डल में कमल

 भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर में अपनी पार्टी के नेताओं के साथ, फोटोः मीर इमरान
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कश्मीर में अपनी पार्टी के नेताओं के साथ, फोटोः मीर इमरान

हाल के दिनों में कश्मीर के पूर्व पृथकतावादी नेता सज्जाद लोन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात बड़ी चर्चा में रही. लोन कश्मीर के उन पृथकतावादियों में से रहे हैं जिन्हें भाजपा कुछ समय पहले तक देशद्रोही और पाकिस्तानी एजेंट जैसे विशेषणों से नवाजती रही है. इनसे मिलना और चाय-पानी तो दूर, भाजपा के लिए इनसे बातचीत करना भी देशद्रोह की श्रेणी में आता था. खैर, लोन प्रधानमंत्री मोदी से मिले और मोदी प्रेम में कुछ ऐसे रंगे कि बड़े से बड़ा मोदी समर्थक झेंप जाए. लोन ने कहा कि मोदी उन्हें उनके बड़े भाई की तरह लगे. लोन अपनी मुलाकात के बारे में बताते हैं, ‘ऐसा लग रहा था मानों मैं प्रधानमंत्री हूं और अपने बड़े भाई से बात कर रहा हूं.’

गद्दारी के आरोपों से गलबहियां तक का यह सफर भाजपा की रणनीति में आए बदलाव और उसकी नई व्यूह रचना का संकेत है. 25 नवंबर से शुरू होने जा रहे जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा ने बिल्कुल अलग तरीके की व्यूह रचना की है. भाजपा इस बार डल झील में कमल खिलाने को लेकर हद दर्जे तक बेचैन है.

कुछ समय पहले ही पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर टिप्पणी की थी कि इस बार चुनाव में पीडीपी का मुकाबला भाजपा से है. जिस राज्य की आधी से ज्यादा सीटों पर भाजपा का कोई नामलेवा नहीं था उस प्रदेश में अगर भाजपा ने यह हैसियत बना ली है कि पीडीपी जैसी पार्टी नेशनल कॉंफ्रेंस और कांग्रेस की बजाय उसे अपना मुख्य प्रतिद्वंदी मानने लगी है तो इससे जम्मू-कश्मीर में भाजपा की बढ़ी हुई सियासी ताकत का पता चलता है.

जम्मू कश्मीर के राजनीतिक रंगमंच पर भाजपा का सितारा हाल फिलहाल में बड़ी तेजी से चमका है. इसके पीछे एक बड़ी वजह पिछले लोकसभा चुनाव में उसे मिली सफलता है. पार्टी पिछले चुनाव में प्रदेश की 6 लोकसभा सीटों में से तीन पर भगवा फहराने में कामयाब रही. लद्दाख की लोकसभा सीट तो उसने अपने राजनीतिक इतिहास में पहली बार जीती है. इन सीटों की जीत से ज्यादा जिस तथ्य से उसकी आंखों में चमक आई है वह है जम्मू क्षेत्र की 37 विधानसभा क्षेत्रों में से 30 पर वह पहले नंबर पर रही. इसी तरह जिस लद्दाख लोकसभा की सीट भाजपा ने पहली बार जीती है उस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली चार विधानसभा सीटों में तीन पर वो पहले नंबर पर रही. कुल मिलाकर देखें तो पिछले विधानसभा चुनाव में जो पार्टी 11 सीटें जीत पायी थी वह इस बार 33 विधानसभा क्षेत्रों में सबसे आगे दिख रही है.

भाजपा देश के दूसरे हिस्सों  में रहने वाले कश्मीरी पंडितों को प्रोत्साहित कर रही है कि वे चुनाव के समय राज्य में आकर उसके पक्ष में मतदान करें

भाजपा को इस विधानसभा चुनाव में कुछ कर दिखाने की प्रेरणा इन्हीं आकड़ों से मिली है. पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक व्यापक रणनीति बनाकर काम कर रही है. जम्मू के भाजपा नेता दिवाकर शर्मा कहते हैं, ‘हमारी रणनीति बहुत साफ है. हमें जम्मू और लद्दाख की कुल 41 सीटों को हर हाल में जीतना है. हम ऐसा करने में सफल होंगे. इस बार चूकने का कोई मौका नहीं है. जनता ने लोकसभा चुनावों में बता दिया है कि वह किससे साथ है. कश्मीर घाटी में स्थिति थोड़ी अलग है लेकिन हम वहां भी इस बार अपना खाता जरूर खोलेंगे.’

