सड़कछाप काम !

sadhakkaam

पिछले सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के निवासी घरों से बाहर निकले तो चौंक पड़े. शहर की सड़कों पर कुछ युवा धान की रोपाई कर रहे थे. धान के कटोरे के रूप में मशहूर इस प्रदेश में धान की फसलें लहलहाती ही हैं, लेकिन सड़कों पर धान की रोपाई लोगों के लिए कौतूहल का विषय था. हालांकि थोड़ी ही देर में सारा सस्पैंस खत्म हो गया. आम लोगों को यह पता चल गया कि ये युवक कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में उजागर हुए लोक निर्माण विभाग के भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे हैं. कैग की हाल ही में विधानसभा में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ के लोक निर्माण विभाग की लापरवाही, कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के चलते सरकारी खजाने को कराड़ों रुपये का चूना लगा है.

कैग ने लोक निर्माण विभाग की कई गड़बड़ियां पकड़ी हैं. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जहां एक तरफ राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछाकर विकास की बात हो रही है वहीं दूसरी ओर कैग ने प्रदेश की सड़क परियोजनाओं में भारी लापरवाही होने की बात कही है. नक्सल प्रभावित जिले कोंडागांव में निर्माण कार्य में नियत छह साल की देरी होने के बावजूद ठेकेदारों से 2.94 करोड़ रुपये का जुर्माना नहीं वसूला गया. उल्टा उन्हें मूल लागत में 49.02 लाख रुपये की मूल्य वृद्धि कर भुगतान भी कर दिया गया. इसी तरह नांदघाट-चंद्रखुरी सड़क निर्माण में ठेकेदार ने फुटकर मिलने वाले डामर का उपयोग किया, जबकि उसे पैकेज्ड डामर का उपयोग करना था. विभाग को ठेकेदार से 10.66 लाख रुपये के डामर का अंतर वसूलना चाहिए था पर ऐसा नहीं किया गया. कैग के मुताबिक कवर्धा-रेगाखार सड़क निर्माण का भुगतान भी संदिग्ध है. विभाग ने ठेकेदार को इसके लिए 18.07 लाख रुपये का भुगतान बगैर काम करवाए ही कर दिया. विभाग उक्त स्थान पर काम पूर्ण दिखा रहा है जबकि वहां कोई सड़क बनाई ही नहीं गई. लापरवाही का एक मामला कांकेर-भानुप्रतापुर-संबलपुर सड़क का भी है. नियमानुसार इसकी चौड़ाई 5.5 मीटर होनी थी लेकिन इसे सात मीटर चौड़ा कर दिया गया. इस पर 1.40 करोड़ रुपये  का गैरजरूरी खर्च हुआ.

धांधली के मामले इंदिरा आवास योजना में भी सामने आए हैैं. राज्य सरकार ने आवासों पर एक प्रतीक चिन्ह बनाने के लिए 30 रुपये की दर निर्धारित की थी. लेकिन जगदलपुर जिले में ठेकेदार को इसके लिए प्रति प्रतीक चिन्ह 270 रुपए का भुगतान

किया गया.

छत्तीसगढ़ के महालेखाकार वीके मोहंती इस रिपोर्ट पर कहते हैं, ‘ योजनाओं का उचित क्रियान्वयन एवं प्रबंधन नहीं होने से सरकारी धन का दुरुपयोग हुआ है एवं करोड़ों रुपये की क्षति हुई है. कृषि क्षेत्र में राष्ट्रीय कृषि विकास योजनाओं में निधियों को विलंब से जारी किया गया और उसका उपयोग कुशलतापूर्वक नहीं किया गया. इस कारण प्रदेश सरकार को केंद्र द्वारा आगामी निधियां जारी नहीं की गईं. वहीं इंदिरा आवास योजना का लक्ष्य विभाग ने प्राप्त तो कर लिया लेकिन हितग्राहियों के चयन एवं प्रतीक्षा सूची बनाने में अनियमितता हुई है. राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत सरकार आईटी जैसी प्रमुख आधारभूत ढांचा एवं परियोजना परिचालन को स्थापित करने में विफल साबित हुई है.’ मोहंती यह भी कहते हैं कि नौ अलग-अलग विभागों ने हमें कई गड़बड़ियों पर जवाब ही नहीं दिए. सामाजिक कार्यकर्ता गौतम बंदोपाध्याय इस मसले पर बात करते हुए कहते हैं, ‘राज्य सरकार हमेशा भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बात करती है लेकिन यह व्यवहार में नहीं दिखता. कैग की रिपोर्ट को छोड़िए प्रदेश के किसी भी कोने में चले जाइए. सड़कें, पुल, पुलिया देखकर ही सहज अंदाजा हो जाएगा कि विकास कागजों पर हो रहा है या जमीन पर.’ इस विषय पर जब तहलका ने लोकनिर्माण विभाग के अफसरों से बात करनी चाही तो उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

कैग की रिपोर्ट आने के एक सप्ताह पहले ही राज्य के मुख्य सचिव विवेक ढांड ने विभाग के अधिकारियों के साथ एक बैठक की थी. यह बैठक नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में केंद्र सरकार की मदद से बनी सड़क निर्माण योजना के तहत स्वीकृत और निर्माणाधीन सड़कों तथा पुल-पुलियों से संबंधित कार्यो की विस्तृत समीक्षा के लिए आयोजित की गई थी. मुख्य सचिव ने बैठक में यह भी कहा था कि राज्य के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सड़कों का बेहतर नेटवर्क तैयार कर इस समस्या पर नियंत्रण किया जा सकता है.

राज्य सरकार ने अपनी इसी रणनीति के तहत छत्तीसगढ़ में दो हजार 897 करोड़ रुपये की लागत से 53 सड़कें स्वीकृत की हैं जिनकी लंबाई दो हजार 21 किलोमीटर है. राजधानी रायपुर से जगदलपुर होते हुए कोंटा तक नेशनल हाइवे बनाने का काम भी जल्द शुरू होना है. लेकिन कैग की रिपोर्ट आने और उस पर राज्य सरकार से लेकर मुख्य सचिव और लोक निर्माण विभाग तक के अधिकारियों की चुप्पी के बाद ये सभी परियोजनाएं जमीन पर शुरू होने से पहले ही संदिग्ध लगने लगी हैं.

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