बांध लूं दुनिया चोटी में…

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फुलवा, 14 साल

21 नवंबर 2012,  शाम 6 बजे, सासाराम

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 आज पूरे नौ दिन बाद स्कूल जा पाई. पापा ज्यादा बीमार हो गए थे इसलिए मम्मी ने स्कूल जाने ही नहीं दिया. वैसे भी, स्कूल में टीचर सभी बच्चों को बहुत मारते हैं. फिर स्कूल के बाथरूम से भी मुझे डर लगता है. बाथरूम की छत ऊपर से खुली है और उसमें बहुत सारे कबूतर रहते हैं. मैंने भोलू को भी बताया था कि उन कबूतरों की आंखें पास से लाल दिखाई देती हैं और वे दिन भर स्कूल के बाथरूम में गुटरगूं-गुटरगूं करके शोर मचाते रहते हैं. कई बार कबूतर दरवाजे पर ही बैठे रहते हैं  और कोई जाए तो अचानक जोर से पंख फड़फड़ाकर उड़ने लगते हैं. तब मैं बहुत डर जाती हूं और कई बार तो बिना बाथरूम किए ही बाहर दौड़ लगानी पड़ती है. मुझे पंख फड़फड़ाते हुए लाल आंखों वाले कबूतर हमेशा बहुत डरावने लगते हैं. खैर, पहले तो हमारे स्कूल में बाथरूम ही नहीं था. मैं और मेरी सारी सहेलियां बाथरूम नहीं जा पाते थे. रजिया को तो इसलिए चौथी क्लास में ही स्कूल छोड़ना पड़ा. वह कहती थी कि उसके अम्मी-अब्बू को उसका स्कूल के पास वाले मैदान में बाथरूम जाना पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने उसे स्कूल से ही निकलवा लिया. वह बहुत रोई भी थी स्कूल छोड़ते वक्त. मुझे यह सोच कर अच्छा लगता है कि मैं स्कूल जा रही हूं. जब से हम सासाराम आए हैं तबसे मुझे विश्वास होने लगा है कि मैं पढ़ पाऊंगी. जब हम एकौनी गांव में रहते थे न, तब तो बीच में मेरी पढ़ाई बंद ही करवा दी गई थी. स्कूल गांव से 12 किलोमीटर दूर था और आजी-बाबा इतनी दूर जाने देने के लिए मान नहीं रहे थे. फिर किस्मत से पापा को लोहे की फैक्ट्री में काम मिल गया और हम सासाराम आ गए. आज मैं छठवीं में पढ़ रही हूं और भोलू दूसरी में. अब मेरी क्लास में बस 10 लड़कियां ही बचीं हैं जबकि लड़के 50 हैं. लेकिन मैं बहुत खुश हूं कि स्कूल जा सकती हूं. हां, पापा ने कहा है कि तभी जा सकती हूं जब सुबह जल्दी उठकर झाड़ू-बुहारू कर दूं और सबके लिए नाश्ता बना दूं. पापा कह रहे थे कि फिर से हमारा कोई छोटा भाई-बहन आने वाला है. इसलिए मम्मी अभी सिर्फ खाना बनाएंगी. जब भी मम्मी-पापा में से कोई भी बीमार होता है तो मुझे ही घर का सारा काम देखना पड़ता हैं. मैं सुबह भोलू को उठाती हूं. हम दोनों साथ में मुंह धोते हैं और नहाते हैं.

