एक मौका था ‘यू एस -इंडिया स्ट्रेटेजिक एंड पार्टनरशिप फोरम,जिसमें शामिल वित्तमंत्री अरुण जेटली ने यह टिप्पणी की कि ‘सेंट्रल बंैक ने पिछले दिनों बैंक की क्रेडिट ग्रोथ पर ध्यान नहीं दिया जबकि उस दौरान इसकी ग्रोथ 31 फीसद थी जबकि अमूमन यह 14 फीसद ही रहती है। मुझे नहीं मालूम कि सेंट्रल बैंक क्या कर रहा है। जबकि यह एक नियामक है। ये सच्चाई छिपा रहे हैं।
इसी तरह आरबीआई के उप गवर्नर डा. विरल वी आचार्य ने 26 अक्तूबर 2018 को मुंबई में एडीश्रौफ व्याख्यान माला में भाषण देते हुए टिप्पणी की कि ‘सेंट्रल बैंक के संचित कोष से सरकारी कर्तव्यों को पूरा करना ही उचित विकास नहीं है। अतिरिक्त संचित कोष के औचित्य पर निश्चय की बहस होनी चाहिए। आरबीआई के उप गवर्नर ने यह बात साफ की कि ‘आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सेंट्रल बैंक की आज़ादी के संबंध में ज़्यादा चर्चा होती है। सभी सरकारें सम्मान चाहती हैं। लेकिन जो सरकारें सेंट्रल बैंक को आज़ादी नहीं देती वे जल्दी ही या कुछ बाद में वित्तीय बाजार में मुंह की खाती हैं। वे आर्थिक युद्ध करते हैं और उस दिन को याद कर पछताते हैं जब महत्वपूर्ण नियामक की वे परवाह तक नहीं करते थे।
आरबीआई की 19 नवंबर को हुई बैठक नौ घंटे चली। इससे यह संकेत मिला कि आरबीआई और सरकार के बीच सब कुछ सामान्य है। यह भावना कुछ ऐसी थी जैसे भारतीय रुपया उठ रहा है और उसका लाभ बांड्रस को हुआ। ऐसी चर्चा है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अब एक विशेषज्ञ कमेटी गठित करेगा इसमें भारत सरकार के लोग भी होंगे। यह कमेटी उस ‘अतिरिक्त पूंजीÓ की छानबीन करेगी जो संभवत: सेंट्रल बैंक के पास है। आरबीआई बोर्ड ने 9.69 करोड़ की अतिरिक्त पूंजी की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बना दी है और सलाह दी कि एक योजना बना कर छोटे, मझोले उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र की पूंजी को दुरूस्त करें। बोर्ड की नौ घंटे लंबी चली इस बैठक में यह भी तय पाया कि बोर्ड ऑफ फाइनेंशियल सुपरविजन (बीएफएस) इन मुद्दों का परीक्षण करे जो बैंकों से संबंधित हैं और प्रॉम्पट करेक्शन एक्शन फ्रेमवर्क में है।
आरबीआई की वकालत
सरकार का दावा है कि आरबीआई के पास 3,60,000 करोड़ रुपए मात्र की अतिरिक्त पूंजी है जो उसे दी जानी चाहिए। लेकिन आरबीआई के अधिकारी जिनमें उर्जित पटेल भी हैं, नहीं चाहते कि यह पूंजी उधार दी जाए क्योंकि उनकी इच्छा है कि इस पूंजी को आरबीआई के पास ही रहने दिया जाए जिससे वह देश की तब मदद कर सके जब वह किसी भंयकर त्रासदी का सामना कर रहा हो या उसे भारी आर्थिक धक्के लगें । अतिरिक्त पूंजी के होने से सेंट्रल बैंक के कार्यक्रमों में आपरेशन्स से हुए नुकसान की भरपाई भी होती है। चूंकि लाभ दिलाने के लिए ऐसे उचित नियम हैं, जिनसे पूंजी का आना और उसका संरक्षण हो। जिन्हें सरकार से अलग एक स्वायत्तता बनाए रखने में सहयोग मिलता है अंंितम मुद्दा नियमन का है। इसमें सिफारिश की गई है कि भुगतान और निपटान की प्रणाली पर सेंट्रल बैंक की शक्तियों को नजऱअंदाज करते हुए अलग से एक भुगतान नियामन की नियुक्ति हो। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 19 नवंबर की इस सिफारिश के खिलाफ अपना विरोध प्रकाशित किया है।
