अक्षय ऊर्जा से दूर होगा अँधेरा

देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कम्पनी एनटीपीसी के बिजली उत्पादन के नज़रिये में हाल ही में परिवर्तन आया है। सन् 2012 में अक्षय ऊर्जा के कारोबार में आयी एनटीपीसी ने अगस्त, 2020 में निवेशकों के लिए तैयार किये ये प्रस्तुतिकरण बुकलेट के पहले पन्ने पर वर्षों से प्रकाशित की जा रही बड़े तापीय विद्युत संयंत्रों की तस्वीरों के स्थान पर एक नन्हें पौधे की तस्वीर छापी है और उसके नीचे जेनरेटिंग्रोथ फॉर जेनरेशन लिखा है; जो इस बात का प्रतीक है कि अब एनटीपीसी का ज़ोर पारम्परिक ऊर्जा के उत्पादन की जगह अक्षय ऊर्जा के उत्पादन पर रहेगा और वह अक्षय ऊर्जा की मदद से 62 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 130 मेगावॉट करेगी।

हालाँकि इस बदलाव का एक बड़ा कारण वैश्विक स्तर पर बिजली परियोजनाओं के लिए धन मुहैया कराने वाले कर्ज़दाताओं का रुझान पारम्परिक ऊर्जा की तरफ होना है। इसी वजह से ऊर्जा क्षेत्र की कम्पनियाँ मौज़ूदा समय में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन पर ज़ोर दे रही हैं। वैश्विक कर्ज़दाता कार्बन उत्सर्जन की अधिकता, नियामकीय स्तर पर जोखिम और आर्थिक नुकसान के खतरे को देखते हुए कोयला आधारित सभी ताप बिजली परियोजनाओं में निवेश करने से परहेज़ कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर वैश्विक कर्ज़दाताओं में से एक ब्लैकरॉक ने कोल इंडिया, एनटीपीसी और अडाणी एंटरप्राइजेज में बड़ी राशि निवेश कर रखी है; लेकिन अब यह सिर्फ अक्षय ऊर्जा पर आधारित परियोजनाओं में निवेश करना चाहता है। अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी, इकोनॉमिक्स ऐंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के अनुसार, लगभग 20 सॉवरिन फंड, परिसम्पत्ति प्रबन्धकों और पेंशन फंड ने कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में निवेश नहीं करने की बात कही है। विदेशी बैंक भी कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं के लिए पूँजी मुहैया कराने से मना कर रहे हैं, जिससे अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू करने या मौज़ूदा परियोजनाओं को गति देने में तेज़ी आ रही है।

ऊर्जा क्षेत्र की सभी कम्पनियाँ कोयला आधारित बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। उदाहरण के तौर पर जेएसडब्ल्यू एनर्जी और टाटा पॉवर ताप विद्युत क्षमता में इज़ाफा करने की जगह अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाना चाहती हैं। जेएसडब्ल्यू एनर्जी आगामी पाँच वर्षों में 10 मेगावॉट क्षमता वाली कम्पनी बन सकती है, जिसमें अक्षय ऊर्जा का योगदान 100 फीसदी होगा। जेएसडब्ल्यू एनर्जी ने शून्य कार्बन उत्सर्जन का भी लक्ष्य रखा है, जिसे वह 2050 तक हासिल करना चाहती है।

टाटा पॉवर भी वर्ष 2025 तक कुल बिजली उत्पादन में 60 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा से पूरा करना चाहती है और वर्ष 2030 तक वह इसे बढ़ाकर 75 फीसदी करना चाहती है। कम्पनी की योजना वर्ष 2050 तक अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली उत्पादक बनने की है। अडाणी एंटरप्राइजेज ऊर्जा क्षेत्र के लिए आवंटित राशि में से 70 फीसदी से अधिक राशि अक्षय ऊर्जा की क्षमता को विकसित करने में खर्च करेगी। अडाणी समूह ने वर्ष 2025 तक 25 मेगावॉट क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है। सेंबकॉर्प एनर्जी इंडिया लिमिटेड (एसईआईएल) ने भी अक्षय ऊर्जा की मदद से 800 मेगावॉट बिजली उत्पादन करना शुरू किया है। इसकी अल्प हिस्सेदारी भारतीय सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) की पवन ऊर्जा परियोजनाओं में भी है।

