योगेश
किसान प्रकृति और धरती के सबसे निकट रहते हैं। इसलिए किसानों को पशु-पक्षी अपना मित्र मानते हैं और किसान भी उनसे मित्रता का भाव रखते हैं। अगर इन पशु-पक्षियों की संख्या कम या ज़्यादा हो जाती है, तो किसानों को इसका नुक़सान उठाना पड़ता है। ज़रूरत से ज़्यादा बारिश, ज़्यादा सूखा, हवा का आँधी-तूफ़ान में बदल जाना और पशु-पक्षियों की संख्या कम-ज़्यादा किसानों को नुक़सान पहुँचाते हैं। किसान मनुष्य हैं, जो सबसे ज़्यादा संवेदनशील होते हैं और अपनी फ़सलों में सभी पशु-पक्षियों के लिए हिस्सा रखने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन किसानों के लिए पक्षियों की संख्या घटना और आवारा पशुओं की संख्या बढ़ना संकट पैदा करती जा रही है, जिसके लिए वे मनुष्य ही ज़िम्मेदार हैं, जो अपने लाभ के लिए जंगलों को उजाड़ रहे हैं और पशु-पक्षियों की हत्या कर रहे हैं।
मनुष्य ने पुरातन समय से अपने फ़ायदे के लिए पशु-पक्षियों और प्रकृति को लगातार नुक़सान पहुँचाया है और वह अब भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है, जबकि धरती कई बार बड़े-बड़े भूकंपों और सुनामी जैसे तूफ़ानों के द्वारा यह संकेत दे रही है कि बस अब मनुष्य का अतिक्रमण को धरती और सहन नहीं कर सकती। मनुष्य का हिंसक स्वार्थ धरती पर रहने वाले सभी जीवों को भयंकर नुक़सान पहुँचा रहा है। कहने को मनुष्य को भगवान ने सोचने-समझने की शक्ति दी है, सही-ग़लत की पहचान करने की बुद्धि दी है और सबसे बड़ी बात धरती पर राज्य करने के साथ-साथ अपने लिए हर सुख जुटाने की सामर्थ दी है। लेकिन मनुष्य ही आज धरती के विनाश में सबसे प्रमुख हिस्सेदारी निभा रहा है। मनुष्य को न जाने क्यों संतुष्टि नहीं है, विशेषकर हर तरह से सुविधा-सम्पन्न लोगों को संतुष्टि बिलकुल भी नहीं है। कहने को उनके पास कोई भी कमी नहीं है। ऐसे लोग धरती पर सबसे ज़्यादा विनाश करते आये हैं और विनाश ही करते जा रहे हैं। जंगली जानवरों और पालतू पशुओं से लेकर पक्षियों तक की दुर्दशा और उनके विनाश में मनुष्य, विशेषकर अवैध काम करके संपत्ति बनाने और तस्करी करने वालों ने जो घिनौना काम किया है, वो कसाइयों और आखेटों से कम नहीं है।

हमारे देश में धनवान बनने की भूख बड़े-बड़े लोगों में बहुत ज़्यादा है, जो इसकी पूर्ति के लिए पशुओं का मरवा रहे हैं और जंगलों को काट रहे हैं। जंगलों को काटकर जंगली पशु-पक्षियों की हत्या भी कर रहे हैं और धरती पर विनाश का पाप भी कर रहे हैं। लेकिन अगर धरती पर पशु-पक्षियों और प्रकृति की रक्षा करने वाला कोई है, तो वे किसान हैं। किसानों ने हमेशा से पशु-पक्षियों और प्रकृति की रक्षा की है। उन्होंने धरती पर खेती करके पशु-पक्षियों और तमाम जीवों का पालन-पोषण किया है, बल्कि इंसानों का भी पेट भरा है और हमेशा दया का भाव दिखाते हुए अपने द्वार पर आये हुए लोगों को, यहाँ तक कि कुत्ते या दूसरे पशु-पक्षियों को भी भूखा नहीं रखा है। इसलिए किसानों को अन्नदाता और धरती का भगवान कहा जाता है। क्योंकि किसान जानते हैं कि पशु-पक्षी और प्रकृति की वजह से ही मनुष्यों को जीवन मिलता है और ये सब मनुष्यों के ऐसे मित्र हैं, जिन्हें मनुष्यों से प्यार और भूख मिटाने की मदद के अलावा कोई दूसरा लालच नहीं है। लेकिन फिर भी मनुष्य पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों का कई तरह से दुश्मन बना हुआ है। मनुष्य धरती पर उजाड़ ही नहीं कर रहे हैं, वे धरती को बुरी तरह गंदा भी कर रहे हैं। मनुष्यों द्वारा फैलायी गयी गंदगी, विशेषकर कूड़े-कचरे और प्रदूषण ने लाइलाज बीमारियों को जन्म दिया है।
