अकाली दल का गठन 14 दिसंबर 1920 को शिरोमणि गुरु द्वारा प्रबंधक कमेटी की ‘टास्क फोर्स’ के रूप में किया गया था। शिरोमणि गुरु द्वारा प्रबंधक कमेटी सिखों की प्रतिनिधि सभा है। अकाली दल के पहले अध्यक्ष सुरमुख सिंह झभल बने थे। उन्होंने 1937 में प्रोवेंशियल चुनावों में जीत दर्ज की। उन्होंने 10 सीटें जीती। इसके बाद 1946 में हुए चुनावों में अकाली दल ने 22 सीटें जीतने में सफलता पाई और खिज़र हयात खान टिवाना के नेतृत्व में बनी सरकार में भागेदारी की। उस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल थी।
अकाली दल ने पंजाबी भाषी इलाकों को एक साथ इकट्ठा करने की मांग को लेकर 1950 में ‘पंजाबी सूबा’ आंदोलन की शुरूआत की। पहली नवंबर 1966 को राज्यों के पुनर्गठन के बाद पंजाब में 1967 में पहली अकाली सरकार गुरनाम सिंह के नेतृत्व में बनी। 1970 में प्रकाश सिंह बादल पहली बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने। बादल 1977 से 1980 तक भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा वे 1997 से 2002, 2007 से 2012 और फिर 2012 से 2017 तक पंजाब के मुख्यमंत्री बने। 1994 में पार्टी ने अपने दरवाजे उन लोगों के लिए खोल दिए जो सिख नहीं थे। इससे पहले यह सिर्फ सिखों की पार्टी थी। कालांतर में अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने न केवल हिंदू, मुसलमान और ईसाइयों को पार्टी में लिया बल्कि उन्हें चुनावों में टिकट भी दिए। पार्टी को 2017 के चुनावों में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। वह विधानसभा की मात्र 15 सीटें ही जीत पाई। सितंबर 2018 से पार्टी में कई प्रकार की बगावत और निलंबन देखने को मिले।
एक तरफ जहां पार्टी अपने अस्तित्व में आने पर 100 साल होने का जश्न मनाने की तैयारी कर रही है वहीं यह एक बड़े विघटन की और भी बढ़ रही है। यह स्थिति मौजूदा और एक पूर्व सांसद के निलंबन के कारण बनी है। इससे पूर्व एक वरिष्ठ टकसाली नेता सेवा सिंह सेखवां को भी पार्टी से बाहर कर दिया गया है। उनकी शिकायत है कि पूर्व उपमुख्यमंत्री और मौजूदा पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने दल को इसकी मूल भावना से दूर कर दिया है। उनकी दलील है कि इसी कारण प्रकाशसिंह बादल और उनक बेटे सुखबीर बादल ने 2015 में बेअदबी के मामलों में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को क्षमा दे दी थी। कांग्रेस इन मुद्दों का इस्तेमाल शिरोमणि अकाली दल के खिलाफ करने में सफल हो गई और अकाली 2017 का चुनाव हार गए। हालांकि सुखबीर बादल में एक अच्छे प्रबंधक के गुण हैं और वह जनसभाओं में ज्य़ादा से ज्य़ादा भीड़ इकट्ठा करने में माहिर हैं पर अब यह हथियार पुराना हो गया है। इसे बदलने की ज़रूरत है। असल में नई बनी पार्टी आम आदमी पार्टी ने बादल के दल को गंभीर चुनौती पेश करते हुए 2017 के विधानसभा चुनावों में अकालियों को पीछे छोड़ते हुए विधानसभा में कांग्रेस के बाद दूसरा स्थान हासिल कर लिया। अकाली तीसरे स्थान पर चले गए।
इससे पूर्व अकाली-भाजपा गठबंधन की नींद उस झटके से खुली जब 2014 में मतदाताओं ने उन्हें रेत की अवैध खानों और नशीले पदार्थों के मुद्दे पर अस्वीकार कर दिया। इसी कारण ‘आप’ ने पंजाब में चार लोकसभा सीटें जीत ली। अकाली भी चार सीटें ही जीत पाए।
कोई और चारा न रहने की स्थिति में अकालियों ने सिरसा के बाबा राम रहीम को क्षमा कर दिया। यह क्षमा अकालियों के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने दी थी। असल में यह माफी इस एवज में दी गई थी ताकि चुनाव में डेरा पूरी तरह अकाली दल की मदद करे। जब यह चल रहा था लगभग उसी समय एक और घटना घट गई। फरीदकोट के बुर्ज जवाहर सिंह वाला से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की एक बीड़ चोरी हो गई।
