दिल्ली ऐतिहासिक काल से ही अपने बाज़ारों के लिए मशहूर रही है। यहाँ पारम्परिक बाज़ारों, आधुनिक मॉल, नये ज़माने के साप्ताहिक (पैठ) बाज़ारों की बहुतायत है। दिल्ली के साप्ताहिक बाज़ार यहाँ की बड़ी आबादी के लिए सुलभ तरीके से सस्ता सामान मुहैया कराते हैं। परन्तु जब कोरोना वायरस का संक्रमण तेज़ी से फैला, तो लॉकडाउन के चलते येे बाज़ार बन्द हो गये थे। हालाँकि अब इनकी रौनक फिर से लौटने लगी है, परन्तु दुकानदारों का कहना है कि भले ही बाज़ारों में भीड़ दिख रही है, मगर वे अभी मंदी की मार झेल रहे हैं।
बता दें कि दिल्ली के प्रत्येक इलाके में अलग-अलग स्थानों पर दिनों के हिसाब से सड़क किनारे लगने वाले ये साप्ताहिक बाज़ार लाखों लोगों के रोज़गार का ज़रिया हैं। साप्ताहिक बाज़ारों की देख-रेख नगर निगम करता है। लेकिन बाज़ारों में दुकानें लगाने वाले व्यापारियों को पीने के पानी, शौचालय और साफ-सफाई जैसी गम्भीर समस्याओं से जूझना पड़ता है। हालाँकि गन्दगी के ज़िम्मेदार दुकानदार भी हैं। साप्ताहिक बाज़ारों में दुकान लगाने वाले राहुल ने तहलका संवाददाता को बताया कि शौच, पीने के पानी, साफ-सफाई के अलावा वे एसोसिएशन द्वारा लिए जाने वाले किराये से भी परेशान हैं। राहुल का कहना है कि कोविड-19 के चलते बाज़ार का काम ठप हो गया है। लेकिन हमें नगर निगम के अलावा, साफ-सफाई, बाज़ार में लगने वाली लाइट्स तथा मेज़ों से अलग एसोसिएशन को भी पैसे देने पड़ते हैं। यह भारी खर्च हमारी मुश्किलों का कारण बना हुआ है। एसोसिएशन द्वारा बाज़ार में छोटी-बड़ी दुकानें लगाने वालों से ली जाने वाली राशि एक प्रकार का अतिरिक्त खर्च है।
बता दें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल साप्ताहिक बाज़ारों के संघ प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान शहर के इन बाज़ारों को पर्यटन स्थल की तरह एक लोकप्रिय खरीद-फरोख्त के आकर्षक स्थलों के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव दे चुके हैं। केजरीवाल ने इस प्रस्ताव में कहा था कि दिल्ली के साप्ताहिक बाज़ारों को बेहतर और व्यवस्थित करके उन्हें इतना आकर्षक बनाया जाएगा कि जब कोई विदेशी पर्यटक आये और इन बाज़ारों में जाए, तो इनकी तारीफ करे। दिल्ली सरकार भी हॉन्गकॉन्ग और दूसरे देशों की तरह ही इन बाज़ारों और रेहड़ी-पटरी वालों को प्रोत्साहित करेगी। उन्होंने कहा कि हमारे देश में साप्ताहिक बाज़ारों और रेहड़ी-पटरी वालों को एक समस्या माना जाने लगा है और एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि इनकी वजह से सड़कें खराब होती हैं और गन्दगी फैलती है। लेकिन हम इन्हें बदलेंगे। इसके लिए हमारे पास योजना है। बता दें कि चाँदनी चौक में री-डवलपमेंट प्रोजेक्ट पर दिल्ली सरकार काम कर रही है। इस काम को दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया देख रहे हैं। इसकी शुरुआत 7 दिसंबर 2018 को की गयी थी। अभी तक यहाँ काफी काम हो चुका है, कुछ ही समय में यहाँ की तस्वीर किसी साफ-सुथरे विदेशी शहर की तरह दिखेगी। दो साल पहले तक सँकरी गलियों, वाहनों की भीड़ और