मैं और मेरी दुनिया

अतीत

मुझे लगता है कि मेरी सोच में मेरे पिता का आदर्शवाद बसा हुआ है. वे एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. लेकिन उन्होंने कभी अपने संपर्कों का इस्तेमाल नहीं किया. उस जमाने में वे एमए-एलएलबी थे मगर वे एक दुकान चलाते थे. पहले विलिंगटन हॉस्पिटल के पीछे उनकी एक छोटी-सी दुकान हुआ करती थी. बाद में उन्होंने एनएसडी में कैंटीन खोली. एक बार तो किराया न चुका पाने की वजह से हमें अपने फ्लैट से भी निकाल दिया गया था. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, ऊंची तालीम पाया एक शख्स जिसे मोहम्मद यूनुस से लेकर इंदिरा गांधी जैसी हस्तियां तक जानती थीं, लेकिन उसने कभी इस जान-पहचान का इस्तेमाल नहीं किया. अपनी चाय की दुकान चलाता रहा. इसलिए अपनी किताब में मैंने उन्हें सबसे कामयाब नाकामयाब कहा है. जैसे वे मेरे लिए थे वैसा ही मैं अपने बच्चों के लिए हूं—एक दोस्त, एक शिक्षक और हमेशा उन्हें खुश रखने की कोशिश करने वाला शख्स.

मैं 15 साल का था जब कैंसर के चलते मेरे पिता गुजर गए. एक तो उनकी थोड़ी कमाई और दूसरे उनकी असमय मौत ने शायद मेरी मां को ज्यादा व्यावहारिक बना दिया. उन्हें अहसास था कि बच्चों को पालने-पोसने और अच्छी शिक्षा देने की जिम्मेदारी उनके ही कंधों पर है. उनकी मौत भी बहुत मुश्किल परिस्थितियों में हुई. तब वे बस 47 या 48 साल की थीं और मुझे लगता है कि अगर उन्होंने इतनी हाड़तोड़ मेहनत न की होती तो वे और जीतीं. तब मेरी उम्र 25 साल थी.

पिता की मौत के बाद ही मेरी बहन बीमार रहने लगी थी. तब मनोचिकित्सा के बारे में इतनी जानकारी नहीं हुआ करती थी. उसके लिए ठीक इलाज ढूंढ़ने में हमें चार-पांच साल लगे. इसके बाद उसे उबरने में पांच साल लगे जिस दौरान वह मां पर निर्भर हो गई थी. फिर मां भी गुजर गईं जिससे वह बुरी तरह टूट गई. हालांकि अब वह पहले से काफी बेहतर है और मेरे ही साथ रहती है.

मां-बाप के गुजरने के बाद मुझे अहसास हुआ कि आदर्शवाद और व्यावहारिकता दोनों जरूरी हैं. तो मुझमें मेरे पिता का आदर्शवाद भी है और मां की व्यावहारिकता भी. इसलिए मैं खुद को एक ईमानदार व्यक्ति कहता हूं जो व्यावहारिक भी है.

पैसे और शादियों में नाचने पर

मैंने कभी नहीं कहा कि मैं शादियों में नाचता हूं. मैं एक परफॉर्मर हूं और इसके मायने समझे जाने चाहिए. मैं शादियों में परफॉर्म करता हूं लेकिन उसका खर्च उठाना चुनिंदा लोगों के बूते की ही बात है. हम इसे एक शो की तरह करते हैं और इसकी कुछ शर्तें होती हैं. मसलन यह एक ऐसे एरिया में होना चाहिए जहां खाना-पीना न हो रहा हो. परफॉर्मेंस रात को नौ बजे शुरू होगा और साढ़े ग्यारह बजे खत्म हो जाएगा. मंच 30 बाई 40 फुट का होगा. हम किसी के साथ बात नहीं करेंगे. न ही हम आपका खाना खाएंगे. हम आपके रिश्तेदारों के साथ तस्वीरें नहीं खिंचवाएंगे जब तक  हम खुद ऐसा न करना चाहें. हम आएंगे, परफॉर्म करेंगे और चले जाएंगे. यानी इसका एक स्तर होता है. बहुत कम लोग ही इसका खर्च उठा सकते हैं मसलन लक्ष्मी निवास मित्तल जैसी हस्तियां. मैं शादी के संगीत में नहीं नाचता.