लोकसभा चुनाव के परिणामों का पार्टी पर कितना गहरा असर पड़ा है वो इस बात से भी जाहिर होता है कि अचानक से भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में अगला मुख्यमंत्री किसी हिंदू को बनाने का दांव चल दिया है. हिंदू मुख्यमंत्री का कार्ड जम्मू क्षेत्र में भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण की बड़ी वजह बन सकता है. कुछ समय पहले ही जम्मू क्षेत्र में एक रैली को संबोधित करते हुए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, ‘अगली बार इस प्रदेश का मुख्यमंत्री भाजपा का होगा. आप लोग एक बार सोच कर तो देखिए अगर हमने एक भाजपा कार्यकर्ता को यहां का मुख्यमंत्री बना दिया तो पूरी दुनिया में उसका कितना बड़ा संदेश जाएगा. हमें इस बार यह कर दिखाना है.’

केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार बार जम्मू कश्मीर के दौरे पर जा चुके हैं. लगभग इतनी बार ही अमित शाह भी प्रदेश का दौरा कर चुके हैं. इन हाई प्रोफाइल दौरों से भाजपा के कैडर में चुनाव से पहले जरूरी उत्साह का माहौल बन गया है. दिवाकर कहते हैं, ‘ पहले भी पार्टी यहां चुनाव लड़ती थी लेकिन इश तरह की आक्रामकता नहीं थी. कोई मजाक में भी नहीं सोचता था कि प्रदेश में भाजपा का सीएम होगा. लेकिन इस बार हमारे मन में इसके अलावा कोई सोच नहीं है.’

भाजपा मिशन 44 प्लस को लेकर कितनी गंभीर है इस बात का पता उन मीडिया रिपोर्ट्स से भी चलता है जिसमें बताया गया है कि भाजपा जम्मू कश्मीर से पलायन करके देश के अन्य हिस्सों में रह रहे कश्मीरी पंडितों की सूची तैयार कर रही है. उन्हें पार्टी से जोड़ने और अगले चुनाव में जम्मू कश्मीर आकर भाजपा के लिए वोट करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. कश्मीरी पंडितों को अपने पाले में लाने की भाजपा की रणनीति से कांग्रेस भी दबाव में है. कांग्रेस कोटे से राज्य सरकार में मंत्री श्यामलाल ने बयान देकर जम्मू कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री किसी हिंदू को बनाने की मंशा जाहिर की है.

हालांकि इस उत्साह के बीच ऐसे लोग भी हैं जो भाजपा के प्रयास को दुस्साहस करार देते हैं. प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार खालिद अख्तर कहते हैं, ‘यह सही है कि भाजपा ने लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन किया. एसेंबली सेग्मेंट्स में उसे अच्छी सफलता मिली लेकिन अपना मुख्यमंत्री बनाने की बात करना थोड़ा ज्यादा हो गया. उसके पास कश्मीर और लद्दाख में एक भी विधायक नहीं है. यह अमित शाह की तरफ से कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए छोड़ा गया शिगूफा हो सकता है. भाजपा यह कोशिश जरूर कर सकती है कि उसके बिना राज्य में किसी की सरकार न बनने पाए.’

इस बीच भाजपा का चुनाव अभियान बहुत आक्रामक तरीके से चल रहा है. पार्टी को सत्ता के करीब पहुंचाने के लिए संघ परिवार भी पूरा जोर लगा रहा है. संघ के एक पदाधिकारी कहते हैं, ‘यह गलत बात है कि हम भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. संघ का तो बहुत पहले से यहां काम चल रहा है. अब जाकर यह लोगों की नजर में आया है.’

सूत्र बताते हैं कि संघ जम्मू कश्मीर और खासकर जम्मू के इलाके में लोकसभा चुनाव से दो साल पहले ही अपने मिशन में लग गया था. भाजपा कार्यकर्ताओं से अधिक लोगों को उसके पक्ष में खड़ा करने का काम संघ के स्वंयसेवकों ने किया. कांग्रेस को हिंदू विरोधी ठहराते हुए प्रदेश की हिंदू आबादी को भाजपा से जुड़ने के लिए लगातार प्रेरित किया गया. जम्मू क्षेत्र के गांवों में संघ के प्रचारकों का पिछले दो साल से लगातार दौरा और कैंप चल रहा है. खालिद कहते हैं, ‘ जम्मू इलाके में संघ बहुत लंबे समय से काम कर रहा है. संघ की सालों की मेहनत का इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा मिला. धीरे-धीरे ये लोग घाटी की तरफ भी आ रहे हैं. यहां इन्होंने प्रॉक्सी नामों से तमाम सहायता संगठन और एनजीओ खड़े कर लिए हैं.’

