मोदी और राजगणित

झारखंड
20 से कम लोकसभा सीटों वाले राज्यों में झारखंड शामिल है. भाजपा एक समय यहां सत्ता पर काबिज रह चुकी है. 14 लोकसभा सीट वाले इस प्रदेश में उसे सन 1996 और 1998 के चुनावों में 12 सीटें जीतने में कामयाबी मिली थी. लेकिन 2004 में यहां उसका सफाया हो गया. हालांकि 2009 में उसने कुछ हद तक वापसी की और सात सीटों पर जीत हासिल की. लेकिन आज राज्य के बिखरे राजनीतिक हालात को देखते हुए लगता नहीं कि मोदी और भाजपा 1996 और 1998 वाली कामयाबी दोहरा पाएंगे.

दिल्ली
भाजपा शिद्दत से चाह रही होगी कि मोदी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पार्टी की हालत सुधार दें. यहां सात लोकसभा सीटें हैं. 1999 में भाजपा ने यहां सभी सीटों पर जीत हासिल की थी. इससे पहले 1989 में उसे चार, 1996 में पांच और 1998 में छह सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन 2004 में उसे बड़ा झटका लगा और पार्टी एक को छोड़कर सभी सीटों पर हार गई. 2009 में तो वह इकलौती सीट भी चली गई और पार्टी का सफाया हो गया.

अन्य राज्य
बहरहाल भाजपा को छत्तीसगढ़ में अच्छी-खासी सीटें मिल सकती हैं जहां अभी उसके 11 में से 10 सांसद हैं. पिछले महीने हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के मारे जाने के बाद प्रदेश में पार्टी और अधिक कमजोर हुई है. लेकिन असम में जहां भाजपा के 14 में से चार सांसद हैं वहां मोदी के लिए यह संख्या बढ़ाना आसान नहीं होगा क्योंकि यह अब तक का पार्टी का सबसे अच्छा प्रदर्शन है. हरियाणा में जहां भाजपा 1999 में 10 में से पांच सीटें जीतने में सफल रही थी वहां भी 2009 में उसका सफाया हो गया. राज्य में उसके पूर्व सहयोगी दलों की हालत और भी खस्ता है. केरल में वामपंथी गठबंधन और कांग्रेस गठबंधन हावी हैं और दोनों ही भाजपा के खिलाफ हैं.

Narendra

फिर क्या होगा?
तो फिर मोदी कहां पहुंचेंगे? अगर 1984 से लेकर अब तक भाजपा के राज्यवार सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की एक सूची बनाई जाए तो भी आंकड़ा कुल 251 सीटों तक पहुंचता है जो सामान्य बहुमत से 21 कम है. अगर मोदी चमत्कारिक रूप से यहां तक भी पहुंच जाते हैं तो भी उनके लिए महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल और तमिलनाडु में द्रमुक या अन्नाद्रमुक के अलावा अपना कोई अन्य हिमायती तलाश पाना मुश्किल होगा.
कहा जा सकता है कि ये तो अतीत के आंकड़े हैं और इनसे भविष्य की तस्वीर ऐसी ही होगी, यह बात निश्चितता के साथ नहीं कही जा सकती. लेकिन इन आंकड़ों से यह अंदाजा तो लग ही जाता है कि अगले आम चुनाव में भाजपा और मोदी की राह कितनी कठिन है. विश्लेषक मानते हैं कि मोदी के लिए हो रहे इस मौजूदा शोर में उतनी ऊर्जा नहीं है जितनी उन अभियानों में देखने को मिली थी जिन्होंने भाजपा को अतीत में दिल्ली की गद्दी तक पहुंचाया. 1980 में बनी भाजपा को 1984 के लोकसभा चुनाव में महज दो सीटें मिली थीं.

उस चुनाव में कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी शोकलहर पर सवार होकर भारी जीत हासिल की थी. यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज चुनाव हार गए थे. लेकिन पांच साल बाद भाजपा ने 89 सीटों के साथ वापसी की. 1991 में वह 121 सीटों तक जा पहुंची. इन दोनों विजयों में अयोध्या राममंदिर निर्माण के लिए छेड़े गए देशव्यापी अभियान की अहम भूमिका थी. उस अभियान की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ 16 साल और चार आम चुनावों का सामना करने के बाद भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई. इतने कम वक्त में ही उसने आजादी की लड़ाई लड़ने वाली एक सदी पुरानी कांग्रेस को पछाड़ दिया.