रविवार की दोपहर थी. मैं रसोई में थी. पति ने खबर दी कि संगीतकार खय्याम नहीं रहे. वे नब्बे वर्ष के होकर चल बसे. सुनकर मैं उदास हो गई. कुछ साल पहले वे एक कार्यक्रम में जोधपुर आए थे. तब मैं उनके कार्यक्रम में थी. उनसे साक्षात्कार किया था. कई फोटो लिए थे.
शाम को मैं शहर में हुए एक साहित्यिक आयोजन में चली गई. लौटी तो पति ने फिर याद दिलाया कि तुमने खय्याम जी से बात की थी, क्यों नहीं वह बातचीत किसी पत्रिका को भेज देती. मैंने पत्रिका में काम कर रहे अपने पत्रकार मित्र को फोन किया और बाद में खय्याम से हुई मेरी बातचीत के कुछ अंश और दो फोटो मेल कर दिए. थोड़ी देर बाद ही पत्रिका से फोन आया कि आपने कैसे और कहां से जाना कि खय्याम नहीं रहे. हमारे अखबार में तो कहीं से भी खय्याम की ऐसी कोई खबर नहीं आई है. मैंने कहा मुझे मेरे पति ने बताया है. आप उनसे बात करिए. मैंने फोन उन्हें पकड़ा दिया. वे कहते रहे कि उन्होंने यह खबर टीवी पर देखी है.
‘सुबह खबर आती खय्याम नहीं रहे. उनके साथ मेरा फोटो होता. लोग मुझ पर हंसते और कहते बहुत चाव है छपने का’
मैं समझ गई कि जरूर कहीं कुछ गड़बड़ हो गई है. मैंने टीवी ऑन किया. लगातार एक घंटे तक देखती रही पर खय्याम से जुड़ी कोई भी खबर नजर नहीं आई. मुंबई में रह रहे अपने भतीजे को फोन किया. उसे भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. बात साफ हो चुकी थी कि खबर सच नहीं थी. पति ने शायद खय्याम पर कोई कार्यक्रम देखा था और आइडिया लगा लिया कि खय्याम नहीं रहे. वे बता रहे थे कि कार्यक्रम में बार बार उनके लिए ‘थे’ बोला जा रहा था. तो जो बीत गया उसकी बात तो ‘थे’ से ही की जाएगी न. भूतकाल में ही होगी. उनके तर्कों से अब हालत मेरी खराब थी. मैंने अखबार के दफ्तर फोन करके कहा कि लगता है खबर गलत है. वहां से जवाब था कि हां गलत ही है. हम कब से टीवी न्यूज देख रहे हैं. न कोई खबर न कोई पट्टी न कुछ और. अगर ऐसा कुछ होता तो चैनलों पर न्यूज बार-बार दिखाई जाती. यह बड़ी खबर है उनके लिए.
बाद में पत्रकार मित्र ने कहा जब तक आंखों से देख न लो कानों से सुन न लो तब तक खबर पर भरोसा मत करो. उसने सवाल किया, ’अगर यह खबर छप जाती तो?’ पत्रिका के संपादक की समझदारी की वजह से यह खबर नहीं छपी. छप जाती तो… सुबह खबर आती खय्याम नहीं रहे. उनके साथ मेरा फोटो होता. लोग मुझ पर हंसते और कहते बहुत चाव है छपने का. छपने के लिए किसी को मरने के पहले ही मार दिया आपने. पत्रिका की साख पर बट्टा लगता सो अलग. बेटी कह रही है आपको ऐसी खबरें कन्फर्म करनी चाहिए. ऐसी गलती कैसे हो गई आपसे.
सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करने का नतीजा भुगत रही हूं. रात भर नींद नहीं आई. करवटें बदल रही हूं. जो होते-होते रह गया, उसको लेकर बेचैन हूं कि अगर हो ही गया होता तो क्या होता. मैं अपनी बेवकूफी और मूर्खता को यह सोचकर भुलाने की कोशिश कर रही हूं कि अब खय्याम जी की उम्र लंबी ही होगी. मां कहा करती हैं कि किसी की मृत्यु की झूठी खबर उड़े तो समझो कि उसकी उम्र बढ़ गई है.