मौज़ूदा सरकार भी अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में इज़ाफा करना चाहती है। इसके लिए मेक इन इंडिया के लिए चिह्नित क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र को भी शामिल किया गया है। स्टार्ट अप इंडिया की संकल्पना मेक इन इंडिया से जुड़ी हुई है। स्टार्ट अप इंडिया के तहत ऐसे उद्यमियों, जो मेक इन इंडिया अभियान से जुड़े हैं; की मदद की जाती है। क्योंकि किसी नये उद्योग को शुरू करने में अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। सरकार द्वारा शुरू की गयी योजनाओं की मदद से कोई भी आत्मनिर्भर बन सकता है। जब देश का हर युवा आत्मनिर्भर होगा, तो स्वाभाविक रूप से अर्थ-व्यवस्था मज़बूत होगी और देश में खुशहाली आयेगी।

ऊर्जा एवं अक्षय ऊर्जा का महत्त्व

हमारे जीवन में ऊर्जा का महत्त्व अतुलनीय है। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। सदियों से मानव अपनी आवश्यकता के लिए ऊष्मा, प्रकाश आदि को ऊर्जा के स्रोत के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। ऊर्जा की कमी की वजह से हमारा देश दूसरे देशों से पिछड़ता जा रहा है। ऊर्जा की बदौलत ही औद्योगिक विकास में बढ़ोतरी, रोज़गार में इज़ाफा, ग्रामीण पिछड़ेपन को दूर करने में मदद, अर्थ-व्यवस्था में मज़बूती, विकास दर में तेज़ी आदि सम्भव है। वर्तमान में ऊर्जा का मुख्य स्रोत कोयला है; लेकिन इसकी उपलब्धता सीमित है। इसलिए अक्षय ऊर्जा की खोज की गयी। अक्षय का अर्थ होता है- असीमित। अर्थात् जिसका उत्पादन हमेशा किया जा सके। हमारे देश में अक्षय ऊर्जा के स्रोत मसलन, सूर्य की रोशनी, नदी, पवन, ज्वार-भाटा आदि हैं। यह सस्ती भी है और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुँचाती है। ऊर्जा के स्रोत को दो भागों में विभाजित किया गया है। पहले वर्ग में वो स्रोत आते हैं, जो कभी खत्म नहीं होंगे। इस वर्ग में सौर और वायु ऊर्जा, जल ऊर्जा, जैव ईंधन आदि को रखा जाता है। दूसरे वर्ग में वो स्रोत आते हैं, जिनके भण्डार सीमित हैं। प्राकृतिक गैस, कोयला, पेट्रोलियम आदि ऊर्जा के स्रोत को इस श्रेणी में रखा जाता है। परमाणु ऊर्जा का वर्गीकरण भी इस श्रेणी में किया जा सकता है; क्योंकि यूरेनियम की मदद से ही परमाणु ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है और यूरेनियम का भण्डार सीमित है। भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र को व्यापक और प्रभावी बनाने के लिए नवीन एवं अक्षय ऊर्जा के नाम से एक स्वतंत्र मंत्रालय बनाया गया है। भारत विश्व का पहला देश है, जहाँ अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए एक अलग मंत्रालय है।

बजट में अक्षय ऊर्जा को तरजीह

वित्त वर्ष 2020-21 में ऊर्जा व अक्षय ऊर्जा के लिए 22,000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि सरकार अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने के प्रति कितनी गम्भीर है। इतना ही नहीं, अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेज़ी लाने के लिए सरकार अक्षय ऊर्जा के उत्पादकों को आर्थिक मदद, कर में छूट, सब्सिडी आदि भी मुहैया करा रही है।

