हैदराबादी रुपया

प्रथम विश्वयुद्ध के समय हैदराबाद भारत की वह रियासत थी जिसने अंग्रेजों की सबसे ज्यादा मदद की थी. हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खान, जिन्हें 1937 में अमेरिका की पत्रिका टाइम ने दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति बताया था, ने ब्रिटिश सरकार को वायु सेना की एक स्क्वाड्रन गठित करने के लिए काफी पैसा दिया था. इसे बाद में हैदराबाद स्क्वाड्रन नाम से जाना गया. यही मुख्य वजह थी कि जब निजाम ने अंग्रेजी शासन के सामने रियासत की अपनी मुद्रा जारी करने का प्रस्ताव रखा तो तत्कालीन सरकार इस पर सहमत हो गई. इस तरह भारत में दो मुद्राएं प्रचलित हो गईं.

1918 में रियासत में 5, 10 और 100 रुपये के नोट प्रचलन में आ गए. इन्हें हैदराबादी रुपया कहा गया. इनकी छपाई तब इंग्लैंड के छापेखानों में होती थी और वहां से जहाज के जरिए ये भारत आते थे. 1942 में हैदराबाद स्टेट बैंक (जिसका नाम बाद में स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद हो गया) की स्थापना हुई. इसे हैदराबादी मुद्रा के प्रबंधन का जिम्मा सौंपा गया.

1948 में जब हैदराबाद का भारत में विलय तय हुआ तब रियासत में प्रचलित मुद्रा एक बड़ी समस्या बन गई. स्वतंत्र भारत की सरकार ने तय किया कि कुछ सालों तक देश में दोनों मुद्राएं प्रचलित रह सकती हैं. इस दौरान सरकार ने 7 हैदराबादी रुपये के बदले 6 भारतीय रुपये की विनिमय दर निश्चित कर दी. आखिरकार 1951 में हैदराबादी रुपये की छपाई पूरी तरह से बंद कर दी गई. लेकिन अगले आठ साल तक इसकी वैधता कायम रही.   
-पवन वर्मा