जब मैं युवाओं को अपने जैसा होने को कहता हूं तो मैं वास्तव में मानता हूं कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूं जो किसी भी भारतीय को करना चाहिए. उसे कोशिश करनी चाहिए, कड़ी मेहनत करनी चाहिए, पैसा कमाना चाहिए और अच्छी तरह से जिंदगी गुजारनी चाहिए.

धर्म

मैं नास्तिक नहीं हूं. मैं ऊपरवाले पर यकीन करता हूं. मैं जन्म से मुसलमान हूं तो मैं इस्लाम को और धर्मों की तुलना में थोड़ा बेहतर जानता हूं. हालांकि अब तक मेरी जिंदगी के ज्यादातर हिस्से में मेरे इर्द-गिर्द हिंदू ही रहे हैं. रामलीला मुझे बड़ी अच्छी लगती थी. जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ी है और मैं देख रहा हूं कि दुनिया में इस्लाम को लेकर क्या हो रहा है, मुझे यह अहम लगता है कि इस्लाम के बारे में पूरी तरह से जाने बिना भी मुझे इसकी अच्छाई के साथ खड़े रहने की जरूरत है. एआर रहमान ने एक बार मुझे एक एसएमएस भेजा था. इसमें लिखा था कि आप इस्लाम के दूत हैं. मुझे लगता है कि मैं वास्तव में हूं. मैं इस्लाम के सिद्धांतों पर चलता हूं. ये हैं अमन, अच्छाई और मानवता के लिए करुणा. कुछ लोग हैं जो ऐसी हरकतें करते हैं जो उनके मुताबिक इस्लामिक हैं. उनसे मुझे बहुत चिंता होती है. लेकिन मुझे लगता है कि हम भी बहुत जल्दी ही लोगों को खांचों में रख देते हैं. जैसे वह बंगाली है तो ऐसा ही होगा. मुझे लगता है कि हमें वर्गीकरण पसंद है क्योंकि इससे हमें एक तरह का सुरक्षा बोध होता है. मैं वैसा ही हूं जैसा एक आधुनिक मुसलमान को होना चाहिए. मेरी शादी एक हिंदू से हुई है. मेरे बच्चे दोनों धर्मों के साथ बड़े हो रहे हैं. मैं जब इच्छा करती है, नमाज पढ़ता हूं. कई दूसरी चीजें भी हैं जो अब प्रासंगिक नहीं रही हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कुरान पर सवाल कर रहा हूं. मैं चाहता हूं लोग जानें कि इस्लाम का मतलब सिर्फ उन्माद या गुस्सा नहीं है. न ही इसके मायने किसी ऐसे शख्स से हैं जो सिर्फ जिहाद करता है. जिहाद का असल मतलब है अपने भीतर की हिंसा और कमजोरी पर विजय पाना.

काम

जहां तक काम का सवाल है तो मुझे काम की बीमारी है जो अच्छी बात नहीं है. मैं जरूरत से ज्यादा ही काम करता हूं. मेरे सामने जो अवसर आते हैं उनमें से मैं 95 फीसदी लपक लेता हूं. मैं कोई भी चीज हाथ से नहीं जाने देता. मैं हमेशा ऊर्जावान रहता हूं. हर समय काम करता रहता हूं. जबकि मुझे इसकी जरूरत नहीं है. मेरे पास अब बहुत पैसा है. खूबसूरत बच्चे हैं. अच्छी बीवी है. बढ़िया मकान है. कारोबार बढ़िया चल रहा है. मैं जानता हूं कि सब कुछ ठीक है. मगर मुझे हमेशा यह लगता है कि यह भी कर लूं, वह भी कर लूं. यह सिर्फ पैसे की बात नहीं है. लोगों को लगता है कि मैं सिर्फ पैसे के लिए काम करता हूं. लेकिन ऐसा नहीं है. मैं ऐसा इसलिए करता हूं कि यह मेरी फितरत ही नहीं है कि कोई मौका मेरे हाथ से निकल जाए. तो काम करते रहना मेरी जरूरत है. मेरे पास जो चीजें हैं मैं उनका लुत्फ उठाता हूं और मैं उन्हें खोना नहीं चाहता. लेकिन अगर यह सब चला भी जाए तो कोई बात नहीं. मेरा इससे कोई मोह नहीं है. अगर मेरे पास यह कार नहीं होगी तो मैं थ्रीव्हीलर से काम चला लूंगा. लेकिन काम के बिना मैं नहीं रह सकता. फिर भले ही वह चूहेदानी बनाने का काम हो.

मेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं है. फिर भी जब मैं अकेला होता हूं तो उदास हो जाता हूं. मेरे मां-बाप को गुजरे कई साल हो गए हैं. अब तो मैं यह तक भूल गया हूं कि वे कैसे दिखते थे. क्या यह उदासी उनकी वजह से है? पता नहीं. लेकिन अकेले में मैं उदास हो जाता हूं. इसीलिए मैं रात-दिन काम करता रहता हूं.

अपने बारे में

मैं बहुत परंपरावादी हूं. मुझे लगता है कि मेरी फिल्में पूरी दुनिया में इसलिए चलती हैं कि मेरे मूल्य अब भी वही हैं जिन्हें पुराने दौर के कहा जाता है. मैं महिलाओं से शर्माता हूं. आप सुनकर हैरान होंगे मगर अपनी बेटी की सहेलियों के साथ भी मैं ज्यादा देर तक नहीं रह पाता. मुझे लगता है कि आपको लड़कियों की दुनिया में ज्यादा नहीं घुसना चाहिए. मैंने कभी अपनी पत्नी की अलमारी या उसके हैंडबैग में झांककर नहीं देखा. मेरा मानना है कि एक महिला को ज्यादा से ज्यादा प्राइवेसी मिलनी चाहिए. कभी-कभी लड़कियां मुझसे कहती हैं कि वे मुझे पसंद करती हैं. मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्या कहूं. इसलिए इससे पहले कि वे मुझे बेवकूफ समझें मैं कुछ मजाकिया बात कह देता हूं. रोमांस के मामले में मुझे यह भी लगता है कि किसी लड़की को पहल नहीं करनी चाहिए. अपने मामले में भी मैं सोचता हूं कि काश मैंने गौरी को प्रपोज किया होता. तो मैं बहुत परंपरावादी हूं.

प्रशंसक

मुझे लगता है कि बड़ी उम्र की बहुत-सी महिलाएं, मांएं, मुझे पसंद करती हैं. मेरा मानना है कि मर्दाना छवि पसंद करने वाले पुरुषों को मैं अच्छा नहीं लगता. उनमें से आधे से ज्यादा तो यही सोचते हैं कि मैं समलैंगिक हूं. लोगों को लगता है कि मैं अच्छा आदमी हूं. वे मुझे प्यार करते हैं. जर्मनी, फ्रांस, अफगानिस्तान, तुर्की, पोलैंड, जापान, मोरक्को और चीन में कई जगहें हैं जहां लोग मुझे चाहते हैं. जर्मनी में लोग मुझसे कहते हैं कि हमारे पास हर चीज के लिए एक बटन है. ऊपर जाने के लिए, नीचे आने के लिए, कार चलाने के लिए. लेकिन हमारे पास रोने के लिए कोई बटन नहीं है. हम बहुत रुखे हो गए हैं. रोने के लिए हमारा बटन आप हो. हम आपकी फिल्में देखते हैं और रोते हैं. मुझे भीड़ बहुत अच्छी लगती है. मेरे आस-पास 10 लोग हों तो मैं असहज रहूंगा. मगर 10,000 लोग हों तो मैं सहज महसूस करूंगा. मैं कोई और होता हूं तो सहज होता हूं. मैं जब मैं होता हूं तो बहुत असहज हो जाता हूं.