जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 के विशेष प्रावधान को केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया। इससे ठीक पहले पिछले वर्ष 21 जुलाई को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष संवैधानिक और कानूनी दर्जे को बरकरार रखने के लिए संकल्प पारित करके इसे बचाने को प्रतिबद्धता दोहरायी थी। डेमोक्रेटिक पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के इतिहास में 5 अगस्त के केंद्र के कदम को सबसे काला अध्याय करार दिया था।
महत्त्वपूर्ण यह है कि उपरोक्त प्रस्ताव जम्मू में पारित किया गया, जो कि हिन्दू बाहुल्य है और यहाँ पर उम्मीद की जा रही थी कि अनुच्छेद-370 के खात्मे को यहाँ से पूरा समर्थन मिलने वाला है। पीडीपी की बैठक की अध्यक्षता करने वाले पूर्व विधायक सुरिंदर चौधरी ने संसद से प्रदेश की स्वायत्तता खत्म किये जाने को एक धब्बा करार दिया। पीडीपी ने आरोप लगाया कि भाजपा जम्मू-कश्मीर के लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने की बजाय राज्य में ज़मीन हड़प रही है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और पीडीपी के संस्थापक के विजन को पेश किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि शान्ति, सामंजस्य और संवाद के ज़रिये मौज़ूदा अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए केंद्र विशेष दर्ज़ा वापस ले सकता है।
अपनी भविष्य की रणनीति के अनुसार, पीडीपी ने गुप्कर घोषणा के लिए समर्थन व्यक्त किया, जिसमें विभिन्न मुख्यधारा के कश्मीर के सियासी दलों ने सर्वसम्मति से जम्मू और कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और विशेष दर्जे की लड़ाई व रक्षा करने को एकजुट होने का संकल्प लिया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला के आवास पर अनुच्छेद-370 खत्म किये जाने की पूर्व संध्या पर गुप्कर घोषणा जारी की गयी थी। हालाँकि अगले ही दिन जब संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अनुच्छेद-370 को हटाये जाने की घोषणा कर रहे थे, तभी कश्मीर की सभी सियासी पार्टियों के नेताओं और जम्मू में कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। महीनों तक हिरासत में रहने के बाद ही सरकार ने उन्हें एक-एक करके रिहा करना शुरू किया, जिसकी शुरुआत मझोले नेताओं के साथ हुई थी; जिनसे यह लिखवाकर लिया गया कि वे बाहर निकलने के बाद किसी भी प्रदर्शन या सियासी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। इसके बाद शीर्ष जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) नेता फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, दोनों जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं; को भी रिहा किया गया।
हालाँकि सरकार ने अभी तक पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को रिहा नहीं किया है, जो अब अपने सरकारी आवास पर नज़रबन्द हैं। इसी तरह सज्जाद गनी लोन, नौकरशाह से सियासत में उतरे शाह फैसल जैसे नेताओं को भी उनके निवासों पर हिरासत में रखा गया है। इतना ही नहीं, पूर्व विधायक इंजीनियर राशिद को दिल्ली की तिहाड़ जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है। इससे कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियाँ थम गयी हैं। उमर और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता अपनी रिहाई के बाद एक तरह से मौन हो गये हैं। इससे राजनीतिक शून्यता की भरपाई कारोबारी से सियासत में उतरे अल्ताफ बुखारी के नये सियासी दल अपनी पार्टी से गतिविधियाँ करायी जा रही हैं। हालाँकि स्थापित दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के विपरीत बुखारी की पार्टी काफी हद तक केंद्र की नीतियों के अनुरूप है।
फिलहाल यह देखा जाना बाकी है कि घाटी के राजनीतिक दल अपने सभी नेताओं को रिहा करने और राजनीतिक गतिविधि जारी रखने की अनुमति के बाद किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे। नेकां नेता और सांसद हसनैन मसूदी पहले ही कह चुके हैं कि गुप्कर घोषणा के आधार पर ही उनकी भविष्य की राजनीति होगी। लेकिन जैसा आगे माहौल बनता है, उस हिसाब से जम्मू-कश्मीर प्रशासन शायद ही ऐसी किसी असहमति वाली राजनीतिक विचारधारा को प्रतिपादित करने की सम्भावना मिलने के आसार बेहद कम हैं। महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को हिरासत में लिए जाने के बावजूद उनकी बेटी इल्तिज़ा मुफ्ती अनुच्छेद-370 हटाये जाने के खिलाफ खुलकर मुखर रहीं। इसी तरह पीडीपी के वरिष्ठ नेता और महबूबा के विश्वासपात्र नईम अख्तर को हाल ही में उनके सरकारी आवास से बाहर कर दिया गया।
इससे यह उम्मीद फिलहाल नज़र नहीं आती कि कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियाँजल्द सामान्य होने वाली हैं। और ऐसा तब तक असम्भव है, जब तक कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन इस बात से निश्चिंत न हो जाए कि कश्मीर का राग नहीं अलापा जाएगा और न ही कोई इसे चुनौती देगा। नाम न छापने की शर्त पर प्रमुख राजनीतिक पार्टी के एक नेता ने कहा कि सभी नेताओं को रिहा करने के बाद हम एक निर्णय लेंगे। हम अपने भविष्य के कार्यक्रम को पूरा करने पर काम करेंगे। हाँ, गुप्कर घोषणा हमारे सहयोग का आधार रहेगी।