते वर्तमान आर्थिक संकट से उबरने के लिए अमेरिका के करीब होने की तत्परता दिखायी है।
26 जनवरी को जहाँ भारत अपने गणतंत्र के सात दशक पूरे होने का जश्न मनाएगा, वहीं दूसरी तरफ 1971 में दो हिस्सों में बँटा पड़ोसी पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीयता के 73 साल पूरे करने पर लोकतंत्र के नाज़ुक मोड़ पर पहुँच गया है। लंदन में रह रहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की पूर्व पत्नी रेहम खान ने सरकार को लेकर कई खुलासे किये हैं। पाकिस्तान में आम चुनाव से पहले प्रकाशित आत्मकथा में उन्होंने लिखा कि संसद के सदस्य बिना रीढ़ वालों की तरह है। पुस्तक में उन्होंने प्रधानमंत्री इमरान खान का असली चेहरा उजागर किया है। उन्होंने दु:ख ज़ाहिर करते हुए लिखा- ‘हम लोकतंत्र के अंतिम संस्कार को देखते हुए ताली बजा रहे हैं, जबकि यह एक उत्सव मनाने की घटना है। फिर भी वह पाकिस्तान के परिदृश्य के नकली राजनीति में शामिल हो गयीं; लेकिन वह देश के नागरिक समाज की अंतर्रात्मा का प्रतिनिधित्व करती है।’
रेहम खान की लिखी पुस्तक से देश में मुश्किल राजनीतिक परिदृश्य के खेल का पता चलता है कि इमरान खान नेशनल अकांउटेबिलिटी ब्यूरो की शक्तियों को किस तरह कमज़ोर कर रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और पाकिस्तान मुस्लिम लीग के कई नेता भ्रष्टाचार में सज़ा पा चुके हैं। अभी नवाज़ शरीफ इलाज के लिए लंदन में हैं; पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी और मारी गयी नेता बेनज़ीर भुट्टो के पति भी पहले से ही चिकित्सा उपचार के लिए बाहर हैं। अब नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम शरीफ भी इलाज के लिए विदेश जाने के इंतज़ार में है।
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के सेवा विस्तार करने पर रोक लगा दी। और आदेश दिया कि इस बाबत कानून और सिस्टम के तहत फैसला लें। हालाँकि बाद में सेवा विस्तार में कटौती करते हुए आंशिक रूप से शीर्ष अदालत ने इमरान सरकार को राहत दे दी। कानून में संशोधन की प्रक्रिया को तब अपनाया गया जब अमेरिका के विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो और जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच वार्ता हुई। यह वार्ता पश्चिम एशिया में बढ़़ते तनाव को लेकर हुई थी, जिसे पोम्पियों ने अपने ट्विटर हैंडल साझा किया था। इस दौरान ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी को मारे जाने के बारे में भी बताया था कि वह अमेरिका के िखलाफ साज़िश रच रहा था।
11 सितंबर 2001 में हुए अमेरिका पर आतंकी हमले से पहले पाकिस्तान और सऊदी अरब अफगानिस्तान में तालिबान के समर्थक हुआ करते थे, जो रणनीतिक रूप से भारत, ईरान और रूस के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
9/11 के बाद पाकिस्तान ने जनरल परवेज़ मुर्शरफ के नेतृत्व में तालिबान और अमेरिका की समर्थन नीति को एकदम उलट दिया और तालिबान के िखलाफ आतंकी युद्ध में शामिल हो गया। इसमें अमेरिका को अपने हवाई अड्डे और परिवहन सहायता की सहायता प्रदान की। पाकिस्तान ने 500 अलकायदा के सदस्य को पकडक़र अमेरिका के हवाले कर दिया था। इसके एवज़ में अमेरिका ने पाकिस्तान को भारी आर्थिक मदद देकर डूब रही अर्थ-व्यवस्था में जान फूँक दी थी। अब 18 साल बाद जनरल बाजवा भी अमेरिका से इसी तरह की मदद और सहयोग की उम्मीद कर रहे हैं।
