देश में बेरोज़गारों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। झारखण्ड भी इससे अछूता नहीं है। यहाँ सरकार एक नीति बनाती है, तो दूसरी नीति को समाप्त करती है। इन सबके साथ अदालत में कानूनी दाँव-पेच भी चलता है, जिनके बीच राज्य के युवाओं का भविष्य पिस रहा है। सबसे अधिक परेशानी उन युवाओं को हो रही, जो सरकारी नौकरी की अहर्ता के लिए तय उम्र सीमा को पार कर चुके हैं।
7.5 लाख से अधिक बेरोज़गार पंजीकृत
राज्य के श्रम विभाग के रोज़गार कार्यालय में बेरोज़गारों का पंजीकरण होता है। राज्य में कुल 7,42,757 बेरोज़गार युवा हैं। इनमें 5,17,339 पुरुष और 2,25,418 महिलाएँ हैं। सरकारी नौकरी की ज़्यादातर रिक्तियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक अहर्ता इंटर व ग्रेजुएट ही माँगी जाती है। इसके अलावा तकनीकी कोर्स करने वालों के लिए रिक्तियाँ निकलती हैं। राज्य में 2,55,490 इंटर पास युवा हैं। वहीं 2,37,466 ग्रेजुएट यानी स्नातक पास हैं। जबकि पोस्ट ग्रेजुएट 44,923, डॉक्टरेट 77, आईटीआई पास 50,399 और डिप्लोमा होल्डर 58,081 युवा हैं। जानकारों का कहना है कि राज्य में रोज़गार कार्यालय में पंजीकृत युवाओं से कहीं अधिक बेरोज़गार युवा हैं। क्योंकि ज़्यादतर युवा पंजीकरण नहीं कराते हैं।
समय पर परीक्षा नहीं
झारखण्ड के गठन को 20 वर्ष हो चुके हैं। तबसे झारखण्ड लोक सेवा आयोग ने अभी तक केवल छ: बार सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन किया है। इनमें भी चार परीक्षाएँ विवाद में हैं। किसी पर जाँच चल रही है, तो कोई मामला अदालत में फँसा है। अब सरकार ने 2017 से 2020 तक के लिए एक साथ चार परीक्षाएँ आयोजित करने की योजना तैयार की है। इसी तरह झारखण्ड राज्य कर्मचारी चयन आयोग भी समय पर परीक्षा आयोजित नहीं कर पाता है। स्कूलों में कलर्कों की बहाली के लिए 20 वर्ष में एक भी परीक्षा आयोजित नहीं हुई है। सचिवालय, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत विभिन्न विभागों के लिए भी समय पर परीक्षाएँ आयोजित नहीं हुई हैं।
फँसी हुई हैं 16 हज़ार नियुक्तियाँ
रघुवर सरकार ने 2016 में राज्य के युवाओं के लिए नियोजन नीति बनायी। सभी 24 ज़िलों में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरी स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित किया गया। हेमंत सरकार ने पिछले दिनों इस नीति को रद्द करके इस नीति के तहत शुरू की गयी सारी नियुक्तियों पर रोक लगा दी। नतीजा यह हुआ कि राज्य में लगभग 16 हज़ार नियुक्तियाँ फँस गयीं। सरकार स्थानीय नीति को फिर से परिभाषित करने की तैयारी में है। जानकार कहते हैं कि जब स्थानीय नीति फिर से परिभाषित होगी, तो एक बार फिर रिक्तियों के लिए चल रही प्रक्रियाओं पर संकट आयेगा।
नियुक्ति प्रक्रिया में लगता है समय
राज्य में नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकालने, आवेदन लेने, स्क्रूटनी करने, परीक्षा व साक्षात्कार आदि प्रक्रियाएँ पूरा करने में कम-से-कम एक साल लग जाता है। इन सबके बीच युवा कई मामलों में अदालत का दरवाज़ा भी खटखटाते हैं, जिस वजह से पेच और फँस जाता है। राज्य में नीतिगत निर्णय में बदलाव और प्रक्रिया में देरी का खामियाज़ा युवाओं को कैसे भुगतना पड़ता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया का लटकना है। झारखण्ड राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा हाई स्कूल में 17,752 पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 2016 में रिक्तियाँ निकाली थीं। परीक्षा हुई, परिणाम आया, अभ्यार्थियों का चयन भी हुआ और मामला कोर्ट में पहुँच गया। चार साल बीत गये। आयोग ने इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, जीव विज्ञान, रसायन शास्त्र, हिन्दी और अंग्रेजी विषय का सर्टिफिकेट वेरिफिकेशन भी कर लिया है। लगभग नौ हज़ार से अधिक अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र देने की तैयारी भी चल रही थी, तभी सरकार ने नियोजन नीति रद्द कर दी और सारे शिक्षकों की नियुक्ति भी अटक गयी।
डेढ़ लाख से अधिक पद हैं खाली
हेमंत सरकार ने 2021 को नियुक्ति वर्ष घोषित किया है। सरकार सभी विभागों में रिक्तियों का आकलन कर रही है। कार्मिक विभाग को रिक्तियों का आकलन करने की ज़िम्मेदारी मिली है। प्रारम्भिक जानकारी के अनुसार, अभी तक सबसे अधिक रिक्तियाँ शिक्षा विभाग में हैं। प्राथमिक शिक्षकों के 22 माध्यमिक शिक्षा केंद्रों में 16,000 और उच्च शिक्षा में 2000 पद खाली हैं। कल्याण विभाग में एक हज़ार, कृषि में छ: हज़ार, ग्रामीण विकास में दो हज़ार, वन विभाग में दो हज़ार पद खाली हैं। सूत्रों का कहना है कि कार्मिक विभाग द्वारा रिक्तियों का लेखा-जोखा लेने की प्रक्रिया जारी है। सरकार के अधीन 32 विभाग हैं, जिनमें विभिन्न श्रेणियों के लगभग 1.60 लाख पद रिक्त होने की उम्मीद है।
राज्य के युवा हैं सशंकित
सरकारी नौकरी मिलेगी या नहीं इसे लेकर राज्य के युवा सशंकित हैं। जानकारों का कहना है कि नियम के तहत एक विभाग में एक साथ सभी पदों को कभी नहीं भरा जाता है। अन्तराल पर नियुक्तियाँ होती हैं, जिससे सेवानिवृत्ति और नियुक्ति के बीच सामंजस्य बना रहे। ऐसी स्थिति में नौकरी की आस लगाकर बैठे युवाओं के लिए राह आसान नहीं है। उम्मीद के मुताबिक नौकरी सृजित हो पाना और युवाओं को मिल पाना कम सम्भव होता है। साथ ही समय पर परीक्षा आयोजन न होने के कारण उम्र की सीमा एक बड़ी बाधा बनकर सामने आती है। भारी संख्या में अभ्यार्थी अधिकतम उम्र सीमा पार कर जाते हैं, तब विज्ञापन निकलता। हालाँकि इस बार झारखण्ड लोक सेवा आयोग में उम्र सीमा की छूट देने का फैसला लिया गया है; लेकिन अन्य परीक्षाओं में छूट मिलेगी या नहीं, इस पर संशय है। इसके अलावा युवाओं को नीतिगत फैसले और कानूनी दाँव-पेच का डर भी सता रहा है।