कश्मीर के लोगों के बीच भाजपा की पैठ बनाने की कोशिश का एक संकेत इस बात से भी मिलता है कि जिस धारा 370 को हटाने को लेकर वह हमेशा मुखर रहती है उस पर अब पार्टी में कोई बात ही नहीं करता. पार्टी का कहना है कि विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में यह मुद्दा शामिल नहीं होगा. इसी तरह लद्दाख क्षेत्र में भी पार्टी ने बौद्धों को जोड़ने का बड़ा प्रोजेक्ट चलाया है. वहां शिया मुसलमानों और बौद्धों के बीच हुए टकराव का फायदा उठाकर संघ ने अपनी एक जगह बना ली है.

कुछ समय पहले ही पाकिस्तान की तरफ से बॉर्डर के इलाकों में जारी भारी फायरिंग से बड़ी संख्य़ा में लोग विस्थापित हुए थे. ऐसा पहली बार था कि इन इलाकों में संघ ने अपना राहत शिविर खोला. उन इलाकों में उसकी तरफ से कई राहत शिविर चलाए जा रहे हैं. इन शिविरों में लोगों के रहने से लेकर उनके खाने-पीने और इलाज का इंतजाम किया गया. संघ का एक और अनुषंगिक संगठन वीएचपी मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदू धार्मिक स्थलों  के जीर्णोद्धार और यात्राओं का अलग मोर्चा खोले हुए है. कुछ समय पहले ही उसने पूंछ जिले के मंडी क्षेत्र में बुद्ध अमरनाथ यात्रा की शुरुआत की है. 1990 में आतंकवाद के चरम पर यह यात्रा बंद हो गई थी.

जम्मू-कश्मीर में भाजपा को मिली मजबूती के पीछे उन तमाम नेताओं का भी हाथ है जो दूसरी पार्टियां छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं. पीडीपी नेता हाजी ताज मोहम्मद खान, पीडीपी की युवा शाखा के प्रदेश महासचिव शौकत जावेद, पूर्व नेशलन कॉन्फ्रेंस नेता मोहम्मद शफी भट्ट की बेटी हिना भट्ट, राजौरी से वरिष्ठ नेता चौधरी तालिब हुसैन समेत तमाम नेता आज भाजपा का झंडा उठाए हुए हैं. हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्ण सिंह के पुत्र और जम्मू कश्मीर रियासत के आखिरी राजा हरी सिंह के पोते अजातशत्रु ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है.

दूसरी पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के अलावा भाजपा हर उस शख्स को अपने पाले में लाने और चुनाव में उसका इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही जो राज्य में थोड़ा बहुत भी असर रखते है. सूत्र बताते हैं कि हाल ही में भाजपा नेताओं ने कृषि मंत्री गुलाम हसन मीर, पूर्व मंत्री हाकिम यासीन आदि से भी भाजपा की मदद करने को कहा है. इस सूची में सबसे चौंकाना वाला नाम इंजीनियर राशिद का है. राशिद वो नेता हैं जो प्रदेश के चुनावों में भाग लेते हुए भी प्रदेश में अलगाववाद की अलख जगाए हुए हैं. अफजल गुरु की फांसी के बाद विधानसभा से लेकर सड़क पर बवाल मचाने वालों में वो सबसे आगे थे. सूत्र बताते हैं कि भाजपा सीपीएम के जनरल सेकेट्री मोहम्मद युसूफ तारागामी के भी संपर्क में है. इसी तरह पार्टी प्रदेश के तमाम निर्दलीय नेताओं और जम्मू कश्मीर सेव पार्टी, तहरीके ए हक, पीपल्स रिपब्लिक पार्टी जैसी छोटी पार्टियों को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है. इन छोटे दलों से टैक्टिकल अंडरस्टैंडिंग करके पार्टी घाटी में अपनी संभावनाओं को मजबूत करने में लगी हुई है. इसके अलावा प्रदेश के धर्मगुरूओं समेत समाज के अलग अलग क्षेत्र में काम करने वालों लोगों से भी वो मेलजोल बढ़ाने की लगातार कोशिशें जारी हैं. इतने व्यापक स्तर पर पहली बार भाजपा जम्मू कश्मीर का चुनाव लड़ने जा रही है, क्या नतीजे भी इतने ही चमत्कारिक होंगे?            l