अगली बार मोदी या कोई और?

साल 2024 के आम चुनाव में भाजपा के नेतृत्व को लेकर अभी से चर्चा

भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की उँगली पकड़कर चलती है, सभी जानते हैं। आरएसएस की बात भाजपा में ब्रह्म वाक्य की तरह मानी जाती है। अब आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने 9 अगस्त को बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि अकेले एक नेता देश के सामने मौज़ूद चुनौतियों से नहीं निपट सकता और कोई एक संगठन या पार्टी देश में बदलाव नहीं ला सकती। इससे कोई एक पखवाड़ा पहले भाजपा के ताक़तवर नेता और गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात के एक पार्टी कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं को कहा कि वे मोदी के नेतृत्व में अगला लोकसभा चुनाव जीतने की अभी से तैयारी शुरू कर दें। शाह जो कहते हैं, उसे भाजपा में ब्रह्म वाक्य माना जाता है। तो क्या भाजपा मोदी के ही नेतृत्व में सन् 2024 के लोकसभा चुनाव में बिखरे हुए विपक्ष से भिड़ेगी या मोहन भागवत ने इससे अलग कुछ संकेत दिया है? भाजपा नेताओं की राय देखें, तो उन्हें लगता है कि मोदी के करिश्मे के बिना भाजपा को चुनाव जीतना मुश्किल होगा।

हाल के विधानसभा चुनाव में जीत और फिर महाराष्ट्र में छल-बल-दलबदल से सरकार बदलकर जो भाजपा ताक़तवर दिख रही थी, वह अगस्त के पहले पखवाड़े के दूसरे हफ़्ते में बिहार जैसे राज्य में नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर चले जाने से वहाँ अकेली पड़ गयी है। बिहार के रूप में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राज्य भाजपा के हाथ से निकल गया है और उसे अगले लोकसभा चुनाव में एक बहुत मज़बूत गठबंधन, जिसमें दलित, अति और साधारण पिछड़ा वर्ग, अति और साधारण वामपंथ, मध्यमार्ग और अल्पसंख्यक का अद्भुत संयोजन है। अर्थात् राजद, जद(यू), कांग्रेस, वामपंथी, मुस्लिम और घोर पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले दलों का सामना भाजपा के लिए किसी भी सूरत में आसान नहीं होगा।

यह घटनाक्रम तब हुए हैं, जब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के भीतर बड़े स्तर की चर्चाएँ चल रही हैं। नेतृत्व से लेकर रणनीति तक। भले भाजपा नेता और बड़े बहुमत से 2024 में सत्ता में लौटने के दावे कर रहे हों, पार्टी के भीतर माना जाता है कि अगला चुनाव 2019 के चुनाव के मुक़ाबले थोड़ा कठिन होगा। फ़िलहाल तो भाजपा में यही माना जाता है कि पार्टी के सबसे बड़े आकर्षण होने के नाते नरेंद्र मोदी ही अगले चुनाव में भी नेतृत्व करेंगे। उनके रहते पार्टी के ज़्यादातर नेता जीत को पक्का मानते हैं। लेकिन हाल के समय में पार्टी के भीतर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भविष्य के नेतृत्व की एक गम्भीर सम्भावना के रूप में उभरे हैं।
अब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जब यह कहा कि ‘एक चीज़ जो संघ की विचारधारा का आधार है। वह यह है कि कोई एक नेता इस देश के समक्ष मौज़ूद सभी चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता है, वह ऐसा नहीं कर सकता; चाहे वह कितना भी बड़ा नेता हो।’ इसके निहितार्थ समझने की कोशिश भाजपा ही नहीं, विपक्ष के नेता भी कर रहे हैं। क्या इसका अर्थ यह है कि भागवत नये नेता को सामने लाने का संकेत दे रहे हैं? आरएसएस हिन्दुत्व, एक भारत और हिन्दू राष्ट्र की सोच पर केंद्रित संगठन है। भाजपा के मामले में वह एक संगठन मात्र नहीं है। एक विचारधारा है, जिससे भाजपा भी संचालित होती है। ऐसे में भागवत के बयान पर कयास लगने जारी हैं।
भाजपा के भीतर नेतृत्व की चाह और नेताओं को नहीं है, यह नहीं कहा सकता। अमित शाह, नितिन गडकरी जैसे नेता हैं, जो नेतृत्व की क्षमता रखते हैं। योगी आदित्यनाथ का अपना बड़ा प्रशंसक वर्ग भाजपा के भीतर है। एक ऐसा भी वर्ग है, जो मोदी की नीतियों से बहुत ज़्यादा इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता; लेकिन ख़ामोश रहता है। ऐसे में संघ नेतृत्व को लेकर क्या सोचता है, यह काफ़ी अहम हो जाता है।