धरती पर उसके द्वारा डाली जा रही गंदगी और प्रदूषण का निस्तारण धरती पर रहने वाले कीट-पतंगे और पशु-पक्षी करते हैं और पानी में उसके द्वारा डाली गयी गंदगी को मछलियाँ और दूसरे जलीय जीव साफ़ करते हैं। हालाँकि कुछ पशु-पक्षी और जीव मनुष्य के लिए घातक, जानलेवा और बीमारियाँ देने वाले भी होते हैं। मनुष्य ऐसे पशु-पक्षियों और जीवों को हमेशा के लिए नष्ट नहीं कर सकता। कई पशु-पक्षियों से तो मनुष्य ही डरते हैं और सीधे पशु-पक्षियों से फ़ायदा उठाते हैं, उन्हें मार तक देते हैं। लेकिन किसान ऐसा नहीं करते; क्योंकि किसान उन्हीं कीट-पतंगों को मारते हैं, जो उनकी फ़सल के लिए नुक़सानदायक होते हैं। किसान जब खेत में काम करते हैं, तो उनके आसपास बहुत से पक्षी घूमते रहते हैं। खेतों की जुताई और फ़सलों की कटाई के समय पक्षी अपने भोजन की तलाश किसानों के आगे-पीछे चलते रहते हैं। ये पक्षी उन कीट-पतंगों को ही खाते हैं, जो फ़सलों और भूमि के लिए नुक़सानदायक होते हैं।
पक्षी किसानों के अलावा दूसरे मनुष्यों को भी लाभ पहुँचाते हैं। अगर कोई पशु मर जाए, तो कौवे, चील-गिद्ध, कुत्ते, भेड़िये ओर कीड़े उनका मांस और हड्डियों को खाकर सफ़ाई का काम करते हैं। मनुष्यों द्वारा नालियों में डाली जाने वाली गंदगी को नालियों के कीड़े साफ़ करते हैं। हवा में फैली गंदगी को पेड़-पौधे, पानी की गंदगी को जलीय पौधे, मछलियाँ और दूसरे जलचर साफ़ करते हैं। धरती पर मनुष्यों द्वारा डाली जा रही गंदगी को ज़मीन पर गंदगी साफ़ करने वाले कीड़े-मकोड़े, सूअर और दूसरे कुछ पशु-पक्षी साफ़ करते हैं। लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए पशु-पक्षियों के अलावा कीट-पतंगों और दूसरे जीवों को भी मार रहे हैं। मनुष्यों की इन गंभीर हरकतों के कारण पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों की संख्या में बहुत तेज़ी से गिरावट तो आ रही है। कई तरह के पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े तो पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं।
वैसे तो किसानों के मित्र की उपाधि केंचुए को मिली हुई है; लेकिन दूसरे पशु-पक्षी और कीट-पतंगे भी किसानों के मित्र हैं। किसानों के मित्र केंचुए के अलावा मित्र पशु-पक्षी, कीट-पतंगे और पेड़-पौधों के नष्ट होने से उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कृषि भूमि को पोला बनाकर उपजाऊ बनाने वाले केंचुए बहुत मदद करते हैं। लेकिन गौरैया, छोटी चिड़िया, तीतर, टिटौली, मोर, बटेर, बगुला, कौआ, मुर्गा-मुर्गी, बत्तख, काली चिड़िया, कठफोड़वा, चमगादड़, शिकारा, बाज और गिद्ध भी किसानों के मित्र हैं, जो फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने वाले कीट-पतंगों को खाते हैं। कीट-पतंगों में भँभीरी, तितली, पप्पू कीड़ा, मधुमक्खी, भँवरे, तिलचट्टा आदि किसानों के मित्र हैं। कीड़ों और दूसरे थलचर जीवों में केंचुआ, गुबरैला, चींटियाँ, चींटे, मेंढक, छिपकली आदि किसानों के मित्र हैं। किसानों के मित्र पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों और दुसरे थलचरों के निरीक्षण से पता चला है कि ज़्यादातर पक्षी अपने बच्चों के लिए पूरे दिन चुग्गा लाते हैं, जिनमें ज़्यादातर वे कीड़े-मकोड़े होते हैं, जो किसानों की फ़सलों को नुक़सान पहुँचाते हैं। इन पक्षियों में कठफोड़वा इकलौता ऐसा पक्षी है, जो 24 घंटे में लगभग 300 बार अपने बच्चों के लिए चुग्गा लाता है, जिसमें कीड़े-मकोड़े बड़ी संख्या में होते हैं।