यह घटना पहली जून 2015 की है। इस घटना में ‘डेरा’ समर्थकों का हाथ होने की अफवाहें चारों और फैल गईं। लेकिन पंजाब पुलिस की टीम ने जो इस घटना की जांच कर रही थी उसने इस अफवाह को पूरी तरह नाकारा साबित किया। इसके बाद 24 और 25 सितंबर 2015 को पुलिस को फिर से सक्रिय होना पड़ा। इस बार मामला दो पोस्टरों का था। ये पोस्टर उसी गांव में मौजूद पीर धोडा की समाधि और साथ के बडग़ाड़ी में लगाए गए थे। इन में सिखों के बार में गंदी भाषा लिखी गई थी और पुलिस को ‘बीड़’ की तलाश करने की चुनौती दी गई थी। फिर 11 अक्तूबर 2015 को बडग़ाड़ी में गुरु ग्रंथ साहिब के पन्ने फटे मिले। इस पर भारी विरोध प्रदर्शन हुए। सबसे ज्य़ादा विरोध कोटकपूरा और बहबलकलां में हुए। यहां पुलिस ने ताकत का इस्तेमाल किया जिसमें दो सिख मारे गए।
पवित्र ग्रंथ के अपमान के मामले में पूरा संदेह डेरा सच्चा सौदा के लोगों पर था पर पुलिस की जांच में ये बातें कभी स्पष्ट नहीं हुई। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद डीआईजी रणबीर सिंह खतड़ा के नेतृत्व में पंजाब पुलिस का एक विशेष जांच दल गठित किया गया जिसने इस मामले में ‘डेरा’ के प्रमुख लोगों की भूमिका को स्थापित किया। इस से मालवा क्षेत्र के सभी सिखों में गहरा गुस्सा फैल गया। ध्यान रहे मालवा का यह इलाका अकालियों का सबसे बड़ा ‘वोट बैंक’ रहा है।
सही बात यह है कि पवित्र ग्रंथ के अपमान की घटनाएं अकालियों के शासन काल में हुई थी और अकाली इस मामले में अपराधियों को पकड़ नहीं पाए। चुनावों में यह बात उनके खिलाफ चली गई। बाद में अकाली नेताओं को डेरे में बुलाया गया और वहां डेरा प्रेमियों से अकालियों को समर्थन देने का निर्देश दे दिया गया। इतना ही नहीं बल्कि सरकार के नूरमहल दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के आशुतोष महाराज के अंतिम संस्कार के लिए कोई प्रयास नहीं किया जो कि डाक्टरों के अनुसार मर चुके हैं। ऐसा केवल उनके शिष्यों को खुश करने और उनकी वोटें लेने के इरादे में किया गया। इनके अलावा नामधारी और राधास्वामी सत्संग डेरा ब्यास के लोगों को भी खुश रखने की कोशिश की गई।
इन सबसे बावजूद अकाली दल केवल 15 सीटों तक सिमट कर रह गया। अकालियों का इतना बुरा प्रदर्शन इससे पहले कभी नहीं हुआ था। 2017 की पराज्य के बाद भी अकालियों को राजनैतक रूप से नुकसान होता रहा। कांग्रेस ने न्यायामूर्ति रणजीत सिंह की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। हालांकि अकालियों ने इस आयोग का वहिष्कार किया पर इसने उनका कहीं अधिक नुकसान कर दिया। इसने डेरा अकाली दल और पवित्र ग्रंथ साहिब का अपमान को एक धागे में पिरो दिया। अकालियों और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस मुद्दे पर विधानसभा में हुई बहस में हिस्सा नहीं लिया, पर कांग्रेस इस रपट को आम लोगों तक पहुंचाने में सफल हो गई। इस तरह शिरोमणि अकाली दल लगातार एक के बाद सब गलतियां करता गया।
शिरोमणि अकाली दल में बगावत