‘कल मैं भी बीडन के खेत से तितली पकड़ लाऊंगी और फिर ‘फुलवा स्कूल जाना चाहती है भगवानजी!’,कहकर उसे उड़ा दूंगी’

फिर मैं खुद भी तैयार होती हूं और उसे भी कपड़े पहनाती हूं. फिर हम दोनों गुलाबी वाली पोंड्स क्रीम लगाते हैं जो मम्मी लगाती हैं और मैं भोलू की कंघी करती हूं. फिर मैं चाय-परांठे बनाती हूं. मैं और मम्मी चाय पीते हैं. पापा और भोलू को दूध मिलता है. मुझे कभी दूध नहीं मिला लेकिन मुझे दूध बहुत अच्छा लगता है. दूध कम होता है इसलिए सिर्फ भोलू और पापा को मिलता है. भोलू के पास स्वेटर भी नया है और उसके लिए फिर से नए दस्ताने आ गए हैं. मेरे लिए नहीं आए. मैंने मम्मी से कहा था कि बर्तन धोने के बाद मुझे स्कूल जाते हुए हाथों में बहुत ठंडी लगती है और मैं स्कूल में लिख नहीं पाती हूं. लेकिन मम्मी ने गुस्से में मुझे डांटते हुए कहा था कि जितना दिन स्कूल जाने को मिल रहा है, चुप-चाप चली जाऊं…वर्ना दो-चार पोथी-पत्रा पढ़कर कलेक्टरनी नहीं बन जाऊंगी मैं ! मम्मी कह रही थी कि बहुत जल्दी मेरी पढाई छुड़वा दी जाएगी और मेरा ब्याह हो जाएगा. कल मेरा जन्मदिन था लेकिन मम्मी ने मिठाई खरीदकर नहीं दी. मैं बहुत रोई थी क्योंकि भोलू के जन्मदिन पर तो केक आया था ! रोने पर मम्मी ने मुझे खूब मारा और फिर खुद भी रोने लगीं. उनकी तबियत खराब होने लगी थी और वो कह रही थीं कि पापा को बहुत कम पैसे मिलते हैं. पापा कहते हैं भोलू के लिए केक इसलिए आया क्योंकि वह लड़का है. पापा कहते हैं केक सिर्फ लड़कों के लिए आता है और मुझे अगर पकवान खाने का शौक है तो मैं खुद मिठाई बनाना सीख लूं.  

तो क्या मैं स्कूल नहीं जा पाऊंगी? अरे नहीं, मुझे तो पढ़ना था! मैं पापा के सामने हाथ जोड़कर कहूंगी कि मुझे प्लीज पढ़ने जाने दो. मैं सारे बर्तन धो दूंगी. नए दस्ताने या स्वेटर भी नहीं मांगूंगी. मुझे केक भी नहीं चाहिए और मैं मिठाई बनाना भी सीख लूंगी. लेकिन प्लीज मुझे पढ़ने जाने दो ! स्कूल के टूटे बाथरूम के लाल आंखों वाले कबूतरों से भी नहीं डरूंगी, सच्ची पापा ! बिट्टी कहती है कि रंगबिरंगी तितली को पकड़ कर डब्बे में बंदकर के थोड़ी देर बाद उड़ा देने से भगवानजी सारी इच्छा मान जाते हैं. कल मैं भी बीडन के खेत से तितली पकड़ लाऊंगी और फिर ‘फुलवा स्कूल जाना चाहती है भगवानजी!’,कहकर उसे उड़ा दूंगी. शायद भगवानजी मेरी बात भी सुन लें !  

