एक और गुडि़या

उसके गर्दन और गले पर भी काटने के निशान थे और शरीर पर नोचने के. सड़क पर एक रेहड़ी -वाले ने उसे देखा और पुलिस को फोन किया. जब हम अस्पताल पहुंचे, तब खुशी जिंदगी और मौत के बीच में झूल रही थी. उसका बचना बहुत मुश्किल था.’ बच्चों के साथ हो रहे बलात्कार के इन लगातार बढ़ रहे मामलों के बीच अगर आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि पिछले 10 साल में भारत में बच्चों के शारीरिक शोषण के मामलों में 336 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर यकीन करें तो पिछले एक दशक में 48,838 बच्चे बलात्कार  के शिकार हुए हैं और इनमें से मात्र तीन प्रतिशत मामले पुलिस तक पहुंचते हैं.

और जो पहुंचते हैं उनका क्या हश्र होता है उसका संकेत खुशी के पिता की आपबीती से लग जाता है. पिछले चार महीने से कापसहेड़ा पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा रहे कुमार कहते हैं,  ‘कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे मैं अंधेरे में तीर चला रहा हूं. हमारी लड़की ने बताया कि उस आदमी ने कान में नग पहना था, हाथ में घड़ी थी. उसने यह भी बताया कि उसके कपड़े,  फ्राक और चप्पल सूर्या विहार के जंगल में पड़े हैं और पुलिस को मेरी लड़की के कपड़े वहीं मिले भी. वे लोग कह रहे हैं कि उन्होंने डीएनए करवाया है लेकिन हमें तो कुछ नहीं पता. जब हमारी लड़की अस्पताल में भर्ती थी तब तो पुलिसवाले हमें किसी से मिलने नहीं देते थे. कहते थे कि मीडिया से भूलकर भी बात मत करना, हम सब ठीक कर देंगे.

लेकिन जब से लड़की घर आई है, उन्होंने हमारी बात तक सुनना बंद कर दिया है. एसएचओ मुकेश से अपने बच्ची के केस के बारे में पूछने के लिए मैंने थाने के सैकड़ों चक्कर लगाए पर उन्होंने मिलने तक से मना कर दिया. हर बार कह देते हैं कि आरोपी की तलाश जारी है, काम चल रहा है… अरे जब लड़की हमारे पड़ोसी का नाम ले रही है, इतनी छोटी बच्ची भी पिछले चार महीने से एक ही आदमी का नाम ले रही है. लेकिन उन्होंने आरोपी को पकड़कर पूछताछ तक नहीं की. मेरी लड़की कमर से नीचे पूरी घायल थी. एक महीने के इलाज के बाद वह बाथरूम जाना शुरू कर पाई. अभी भी हम उसका इलाज करवा रहे हैं. डरी-सहमी रहती है. पहले दिन भर खेलती-बतियाती थी. अब चुपचाप बैठी रहती है. उन लोगों को पता है कि लड़की जिंदा है और आरोपी को पहचान लेगी, लेकिन फिर भी पुलिस ने हमें सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई है. अस्पताल में तो गार्ड इस गरज से खड़े रहते थे कि हम मीडिया से बात न करें लेकिन लड़की की छुट्टी होने पर वे हमें छोड़ने घर तक भी नहीं आए. चार महीने हो गए हैं और हमारे ही मोहल्ले के ही एक आदमी ने हमारी लड़की को खराब किया लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. अब हमें न्याय की भी कोई उम्मीद नहीं है. एक तो हम लोग पढ़े -लिखे नहीं हैं, ऊपर से अदालती लड़ाई के लिए पैसे नहीं हैं. अरविंद केजरीवाल की पार्टी से मदद मांगता पर उनसे संपर्क कैसे करूं पता नहीं’.

दूसरी तरफ पुलिसिया तफ्तीश में लापरवाही के सभी आरोपों को खारिज करते हुए इस मामले में पुलिस प्रभारी अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (दक्षिण-पश्चिम दिल्ली) एके ओझा कहते हैं, ‘हम सिर्फ गिरफ्तार करने के लिए किसी को भी गिरफ्तार नहीं कर सकते. हम अपना काम कर रहे हैं और जांच चल रही है. जैसे ही हमारे पास गिरफ्तारी लायक सबूत होंगे, हम आरोपियों को गिरफ्तार करेंगे.’

खुशी की नाजुक हालत और इलाज के खर्च को देखते हुए उसके परिवार को ‘दिल्ली पीड़ित मुआवजा स्कीम-2011’ के तहत 25 हजार रु दिए गए थे. सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि दिल्ली गैंग रेप और गुड़िया के बहुचर्चित मामलों के बाद भी जमीनी स्तर पर दिल्ली पुलिस के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है. बलात्कार पीड़ितों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता भारती अली कहती हैं, ‘जो चुनिंदा मामले मीडिया की सक्रियता की वजह से सामने आ जाते हैं, उन सभी में आरोपी तुरंत हिरासत में ले लिए जाते हैं. लेकिन बाकी सभी मामलों में हालात वहीं हैं. पुलिस एफआईआर में गड़बड़ करती है, स्पॉट पर मौजूद सबूतों को छोड़ती चली जाती है और फिर पूरी तहकीकात पटरी से उतर जाती है. इस मामले में भी लड़की कह रही है कि उसे सूर्या विहार के जंगलों में ले जाया गया, लेकिन पुलिस ने अपनी एफआईआर में लिखा है कि घटना बस्ती के एक कमरे में हुई. यह सिर्फ एक उदाहरण है कि आज भी बलात्कार को लेकर पुलिस या प्रशासन उतना ही संवेदनहीन है. जिनके मामलों पर जंतर-मंतर में नारे लग जाते हैं, उनकी गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ जाती है वर्ना आम पीड़ितों की कोई सुनवाई नहीं है.’