राजनीति में करिश्मे वाला नेतृत्व महत्त्वपूर्ण होता है। बिना किसी हिचक के कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा के पास ऐसा चेहरा है। लेकिन यह भी सच है कि एक वृहद वर्ग में उनकी स्वीकार्यता नहीं है। ख़ासकर अल्पसंख्यक उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखते हैं। इसके अलावा इतनी अपार लोकप्रियता के बावजूद देश के कई राज्यों, ख़ासकर दक्षिण भारत में भाजपा का इन आठ वर्षों में भी पैर न जमा पाना यह संकेत करता है कि मोदी की लोकप्रियता वहाँ पहुँच नहीं पायी है। राजनीति के बहुत जानकार मानते हैं कि भाजपा उत्तर भारत से बाहर बहुत मज़बूत ज़मीन पर नहीं खड़ी है। लेकिन यहाँ यह सवाल भी है कि क्या भाजपा मोदी के नेतृत्व के बिना लोकसभा जैसा बड़ा चुनाव जीत सकती है? इसका जवाब अभी देना कठिन है। इस साल और अगले साल भी कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। इनके नतीजे बहुत अहम होंगे। भाजपा के लिए मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनावों के विपरीत अगले चुनावों में चुनौती कठिन है। इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि इनमें से कुछ राज्यों में भाजपा आधार तलाश रही है, जबकि कुछ अन्य में उसके सामने विपक्षियों की मज़बूत चुनौती है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि भाजपा का नेतृत्व इन चुनावों के नतीजों के आधार तय होगा; लेकिन निश्चित ही यह एक पैमाना रहेगा।

भाजपा ने हाल के महीनों में ध्रुवीकरण की राजनीति को अपना प्रमुख हथियार बना लिया है। वह विकास से इतर हिन्दुत्व और आक्रामक राष्ट्रवाद पर ज़्यादा निर्भर दिखने लगी है। इसके अलावा जो तीसरी बात भाजपा करने लगी है, वह है परिवारवाद के ख़िलाफ़ उसका मोर्चा खोलना। ज़ाहिर है एक रणनीति के तहत भाजपा गाँधी परिवार को निशाने पर रख रही है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि भाजपा का अचानक हर मंच पर परिवारवाद के ख़िलाफ़ सक्रिय होना इस कारण से है; क्योंकि वह जनता के दिमा$ग में यह बैठाना चाहती है कि गाँधी परिवार उसके लिए सही नहीं। और यह भी कि वह भ्रष्ट है। जबकि हक़ीक़त यह है कि भाजपा मानती है कि देश की राजनीति में गाँधी परिवार के रहते उसके (भाजपा) सामने राजनीतिक चुनौतियाँ हमेशा रहेंगी, भले फ़िलहाल कांग्रेस कमज़ोर हो। उसके ‘देश में सिर्फ़ भाजपा’ के अभियान में गाँधी परिवार और कांग्रेस ही मुख्य अड़चन हैं, क्षेत्रीय दल कम-से-कम राष्ट्रीय स्तर पर उसके लिए कोई गम्भीर चुनौती नहीं, भाजपा यह अच्छी तरह समझती है।
भाजपा परिवारवाद के ख़िलाफ़ तो बोलती है; लेकिन सच यह है कि ख़ुद उसके दर्ज़नों नेताओं के परिजन उसकी राजनीति चला रहे हैं। इनमें राष्ट्रीय नेताओं से लेकर क्षेत्रीय नेता तक शामिल हैं। कांग्रेस की बात करें, तो राजीव गाँधी की सन् 1991 में एलटीटीई के हाथों हत्या के बाद तीन बार बनी कांग्रेस की सरकारों में एक बार भी गाँधी परिवार का प्रधानमंत्री नहीं रहा। यहाँ तक कि कांग्रेस अध्यक्ष भी हमेशा गाँधी परिवार से नहीं रहा। ऐसे में कांग्रेस को इन तीन दशकों में गाँधी परिवार ने ही चलाया, यह भी सही नहीं है; भले उसका दबदबा पार्टी पर बरक़रार रहा हो।

ऐसे में भाजपा की परिवार विरोधी राजनीति की मुहिम गाँधी परिवार को कितना नुक़सान पहुँचाएगी और ख़ुद भाजपा को कितना फ़ायदा देगी, यह तो समय ही बताएगा। फ़िलहाल भाजपा और भाजपा से बाहर इस बात पर कयास लग रहे हैं कि 2024 के आम चुनाव में कौन नेता पार्टी का नेतृत्व करेगा? प्रधानमंत्री मोदी ही या कोई और। दिग्गज भाजपा नेता अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों के बाद यह चर्चा और तेज़ हो गयी है।


“मुझे विश्वास है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा 2024 के आम चुनाव में दो-तिहाई बहुमत के साथ जीतेगी। इसे कोई नहीं रोक सकता।’’
अमित शाह
वरिष्ठ भाजपा नेता


“कोई एक नेता इस देश के समक्ष मौज़ूद सभी चुनौतियों का सामना नहीं कर सकता है। चाहे वह कितना भी बड़ा नेता हो। कोई एक संगठन या पार्टी देश में बदलाव नहीं ला सकती।’’
मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख