हमें देर हो रही है, पति ने सुबह 8.30 बजे कन्धों से हिलाते हुए मुझे जगाने के अपने चौथे प्रयास में ज़ोर से मेरे कान के पास आकर कहा। मैंने अपनी एक आँख खोली और अपनी आरामदायक जयपुरी रज़ाई में दुबकने से पहले उन पर एक नज़र डाली। मेरे पति ने दीर्घ श्वास भरते हुए कहा कि डॉक्टर अपाइंटमेंट कैंसल कर देंगे। मैं पलटी और फिर और ज़्यादा गहरे से बिस्तर में सिमट गयी।
वर्षों की अनिद्रा और नतीजतन रोज़ नींद की गोली ने कुछ ऐसा कर दिया है कि मैं भोर होते ही सो पाती हूँ। वास्तव में हम एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक से मिलने के लिए आज सुबह 9.30 बजे इलाज के परामर्श के लिए जाने वाले थे। मेरे पति की तरह मेरे लिए चिन्तित उनके एक दोस्त ने डॉक्टर से अपॉइंटमेंट तय करवायी थी और हमारे ही साथ जाने वाला था। जैसे ही पति वहाँ से गये, मैं अलसायी आँखों के साथ लगभग लहराते हुए उठी। मैं सीधे वाशरूम में घुसी और वस्त्र बदलकर जैसे ही बाहर पहुँची, कार झटके से सामने आ खड़ी हो गयी।
मैं तुम्हें एक रहस्य बताऊँगी। बहुत कुछ है कि मैं अपनी अनिद्रा पर व्यथित होने का दिखावा करती हूँ, मुझे यह पसन्द है। रात मेरी है, जो मर्ज़ी मैं करूँ! पढऩा, लिखना, संगीत, कविता, कल्पना की उड़ानें, यह आनन्द से भरपूर है।
कार रुकी, हम क्लीनिक के भीतर पहुँचे, जहाँ डॉक्टर के जूनियर ने हमारा स्वागत किया। जैसे ही हम बैठे और प्रारम्भिक जानकारी दी। उसने कहा- ‘पृष्ठभूमि बताएँ।’ आयु, पेशा, रोग की हिस्ट्री जैसी तमाम जानकारियाँ दर्ज कर ली गयीं, तब मेरे पति ने गला खँखारते हुए कहा- ‘वह तब गुस्सा हो जाती हैं, जब मैं वाहन चलाते हुए फोन पर बात करने लगता हूँ या जब संगीत की ध्वनि बहुत ऊँची होती है।’ जूनियर लिखते हुए बुदबुदाया- ‘इसमें कुछ भी गलत नहीं।’ अपनी बात पर ज़ोर देने के लिए मेरे पति ने दोहराया- ‘वह तनाव से पीडि़त हैं, जब भी मैं थोड़ा तेज़ गाड़ी चलाता हूँ। वह बेचैन हो जाती हैं।’ जूनियर ने उनकी तरफ सख्ती से देखते हुए कहा- ‘तेज़ ड्राइविंग कुछ लोगों को तनाव में ला सकती है। यह सामान्य बात है।’
मेरे पति ने अपनी बात जारी रखी- ‘वह पार्टियों और शादियों में शामिल होना पसन्द नहीं करतीं।’ जूनियर ने लिखना बन्द कर दिया और मेरे पति को आँख मारते हुए देखा- ‘इसमें कुछ भी गलत नहीं है; कुछ लोग ऐसे होते हैं।’ मैंने कुछ दया भाव से अपने पति की तरफ देखा। कुछ भी उनके हिसाब से नहीं जा रहा है। मैं उनके कान में कहना चाहती थी कि वह हमारे डॉक्टर के पास जाने से पहले बहादुर बनें और कुछ संयम रखें। इस तरह यह यह सिर्फ अप्रिय विवरण भर था। भावुकतापूर्ण कथा सत्र कहीं और होगा; लेकिन मैंने खुद को रोक लिया। ज़ाहिर है, बेचारे मेरे पति ने डॉक्टर से इस अपॉइंटमेंट को अपने लिए एक अवसर के रूप में देखा, ताकि वह अपनी सनक-भरी सोच को स्थापित कर सकें। अपनी सारी परेशानियों की तुलना करने के लिए उन्हें कोई भी छोटा कारण चाहिए था। यहाँ तक कि कोइ जूनियर भी। उन्होंने बहुत बहादुरी से अपनी बात कहनी जारी रखी- ‘बच्चे जब आपस में झगड़ते हैं, तो वह बहुत परेशान हो जाती हैं।’ इस बार हम दोनों ने ही उनकी तरफ क्रोध भरी निगाह से देखा। जैसे ही डॉक्टर ने हमें अपने चैंबर में बुलाया, मेरे पति तुरन्त नीचे बैठ गये।