अगली बैठक अब 14 दिसंबर को
बोर्ड की अगली बैठक अब 14 दिसंबर को संभावित है। बोर्ड की इस मैराथन बैठक में सरकार के मनोनीत निदेशक आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग और वित्तीय सेवाओं के सचिव राजीव कुमार और स्वतंत्र सदस्य एस गुरुमूर्ति भी थे
अब अगली बैठक 14 दिसंबर को होगी जब कुछ राज्य विधानसभाओं की चुनावी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। बहरहाल युद्ध का इकतरफा विराम हुआ है। समाधान की इस उम्मीद के साथ बैठक खत्म हुई कि सेंट्रल बैंक एक पैनेल गठित करके अतिरिक्त संचित कोष और छोटे व्यवसायों के लिए कजऱ्ों का री-स्ट्रकचर करके 25 करोड़ तक के कर्ज देगा। और इस योजना में आरबीआई आठ हजार करोड़ का निवेश करेगा।
धारा सात के तहत
ऐसी संभावना है कि सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट से धारा सात का आहवान करेगी जिससे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया अपने अतिरिक्त धन का इस्तेमाल एक बेहतर विकल्प बतौर कर सके। सरकार का यह नज़रिया जान पड़ता है कि चूंकि सारी दुनिया में सेंट्रल बैंक अपनी पूंजी का 13 से 14 फीसद अपने पास सुरक्षित रखते हैं जबकि आरबीआई के पास 27 फीसद सुरक्षित धन है। उसे कम किया जाए। आर्थिक मामलों के सविच सुभाष चंद्र गर्ग ने अभी हाल ट्वीट करके तमाम गलत-फहमियों पर विराम लगा दिया है कि मीडिया में गलतफहमियां ही गलतफहमियां है। जबकि सरकार का वित्तीय हिसाब-किताब एक दम सही दिशा में है।
आरबीआई को कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया है कि वह 3.6 या एक लाख करोड़ जैसा अनुमान है उससे वित्तीय घाटे का लक्ष्य पूरा होगा। नौ नवंबर को सरकार ने साफ किया था कि इसे रुपए 3.6 लाख करोड़ का संचित धन आरबीआई से नहीं चाहिए। जबकि इसका प्रस्ताव सिर्फ इतना था कि सेंट्रल बैंक के केपिटल फ्रेमवर्क में वाजिब पूंजी फिक्स कर दी जाए। इस मुद्दे पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कि सरकार वित्तीय वर्ष में 3.3 फीसद के घाटे का लक्ष्य रख रही है। सरकार का एफडी (वित्तीय घाटाा) 2013-14 में 5.1 फीसद था। सरकार इसे 2014-15 में कम करने में सफल रही। हम वित्तीय वर्ष 2018-19 में 3.3 फीसद वित्तीय घाटा कम कर लेगें। सरकार ने इस साल 70 हजार करोड़ का बजटीय बाजार बनाया है। गर्ग ने आगे जानकारी दी कि प्रस्ताव जो चर्चा में था उसे छोड़ा जाए और आरबीआई के कैपिटल फ्रेमवर्क में उचित आर्थिक पूंजी रहे। यह सफाई तब आई जब यह रपट आई कि सरकार रिजर्व बैंक के 96 करोड़ लाख करोड़ के संचित धन में से कम से कम एक तिहाई चाहती है। इसके साथ ही यह भी जताया गया कि सरकार चाहती है कि आरबीआई के साथ और तनाव हो जो सेंट्रल बैंक की आजादी कम करने के पक्ष में कतई नहीं है।
अंधड़ के पहले शांति
जब कमेटियां गठित हो रही हों तो यह मानना कि आरबीआई और सरकार के बीच सब कुछ सामान्य है वह गलत ही है। अब सबकी निगाहें 14 दिसबंर को होने वाली बैठक पर हैं। जब यह मालूम हो सकेगा कि तनाव का सिलसिला रहेगा या यह थमेगा। इसके पहले तक तो यह अंधड़ से पहले शांति ही है।