माइकल पोम्पियो के साथ हुई बाजवा की बातचीत पर पाकिस्तान की राजनीति के केंद्र में है। अमेरिकी विदेश मंत्री के साथ बाजवा की हुई इस संवेदनशील मुद्दे पर बातचीत के बाद कई पत्रकार और वक्ता इस पर बयान देने से कतरा रहे है। रेहम खान जो कि राजनीतिक कार्यकर्ता रही हैं, वह कहती हैं कि देश में किसी अन्य की तुलना में बाजवा बेहतर राजनेता साबित हो सकते हैं और इसके लिए उन्हें अपने पूर्ववर्ती परवेज़ मुशर्रफ और ज़िया उल हक की तरह मार्शल लॉ लगाने की भी आवश्यकता नहीं होगी।
सेना में शिखर पर बैठे बाजवा की संसद में भी स्थिति बेहतर है, जहाँ पर निर्वाचित प्रतिनिधियों का उनको समर्थन हासिल है। पाकिस्तान की संसद के उच्च सदन ने सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को तीन साल और विस्तार दिए जाने को मंज़ूरी दी थी। जनरल बाजवा को प्रधानमंत्री इमरान खान का करीबी माना जाता है, सरकार बीते साल से उनके सेवा विस्तार की कोशिश कर रही थी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने संसद में तीन विधेयक पेश किये जिसमें जल, थल व वायु प्रमुखों के सेवा विस्तार की बात की गयी थी। स्ंासद के निचले संसद ने 29 नवंबर 2019, को सेना प्रमुख जनरल बाजवा की सेवा अवधि बढ़़ाने वाला विधेयक पास कर दिया। जनरल बाजवा बीते साल 29 नवंबर को ही रिटायर होने वाले थे। इमरान खान ने 19 अगस्त, 2019 को एक अधिसूचना जारी कर जनरल बाजवा के सेवा विस्तार को तीन साल बढ़़ा दिया। हालाँकि पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान के इस आदेश को रद्द कर दिया; बाद में शीर्ष अदालत ने यह सेवा विस्तार 6 महीने बढ़़ाने पर मंज़ूरी दे दी। सरकार ने कुछ विपक्षी पार्टियों को विश्वास में लेकर सैन्य अधिकारियों की सेवानिवृत्ति अवधि जो कि मौज़ूदा समय में पाकिस्तान की नौसेना, वायुसेना और थल सेना की उम्र 60 से बढ़ाकर 63 वर्ष करने का फैसला किया। सांसदों के पैनल में शामिल पाकिस्तान के रक्षा पैनल ने मंज़ूरी दी थी जिसे बाद में सदन के पटल पर रखा गया। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री परवेज़ खटक ने तीन बिल- पाकिस्तान सेना संशोधन अधिनियम 2020, पाकिस्तान वायु सेना संशोधन अधिनियम 2020, पाकिस्तान नौसेना संशोधन अधिनियम 2020 पेश किया, जो मुस्लिम लीग-नवाज़ और पीपुल पार्टी के समर्थन से आसानी से पारित हो गए। हालाँकि, जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फज़ल और जमीयत-ए-इस्लामी ने इन संशोधन अधिनियम का बहिष्कार किया।
पाकिस्तान बार काउंसिल ने वर्तमान सेना प्रमुख के विस्तार को बढ़ाने पर कानून पास किए जाने को लेकर चिन्ता जतायी। इसमें कहा गया कि ‘किसी भी संस्था में विस्तार दिये जाने से संस्था कमज़ोर हो जाती है।’ इससे व्यक्ति विशेष और नीति निर्माता के प्रतिनिधि लोकतंत्र की भावना के िखलाफ जाती है। किसी भी संस्थान में परिवर्तन बेहद अहम होता है और यह संस्था पर संक्रमण करने से बचाने में भी अहम होता है।’ काउंसिल की ओर से कहा गया कि हमें अतीत की गलतियों को नहीं दोहराया जाना चाहिए। हमारा इतिहास शक्तिशाली पदों पर काबिज़ लोगों के सेवा विस्तार से हुए नुकसान के उदाहरण से भरा हुआ हैै। अपने बयान में पीबीसी ने कहा कि असाधारण उपायों को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तरीके लोकतंत्र के लिए उचित करार नहीं दिए जा सकते। रेहम खान के शब्दों में कहें तो राजनेता लोकतंत्र की हत्या का जश्न मना रहे हैं; क्योंकि इससे रक्षा प्रतिष्ठान को साझा करना सुनिश्चित हो जाएगा, जिससे लोगों की शायद ही कोई भूमिका रहे। हालाँकि इससे देश के भविष्य को नुकसान हो सकता है।