डॉक्टर ने हमें बैठाया और अपना ध्यान मेरी तरफ किया। रिकॉर्ड किये गये विवरण को पढऩे के बाद उन्होंने मुझसे पूछा- ‘आप क्या करती हैं?’ मैंने जवाब दिया- ‘मैं कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस की प्रमुख हूँ।’ डॉक्टर ने कहा- ‘वो क्या होता है?’ मैंने विस्तार से ब्रांड मैनेजमेंट के बारे डॉक्टर को बताना शुरू किया; लेकिन मेरी बात बीच में काटकर बोले- ‘सब लिफाफेबाज़ी (बकवास) है जी।’ मैंने सवालिया निगाह से उनकी तरफ देखा, वह मेरी बीमारी या मेरे पेशे पर निर्णय सुना रहा था? उसने कहा- ‘ठीक है, हम यहाँ कोई भी ब्रांड मैनेजमेंट नहीं करते हैं।’ इस बार भौचक्का रहने की मेरी बारी थी (निश्चित रूप से, उससे यह यह उम्मीद नहीं थी। क्या वह डॉक्टर नहीं था?)। उसने कहना जारी रखा- ‘हम जिस पर विश्वास करते हैं और अभ्यास करते हैं, वह शुद्ध विज्ञान है।’ (निश्चित ही, और मैं चाहती थी कि वह अपनी साइंस से मुझे स्वस्थ करे; न कि कॉरपोरेट मैनेजमेंट, जिसमें मुझे निद्रा रोग दिया था।) अब तक मेरे पति एकदम शान्त बैठे थे, और इससे मैं उलझन में थी।
यहाँ कोई ब्रांड प्रबन्धन नहीं, मनोचिकित्सक ने दोहराया। शायद मुझे सहज करने के लिए! मैं हलके से मुस्कुरायी; बिना यह जाने कि मुझे क्या कहना चाहिए? वह मेरी ओर झुक गया और एक ऊँगली हिलायी- ‘हम जो अभ्यास करते हैं वह शुद्ध विज्ञान है; सूर्य के प्रकाश जैसी शुद्ध।’ ज़रूर! मैंने अपना सिर हिलाते हुए जल्दी से उसे आश्वस्त करने की कोशिश की।
मेरे पास कोई जादुई इलाज नहीं है। (मैं विज्ञान के व्यक्ति से किसी भी जादू की उम्मीद नहीं कर रही थी। मैं आँखों से ही उसकी बात को सहमति दी।) उसने मुझे चेताया और शायद चुनौती दी कि मैं विदेश में इलाज करवा लूँ- ‘कोई इलाज नहीं, यहाँ नहीं; विदेश में नहीं।’ मैं अपनी कुर्सी ठिठककर बैठी रह गयी; पराजित सी! देखो, मैं वह हूँ, जिसे मदद की ज़रूरत है। …मैं कहना चाहती थी, यह मेरे बारे में नहीं होना चाहिए।
पूरे सत्र के दौरान, मनोचिकित्सक ने मेरे पति को नज़रअंदाज़ कर दिया था, जो अब तक अपनी शिकायतों को रखने की कोशिश कर रहे थे। यह महसूस करते हुए कि अप्वाइंटमेंट जल्द ही खत्म होने वाला था, वह अन्दर ही अन्दर घुट रहे थे। यह सिर्फ अनिद्रा नहीं थी; जिससे इलाज की मुझे ज़रूरत थी। मुझे स्पष्ट रूप से एक पेशेवर से बात करने की सख्त ज़रूरत थी; ताकि वह मुझे उस ठप्पे से बाहर निकाल सके, जिसमें मुझे समाज विरोधी संज्ञा दे दी गयी थी। मेरे खिलाफ उसके सामाजिक कार्यों या शादियों में शामिल नहीं होने या रिश्तेदारों से नहीं मिलने पर क्रोध जताने का कभी वांछित असर नहीं हुआ था; उलटे इसके विपरीत ही हुआ था। मैं पूरी ताकत लगाऊँगी और जाने से मना कर दूँगी।
अब यदि मनोचिकित्सक मेरे लम्बे समय तक पीडि़त होने की मेरे पति की शिकायतों का समर्थन करता है, तो निश्चित रूप से मेरे पास अपने तरीकों की त्रुटि को देखने और उन्हें दूर करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। जैसे ही पति के मुँह से मेरी शिकायतों का पिटारा निकला, उनकी आवाज़ तब तक नहीं रुकी जब तक सब कुछ कह नहीं दिया- ‘डॉक्टर साहब! वह बहुत जल्दी तनाव में आ जाती हैं। अगर मैं तेज़ी से गाड़ी चलाता हूँ, या अगर लडक़े लड़ रहे होते हैं।’ अब तक मुझे एहसास हो गया था कि यह उनके लिए भी अच्छा नहीं रहेगा। मैं मुस्कुराते हुए, अपनी बाहों को बाँधते हुए इत्मीनान से आराम की मुद्रा में कुर्सी पर बैठ गयी, जैसे कोई अच्छा निश्चिन्त दर्शक बैठता है। मनोचिकित्सक ने मुडक़र मेरे पति को अविश्वास से देखा, उनकी नज़र मेरे पति को डगमगा देने के लिए काफी थी। उसकी ओलती बन्द ही हो गयी, जब मनोचिकित्सक ने कहा- ‘क्या आपको पता है कि बाहर (विदेश में) वे बहुत समझदार हैं? यही कारण है कि वे किसी को भी अकेले नहीं जाने देते, सिवाय रोगी को डॉक्टर के पास परामर्श लेने के जाने के। वे ध्यान नहीं भटकाते। यहाँ तो कोई भी मरीज़ के साथ-साथ चल सकता है।’ जब मैं इस सारी बातचीत का आनन्द ले रही थी, उसका जूनियर भीतर आया और उसे अन्य मरीज़ों के साथ अप्वाइंटमेंट की याद दिलायी। अनिच्छा के साथ उन्होंने मेरे पति को छोड़ हमारी तिकड़ी के तीसरे सदस्य, हमारे दोस्त को देखा। राहत से भरे मेरे कमज़ोर पड़ गये पति ने अपने माथे का पसीना पोछने के लिए जेब से रूमाल निकाल लिया। उसके बाद उनके मुँह से एक शब्द नहीं निकला।
डॉक्टर ने मेरे दोस्त की तरफ रुख किया- ‘तुम क्या करते हो?’ दोस्त ने जवाब दिया- ‘मैं जीवन कौशल प्रशिक्षक हूँ।’ उन्होंने कहा- ‘हाँ, बहुत खुशी हुई। लेकिन इसका क्या फायदा? आप अपने दोस्त को कोई भी जीवन कौशल प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं; वह सो नहीं सकती।’ यह कहते डॉक्टर ने मेरी तरफ इशारा किया। मेरी मित्र ने अपनी शॄमदगी छिपाने की कोशिश की; लेकिन समझदारी दिखाते हुए कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने हमें कुछ और व्याख्यान दिये, मेरे लिए कुछ नुस्खा लिखा और हमें विदा कर दिया। जब हम घर लौटे, तो मेरे पति बहुत शान्त और हतोत्साहित थे। जिसे उन्होंने आसान समझ लिया था, वो अखरोट उनके लिए बहुत कठोर साबित हुआ था। और यह तो पत्नी को वश में करने के लिए उनकी तुरुप का पत्ता था; लेकिन अफसोस वह मौका चूक गये थे।
‘इतनी चिन्ता मत करो, दवा काम करेगी, यह कहकर मैंने उन्हें खुश करने की कोशिश की, मन-ही-मन हॢषत होते हुए कि मेरी रातें अभी भी सुरक्षित थीं; लेकिन मेरी असामाजिक गतिविधियाँ बगैर सज़ा के जारी रह सकती हैं। घर पर अब मेरे खिलाफ कम ही युद्ध होंगे और मेरी खोई नींद मेरी मानसिकता को ग्रहण लगाने के लिए जल्द ही वापस आने वाली नहीं थी। मेरे दयनीय पति का सम्भवत: एक ज़्यादा बड़े अखरोट से सामना हो गया था! एक मनोचिकित्सक से मदद की उन्हें शायद मुझसे ज़्यादा ज़रूरत थी।