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रागिनी, 16 साल

22 नवंबर 2012, रात नौ बजे, तिलक नगर, झांसी

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पिछले साल तक तो सभी लड़कियां स्कर्ट्स पहनती थीं लेकिन इस बार नए प्रिंसिपल ने 9th क्लास से लड़कियों के लिए सलवार कमीज जरूरी कर दी है. घर में मम्मी और बाहर स्कूल, सबने मिलकर मेरी पूरी अलमारी बदल दी है. मेरे कबड्डी और बास्केट-बॉल वाले शार्ट्स हटा दिए गए हैं. डायरी, तुम तो जानती हो कि मुझे बास्केट-बॉल और कबड्डी खेलना कितना पसंद है ! इस साल तो मेरा स्टेट टीम के लिए सेलेक्शन भी हो गया था लेकिन मम्मी-पापा जाने दं तब न. सबको सिर्फ बोर्ड्स की पड़ी है. तुम्हें याद है न, पापा ने कितना मारा था? सब उस बबलू की वजह से हुआ था. या शायद पापा की वजह से. तुम्हें क्या लगता है? अरे वही बबलू जो ट्यूशन के बाद मेरा पीछा करता था और बार-बार कहता था कि वह मुझसे दोस्ती करना चाहता है. याद आया? उसने घर पर कई ब्लैंक काल्स भी किए थे. अब तिलक नगर इतनी छोटी जगह है कि पापा को किसी ने बता दिया. मुझे आज भी याद है वो शाम. मैं ट्यूशन से वापस आई थी और बहुत खुश थी. गुल्लक के पैसों से मैंने साइकिल के आगे एक प्लास्टिक बास्केट लगवाई थी! तुम्हें याद है न वो बास्केट डायरी? ब्लैक कलर की थी और उस पर येलो –पिंक और ग्रीन कलर के तीन फूल बने थे. हुर्रे ! मैं आज भी कितनी खुश हो जाती हूं उसे याद करके. रक्षाबंधन और चाट-गोलगप्पों के पैसे जोड़कर खरीदा था उसे.  मैं  मम्मी पापा को कबड्डी के लिए डिस्ट्रिक्ट और बास्केट बाल के लिए स्टेट टीम में हुए अपने सेलेक्शन की खबर देने वाली थी.

लेकिन उससे पहले तो मुझपर डांट का पहाड़ टूट पड़ा. पापा ने कहा कि मैं ट्यूशन जाने की बजाय साइकिल में डलिया लगवाकर आवारागर्दी कर रही हूं मम्मी ने भी मुझे चांटा मारते हुए कहा कि इस खेल-वेल के चक्कर ने मुझे बहुत बिगाड़ दिया है. उन्होंने ज्योति और दीप्ति का भी नाम लिया था और कहा था कि मैं खराब लड़कियों के साथ खेलती हूं. ज्योति और दीप्ति मेरी टीम में थीं और जब भी वे घर आतीं हम तीनों घर पर ही खेलना शुरू कर देते. मम्मी को यह पसंद नहीं था. असल में उन्हें लगता है कि ज्योति और दीप्ति अच्छे घर से नहीं आतीं.. तुम्हें याद है डायरी, आखिरी दिन तो मम्मी ने ज्योति और दीप्ति के सामने ही कहा था कि, ‘इतनी बड़ी हो गई हो. कपड़े ढंग से नहीं पहन सकतीं? मां ने कुछ बताया नहीं क्या? पूरा शरीर थुल-थुल हो गया है और घोड़ी जैसे खेलते रहती हैं ! यहां आकर मत खेला करो. छत पे सब आदमी लोग देखने लगते हैं, और अब दुपट्टा ओढ़ना शुरू करो ठीक से.’ हम तीनों ही रोने लगे थे. मम्मी को पता था कि दीप्ति और ज्योति के पापा नहीं हं. उनकी मां सिलाई की दुकान चलाती हैं. उनका घर हमारे घर जितना बड़ा नहीं. फिर भी उन्होंने. उस दिन के बाद से वो कभी मेरे घर नहीं आईं. उन्होंने खेलना भी छोड़ दिया है. सोचा था कि मैं स्टेट लेवल जीतकर नेशनल टीम में जाऊंगी. पता नहीं उस साले बबलू और मम्मी-पापा ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? हमारे झांसी से तो आजतक कोई लड़की बास्केट बाल और कबड्डी की स्टेट टीम में शामिल ही नहीं हुई, अखबारों में भी छपा था.