किसानों की फ़सलों की पैदावार बढ़ाने में पक्षी और छोटे-छोटे उड़ने वाले कीट-पतंगों के अलावा केंचुआ, मेंढक, गुबरैला, चींटियाँ, चींटे, छिपकली बहुत सहायक होते हैं। वहीं पशुओं में पालतू पशु किसानों के लिए बहुत सहायक होते हैं। गाय-भैंस, बैल, भैंसा, गधा, ऊँट, घोड़ा, मुर्गा-मुर्गी, बत्तख आदि खाद और दूध, अंडे और श्रम के हिसाब से किसानों के मित्र होते हैं; लेकिन कुत्ता खेतों की रखवाली के हिसाब से किसानों का मित्र पशु है। कबूतरों को छोड़कर ज़्यादातर पक्षी किसानों के खेतों से कीड़े-मकोड़ों को पकड़कर खाते हैं। हालाँकि कई पक्षी किसानों के मित्र कीट-पतंगों को भी खा जाते हैं, जिससे उनकी संख्या कम होने लगती है। हालाँकि कीट-पतंगों को मारने के पीछे किसान भी ज़िम्मेदार हैं। क्योंकि जब किसान अपने खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं, तो उनकी फ़सलों को नुक़सान पहुँचाने वाले कीटों के साथ-साथ उनके मित्र कीट-पतंगे भी मर जाते हैं। फ़सलों में कीटनाशकों और यूरिया आदि के डालने से किसानों के मित्र कीट-पतंगे और मित्र पक्षी भी खेतों में काम आते हैं, जिससे पैदावार पर तो बुरा असर पड़ता ही है, फ़सलों के ज़हरीला होने का ख़तरा भी बन जाता है।
कुछ वर्षों से किसानों ने पशुपालन भी कम कर दिया है, जिससे वे अब जैविक खाद नहीं बना पाते और न ही पशुओं से कृषि करते हैं। एक सर्वे के आँकड़ों के अनुसार, सिर्फ़ 20 प्रतिशत किसान अब देश में पशुओं से खेती करते हैं, जबकि किसानों ने 30 प्रतिशत तक पशुपालन कम कर दिया है। वहीं आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या भी किसानों के लिए सिरदर्द बनी हुई है। आवारा पशुओं के अलावा कहीं-कहीं बंदरों का आतंक भी दिखायी देता है, जो कि फ़सलों को अकारण ही उजाड़ देते हैं। आवारा पशुओं में नीलगाय, सांड, गाय, हाथी, बंदर, बारहसिंघा, जंगली भैंस-भैंसा, ऊदबिलाव सबसे ज़्यादा किसानों की फ़सलों को नुक़सान पहुँचाते हैं। थलचरों में चूहे सबसे नुक़सान पहुँचाते हैं। कीट-पतंगों में टिड्डी, अनाज और फल खाने वाले पक्षी और फ़सलों को खाने वाले वाले कीट किसानों को नुक़सान पहुँचाते हैं। कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि इन नुक़सानों से बचने के लिए किसानों के परंपरागत जैविक खेती करनी चाहिए और वापस से पशुपालन करना चाहिए। लेकिन किसानों के आगे भूमि कम होने के चलते पशुपालन में समस्या आती है।
पहले पशुपालन करने वाले किसान अपने पशुओं को चराने के लिए ख़ाली मैदानों और जंगलों के आसपास लेकर जाते थे। लेकिन अब ख़ाली मैदानों की भी कमी है और जंगलों की भी कमी है, जिसके चलते अब वही किसान पशुपालन कर पाते हैं, जो घर में ही पशुओं के चारे आदि का इंतज़ाम कर पाते हैं। पानी के लिए तालाब भी बहुत कम बचे हैं। जंगलों के कटने और तालाबों के पट जाने से पशु-पक्षी मर रहे हैं। लेकिन मनुष्य भूल रहे हैं कि ये पशु-पक्षी किसानों के ही नहीं, सभी मनुष्यों के मित्र हैं। किसानों के अलावा सभी मनुष्यों के हित संवर्धन के लिए पर्यावरण के साथ पशु-पक्षी संरक्षण को बचाने की ज़रूरत है, नहीं तो प्रकृति के साथ ही पर्यावरण में असंतुलन बढ़ जाएगा, जो मनुष्य जीवन को संकट में डाल देगा।