सत्ता के केंद्र में बाजवा
रेहम खान के विश्लेषण के हिसाब से िफलहाल सत्ता के केंद्र में जनरल बाजवा हैं, जिन्होंने यह साबित किया है कि उनकी राजनीतिक प्रवृत्ति जनरल जिया-उल-हक और परवेज़ मुशर्रफ से भी बेहतर है। बाजवा को पाकिस्तानी सरकार की ओर से बिना विरोध किये असीमित शाक्तियां मिली हुई हैं। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार, ब्रिटेन ने भारत के धार्मिक आधार पर दो हिस्सों में विभाजित किया था। इस अधिनियम को 18 जुलाई 1947 को मंज़ूरी मिली थी। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच सैन्य संघर्ष हुआ, जिसमें पाकिस्तान को हार मिली। पूर्वी पाकिस्तान आज़ाद होकर बांग्लादेश के रूप में एक नया देश बना। हालांकि इस बीच, सेना निर्णायक राजनीतिक ताकत बनी रही और पाकिस्तान के बचे हुए पश्चिमी विंग को अलग कर दिया गया। प्रधानमंत्री जुल्िफकार अली भुट्टो ने जिया उल हक को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ नियुक्त किया। जिया ने भुट्टो को एक सैन्य त तापलट में शामिल कर लिया और इन्हें जुलाई में मार्शल घोषित किया। बाद में तानाशाह जिया-उल-हक ने भुट्टो को फाँसी पर चढ़ा दिया था।
अमेरिकी नेता पाकिस्तान की ज़रूरत और लालच से भली-भाँति परिचित हैं। करीब 95 फीसदी की आबादी वाले सुन्नी पाकिस्तानियों को शियाओं के प्रति किसी भी तरह का लगाव नहीं है। वे पाकिस्तान से शियाओं को बाहर निकालना चाहते हैं। यह सही है कि औपनिवेश्कि भारत में शिया मुसलमान हिंदुस्तान के बँटवारे के आंदोलन की आज़ादी में सबसे आगे थे और बेरहमी से हत्या के लिए भी चर्चित रहे। अगर उनकी मानें कि अगर तीन लाख बंगाली सुन्नी मुसलमानों और चार लाख महिलाओं को सेना निकाल सकती है तो वे शियाओं को बाहर करने में बिल्कुल नहीं हिचकिचाएँगे। उनके लिए रूस ने अफगानिस्तान में 1979-89 तक कब्ज़ा किया था, उस दौरान काफी अनुदान इकट्ठा किया गया था, जिससे जिया-उल-हक की राजनीतिक शक्ति को बढ़ावा मिला था। आतंकवाद के िखलाफ फ्रंटलाइन स्टेट होने के कारण मुशर्रफ को भी पश्चिमी देशों से आर्थिक मदद हासिल हुई। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ ने अपनी किताब में कैद किये गये आतंकियों की लेन-देन की बात स्वीकार की, जिसमें उन्होंने लिखा है कि हमने 689 पकड़े गये थे, जिनमें से 369 अमेरिका के हवाले कर दिये। इसके बदले लाखों डॉलर कमाये। हाल ही के दिनों में पाकिस्तान को सैन्य आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश चीन है, जिसने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। इमरान खान की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ मुलाकात 21 जुलाई 2019 को हुई। दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधो को फिर से स्थापित करने पर सहमति जतायी और पाकिस्तान को फिर से सैन्य सहायता देने के लिए भी अमेरिका ने सहमति दी। अब अमेरिका ने इराक की राजधानी बगदाद में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुलेमानी और उसके साथ अन्य छ: लोगों को मार गिराया है, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना और नेताओं को फिर से अपने अच्छे दिनों का इंतज़ार है; क्योंकि इससे उन्हें फायदा मिलने की उम्मीद है।
यह सभी जानते हैं कि आईएसआईएस के िखलाफ लड़ाई में अमेरिका और सुलेमानी कई वर्षों तक सहयोगी रहे।