लेकिन मम्मी पापा ने जाने नहीं दिया. उनका कहना था कि बबलू मेरा पीछा करता है इसमें जरूर मेरी गलती है. पापा ने कहा कि मेरे पंख उग आए हैं. मैं साइकिल पर आवारागर्दी करती हूं, बबलू को सड़क पर देखकर मुस्कुराती हूं. पापा को शर्मा अंकल ने बताया था कि मैं मुस्कुराते हुए साइकिल चलाती हूं और उस शाम पापा ने मुझे मारते हुए कहा था कि मैंने कॉलोनी में उनकी इज्जत डुबो दी. डायरी, जब से पापा ने मेरी चोटी पकड़ के खींची और मुझे बहुत सारे थप्पड़ मारे तब से रोज मेरा सर दुखता है. फिर उन्होंने कहा कि अब मेरा खेलना बंद, मैं बोर्ड की तैयारी करूं और शाम को मम्मी के साथ खाना बनाऊं. उस दिन मैंने पहली बार पलट कर कहा था कि मैं खेलना नहीं छोडूंगी और पापा ने मुझे बहुत मारा था. मेरी पीठ पर मुक्के पड़े थे. लेकिन डायरी, मैं उस समय रो नहीं रही थी इसलिए पापा ने मुझे और मारा और तब तक मारा जबतक मैं रोने नहीं लगी. मेरी पीठ आज भी दुखती है. मम्मी ने कहा कि मेरे पर कतरने की जरूरत है. उन्होंने मेरी साइकिल से फूलों वाली बास्केट निकाल दी और कहा कि पीछे कैरियर में बैग दबा के स्कूल जाओ. डायरी, मुझे बास्केटबाल कोर्ट जाना है. मैंने कब से बास्केट करने की प्रैक्टिस नहीं की. मैं बबलू को नहीं जानती. उन्होंने मेरी फूलों वाली बास्केट क्यों तोड़ दी? मेरे खेल का मैदान क्यों छीन लिया डायरी? मैं कहां जाऊं ? मम्मी-पापा आज मुझसे अच्छे से बात करते हैं. लेकिन उन्होंने मेरी फूलों वाली डलिया तोड़ी है. मुझसे मेरा मैदान वापस ले लिया है. मैं उन्हें कभी माफ नहीं करूंगी.

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निवेदिता, 19 साल

19 नवंबर 2012, रात 10 बजे, शिमला

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पापा के तबादले के बाद पहली एंट्री लिख रही हूं. इस बीच सब इतना गड्ड-मड्ड और उलझा हुआ रहा कि मैं अपने-आप को किसी एक धुरी में स्थापित ही नहीं कर पा रही थी. बारहवीं के नतीजे, दिल्ली के किसी ठीक-ठाक कालेज में दाखिले की भाग-दौड़, फिर अचानक दिल्ली विश्वविद्यालय के वेंकटेश्वर कालेज में मेरे दाखिले की खबर आना! कितनी अच्छी शाम थी वो! मैं अपने एडमिशन की वजह से काफी दिनों से परेशान थी और अचानक वेंकी किल्यर कर लेने की खबर से बहुत राहत मिली थी. मैं तो ठीक से खुश भी नहीं हो पाई थी कि पापा के तबादले की खबर आ गई और मुझे लगा, अब ये क्या है? मैं किसी कीमत पर दिल्ली यूनिवर्सिटी से सीधा शिमला यूनिवर्सिटी जाने को तैयार नहीं थी. उफ़, मैंने कितना झगड़ा किया था! मां-पापा और रिश्तेदार… सबके  सामने जोर-जोर से चिल्ला रही थी! और हां, दो दिनों तक खाना को हाथ भी न लगाना भी मेरे विरोध की स्कीम का हिस्सा था. और मैं ये सब करती भी क्यों नहीं? आखिर दिल्ली मेरा अपना शहर है. मुझे याद है, पहले दरियागंज में मेरा बस स्टाप हुआ करता था, कनेर के पीले फूलों वाले पेड़ों के पास. जब मैं छोटी थी तो रोज एक कनेर का फूल शर्ली मैडम के लिए ले जाया करती थी. फिर, हमारा परिवार मुनीरका डीडीए फ्लैट्स में सेटल हो गया था.

