शिक्षा पर भारी ठेकेदारी

मुसलमानों को अच्छी तालीम मुहैया कराने के मकसद से सर सैय्यद अहमद खां ने अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की स्थापना की थी. लेकिन पिछले 30 वर्षों के दौरान एक नहीं बल्कि कई बार ऐसे मौके आए हैं जब शिक्षकों और छात्रों के दो गुटों द्वारा इस संस्था को राजनीति का अखाड़ा बनाने के आरोप लगे हैं. कई बार बात इससे भी आगे गई है और इल्जाम लगा है कि निर्माण कार्यों के ठेके से लेकर छात्रों के एडमिशन में पैसा वसूलने के रूप में विश्वविद्यालय काली कमाई का एक बहुत बड़ा जरिया बन गया है. अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर मदीउर्रहमान बताते हैं, ‘इस जरिये पर काबिज होने के लिए शिक्षकों और छात्रों के दो गुटों में कई साल से तलवारे खिंची हुई हैं. जिस गुट के लोगों को ठेके मिल जाते हैं वह कुलपति के पक्ष में खड़ा होता है और जिसे ठेके नहीं मिल पाते वो वीसी व उनके सहयोगी गुट के खिलाफ खड़ा हो जाता है. शिक्षकों के गुट छात्रों को अपना हथियार बनाते हैं.’ एएमयू के पूर्व छात्र माजिन बताते हैं कि साइकिल स्टैंड, कैंटीन, कैंपस में दुकानों, गार्डों की वर्दी आदि के ठेके पाने के लिए शिक्षकों में होड़-सी लगी रहती है और इस तरह के ठेके इंतजामिया के रिश्तेदार व उनसे जुडे़ लोगों को ही दिए जाते हैं.

हाल ही में हुई एक हिंसक घटना से यह मुद्दा फिर सुर्खियों में आ गया. 28 अप्रैल की रात जब एक छात्र नेता मुश्ताक अपने पांच साथियों के साथ कंट्रोलर प्रो परवेज और डिप्टी कंट्रोलर रिजवानुर्रहमान के पास एक छात्र का एडमिशन खारिज होने का कारण पूछने गए तो उनके बीच विवाद इतना बढ़ गया कि रिजवानुरहमान और मुश्ताक में मारपीट  हो गई. मारपीट की सूचना मिलने पर कंट्रोलर ऑफिस पर मुश्ताक के पक्ष में छात्र इकट्ठे होने शुरू हो गए. इसके जवाब में छात्रों का एक गुट कंट्रोलर और डिप्टी कंट्रोलर के पक्ष में भी आ खड़ा हुआ. जिला प्रशासन के आला अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर मामला शांत करवाया.

बताया जाता है कि इस घटना के बाद छात्रों का एक गुट लगातार कंट्रोलर और डिप्टी कंट्रोलर को हटाने की मांग कर रहा था और अध्यापकों का एक गुट इनका समर्थन कर रहा था. वहीं दूसरी ओर कंट्रोलर व डिप्टी कंट्रोलर को भी दूसरे गुट से सहयोग मिल रहा था. यहीं से वर्चस्व की यह लड़ाई शुरू हो गई. 29 अप्रैल की शाम मेडिकल रोड स्थित जकरिया मार्केट पर छात्रों के एक गुट ने दूसरे पर हमला बोल दिया. मौके पर पहुंचे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने मामला शांत कराया. इस घटना के बाद छात्रों का एक गुट अपनी बात रखने के लिए प्रॉक्टर कार्यालय पहुंचा. इसी दौरान छात्रों के दूसरे गुट ने प्रॉक्टर कार्यालय को घेर लिया. कुछ देर बाद दोनों ओर से फायरिंग शुरू हो गई. लगभग दो घंटे तक चले इस खूनी टकराव में नौ छात्र घायल हुए. इसके बाद एएमयू के कार्यवाहक कुलपति प्रो अबरार हसन ने एएमयू को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने का फैसला लिया और छात्रों को कैंपस खाली करने के लिए 48 घंटे का समय दिया गया. टकराव से पहले शिकायत दर्ज कराने प्रॉक्टर कार्यालय पहुंचे छात्रों में से एक बुरहान खान कहते हैं, ‘हम मेडिकल पर हुई झड़प की शिकायत करने प्रॉक्टर प्रो. मुजाहिद बेग से करने आए थे. हम लोग यहां पर आए हैं इसकी जानकारी दूसरे गुट को कैसे हो गई? हमें पूरा विश्वास है कि इसकी जानकारी खुद मुजाहिद बेग ने दूसरे गुट को दी होगी. दूसरे गुट ने वहां पहुंचकर हमारे ऊपर फायरिंग शुरू कर दी. हम प्राक्टर से गुहार लगाते रहे कि आप पुलिस को फोन करें और हमें बचाएं पर बेग साहब ने हमारी एक न सुनी और वह खुद अपने कार्यालय के पीछे के गेट से भाग खडे़ हुए.’ बुरहान बताते हैं कि छात्रों के दो गुटों में हुई लड़ाई की वजह प्रॉक्टर बेग ही हैं जो कंट्रोलर को हटाना चाहते हैं.