बाद में पार्टी में एक बगावत सी हो गई। आम तौर पर अपने नेताओं की बात आंख बंद कर मानने वाले सीनियर नेता पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल से प्रश्न पूछने लगे कि उन्होंने विधानसभा में बहस में हिस्सा क्यों नहीं लिया जबकि यह मामला सिखों के सबसे ज्य़ादा महत्वपूर्ण था। यह सही है कि इन नेताओं ने प्रकाश सिंह बादल का सम्मान करते हुए उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। पर कई नेताओं ने जिनमें टकसाली नेता भी शामिल थे, विरोधी आवाज़ें उठानी जारी रखी। पार्टी के एक सांसद व वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींढसा ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा पार्टी के एक और सांसद रणजीत सिंह ब्रहमपुरा को पार्टी से बाहर कर दिया गया। उनके साथ पूर्व सांसद रत्न सिंह अजनाला, पूर्व मंत्री सेवा सिंह सेखवां और दो पूर्व विधायक अमरपाल सिंह अजनाला और रविंद्र सिह ब्रहमपुरा को भी पार्टी से निकाल दिया गया। इन्हें पार्टी से निकाल कर प्रकाश सिंह बादल ने फिलहाल के लिए पार्टी में विद्रोह को दबा दिया।
पवित्र ग्रंथ अपमान मामले में कोई पुख्ता कार्रवाई न होने और 2015 में अकाल तख्त से डेरा प्रमुख को ईश- निंदा मामले में क्षमा देने से शिरोमणि अकाली दल को गहरी चोट पहुंची। पिछले दिनों सुखबीर सिंह बादल के विधानसभा क्षेत्र जलालाबाद के 30 कार्यकर्ताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
पार्टी के लोगों में सबसे ज्य़ादा रोष सितंबर से शुरू हुआ जब राज्य सभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। हालात तब और खराब हुए जब बादल ने ‘बाडग़ाढ़ी मोर्चो’ का विरोध किया। मोर्चा पवित्र गं्रथ साहिब के अपमान मामले और बहबल कलां पुलिस फायरिंग में मारे गए दो युवाओं के लिए न्याय की मांग कर रहा था।
अपनी स्थिति को बचाने के विफल प्रयास में शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस पर कथित तौर पर कट्टरपंथी तत्वों के साथ मिलकर पड्यंत्र करने और राज्य में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को खराब करने के आरोप लगाते हुए पंजाब के राज्यपाल वीपी सिंह बदनोर को सरकार भंग करने को कहा है। निरंकारी सत्संग में हुए हमले जिसमें तीन लोग मारे गए और कई घायल हुए हैं , इस हमले ने कांग्रेस सरकार और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ शिरोमणि अकाली दल को ताजा बारूद दिया है। गर्वनर को दिए अपने ज्ञापन में सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि कांग्रेस सिर्फ लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने की कोशिश ही नही कर रही बल्कि अकाली दल और सिख संस्थाओं जैसे श्री अकाल तख्त और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को कमज़ोर करने के लिए खतरनाक खेल भी खेल रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वाति मालिक ने यह भी कहा कि राज्य में एक बार फिर पहले की तरह ‘सांप्रदायिक भावनाओं को उत्तेजित करके शंाति को नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने कहा,”हम पंजाब को अंधेरे युग में जाने की इजाज़त नही दे सकते’’।
हालांकि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अकाली दल के सरक्षंक प्रकाश सिंह बादल का उपहास यह कह कर किया है कि ” वे कोटकपुरा और बेहबल कलां में हुई गोलीबारी मामले में चल रही एसआईटी की जांच से लोगों का ध्यान हटाने के लिए और राजनीतिक लाभ के लिए यह सब कर रहे हैं।
बादल के इस बयान पर कि एसआईटी मुख्यमंत्री के अधीन कार्य कर रहा है ,पर प्रतिक्रिया देते हुए कैप्टन ,अमरिंदर सिंह ने कहा कि सरकार का काम विधानसभा की सर्वसम्मति के निर्णय का पालन करने और विशेष जांच दल के गठन के बाद ही समाप्त हो गया था।
एक बयान में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि विशेष जांच दल में योग्य सक्षम अधिकारी शामिल हैं और वे किसी को भी सम्म्न देने और पूछताछ के लिए बुलाने के लिए स्वतंत्र हैं। विशेष जांच दल की चल रही जांच और और उसकी आने वाली रिर्पाट में सरकार की कोई भी भूमिका नही है।
फिर से प्रयास