तब मैं 8th क्लास में पढ़ती हूंगी. मेरा दाखिला जेएनयू कैंपस में बने केंद्रीय विद्यालय (केवी) में करवा दिया गया था. मुझे वो वक्त बहुत याद आता है. मेरे सारे  दोस्त दिल्ली के ही हैं. हम खूब मस्ती करते थे और क्लासेस बंक करके प्रिया में फिल्मे देखने जाया करते थे. सुबह के शोज में सिर्फ 60 रूपये का टिकट मिलता था न, इसलिए मैं, स्वाति, खुशबू, तृप्ति और रोहित. कभी-कभी हम अमित और अनुराग को भी अपने साथ ले जाते थे. लेकिन सिर्फ कभी-कभी…क्योंकि वो लोग अपने स्टूपिड जोक्स और फ़ालतू के एटिट्यूड की वजह से हमें बहुत झिलाते थे…! आज मुझे अपने स्कूल के सारे दोस्तों की बहुत याद आती है. मैं कभी शिमला नहीं आना चाहती थी लेकिन मां-पापा इतने पजेसिव हैं न मुझको लेकर..कि मेरे बॉय-फ्रेंड्स भी शर्मा जाते हैं. मैंने अपनी विरोध प्रदर्शन स्कीम के तहत खूब हंगामा मचाया तो था लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहने का जिक्र आते ही मां ने जो हंगामा किया कि बस! रोते-रोते वो बीमार पड़ गयीं और आखिरकार शिमला आने के लिए राजी होना ही पड़ा. 

खैर, मैंने अभी तक हिम्मत नहीं हारी है. मैं 2nd इयर में वापस दिल्ली जाने का मन बना चुकी हूं. इंटरनेट पर कालेजों के डिटेल्स पढ़ती रहती हूं. और इस बार मां मुझे ‘जवान अकेली लड़की’ होने की वजह से नहीं रोक पाएंगी. मेरे आस-पास सभी लोग कहते हैं कि जवान लड़की को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए..सबसे ज्यादा चाचा-चाची. मुझे बहुत गुस्सा आता है. क्या जवान होने से मेरे सींग उग आए हैं? तो फिर क्यों इतना हल्ला हो रहा है? ये मत करो, वो मत करो, यहां मत जाओ…और मां तो अचानक मेरे कपड़ों के पीछे पड़ गई हैं ! कई बार मुझे लगता है कि वो मेरा दोस्त होने का दिखावा करती हैं. असल में वो मेरे बॉय-फ्रेंड्स के बारे में जानना चाहती हैं! मुझे पता है,चाचाजी इसकी बड़ी वजह हैं. उन्होंने मुझे रोहित के साथ दो बार कनॉट प्लेस के एक आइसक्रीम पार्लर में देख लिया था और फिर शोभित के साथ सिनेमा हॉल के बाहर. मैंने उनको मां से कई बार कहते सुना है कि लड़की हाथ से निकल गई !!….हंसते-हंसते मेरा पेट दुखने लगा है…अरे मैं हाथ में थी कब? और मैं क्या मां का कोई हैंड-बैग हूं जो हाथ में रहूंगी?

असल में चाचाजी कन्फ्यूज़ हो गए होंगे कि शोभित और रोहित में से मेरा बॉय-फ्रेंड कौन है ! लेकिन जब अभी तक मैं खुद कन्फ्यूज़ हूं तो उन्हें कैसे पता चल सकता है? नहीं नहीं, मैं दो लड़कों में कंफ्यूज़ नहीं हूं ! शोभित तो हमेशा से मेरा सबसे अच्छा दोस्त है. रोहित को लेकर मेरे मन में फीलिंग्स तो हैं लेकिन मुझे थोड़ा टाइम चाहिए. अभी मैं श्योर नहीं हूं क्योंकि कभी कभी मुझे उसके साथ बिल्कुल अच्छा नहीं लगता और कभी-कभी बहुत अच्छा लगता है. लेकिन मैं उसके साथ बस थोड़ी ही देर के लिए खुश रहती हूं. फिर, पता नहीं क्यों मुझे उदासी घेर लेती है और गुस्सा होने पर वो मुझे उतना नहीं मनाता जितना हिंदी की पुरानी टेक्स्ट-बुक में राजकुमार ने फूल-कुमारी को मनाया था ! क्या? तुम्हें मैं स्टूपिड लग रही हूं? अरे! मैं क्या फूलकुमारी से कम हूं? मतलब, मैं एक बहुत सुंदर और समझदार लड़की हूं और मैं नाराज हो जाऊं या उदास रहूं तो मुझे बहुत सारा मनाया जाना चाहिए. अरे, क्योंकि पैंपर किया जाना और ध्यान रखा जाना मुझे बहुत पसंद है. फिर मैं भी इतने प्यार से सबके साथ रहती हूं ! और सिर्फ अटेंशन ही तो मांगती हूं, और क्या? ओफ़-फ़ो, मां दो बार मेरे कमरे में आ चुकी हैं और हर बार मेरे हाथों में डायरी देखकर गुस्सा हो रही हैं. उन्हें मेरा डायरी लिखना पसंद नहीं.  इससे पहले कि आधी रात  को घर में महायुद्ध शुरू हो जाए, मुझे सो जाना चाहिए.  गुड बाय डायरी, सी यू लेटर ! 