इस खूनी टकराव से पहले इन सभी छात्रों ने मिलकर छात्र संघ चुनाव कराने को लेकर तकरीबन दो महीने तक ऐतिहासिक धरना चलाया था. तब कोई भी छात्र गुट हावी नहीं था. सभी एक साथ थे. छात्र संघ बनने के बाद छात्र गुटों में बंट जाएंगे इसका अंदेशा तो सभी को था लेकिन यह इतनी जल्दी हो जाएगा ऐसी उम्मीद लोगों को न थी.

बेग कुछ दिनों पहले ही प्रॉक्टर बने हैं और उन्हें लगातार विरोधों का सामना करना पड़ रहा है. बेग का विवादों से पुराना नाता है. जब वे छात्र थे तब उन्होंने पास होने के लिए अपने शिक्षक डाॅ अबु कमर के घर जाकर उनकी पत्नी पर रिवाल्वर तान दी थी. डॉ कमर ने पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी और बेग को निलंबित कर दिया गया था. तीन साल पहले एएमयू में जरनल बॉडी की मीटिंग के दौरान उन पर महिला शिक्षक रिहान रजा से छेड़खानी का भी आरोप लगा था. इसके बावजूद उन्हें इतना अहम ओहदा मिलना कई शिक्षकों और छात्रों को हैरान कर रहा है.

निर्माण कार्यों के ठेके से लेकर छात्रों के एडमिशन में पैसा वसूलने के रूप में विश्वविद्यालय काली कमाई का एक बहुत बड़ा जरिया बन गया है

छात्रों में हुए खूनी टकराव के बाद एएमयू में की गई साइनडाई के विरोध में एएमयू टीचर्स एसोसिएशन (अमुटा) ने स्टाफ क्लब के सामने अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया. उनकी मांग थी कि साइनडाई समाप्त हो और कुलपति व प्रॉक्टर भी अपने पद से इस्तीफा दें. अमुटा के अध्यक्ष प्रो. अब्दुल कय्यूम कहते हैं, ‘छात्र संघ के चुनाव के बाद कुछ छात्रों की खरीद-फरोख्त हुई. प्रॉक्टर ने दबंग छात्र अपने पास रखे व कुछ कंट्रोलर से जुड़ गए. यह बवाल इसी का नतीजा है.’ शिक्षकों का धरना चल ही रहा था कि छात्र संघ ने भी साइनडाई के विरोध में अपना तंबू गाड़ दिया. छात्र संघ के अध्यक्ष अबु अफ्फान फारुखी कहते हैं, ‘आखिरकार ऐसा माहौल क्यों बनता है कि इंतजामिया को हर साल एएमयू में साइनडाई करनी पड़ती है? इस साइनडाई की जांच क्यों नहीं होती? यह सब प्रॉक्टर बेग की चाल है.’ वे चाहते हैं कि एएमयू में एक ही तरह की सोच के लोग रहें जिससे उनका धंधा चल सके.

उधर, चारों तरफ से विरोध झेल रहे प्रॉक्टर मुजाहिद बेग खुद को निर्दोष बताते हैं. वे कहते हैं, ‘मैं छात्र जीवन से ही सही बात के लिए लड़ रहा हूं. हम लोगों का एक गुट है और हम गलत चीजों के विरोध में लड़ते आए हैं इसलिए हमसे कुछ लोग भय खाते हैं. मेरे खिलाफ दो रिपोर्टें हुई हैं और मैं दोनों मामलों में बरी हुआ. मेरे और मेरे साथ के लोगों पर झूठे केस लगवाए जाते हैं. एक गुट है जो पिछले 30 सालों से एएमयू को चूस रहा है. यहां सारे ठेके इस गुट को जाते थे. ये लोग करोड़ों कमाते थे. अब इनकी कमाई वीसी साहब ने बंद कर दी है. अब इस गुट के शिक्षकों ने वीसी पर भी झूठे केस लगाना शुरू कर दिया है.’ कैंपस में अफवाह यह भी है कि इंतजामिया से जुडे़ अफसरों के बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए भी कंट्रोलर को हटाने की कोशिश की जा रही है.

शिक्षकों और छात्रसंघ का बढ़ता दबाव काम आया और वीसी पीके अब्दुल अजीज ने 16 मई को एएमयू खोलने का आदेश जारी कर दिया. उनका कहना है कि जिस समय छात्रों के बीच टकराव हुआ तब वे केरल में थे. उनके मुताबिक साइनडाई का फैसला इसलिए लिया गया कि हालात बहुत नाजुक थे और वे कैंपस में खून की एक बूंद भी देखना नहीं चाहते थे. वे कहते हैं कि किसी भी छात्र का सत्र बर्बाद नहीं. होने दिया जाएगा. कुलपति ने 29 अप्रैल की रात कैंपस में हुए बवाल के सिलसिले में 38 छात्रों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है और उनके कैंपस में प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है.

लेकिन सवाल उठता है कि बीमारी की वजहों की बजाय सिर्फ उसके लक्षणों का इलाज करने से क्या होगा.