तारों के फैले जाल वाले पुरानी दिल्ली के इस पूरे इलाके में अभी से बड़ा बदलाव दिखने लगा है। यहाँ दिल्ली की सबसे बड़ी ग्राउंड पार्किंग बन चुकी है, सड़कों से अतिक्रमण हटा दिया गया है, सड़कों पर वाहनों के चलने पर प्रतिबन्ध लग चुका है औरमकडज़ाल की तरह फैले बिजली के तारों को ज़मीनदोज़ किया जा रहा है। नये चाँदनी चौक की मुख्य सड़कों पर सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक सभी प्रकार के वाहनों पर प्रतिबन्ध रहेगा। अगर इस दौरान कोई सड़क पर वाहन लेकर आता है, तो उसे 20 हज़ार रुपये का ज़ुर्माना भरना होगा। यह कार्य परियोजना पूरी होने के बाद चाँदनी चौक की सड़कों पर रिक्शों की आवाजाही पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाएगा।
चाँदनी चौक के सर्व व्यापार मण्डल अध्यक्ष संजय भार्गव ने बताया कि चाँदनी चौक को पूरी तरह से बदला जा रहा है। नवंबर तक शेष कार्य समाप्त होने के बाद लोग साफ-सुथरे बाज़ार की ओर अत्यधिक आकर्षित तो होंगे ही, साथ ही यहाँ के धीमे पड़ चुके व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी। पहले यहाँ लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता था, वहीं अब गाडिय़ों के न होने से वे बड़ी आसानी से खरीदारी कर सकेंगे।
वास्तव में चाँदनी चौक में हो रहे कायाकल्प को देखकर लगता है कि दिल्ली सरकार यहाँ के साप्ताहिक बाज़ारों को विदेशों में लगने वाले बाज़ारों की तरह बनाने में कामयाब होगी। लेकिन यह काम तब और आसान होगा, जब दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार, खासकर भाजपा शासित नगर निगम के बीच का तनाव खत्म होगा। क्योंकि इससे दिल्ली का विकास प्रभावित होता है। इन दिनों दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। इससे कूड़ाघरों के आसपास विकट गन्दगी फैल चुकी है और बीमारियों को दावत मिल रही है।
नगर निगम के सफाईकर्मी 7 फरवरी से काम पर नहीं आ रहे हैं। उनका कहना है कि आये दिन उनका वेतन रोक लिया जाता है। भाजपा नेता आरोप लगाते हैं कि दिल्ली सरकार नगर निगम का बकाया नहीं देती है। वहीं दिल्ली सरकार का कहना है कि उसने नगर निगम को अतिरिक्त पैसा दिया हुआ है, जबकि केंद्र सरकार उसे बजट नहीं दे रही है। पिछली बार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक कार्यक्रम में जब इस बात का दावा किया और लेन-देन का हिसाब दिया, तो अगले ही दिन भाजपा शासित नगर निगम ने कर्मचारियों का वेतन दे दिया। अब फिर से वही समस्या है। कर्मचारी फिर से हड़ताल पर हैं। बताया जा रहा है कि सफाई कर्मचारियों को पिछले कुछ महीनों से न तो वेतन मिल रहा है और न ही पेंशन। कुछ कर्मचारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने 938 करोड़ रुपये की घोषणा भी की थी, परन्तु यह रकम कब और किस मदद में खर्च होगी? इसका कुछ पता नहीं है।
विदित हो कि दिल्ली में नगर निगम के चुनाव आने वाले हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चाँदनी चौक के कायाकल्प पर केजरीवाल दिल्ली की जनता का भरोसा हासिल कर नगर निगम चुनाव में जीत दर्ज करा पाएँगे?