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रात तीन बजे

मुझे नींद नहीं आ रही.  शिमला में दिल्ली के मुकाबले ज्यादा ही शांति है.  यहां हमारा नया घर एकदम अंग्रेज़ीदां कॉटेजनुमा है और मेरा बिस्तर ठीक खिड़की के नीचे.  बाहर इतनी ठंड है फिर भी मैंने खिड़की खोल ली. बहुत बेचैनी हो रही है.  पता नहीं मैं दिल्ली जा पाऊंगी या नहीं? मुझे वेंकी में इंग्लिश लिटरेचर पढना था.  थियेटर भी ज्वाइन करना था  और फ्रेंच की क्लासेस  करनी थी यार, अब मैं क्या करूंगी? यहां शिमला में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, बस डिप्रेशन होता है.  लेकिन एक आइडिया है, मैं अगले एक साल में इंग्लिश लिटरेचर की कुछ ज़रूरी किताबें पढ़ कर ख़त्म कर देती हूं और अगले साल किसी भी हालत में दिल्ली वापस जाऊंगी.  मैं अपने सपने ऐसे खत्म नहीं होने दूंगी.  और कालेज की सारी मस्ती? कितने सपने देखे थे मैंने कालेज के लिए! एसएन मार्केट से लॉन्ग स्कर्ट्स और हॉट पैन्ट्स खरीदूंगी…थिएटर करूंगी…और थाई कुकिंग भी सीखूंगी! यहां शिमला में सिर्फ पेड़ और बर्फ देखकर घूमते हुए मैं पक गई हूं.

 मेरे सारे दोस्तों को लगता है कि मैं पहाड़ों में मजे कर रही हूं. पर उन्हें कैसे बताऊं कि मेरा दम घुटता है यहां ! इस कॉलेज का माहौल भी बहुत दकियानूसी है. मुझे सबसे ज्यादा बुरा लड़कियों को देखकर लगता है. पिछले दिनों यहां शबनम और वंदना से मेरी ठीक-ठाक दोस्ती हो गई है लेकिन वो लोग मुझसे बहुत अलग हैं.  आई मीन, शबनम का एक बॉय-फ्रेंड है और वो उससे मिलने के लिए रोता रहता है पर वो जाती ही नहीं.  मतलब एक कॉफी पीने तक नहीं जाती! वो हर रोज़ डिपार्टमेंट के आगे खड़ा उसका इंतजार करता रहता है. बहुत कहने पर सिर्फ एक छोटी सी वॉक के लिए राजी हुई.  