अक्षय ऊर्जा के कारोबारी

अक्षय ऊर्जा का सबसे अधिक उत्पादन पवन एवं सौर ऊर्जा के ज़रिये होता है। भारत में पवन ऊर्जा की शुरुआत सन् 1990 में हुई थी। लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में बहुत तेज़ी से प्रगति हुई है। आज भारत के पवन ऊर्जा उद्योग की तुलना विश्व के प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादक अमेरिका और डेनमार्क से की जाती है। भारत में पवन ऊर्जा उत्पादित करने वाले राज्यों में तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश आदि हैं। भारत के बड़े पवन ऊर्जा पार्कों में तमिलनाडू का मुपेंडल, राजस्थान का जैसलमेर, महाराष्ट्र का ब्रहमनवेल, ढालाँव, चकाला, वासपेट आदि हैं। इस क्षेत्र में मुख्य कारोबारी सूजलन एनर्जी, परख एग्रो इंडस्ट्री, मुपेंडल विंड, रिन्यू पॉवर आदि हैं। पवन ऊर्जा के मुकाबले सौर ऊर्जा का उत्पादन भारत में अभी भी शैशवावस्था में है, जबकि इस क्षेत्र में विकास की सम्भावना पवन ऊर्जा से अधिक है।

तकनीक की कमी एवं जानकारी के अभाव में भारत अभी ज़्यादा मात्रा में सौर ऊर्जा नहीं उत्पादित कर पा रहा है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत सन् 2000 के बाद से ज़्यादा सक्रिय हुआ है। भारत में सौर ऊर्जा की अपार सम्भावनाएँ हैं; खासकर रेगिस्तानी इलाकों में। भारत के सौर ऊर्जा कार्यक्रम को संयुक्त राष्ट्र का भी समर्थन मिला हुआ है। सौर ऊर्जा के उत्पादन के क्षेत्र में भारत द्वारा ऋण देने के कार्यक्रम को भी संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम का समर्थन हासिल है। भारत के इस कार्यक्रम को एनर्जी ग्लोब वल्र्ड पुरस्कार मिल चुका है। भारत चाहता है कि सौर ऊर्जा मौज़ूदा बिजली से सस्ती हो। इस लक्ष्य को अनुसंधान की मदद से हासिल किया जा सकता है। भारत के प्रमुख सौर ऊर्जा उत्पादकों में वेलस्पून एनर्जी, मीठापुर सोलर पॉवर प्लांट, अडानी पॉवर, चंरका सोलर पार्क आदि शामिल हैं।

उत्पादन की रफ्तार

अक्टूबर, 2019 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 83 मेगावॉट की थी, जिसे वर्ष 2022 तक बढ़ाकर 175 मेगावॉट करने का लक्ष्य है। एक आकलन के अनुसार, वर्ष 2030 में देश में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में से 55 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा का हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के जलवायु सम्मेलन में कहा था कि वर्ष 2030 तक भारत 450 मेगावॉट बिजली का उत्पादन अक्षय ऊर्जा की मदद से कर सकता है।

कार्बन उत्सर्जन कम करने का प्रयास

कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत में अक्षय ऊर्जा की मदद से माइक्रो ग्रिड की स्थापना की जा रही है साथ ही साथ मौज़ूदा ग्रिड को आधुनिक भी बनाया जा रहा है। साथ ही अक्षय ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश तेज़ी से की जा रही है।