खुद को फिर से प्रासंगिक बनाने के लिए शिरोमणि अकाली दल (शिअद) शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की मदद से सिख राजनीति को पुनर्जीवत करने की कोशिश कर रहा है। अकाली दल ने हमेशा धर्म और राजनीति को एक साथ खेलने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने विभिन्न तख्तों के जत्थेदारों का इस्तेमाल किया है। पिछले विधानसभा चुनावों में मिली बुरी हार के बाद शिरोमणि अकाली दल मंच पर दोबारा वापिस आने की कोशिश कर रहा है। पंथक मार्ग पर चलने के बाद अब यह एसजीपीसी के साथ मिलकर काम कर रहा है। टकसाली नेताओं की बगावत को दबाने के लिए उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों का आरोप लगाया गया है। शिरोमणि अकाली दल ने एसजीपीसी के चुनावों में माझा क्षेत्र के पांच सदस्यों को शामिल करके उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचा दिया। इस तरह दल ने इन चुनावों में अपनी सेंध लगाई।
एसजीपीसी धूरी के पूर्व अकाली विधायक गोविंद सिंह लोंगोवाल के नेतृत्व में पार्टी के धार्मिक एजेंडे को ही चला रही है। शिरोमणि अकाली दल और एसजीपीसी शुरू से ही धर्म और राजनीति को इक_ा कर रहा है। अपनी विश्वसनीयता को फिर से बनाने के लिए शिरोमणि अकाली दल और एसजीपीसी अगले साल गुरू नानक देव की जयंती को भव्य तरीके से मनाने की तैयारी कर रही है। पार्टी सिखों के एक और पसंदीदा मुद्दे: द करतारपुर गलियारा पर भी बातचीत कर रही है। 2019 के संसदीय चुनावों की दौड़ के लिए अकाली दोबारा पंथक राजनीति में लौट आए हैं।
सिख समुदाय का एकमात्र प्रतिनिधि बनना केवल शिरोमणि अकाली दल का लक्ष्य नहीं बल्कि कांग्रेस भी इसी प्रयास में है। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी ऐसी ही कोशिश कर रहे है।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने विरोधियों प्रकाश सिंह बादल, सुखबीर बादल और अकाली दल के अन्य नेताओं पर सबसे घातक प्रहार किया। यह प्रहार पवित्र गं्रथों की बेअदबी के मामलों की जांच कर रहे जस्टिस (सेवानिवृत) रंजीत सिंह की अध्यक्षता वाले जांच आयोग की रिपोर्ट के रूप में आया है। मुख्यमंत्री ने बादल के वित्तीय मामलों को नहीं छेड़ा उन्होंने रिपोर्ट को एक ऐसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जिससे अकाली दल का बचना मुश्किल हो गया है।
एक नए मोड़ में भले ही पवित्र गं्रथों की बेअदबी की घटनाओं में अकाली दल की माफी नहीं आई है और डेरा प्रमुख को माफी के विवादास्पद विवाद में बदलाव आया है। एसजीपीसी अध्यक्ष और अकाली दल के कुछ वरिष्ठ नेता (बादल के वफादार) कह रहे हैं कि डेरा प्रमुख को माफी एक गलती थी। पार्टी के बुद्धिमान लोगों का मानना है कि गलती की स्वीकृति के बाद मतदाताओं से दोबारा अच्छा संपर्क बन सकता है। एक बार अच्छा संपर्क बनने के बाद पार्टी के लिए ‘एंटी-इंकबैसी’ के कारणों को स्पष्ट करना आसान होगा । कांगे्रस के खिलाफ और 2019 के आम चुनावों से पहले अपने चुनाव घोषणा पत्र को बेहतर बनाना भी आसान होगा।
एसजीपीसी के साथ-साथ शिरोमणि अकाली दल भी नवंबर 2019 में सिख धर्म के संस्थापक गुरू नानक देव के 550 वें प्रकाशोत्सव सामारोह को मनाने के लिए कार्य कर रहे हैं। पार्टी इस आयोजन का प्रयोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर रही है। यह प्रयास कितना सफल होगा यह तो समय ही बताएगा। अकाली दल अभी जटिल स्थिति में है क्योंकि कांग्रेस सरकार भी इस सामारोह को मनाने की अपनी योजनाओं से सिख समुदाया को लुभा रही है। हालांकि वर्तमान उथल-पुथल एसजीपीसी और शिरोमणि अकाली दल को क्या आकार देगी यह केवल समय ही बताएगा।