‘मेरे आस-पास सभी लोग कहते हैं कि जवान लड़की को अकेले नहीं छोड़ना चाहिए..मुझे बहुत गुस्सा आता है. क्या जवान होने से मेरे सींग उग आए हैं? ’

और दूसरी तरफ दिन भर खुद भी रोती रहती है कि मैं अपने ‘शोना’ से नहीं मिल पाती! कितना अजीब है ! ऐसे अफेयर्स तो मैंने पहेली बार देखे. कल मैंने दोनों को बिठा के पूछा कि उनकी प्रॉब्लम आखिर है क्या! तो कहने लगीं कि अच्छी ‘इंडियन’ लड़कियां ऐसे खुले आम अपने बॉय फ्रेंड्स के साथ घूमने नहीं जाती और शादी से पहले हमेशा वर्जिन रहती हैं. मैं एकदम चौंक गई और मुझे बहुत गुस्सा आया. क्या बकवास है ! कोई मुझे बताएगा कि ये ‘अच्छी इन्डियन लड़की’ होना क्या होता है? मां भी पीछे पड़ी रहती है कि भारतीय लड़कियां ऐसी होती हैं..वैसी होती हैं… हर रोज़ खाना बनाती हैं…नज़रें नीचे रखती हैं…ज्यादा नहीं बोलतीं…ऊंचा नहीं बोलतीं…अपने ‘सेंसिटिव’ कपड़ों पर चादर या तौलिया डालकर ही सुखाती हैं…टायलेट्स का रास्ता सिर्फ लड़कियों से ही पूछती हैं…शोर्ट्स नहीं पहनतीं…जोर से नहीं हंसतीं..सड़क पर किसी को 10 सेकेंड से ज्यादा नहीं देखती (नहीं तो सामने वाले को लगेगा कि लड़की ‘इंट्रेस्टेड’ है और ये तो लड़की की ही गलती होगी!)…और शराब या सिगरेट तो बिल्कुल नहीं..और हां, मां कहती है कि अच्छी इंडियन लड़कियां ज्यादा देर तक फोन पर बात नहीं करतीं या इंटरनेट पर चैट नहीं करतीं !

वो घर में पढ़ती हैं और फिर पूजा भी करती हैं! शोभित भी कहता था कि अच्छी इंडियन लड़कियां फेसबुक पर फोटोज अपलोड नहीं करती. और शॉर्ट्स या स्कर्ट्स वाले सेक्सी फोटोज तो बिल्कुल नहीं. और अब शबनम और वंदना ! उफ़! मुझसे तो यह सब हैंडल नहीं होता.  मीरा दीदी कहती है कि जब कोई भी चीज़ समझ में न आए तो उसके बारे में पढना चाहिए और जानने की कोशिश करनी चाहिए.  मैं सोचती हूं, इस बारे में शोभित से बात करूंगी और मीरा दीदी को भी एक मेल करूंगी! लेकिन वो हर बात पर मुझे अमेरिका से कुछ किताबें और बाकि ई- बुक्स के लिंक्स भेज देती हैं जबकि मैं उनसे सिर्फ छोटे आर्टिकल्स भेजने के लिए कहती हूं.  ज्यादा पढ़ाकू बड़ी बहनें कभी-कभी कितना बड़ा टॉर्चर हो जाती हैं.  लेकिन वो तो मेरी सबसे प्यारी दोस्त और गाइड है.  मैं बड़ी होकर उसी की तरह स्मार्ट और सुपर सेक्सी बनना चाहती हूं . और काश मेरे पास भी सिद्धार्थ जीजू के जैसा बॉय-फ्रेंड हो ! दीदी की लाइफ कितनी परफेक्ट है न ! दीदी हमेशा कहती थी कि मुझे अपने से अलग दोस्तों को लेकर हार्श नहीं होना चाहिए.  लेकिन मुझे सच में लगता है कि अगर एक अच्छी इंडियन लड़की शादी से पहले किस नहीं करती या डेट पर नहीं जाती या अपने पसंदीदा हीरो.. क्रिकेटर..बॉय-फ्रेंड या सिंगर के सपने देखकर खुश नहीं हो सकती….और खुद को एक सुपर-हॉट दीवा के तौर पर इमैजिन करने में उसे शर्म आती है तो शायद मैं एक अच्छी इंडियन लड़की नहीं हूं !

डायरी लेखन: प्रियंका दुबे/इलेस्ट्रेशन: मनीषा यादव