किफायती ऊर्जा

ऊर्जा के सीमित संसाधन व आयात की ऊँची लागत के मद्देनज़र अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में नवोन्मेष और शोध पर ज़ोर दिया जा रहा है। ऐसा करने से बिजली उत्पादन की लागत को कम किया जा सकता है। आज विकास में सबसे अहम भूमिका ऊर्जा की है। सौर ऊर्जा घर से बिजली की लागत में उल्लेखनीय कमी लायी जा सकती है। शोध और अनुसंधान से इसे और भी कम किया जा सकता है।

उत्पादन की सम्भावनाएँ

हमारे देश में प्रकृति प्रदत्त बहुत सारी सौगातें हैं। तालाब में सौर पैनल लाया जा सकता है। नदी के पानी से ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है। हवा से भी ऊर्जा बनायी जा सकती है। सौर और पवन ऊर्जा के ज़रिये हाइब्रिड बिजली उत्पादित की जा सकती है।

महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में पवन निर्बाध रूप में बहता है। पवन की तेज़ गति पवन ऊर्जा के उत्पादन के लिए मुफीद मानी जाती है। सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के ग्रामीण इलाकों में बहुत ही अच्छा काम हो रहा है। देश के अनेक राज्यों में घर-घर में सौर ऊर्जा-घर देखे जा सकते हैं। भले ही पवन ऊर्जा का उत्पादन पूरे देश में सम्भव नहीं है, लेकिन सौर ऊर्जा के क्षेत्र में ऊर्जा उत्पादन की अपार सम्भावनाएँ हैं। आज देश के दूर-दराज़ के गाँवों में भी छोटे सौर ऊर्जा घरों से ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। अपशिष्ट से भी घर-घर में ऊर्जा उत्पादित किया जा सकता है। इसमें सबसे प्रचलित जैव ईंधन है। वैसे इस संदर्भ में शहरी, औद्योगिक और बायोमेडिकल अपशिष्ट से भी ऊर्जा उत्पादित की जा सकती है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में जल एवं ज्वार-भाटा से भी ऊर्जा बनाया जाता है; लेकिन भारत में इसकी सम्भावना सीमित है।

फायदे

अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कौशल को विकसित करने, कारोबार शुरू करने, वस्तु, उत्पाद, उपकरण आदि के निर्माण की असीम सम्भावनाएँ हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इस क्षेत्र में स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और मेक इन इंडिया की संकल्पना को व्यापक फलक में आकार मिलेगा, जिससे भारत और भारतीय आत्मनिर्भर बन सकें। अक्षय ऊर्जा की मदद से कारोबार को कम पूँजी में शुरू किया जा सकता है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ खेती-किसानी मॉनसून पर निर्भर है। लेकिन सौर ऊर्जा की मदद से सिंचाई कार्य किया जा सकता है। बिजली की उपलब्धता से छोटे-मोटे उद्योग-धन्धे भी शुरू किये जा सकते हैं। बड़े उद्योगों में भी काम-काज इसकी मदद से निर्बाध गति से चल सकता है। आज दक्षिण भारत सहित देश के अनेक हिस्सों में सौर ऊर्जा घर की मदद से बिजली उत्पादन किया जा रहा है।

निष्कर्ष

हम प्रकृति से प्रेम करते हैं। हम नदी को माँ मानते हैं। पवन को देवता मानते हैं। प्रकृति से जुड़ाव हमारे स्वभाव में है। समाज के कमज़ोर तबके के लोग भी चाहते हैं कि उनके बच्चों को शिक्षा मिले; लेकिन बिजली नहीं होने के कारण उनकी पढ़ाई-लिखाई बाधित रहती है। ऐसे में अक्षय ऊर्जा की मदद से स्थिति में सकारत्मक बदलाव आ रहे हैं। हालाँकि इस दिशा में बहुत-से कार्य किये जाने की ज़रूरत है, ताकि भारत और भारतीयों का भविष्य उज्ज्वल बन सके। आज हम मेगावॉट में बिजली उत्पादन की बात कर रहे हैं, जो निश्चित रूप से अक्षय ऊर्जा की वजह से ही सम्भव हुआ है।