‘पांच साल में पूरी तरह बदल जाएगा हमारा सिनेमा’

sudherदूसरे विषयों की तरह सिनेमा की पढ़ाई का क्या महत्व है?
अगर आप किसी संस्थान में हैं तो वहां आपको अपने व्यक्तित्व को स्थापित करने के अवसर अधिक हैं. सिनेमा को प्रभावी बनाने के लिए आपको शिल्प और अनुशासन दोनों की आवश्यकता होती है. मैंने फिल्म बनाना अपने भाई से सीखा जो एफटीआईआई में थे. मैंने उनके साथ एक समझौता किया था कि उन्हें वहां जो कुछ सिखाया जाएगा वह सब वे मुझे बताएंगे. मैंने खुद एफटीआईआई परिसर के खूब चक्कर लगाए और अप्रत्यक्ष तरीके से प्रशिक्षण हासिल किया.

आपका अपने महिला पात्रों के साथ क्या रवैया रहता है?
मैं उन्हें बहुत प्रोत्साहित करता हूं और उनकी गलतियों का भी सम्मान करता हूं. यह उनका अधिकार है. मैं हमेशा मजबूत महिलाओं से जुड़ा रहा हूं. उदाहरण के लिए, मेरी दादी जो अपने पति से अलग होकर अकेले रहती थीं. मैं कोशिश करता हूं कि महिलाओं की अंतहीन क्षमताओं को उजागर कर सकूं. महिलाओं ने मुझे दुख भी पहुंचाया और प्यार भी किया लेकिन एक पुरुष के रूप में मैंने हमेशा उन्हें जटिल लेकिन आकर्षित करने वाला पाया है. मैं कोई फैसला नहीं सुना रहा. महिलाओं को भी आजादी का हक ह,ै वहीं अगर वे चाहें तो घरेलू कामकाज करते रहने का भी उनको उतना ही हक है. उन्हें रूढ़िवादी छवियों क गुलाम बनने की जरूरत नहीं है.

आपकी राजनीतिक विचारधारा क्या है?
मेरे दादा द्वारका प्रसाद मिश्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. बेहद ताकतवर, लोकप्रिय और इंदिरा गांधी के करीबी. लेकिन मैं उनसे दूर चला आया. मैंने कभी किसी को यह बताकर लाभ हासिल करने की कोशिश नहीं की कि वे मेरे संबंधी हैं. मैंने चुपचाप चपरासी तक का काम करना मंजूर किया. आखिर ऐसी ताकत भी बहुत कम समय के लिए होती है. मैं एक अध्यापक का बेटा हूं. मेरे पिता गणितज्ञ थे और वामपंथी झुकाव वाले नेहरूवादी थे. मैं भी राजनीतिक रूप से सजग हूं लेकिन पारंपरिक राजनीति में नहीं पड़ना चाहता. मेरी राजनीतिक विचारधाराएं अस्थायी हैं क्योंकि जिंदगी में हमेशा शोरगुल मचा रहता है.

देश में छोटे बजट की स्वतंत्र रूप से बन रही फिल्मों की क्या स्थिति है?
अब दर्शकों की समझ बढ़ रही है. पांच साल बाद आपको एक क्रांति देखने को मिलेगी. भारतीय सिनेमा अब परिपक्व हो रहा है. युवा अब बुजुर्गों के पांव नहीं छू रहे हैं और न ही पुरानी मठाधीशी को तवज्जो दे रहे हैं. आपने देखा कि किस तरह उन्होंने बिना किसी नेता के दिल्ली की सड़कों पर निकल कर सवाल पूछे. यह सब सिनेमा के परदे पर भी दिखेगा. पांच सालों में हमें एक नया और महत्वपूर्ण सिनेमा देखने को मिलेगा.

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